गुंदीबाग त्राल (पुलवामा): एक बड़े से ख़ाली कमरे में ज़मीन पर बस एक दरी बिछी हुई थी जिस पर कुछ तकिए रखे हुए थे. जीवन के पांचवें दशक में पहुंच चुके छोटे कद के ग़ुलाम हसन डार यहीं बैठे हुए थे. उन्होंने भूरे रंग का फेरन पहन रखा था. ग़ुलाम का बेटा आदिल डार जैश-ए-मोहम्मद का आत्मघाती हमलावर था जिसने सीआरपीएफ की बस में विस्फोटकों से लदी अपनी एसयूवी को दे मारा था. जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 40 जवानों की हत्या की इस घटना को 20 दिन बीत चुके हैं.
डार के पिता ने कहा कि 14 फरवरी को मारे गए सिपाहियों के परिवार के लिए उन्हें ठीक वैसा ही महसूस होता है जैसा उन्हें उनके बेटे के लिए महसूस होता है. डार ने पुलवामा के गुंदीबाग के अपने घर में दिप्रिंट से कहा, ‘मुझे पता है कि वो कहेंगे कि मैं एक आतंकी का पिता हूं. ये एक ऐसा सच है जिससे मैं अपना मुंह नहीं मोड़ सकता. लेकिन एक पिता के नाते मैं उनके दर्द को भी महसूस कर सकता हूं.’
कश्मीर में हिंसा के अंतहीन चक्र की वजह से लगभग हर रोज़ युवाओं की जानें जा रही हैं और डार को लगता है कि इसे रोकने का बस एक ही तरीका है. डार कहते हैं, ‘बात की जानी चाहिए. अगर आप युद्ध के लिए निकलते हैं तो भी आपको अंत में बातचीत की मेज पर वापस लौटना ही पड़ेगा.’ साथ ही उन्होंने कहा कि जब तक सभी हितधारक बात करके फैसला नहीं लेते तब तक और भी युवा मारे जाएंगे.
वो कहते हैं, ‘ये आज मेरे बेटे के साथ हुआ है कल किसी और का बेटा होगा. उसकी उम्र के कई और प्रेरित होकर आज़ादी के लिए बंदूक उठा लेंगे. इसे रोकना ही पड़ेगा. ये किसी के मरने की उम्र नहीं है.’ डार का 21 साल का भतीजा मंज़ूर अहमद भी सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया था. एक और भतीजे समीर अहमद ने भी उग्रवाद के लिए घर छोड़ दिया है.
एक दिगभ्रमित बेटा
जब उनसे कोई पूछता है कि उनके बेटे ने हथियार क्यों उठाया तो वो पीले पड़ जाते हैं. डार ने कहा कि उन्होंने हाल ही में पढ़ा था कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने भारत से इस बात पर आत्मनिरीक्षण करने को कहा है कि आख़िर युवा कश्मीरी लड़के हथियार क्यों उठा रहे हैं.
डार पूछते हैं, ‘मुझे लगता है (इमरान ख़ान) सही कह रहे हैं. क्या भारत में कभी किसी ने इस पर बैठकर सोचने की परवाह की? 18-25 साल के युवा इसलिए हथियार उठा रहे हैं क्योंकि उन्हें उस ओर ढकेला जा रहा है. ये ना तो बेरोज़गारी के बारे में है, ना ही ग़रीबी और ना तो सिर्फ कट्टर बनाए जाने के बारे में है. ये तो वो साधारण तर्क हैं जिन्हें अक्सर दिया जाता है.’
उन्होंने आरोप लगाया कि 2016 में पहली बार सुरक्षा बलों ने उनके बेटे पर हमला किया था. उस वक्त वो पास ही में स्थित नेवा गांव के अपने दादा-दादी के घर से लौट रहा था. उन्होंने आगे कहा कि ये एक विरोध प्रदर्शन के दौरान हुआ था. प्रदर्शन हिज़बुल मुजाहिद्दीन के कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद आयोजित किया गया था.
डार आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘वो विरोध प्रदर्शन में फंस गया…उसके 15 साल के दोस्त को सुरक्षा बलों ने घायल कर दिया था और आदिल जब उसकी मदद करने की कोशिश कर रहा था तब आर्मी ने उसके पैर पर गोली चला दी. 2017 में आर्मी ने उसे फिर से पकड़ लिया और पीटा. उसे ज़मीन पर नाक रगड़ने पर मजबूर किया गया. जब वो घर आया तो उसके शरीर से ख़ून बह रहा था और उसने हमसे कहा कि ऐसे अपमान में जीने से मर जाना बेहतर है.’
