नई दिल्ली: पिछले साल यूक्रेन में संभावित हमले के लेकर जब सायरन बजना शुरू होता था तो मेडिकल छात्र मोहित कुमार बंकर में छिपने के लिए छटपटाने लगते थे. लेकिन अब उनका सारा ध्यान सिर्फ अपनी क्लास पर रहता है. मोहित कुमार कहते हैं कि उन्होंने खुद को इस युद्धग्रस्त देश में रहने के अनुरूप ढाल लिया है क्योंकि भारत सरकार की तरफ से उन्हें कोई व्यावहारिक विकल्प मुहैया नहीं कराया गया है, ऐसे में उनके पास यूक्रेन में अपनी मेडिकल डिग्री पूरी करने के अलावा कोई चारा नहीं है.
पिछले साल अक्टूबर में पांचवें वर्ष के इस छात्र ने पश्चिमी यूक्रेन में टेरनोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी वापस जाने के लिए पोलैंड का रास्ता अपनाया. तबसे उसने युद्ध के हालात, सायरन की आवाज और कठिन परिस्थितियों के साथ रहना सीख लिया है.
कुमार ने कहा, ‘मैंने अभी अपना अंतिम सेमेस्टर शुरू किया है और ऑफलाइन कक्षाओं का विकल्प चुना है. हालांकि हर दिन कम से कम दो बार युद्ध के सायरन बजते हैं, हममें से कुछ लोगों को तो अब बंकरों में जाने की ज़रूरत भी महसूस नहीं होती है. कभी-कभी जब हम एक महत्वपूर्ण लेक्चर सुन रहे होते हैं तो हम केवल पढ़ना जारी रखते हैं. हमें अब इसकी आदत हो चुकी हैं.’
इसी यूनिवर्सिटी में अंतिम वर्ष के एक अन्य छात्र शुभम शर्मा ने कहा कि युद्ध से आर्थिक नुकसान भी हो रहा था और उनके परिवार की तिजोरी भी खाली हो रही है.
शुभम शर्मा ने कहा, ‘भोजन, बिजली और आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं की कीमतें लगभग दोगुनी हो गई हैं. अंतरराष्ट्रीय छात्रों के तौर पर इसने वास्तव में हमारे रहने-खाने का खर्च काफी बढ़ा दिया है.’ हालांकि, कुमार की तरह वह भी संभावित हवाई हमलों की चेतावनी वाले सायरन के आदी हो गए हैं.
लेकिन कुमार और शर्मा जैसे छात्र डर से उबर नहीं पा रहे हैं. युद्ध की पहली वर्षगांठ 24 फरवरी ने सभी को चिंतित कर दिया है कि रूस इस मौके पर नए सिरे से मिसाइल हमले तेज कर सकता है. पश्चिमी यूक्रेन युद्ध से इतना अधिक प्रभावित नहीं हुआ है, लेकिन चीजें बदल सकती हैं. घर से आने वाले फोन कॉल बढ़ गए हैं लेकिन किसी के भी पास देखने और इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
दो महीने पहले, दिसंबर में केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने संसद को बताया था कि 1,100 भारतीय छात्र अब भी यूक्रेन में हैं. उन्होंने यह भी कहा कि कीव में भारतीय मिशन ने 25 अक्टूबर को एक एडवाइजरी जारी की थी, जिसमें सभी भारतीय नागरिकों को ‘उपलब्ध साधनों के जरिये तुरंत यूक्रेन छोड़ने’ के लिए कहा गया था.
हालांकि, भारतीय मेडिकल छात्रों, जिनके करियर दांव पर लगे थे, का दावा है कि उन्हें स्वदेश लौटने पर बहुत कम मदद मिली और उन्हें यूक्रेन लौटना पड़ा.
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भारतीय छात्र यूक्रेन क्यों लौटे?
साल भर पहले जब रूस-यूक्रेन के बीच जंग छिड़ी थी, उस समय 20,000 से अधिक भारतीय छात्र सुरक्षा के लिहाज से जल्दबाजी में अपने घर लौट आए.
हालांकि, कई मेडिकल छात्रों का कहना है कि यहां पर लौटने के बाद उन्हें पढ़ाई के लिए उपयुक्त माहौल नहीं मिल पाया, जिससे सैकड़ों लोगों को फिर वहीं लौटने को मजबूर होना पड़ा, जहां से भागकर आए थे.
प्राथमिक कारण नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) के दिशानिर्देश थे, जो यूक्रेन की विभिन्न यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने वाले मेडिकल छात्रों को अपनी डिग्री भारतीय कॉलेजों से डिग्री पूरी करने की अनुमति नहीं देते.
भारत में चिकित्सा शिक्षा और पेशेवरों के नियामक एनएमसी की तरफ से ऑनलाइन कक्षाओं के जरिये हासिल की गई डिग्री को मान्यता नहीं दी जाती है, जबकि यूक्रेन से लौटने वाले छात्र यहां ऑनलाइन कक्षाएं ही ले रहे थे. और नियमों के तहत छात्रों को कम से कम 12 महीने प्रैक्टिकल ट्रेनिंग लेना भी जरूरी होता है.
चूंकि छात्रों को भारतीय संस्थानों में समायोजित नहीं किया जा सकता था, एनएमसी ने पिछले साल अगस्त में यूक्रेन की तरफ से प्रस्तावित एक एकेडमिक ‘मोबिलिटी प्रोग्राम’ को मंजूरी दे दी थी. हालांकि, नियामक शुरू में इस विचार का विरोध कर रहा था.
