नई दिल्ली: दिल्ली में अनाधिकृत जमीन पर धार्मिक संरचनाओं को तोड़ने को लेकर उपराज्यपाल वीके सक्सेना और आम आदमी पार्टी सरकार के बीच जारी हालिया विवाद आस्था, राजनीति और रेड टेपिज्म का घालमेल बन चुका है.
दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में 67 मंदिर, 6 मज़ार और एक गुरुद्वारा को तोड़ने के लिए चिन्हित किया गया है. राज निवास से मिली जानकारी के अनुसार अनाधिकृत धार्मिक संरचनाओं को तोड़ने से जुड़ी फाइलें दिल्ली के गृह मंत्री मनीष सिसोदिया के पास पेंडिंग थी जिसकी वजह से हाईवे, फ्लाईओवर और सरकारी रेसीडेंशियल प्रोजेक्ट्स रुके हुए हैं.
हालांकि एलजी द्वारा उठाए गए सवालों पर बीते सोमवार सिसोदिया ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा, ‘एलजी ने आरोप लगाया है कि मैं फाइलों पर बैठा हूं. मेरे पास 67 मंदिरों, 6 मजारों और एक गुरुद्वारा को तोड़ने के लिए 19 फाइलें आईं. मैंने हर धार्मिक संरचना का आकलन किया. ये मसले धार्मिक भावनाओं से जुड़े हैं.’
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— Manish Sisodia (@msisodia) February 20, 2023
सिसोदिया ने कहा कि पुलिस रिपोर्ट बताती है कि हर मामले में श्रद्धालुओं, स्थानीय लोगों की तरफ से विरोध जताया जाएगा और दंगे जैसी स्थिति भी बन सकती है. उन्होंने परियोजनाओं के ढांचे में परिवर्तन की एलजी को सलाह दी.
लेकिन राज निवास के अधिकारियों का कहना है कि धार्मिक संरचनाओं को तोड़ने वाली फाइलों पर केजरीवाल सरकार ने ही मंजूरी दी है.
एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “दिल्ली सरकार के गृह विभाग के अंतर्गत आने वाली धार्मिक कमिटी ने दिल्ली-सहारनपुर एक्सप्रेस-वे के रास्ते में आने वाले 23 अनाधिकृत धार्मिक संरचनाओं को तोड़ने की सिफारिश की थी. सिसोदिया ने 9 दिसंबर को इनमें से 9 संरचनाओं को तोड़ने की मंजूरी दे दी और एक फरवरी को केजरीवाल ने भी इसे मंजूर कर दिया.”
उन्होंने कहा, “फाइलों को मंजूरी देने के बाद प्रेस कांफ्रेंस कर कथानक बनाना गलत है. केजरीवाल सरकार की तरफ से मंजूरी मिलने के बाद 8 फरवरी को एलजी ने भी इसे मंजूर कर दिया जिसमें उन्होंने लेटलतीफी को लेकर रोष जताया है.”
बीते दिनों उपराज्यपाल ने धार्मिक संरचनाओं से जुड़ी फाइलों को ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स के नियम 19(5) का इस्तेमाल करते हुए सिसोदिया के विभाग से मंगा ली थी.
राजनिवास के एक अधिकारी ने बताया, ‘इन फाइलों पर सरकार फैसला नहीं ले रही थी. ये सभी राष्ट्रीय महत्व के प्रोजेक्ट्स थे जिनपर काम आगे नहीं बढ़ पा रहा था इसलिए एलजी ने फाइलें मंगवा लीं.’
दिप्रिंट ने 74 धार्मिक संरचनाएं जिन्हें तोड़ने की बात की जा रही है, उनमें से 7 जगहों का दौरा किया और पाया कि इनमें से लगभग सभी संरचनाएं सरकारी जमीन पर बनी हैं और ज्यादातर सड़क के एकदम बीचो-बीच मौजूद है. और सभी अपने को प्राचीन बताते हैं.
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मंदिर से मजार तक
29 सितंबर, 2009 को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारा के नाम पर किसी भी अनाधिकृत संरचना को मंजूरी नहीं दी जा सकती और इस तरह के सभी अतिक्रमण को राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों को रिव्यू करना चाहिए.
उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने बीते दिनों कहा था कि 14 मार्च 2022 को हाई कोर्ट ने भी कहा था कि सार्वजनिक जमीन पर बने अनाधिकृत संरचना को हटाने के लिए सरकार ड्यूटी बाउंड है.
