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Saturday, 2 November, 2024
होमफीचरनिज़ाम-काल के 694 बरगद के पेड़ NH 163 के चौड़ीकरण में बाधा, लोग वृक्ष बचाने के लिए NHAI से लड़ रहें

निज़ाम-काल के 694 बरगद के पेड़ NH 163 के चौड़ीकरण में बाधा, लोग वृक्ष बचाने के लिए NHAI से लड़ रहें

926 करोड़ की इस परियोजना के प्रस्तावित होने के बाद से ही काफी विरोध देखा गया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि स्थानान्तरण विकल्प नहीं है क्योंकि इससे बहुत सारे पेड़ नहीं बचेंगे.

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हैदराबाद: मन्नेगुड़ा जाने वाली सड़क के दोनों ओर चुपचाप खड़े बरगद के पेड़ों के तने पर या तो हरे या सफेद रंग की पट्टी बंधी है. इसमें से अधिकांश सफेद रंग की है जो एक अशुभ संकेत देता है कि सड़क के विस्तार परियोजना के कारण उसे हटाने का खतरा है. भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण हैदराबाद के बाहरी इलाके में राष्ट्रीय राजमार्ग 163 के 46.5 किलोमीटर के हिस्से को चौड़ा करना चाहता है, और पेड़ उसके रास्ते में हैं.

स्थानीय किसानों और नागरिकों के अनुसार, कई बरगद के पेड़, जिनकी लंबी जड़ें नीचे फुटपाथ तक फैली हुई हैं, निज़ाम युग के हैं. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के साथ नागरिकों के एक समूह ने उसे बचाने के लिए एक साथ काम किया है. ‘चेवेल्ला के बरगद बचाओ’ उनका नारा बन गया है. यह नारा रंगा रेड्डी जिले में चेवेल्ला, वे जिस क्षेत्र में उगते हैं, के संदर्भ में है.

एनएचएआई ने दावा किया है कि विस्तार के कारण 544 बरगद के पेड़ प्रभावित होंगे, लेकिन स्वयंसेवकों के एक समूह ने इसकी संख्या 694 बताई है. लगभग 20 लोगों ने 200 घंटे की मेहनत के बाद प्रत्येक पेड़ को मापा और उसकी जियो टैगिंग की.

एक प्रकृति प्रेमी, तेजाह बलंतरापु, जिन्होंने एनजीटी के साथ मिलकर एनएचएआई के खिलाफ याचिका दायर की, ने कहा, ‘हम किसी संगठन का हिस्सा नहीं हैं, न ही हमारे पास किसी का समर्थन है. हम केवल ऐसे व्यक्ति हैं जो प्रकृति से प्यार करते हैं और इस लड़ाई के लिए एक साथ आए हैं.’

हाईवे अथॉरिटी लगभग 1,000 करोड़ रुपये की परियोजना में NH 163 – हैदराबाद और मन्नेगुडा के बीच- दो लेन को चार लेन में विस्तार करना चाहती है, ताकि दुर्घटना में कमी आए.

इस परियोजना को 2019 में शुरू किया गया था, लेकिन तभी से पर्यावरणविदों और संबंधित नागरिकों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया. इसके बाद इसे कुछ समय के लिए रोक दिया गया.

यह वही समय था जब बालंत्रापु और अन्य समान विचारधारा वाले लोग ‘ट्री-अप्प्रेसिएशन’ नामक कार्यक्रम के लिए एक साथ आए. बलंत्रपु कहते हैं, ‘हमें बरगद के बारे में पता चला और कैसे परियोजना से उनके अस्तित्व को खतरा है. हमने उनकी रक्षा के लिए लड़ने का फैसला किया. ‘

कोविड-19 महामारी के दौरान जब सबकुछ बंद था तब इस मुद्दे ने और तूल पकड़ लिया जब केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्रालय ने सितंबर 2021 में परियोजना के लिए 926 करोड़ रुपये आवंटित किए. उस वर्ष, इस खंड में 240 दुर्घटनाएं हुईं, जिसके परिणामस्वरूप 46 लोगों की मौत हुई; अन्य 441 घायल हुए- NHAI के आंकड़ों के अनुसार. एनजीटी को एनएचएआई के द्वारा दिए गए हलफनामे के मुताबिक सड़क पर कई तीखी और तेज मोड़, जिसके कारण दुर्घटना होती है, का हवाला दिया.