इस कार्यक्रम ने यूक्रेन की विभिन्न यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे भारतीय मेडिकल छात्रों को 29 देशों की सूची में से किसी मेडिकल कॉलेज में ट्रांसफर के लिए आवेदन करने की अनुमति दी. इसमें डिग्री यूक्रेन की उसी यूनिवर्सिटी की तरफ से मिलेगी जिसमें छात्र ने अपना नामांकन करा रखा है.
इसके पीछे विचार यह था कि एक बार छात्र प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के साथ अपनी डिग्री पूरी कर लेते हैं तो भारत में विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा (एफएमजीई) में बैठने के पात्र हो जाएंगे, जो देश में प्रैक्टिस करने के लिए एक स्क्रीनिंग टेस्ट है.
लेकिन कई छात्रों के लिए गंभीर व्यावहारिक समस्याएं थीं. जहां भारतीय कॉलेज पांच साल का एमबीबीएस प्रोग्राम चलाते हैं, वहीं यूक्रेन छह साल का कोर्स ऑफर करता है. ऊपर से, एफएमजीई की तैयारी में छात्रों को एक साल का और समय भी लग सकता है.
छात्रों का कहना है कि दूसरी विदेशी यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर से पहले उन्हें अध्ययन की अवधि के मामले में और भी अधिक नुकसान होता क्योंकि उन्हें मेजबान यूनिवर्सिटी के नियम-कायदों के हिसाब से कुछ सेमेस्टर दोहराने पड़ते.
इसके अलावा, किसी अन्य देश में रहने-खाने का खर्च उठाना भी कई छात्रों के लिए वहन करने आसान नहीं था.
‘वे अपने ही युवा डॉक्टरों की परवाह नहीं करते’
अपना करियर और भविष्य के अधर में होने को देखते हुए सैकड़ों मेडिकल छात्रों ने प्रोफेसरों और सहपाठियों की चेतावनियों के बावजूद यह कहते हुए यूक्रेन लौटने के लिए टिकट बुक करा लिए कि अपने ‘जोखिम’ पर आएंगे, और संभावित हवाई हमलों, विस्फोटों और बढ़ी महंगाई जैसी अन्य चुनौतियों का सामना करने को तैयार हैं.
यूक्रेन लौटने वालों में कई अपने अध्ययन के अंतिम वर्ष में हैं. उनके लिए, दूसरे देश में ट्रांसफर होना एक बड़ा जोखिम जैसा था क्योंकि उन्हें लग रहा था कि समय हाथ से निकलता जा रहा है.
टेरनोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के शुभम शर्मा ने कहा कि दूसरी विदेशी यूनिवर्सिटी में शिफ्ट होना उनके लिए संभव नहीं था क्योंकि जब युद्ध शुरू हुआ तब वह अपनी पढ़ाई के आखिरी चरण में थे.
शुभम का दावा है, ‘भारतीय नियम-कायदे पहले और दूसरे वर्ष के छात्रों के लिए मददगार साबित हुए क्योंकि उन्हें तुरंत दूसरे देशों में ट्रांसफर की अनुमति मिल सकती थी. लेकिन हमारे जैसे छात्रों के पास वापस लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.’
नाम न छापने की शर्त पर जयपुर निवासी अंतिम वर्ष के एक अन्य 23 वर्षीय छात्र ने कहा कि जब युद्ध शुरू हुआ तो वह कीव के बोगोमोलेट्स नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा था. अब वह पश्चिमी यूक्रेन के एक शहर उजहोरोड में रहने लगा है.
उजहोरोड नाटो सदस्य राष्ट्र स्लोवाकिया की सीमा के साथ लगा इलाका है, इसलिए भारतीय छात्र इसे एक सुरक्षित विकल्प के तौर पर देखते हैं. लेकिन वे अच्छी तरह जानते हैं कि हालात कभी भी बिगड़ सकते हैं.
23 वर्षीय छात्र ने कहा कि यह व्यवस्था उन्हें यूक्रेन में अपना पाठ्यक्रम पूरी करने का मौका देती है, जैसा एनएमसी दिशानिर्देशों के अनुरूप है. यद्यपि, उसकी यूनिवर्सिटी रूसी हमले के शिकार कीव शहर में है लेकिन वह ऑनलाइन कक्षाओं में हिस्सा लेता है.
उन्होंने कहा कि यहां ऐसे भारतीय छात्रों की संख्या बढ़ रही है, जो किभी भी तरह से अपनी शिक्षा पूरी करना चाहते हैं. छात्र ने कहा कि उम्मीद है कि उसकी यूनिवर्सिटी उसे और उसके साथी छात्रों को सुरक्षित माहौल में अपनी प्रैक्टिकल ट्रेनिंग पूरी कराने का तरीका निकाल लेगी.
23 वर्षीय उक्त छात्र ने कहा, ‘भारत सरकार ने कहा कि हमें यूक्रेन में रहकर ही यूक्रेन से डिग्री प्राप्त करनी चाहिए, इसलिए हम यही कर रहे हैं. उन्हें अपने युवा डॉक्टरों की कोई परवाह नहीं है.’
पिछले माह, सुप्रीम कोर्ट ने यूक्रेन से लौटे भारतीय मेडिकल छात्रों को भारत में अपनी शिक्षा पूरी करने की अनुमति देने वाली कई याचिकाओं को स्थगित कर दिया था. इस पर कहा गया कि केंद्र सरकार की तरफ से गठित विशेषज्ञ समिति ही इस मुद्दे पर निर्णय लेगी.
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(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: अलमिना खीतून)
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