मंदिर प्रशासन से जुड़े सुरेश बेरी ने दिप्रिंट को बताया कि अधिकारियों ने कहा कि आगामी जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए फुटपाथ को चौड़ा किया जाना है, इसलिए लगभग 3.5 मीटर भूमि पर बने ढांचे को हटा दिया गया है. “हमने अदालत में यह भी कहा कि हमने अतिक्रमण नहीं किया लेकिन किसी ने हमारी नहीं सुनी.”
दिल्ली में ये पहली बार नहीं है कि विकास के लिए किसी धार्मिक जगह को हटाया जा रहा हो. इससे पहले पूर्व दिल्ली के शाहदरा स्थित विश्वास नगर में हाई कोर्ट के आदेश के बाद एक मंदिर को तोड़ दिया गया था.
हालांकि दूसरी तरफ इन धार्मिक संरचनाओं को चलाने वाले लोगों का कहना है कि ये जगहें दशकों पुराने हैं.
दिलशाद गार्डन स्थित चिंतामणि चौक के बीचोबीच स्थित प्राचीन सिद्ध श्री हनुमान मंदिर को तकरीबन 40 साल से ज्यादा पुराना बताया जाता है. इस मंदिर के पुजारी सतीश शर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि करीब एक साल में 3-4 बार पीडब्ल्यूडी अधिकारियों के साथ बैठक हो चुकी है.
उन्होंने कहा, मंदिर को हटाने को कहा जा रहा है. हम विकास के खिलाफ नहीं है लेकिन हमारी भी रोजी-रोटी इसी से जुड़ी है. हम बस इतना चाहते हैं कि आसपास ही कहीं मंदिर के लिए जमीन दे दी जाए. लेकिन प्रशासन ने बस मौखिक आश्वासन ही दिया है.
चिंतामणि चौक के आसपास का इलाका कर्मिशियल एरिया है, जिसके करीब 200 मीटर के दायरे में कोई भी रेसीडेंशियल कॉलोनी नहीं है. बीते दो दशक से मोटर पार्ट्स की दुकान चलाने वाले अभिषेक भारद्वाज ने कहा, जहां मंदिर बना हुआ है, वो जीटी रोड़ है. अनाधिकृत जगह पर चाहे कुछ भी हो उसे हटाना चाहिए.”
उपमुख्यमंत्री सिसोदिया ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में पुलिस रिपोर्ट की बात की थी जिसके अनुसार अगर धार्मिक संरचनाओं को हटाया जाता है तो कानून व्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा.
चिंतामणि चौक स्थित मंदिर सीमापुरी थाना के अंतर्गत आता है. इसके एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, करीब एक साल पहले पुलिस हेडक्वार्टर से इस मंदिर को लेकर जानकारी मांगी गई थी. हमें अभी तक हटाने का आदेश नहीं मिला है. हम लां एनफोर्समेंट एजेंसी है, जब आदेश आएगा तो हम कानून व्यवस्था बनाने का काम किया जाएगा.”
वहीं धार्मिक संरचनाओं का मामला भूमि से जुड़े मसलों की वजह से भी फंसा हुआ है. दिल्ली के हसनपुर स्थित मजार का मामला बीते 30 सालों से ज्यादा से कोर्ट में है. मजार के संचालक सूफी मोहम्मद इस्लाम खान ने बताया कि हमारे पूर्वजों को हसनपुर गांव के किसी व्यक्ति ने ये जमीन दी थी. उन्होंने दावा करते हुए कहा, 1986 के दिल्ली सरकार के गजट में भी इसे मजार की जमीन बताया गया है.
हसनपुर मजार के मामले को पटियाला हाउस कोर्ट में देखने वाले वकील मोहम्मद यामीन ने कहा कि जो धार्मिक संरचना अनाधिकृत जमीन पर है, उसे तोड़ने की बात हो रही है लेकिन इस मजार का तो रेवेन्यू रिकॉर्ड मौजूद है. उन्होंने कहा, “बाकी धार्मिक संरचनाओं के पास रेवेन्यू रिकॉर्ड नहीं है लेकिन हमारी अतिक्रमण वाली जमीन नहीं है. फिर भी सरकार की मर्जी है, वो कुछ भी कर सकती है.”