दिसंबर 2021 में ट्रिब्यूनल को दी गई याचिका में, नागरिकों के समूह ने एनएचएआई की सड़क योजना को फिर से व्यवस्थित करने की मांग की, जिसके बारे में उनका दावा है कि इससे सैकड़ों पेड़ों को बचाया जा सकता है. एनजीटी की अगली सुनवाई 21 फरवरी को होने की उम्मीद है.

स्थानान्तरण समाधान नहीं

हरे और सफेद निशान ही एकमात्र संकेत नहीं हैं कि बदलाव होने वाला है. चमकीले पीले रंग में में रंगे हुए कुछ चेक पोस्ट भी हैं, जिन पर सूचकांक अंकित हैं, जो सड़क के दोनों ओर और कुछ आगे के खेतों में हैं. वे बताते हैं कि कितना सड़क को चौड़ा किया जाना है.

चौड़ा किए जाने वाले हाईवे के खंड में 914 बरगद के पेड़ हैं, जिनमें से 145 वन विभाग के दायरे में मुदिम्याल रिजर्व फॉरेस्ट में हैं. जंगल के कुछ पेड़ों के भी प्रभावित होने की संभावना है, लेकिन सही संख्या की जानकारी नहीं है.

एनएचएआई ने इन पेड़ों को कुल संख्या में शामिल नहीं किया है, यही कारण है कि उनका आंकड़ा याचिकाकर्ताओं से अलग है.

राजमार्ग प्राधिकरण पेड़ों के स्थानांतरण पर विचार करने के लिए तैयार है. हाल ही में एनजीटी को दिए एक हलफनामे में, यह कहा गया है कि ’90 प्रतिशत बरगद के पेड़ किसी भी अन्य पेड़ की तरह अच्छे हैं.’ हलफनामे की एक प्रति दिप्रिंट के पास है.

याचिकाकर्ताओं ने इसका अर्थ यह निकाला है कि राजमार्ग प्राधिकरण को लगता है कि उनके लिए पेड़ों के स्थानान्तरण कोई नई बात नहीं है.

एनएचएआई के हलफनामे में यह भी कहा गया है कि उन्होंने अपना पारिस्थितिकी मूल्य खो दिया है.

एनएचएआई ने हलफनामे में कहा, ‘यह भी पाया गया कि 759 बरगद के पेड़ों [एनएचएआई का आंकड़ा] में से कुछ ही पेड़ों के बड़े तने और बड़ी शाखाएं हैं.’

एक एनजीओ वात फाउंडेशन, जो पेड़ों के स्थानान्तरण के लिए काम के करता है, के संस्थापक उदय कृष्ण ने कहा, ‘एक बरगद के पेड़ का स्थानान्तरण करना इतना आसान नहीं है, जितना कहना आसान है. यह काफी मेहनत का काम है. एक पेड़ के स्थानान्तरण में कम से कम दो से तीन दिन लगेंगे.’ हैदराबाद स्थित यह एनजीओ ने लगभग 2500 से अधिक पेड़ो का स्थानांतरण किया है. इसमें से 85 प्रतिशत पेड़ जीवित हैं.

बलंत्रापू और अन्य द्वारा दायर एक जवाबी हलफनामे में कहा गया है कि स्थानांतरण प्रक्रियाओं के दौरान, केवल ट्रंक के स्टंप को स्थानांतरित किया जाता है, जबकि चंदवा, ऊपरी जड़ों और शाखाओं को काट दिया जाता है.

हलफनामे में कहा गया है, ‘एक बरगद का पेड़ न केवल अपने तने के कारण बल्कि अपनी छतरी और ऊपरी जड़ों के कारण भी टिका रहता है. एनएचएआई ने स्थानान्तरण की सफलता का कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया है. एक पेड़ के जीवित रहने और या ट्रांसलोकेशन के बाद भी इसकी रिकवरी की गारंटी नहीं है.’ हलफनामे की एक प्रति दिप्रिंट के पास भी है.

कृष्ण के अनुसार, बरगद के पेड़ की शाखाओं को काटे बिना उसका स्थानान्तरण असंभव है. उन्होंने कहा, ‘यह एक प्रकार की सर्जरी ही है. इसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि पेड़ सदमे से बचे रहे. ऐसा कोई तरीका नहीं है कि आप शाखाओं को काटे बिना उसे हटा सके.’ उन्होंने कहा कि एक पेड़ के स्थानान्तरण के बाद उसे दो साल तक देखभाल की जरूरत होती है.

और यदि केवल स्टंप को स्थानांतरित कर दिया जाए तो ? पर्यावरणविद् और पादप वैज्ञानिक कोबिता दास कोल्ली पूछती हैं, ‘तो क्या यह अपनी पूरी क्षमता के साथ बढ़ पाएगा. क्या वह उसी तरह दिख पाएगा जैसा वो दिखता है.’

