हिन्दी फिल्मों में होली के रंग कई बार उड़े लेकिन ऐसी फिल्में बहुत कम हैं जिनमें होली को एक किरदार की तरह इस्तेमाल किया गया या जिनमें होली ने फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाने का काम किया.
पहला नाम राजिंदर सिंह बेदी की फिल्म ‘फागुन’ का नजर आता है. होली का दिन है और ‘फागुन आयो रे…’ गा रही नायिका (वहीदा रहमान) की कीमती साड़ी पर उसका घरजमाई नायक पति (धर्मेंद्र) रंग डाल देता है. नायिका ताना देती है और नायक घर छोड़ कर चला जाता है. इसके बाद नायिका की होली फिर कभी पहले जैसी नहीं रहती. इस पूरे प्रसंग और बाद की कहानी के जरिए फिल्म असल में यह कहती है कि जो लोग उल्लास से भरे त्योहारों की उपेक्षा करते हैं उनके जीवन से ही उल्लास खत्म हो जाता है.
यश चोपड़ा की ‘सिलसिला’ में कभी एक-दूजे के करीब रहे नायक-नायिका (अमिताभ बच्चन-रेखा) होली के मौके पर फिर अंतरंग हो उठते हैं. ‘रंग बरसे भीगे चूनर वाली…’ की तान पर दोनों नाच-गा रहे हैं और नायक की पत्नी (जया बच्चन) व नायिका का पति (संजीव कुमार) हैरान-परेशान हैं. यह गाना हिन्दी फिल्मों के होली-गीतों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है और हर साल होली के दिन हर जगह यह गीत खूब बजाया-गाया, सुना-सुनाया जाता है.
राजकुमार संतोषी की ‘दामिनी’ में नायिका (मीनाक्षी शेषाद्रि) होली के दिन अपने देवर और उसके दोस्तों को घर की नौकरानी से बलात्कार करते हुए देख लेती है और इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठा कर अपने ही परिवार के विरुद्ध खड़ी हो जाती है. शक्ति सामंत की ‘कटी पतंग’ में विधवा नायिका आशा पारेख होली के हुड़दंग से दूर खड़ी है. वहीं नायक राजेश खन्ना उसे प्रेम-संदेश देते हुए गा रहा है-‘आज न छोड़ेंगे बस हमजोली, खेलेंगे हम होली….’ गाने के अंत में नायक का छिड़का रंग उस विधवा के माथे पर गिरता है जो असल में उसके वैधव्य और समाज की सोच को बदलने का प्रतीक है.
और ‘शोले’ को भला कैसे भूला जा सकता है? ‘होली कब है, कब है होली?’ खलनायक गब्बर सिंह का यह संवाद बरसों बाद भी तरोताजा है. इस फिल्म में नायिका जया बच्चन के चुलबुले किरदार का परिचय होली के दिन ही सामने आता है. वहीं ‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं…’ गाते धर्मेंद्र-हेमा मालिनी के करीब आने के साथ-साथ यह होली रामगढ़ पर गब्बर के आतंक की आहट लेकर भी आती है. नायक जय और वीरू से गब्बर का पहला सामना इसी दिन होता है और इसी के बाद इस फिल्म की कहानी अपने अंत की ओर बढ़ती है.
‘मशाल’ में ‘होली आई होली आई देखो होली आई रे…’ पर नाचते-गाते अनिल कपूर-रति अग्निहोत्री एक-दूजे के करीब आते हैं तो वहीं दिलीप कुमार-वहीदा रहमान भी. आदित्य चोपड़ा की ‘मोहब्बतें’ में प्यार का पैगाम लेकर आया म्यूजिक टीचर शाहरुख खान अपने तीन छात्रों को उनकी प्रेमिकाओं के साथ होली खेलने को प्रेरित करता है जबकि परंपरा, प्रतिष्ठा और अनुशासन की दुहाई देने वाले कड़क प्रिंसिपल अमिताभ बच्चन को इससे दूर रखा जाता है. सुभाष घई की ‘सौदागर’ में होली के दिन ही बरसों से दूर रह रहे दो दोस्त दिलीप कुमार-राज कुमार फिर मिलते हैं और कहानी को आगे बढ़ाते हैं.
यश चोपड़ा की ‘डर’ में नायिका जूही चावला का सनकी प्रेमी शाहरुख खान होली के दिन अपने चेहरे को रंग कर उसके करीब जा पहुंचता है और उसके मंगेतर सनी देओल के पीछा करने पर होली के हुड़दंग में ही कहीं गायब भी हो जाता है. महबूब साहब की ‘मदर इंडिया’ में ‘होली आई रे कन्हाई रंग छलके…’ के नाच-गाने के बाद सुनील दत्त पर गांव की एक लड़की के साथ बदतमीजी का आरोप लगता है और उसे गांव छोड़ कर जाना पड़ता है. सुनील दत्त ‘जख्मी’ में होली के दिन ही ‘दिल में होली जल रही है…’ गाते हुए बदले की भावना लेकर निकलते हैं.
रवि चोपड़ा की ‘बागबान’ में अलग-अलग शहरों में रह रहा परिवार होली के मौके पर एकत्र होकर गाता है-‘होरी खेलें रघुबीरा अवध में….’ ‘यह जवानी है दीवानी’ में किताबी कीड़ा बनी नायिका दीपिका पादुकोण एक टूर से लौटते हुए ‘बलम पिचकारी जो तूने मुझे मारी…’ की तान पर एक नए ही रूप में सामने आती है. ‘रांझणा’ में नायिका सोनम कपूर के रंग में रंगा नायक धनुष अपनी बचपन की दोस्त स्वरा भास्कर के निमंत्रण को होली के ही दिन ठुकराता है. अक्षय कुमार की ‘जॉली एल.एल.बी. 2’ में होली के दिन एक मजलूम लड़की वकील बने अक्षय से इंसाफ की गुहार लगाती है और यहीं से फिल्म की कहानी एक नई पटरी पर चल पड़ती.
(संपादन: ऋषभ राज)
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