डार ने कहा कि परिवार वालों ने उसे समझाने की कोशिश की. डार कहते हैं, ‘हमने उससे कहा कि उसे इन चीज़ों को दिल पर नहीं लेना चाहिए और यहां ऐसा इसलिए हो रहा है कि बाकी किसी जगह पर कश्मीर जैसी समस्या नहीं है.’ लेकिन बेटे ने पिता की नहीं सुनी. डार कहते हैं, ‘उसने कहा कि वो आज़ादी चाहता है और आज़ादी के लिए वो अपनी जान दे सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘युवा पीढ़ी की सोच अलग है. मुझे बताइए कि एक बाप के तौर पर मैं तब क्या करूं जब ये युवा बाहर जाते हैं और देखते हैं कि उनकी उम्र के किसी न किसी को आए दिन सुरक्षा बलों के ऐसे ही अपमान का सामना करना पड़ा रहा है?’
मुज़फ्फर अहमद वानी- एक और पिता का गहरा होता ज़ख्म
गुंदीबाग से एक किलोमीटर की ड्राइव पर त्राल का शरीफाबाद गांव है. शरीफाबाद वो जगह है जहां बुरहान वानी रहता था. 2016 में मुठभेड़ में हुई उसकी मौत ने राज्य में भारी अशांति पैदा कर दी. इससे घाटी में उग्रवाद को नई जान मिल गई. किसी न किसी रूप में ये अशांति अभी तक जारी है.
बुरहान के पिता मुज़फ्फर अहमद वानी गणित के शिक्षक हैं. वो उसी गांव में अपने परिवार के साथ रह रहे हैं. शुरुआत में तो वानी बातचीत करने की मनोदशा में नहीं दिखे. उन्होंने कहा कि फिलहाल तो घाटी में हालात बदलते नज़र नहीं आ रहे. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं पहले ही दो बेटे खो चुका हूं. अब तो मुझे ज़िंदगी में आगे बढ़ने दीजिए. हर बार जब मीडिया मुझसे बात करने आती है तो मुझे ये डर सताता है कि सुरक्षा बल एक बार फिर मेरे दरवाज़े पर दस्तक दे सकते हैं.’
सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल वानी कहते हैं कि कश्मीर मसले का ऐसा हल किया जाना चाहिए कि ये हमेशा के लिए समाप्त हो जाए. उन्होंने कहा, ‘सरकार को इसे लंबे समय तक नहीं बने रहने देना चाहिए. उन्हें पाकिस्तान, जम्मू-कश्मीर और लेह के लोगों से बात करनी चाहिए.’ वानी आगे कहते हैं, ‘कश्मीर भी वोट बैंक बनकर रह गया है.’
उन्होंने कहा, ‘कौन से मां-बाप नहीं चाहते कि उनके बेटे को अच्छी शिक्षा और सम्मानजनक नौकरी मिले ताकि उसका घर बस जाए. मैं चाहता था कि मेरा बड़ा बेटा अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट करे लेकिन वो सुरक्षाबलों की गोलीबारी में मारा गया. मैं चाहता था कि बुरहान एक आईएएस या आईपीएस अधिकारी बने लेकिन भाग्य ने तो मेरे लिए कुछ और ही तय कर रखा था.’
वानी कहते हैं कि कश्मीर में आज के दौर में जैसे हालात हैं उसकी वजह से युवा हथियार उठाने को मजबूर हो रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘वो बेहद अधीर हो उठे हैं. वो हमारी पीढ़ी की तरह डरपोक नहीं है. उनमें हथियार उठाने को लेकर ज़रा भी डर नहीं है. ये बावजूद इसके है कि उन्हें अच्छे से पता है कि सुरक्षा बल वाले उन्हें अभी नहीं तो बाद में मार डालेंगे. ये चलन ख़तरनाक है.’
भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत की वकालत करते हुए वानी कहते हैं कि ‘मानवता’ हर बातचीत का आधार होना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘जब हाल ही में पाकिस्तान के द्वारा भारतीय एयर फोर्स के पायलट को रिहा किया गया तो हमें ख़ुशी हुई. इसने साबित किया कि मानवता अभी भी ज़िंदा है.’
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