24 जनवरी 2023 को पूर्वोत्तर दिल्ली के डीएम के नेतृत्व में हुई बैठक में पीडब्यूडी के ईई वीके सिंह को निर्देश दिया गया कि पूर्वोत्तर दिल्ली में तीन धार्मिक संरचना सड़क के बीच में है. जिनमें श्री हनुमान मंदिर, भजनपुरा, भजनपुरा स्थित मजार और लोनी गोलचक्कर के पास स्थित श्री हनुमान मंदिर शामिल है. साथ ही कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार अतिक्रमण को हटाया जाना चाहिए. इस बैठक की मिनट्स की एक कॉपी दिप्रिंट के पास है.
लोनी में एमआईजी फ्लैट्स के सामने स्थित हनुमान मंदिर भी सड़क के ठीक बीच में है, जहां पीडीब्ल्यूडी की अंडरपास बनाने की योजना है. एमआईजी फ्लैट्स वेलफेयल एसोसिएशन के अध्यक्ष ओपी वर्मा ने कहा, “ये मंदिर काफी पुराना है और लोगों की इससे आस्था जुड़ी हुई है. अगर इसे तोड़ा गया तो पूरी सोसाइटी सड़क पर उतर जाएगी और विरोध करेगी. हम इसे टूटने नहीं देंगे.”
वहीं दक्षिणी दिल्ली के सरोजनी नगर, नेताजी नगर, श्रीनिवासपुरी, कस्तूरबा नगर, त्यागराज नगर में 49 मंदिरों और एक मजार को तोड़ने के लिए चिन्हित किया गया है. दिप्रिंट ने बुधवार को जब सरोजनी नगर का दौरा किया तो पाया कि केंद्र सरकार की जीपीआरए प्रोजेक्ट के कारण इन मंदिरों को तोड़ा जाना है. सरोजनी नगर मार्केट के अंदर भी करीब 10 छोटे मंंदिर हैं जो सरकारी जमीन पर बने हैं.
मुद्दे पर राजनीति गरमाई
धार्मिक संरचनाओं को तोड़ने का मसला बीते एक हफ्ते से काफी गर्माया हुआ है और इसे लेकर दिल्ली में काफी राजनीति भी हो रही है.
उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने कहा, ‘इस मुद्दे पर हो रही राजनीति दुर्भाग्यपूर्ण है.’
वहीं दिल्ली के मंडी हाउस स्थित हिमाचल भवन के ठीक बाहर स्थित एक मजार भी अनाधिकृत संरचनाओं की सूची में है, जिसे 250 साल पुरानी मजार बताया जा रहा है.बीते साल सितंबर महीने में एनडीएमसी ने मजार के कुछ हिस्से को तोड़ दिया था.
इस मजार के संचालक अकबर अली साबरी ने बताया, “इसे से हमारी आजीविका जुड़ी है. यहां सभी धर्मों के लोग आते हैं, सबकी आस्था जुड़ी है. जब मंडी हाउस इलाके में फौजी की शूटिंग हुई थी तब शाहरुख खान भी इस मजार पर आते थे.”
मटिया महल से विधायक और आम आदमी पार्टी के नेता शोएब इकबाल ने दिप्रिंट से कहा, ये मजार सैंकड़ों साल पुरानी है. एलजी साहब जो कह रहे हैं वो बकवास है, उनके कहने से कुछ भी नहीं होगा. ये सरासर अंधेरगर्दी है.
इकबाल ने कहा, ‘दिल्ली में न ही मंदिर, न चर्च, न मस्जिद और ना ही गुरुद्वारा टूटेगा. और ना ही ऐसी नौबत आने देंगे.’
हालांकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की दिल्ली इकाई का कहना है कि ऐसे मामले राजनीतिक स्तर पर तय नहीं हो सकते. दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता प्रवीण शंकर ने दिप्रिंट से कहा कि आजकल मनीष सिसोदिया शराब घोटाला समेत कई विवादों में घिरे हैं. उन्होंने कहा, इन विवादों से बचने के लिए उन्होंने ये शगूफा छोड़ा है.
शंकर ने कहा, मनीष सिसोदिया खुद धार्मिक कमिटी के सदस्य हैं. इन्होंने ही संरचनाओं को तोड़ने की सिफारिश की है. और अब जब सीबीआई उनके पीछे है तो उनकी प्रेस कांफ्रेंस की टाइमिंग यही बताती है कि वह धार्मिक भावनाओं का राजनीतिक इस्तेमाल कर रहे हैं, जो कि सही नहीं है.
हालांकि उन्होंने कहा कि फिर भी ऐसे फैसले लेने से पहले अन्य रास्तों के बारे में सोचना चाहिए ताकि लोगों की धार्मिक आस्था को चोट न पहुंचे.
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