2019 में पहली बार परियोजना की घोषणा होने पर कृष्णा ने बरगद के पेड़ों की सुरक्षा के लिए एक ऑनलाइन याचिका दायर की थी. इसपर 35,000 से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए थे.

उन्होंने इस मामले को लेकर केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी बात की थी, जब वे महाराष्ट्र में एक ट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट पर थे.

उन्होंने कहा, ‘मैं कम से कम एनएचएआई [गडकरी और याचिका के कारण] को स्थानान्तरण पर विचार करने के लिए कह सकता था, अन्यथा वे उन्हें हटाने का फैसला करते.’

चंदवा का नुकसान न केवल स्थानीय शहरी वनस्पतियों और जीवों को प्रभावित करेगा, बल्कि यह हैदराबाद में भयंकर गर्मी के दौरान लोगों को प्रभावित करेगा और उन्हें एक ग्रीन अंबरेला से वंचित कर देगा.


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आजीविका दांव पर 

बरगद का पेड़ एक 43 वर्षीय किसान राघवेंद्र के जीवन के लिए महत्वपूर्ण है. वह हर दिन पड़ोस के अलूर गांव से आते हैं और पेड़ों की छांव में खुद की उगाई सब्जियां बेचते हैं.

राघवेंद्र दिप्रिंट को बताते हैं, ‘क्या आप इस जगह को बिना बरगद के पेड़ को देख सकते हैं. मैं इसे तब से देख रहा हूं जब मैं बच्चा था. मेरे पिता, जो 80 वर्ष के थे, जब दो साल पहले उनकी मृत्यु हो गई, उन्होंने कहा कि जब वह बच्चे थे तब पेड़ वहां था, और अब भी है.’

आस-पास कोई बाजार नहीं है और राजमार्ग के किनारे यह अस्थायी व्यवस्था है कि स्थानीय किसान कैसे अपना जीवन यापन करते हैं.

A roadside market on NH 163 | By special arrangement
एनएच 163 पर सड़क के किनारे का बाजार | फोटो: विशेष प्रबंधन

‘मैं अपने खेत और पेड़ों को खो दूंगा. उन्होंने मुझे मुआवजे की पेशकश की है, और मुझे पता है कि मैं ज्यादा कुछ नहीं कर सकता, इसलिए मैंने इसे स्वीकार कर लिया,’ उन्होंने एक नारियल के पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा कि वह कहते हैं कि यह सबसे पुराना है लेकिन अब इसे हटा दिया जाएगा. ‘क्या शहरों में जो पानी आप पीते हैं, क्या यह उससे बेहतर और मीठा नहीं है?’ शंकर ने अपने पेड़ों का नारियल देते हुए एक सच्चे विक्रेता की तरह पूछा.

अपग्रेड करना जरूरी

ट्रिब्यूनल ने सुनवाई के हिस्से के रूप में एनएचएआई को सड़क को फिर से संरेखित करने, पेड़ों को हटाए बिना एक समानांतर निर्माण शुरू करने और आवश्यकता पड़ने पर अधिक भूमि का अधिग्रहण करने पर विचार करने के लिए कहा.

एनएचएआई ने जवाब दिया कि सड़क को इस तरह चौड़ा किया जाएगा कि कुछ पेड़ बच जाएंगे. लेकिन एक समानांतर सड़क संभव नहीं थी क्योंकि यह आकार में सर्पीली है, और अधिकांश बगल की भूमि या तो जलग्रहण क्षेत्र या वन क्षेत्रों में है. इसने कहा कि कानूनी मुद्दों के कारण भूमि अधिग्रहण भी संभव नहीं था.

राजमार्ग प्राधिकरण ने यह भी कहा कि खंड के पीसीयू (यात्री कार इकाई) की गणना सीमा से अधिक थी. इस सड़क पर पीसीयू 10,000 थी लेकिन 2020 तक यह बढ़कर 14,470 हो गई जिसके कारण चौड़ीकरण आवश्यक है.

दूसरी बात यह है कि एक चौड़ी सड़क पर अधिक कारें चल सकेंगी जिसके कारण दुर्घटना कम होने की संभावना है.

NHAI के परियोजना निदेशक नागेश्वर राव ने यह कहते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि मामला अदालत में है और विचाराधीन है. हालांकि, उन्होंने कहा कि तार्किक मुद्दों के कारण विस्तार के लिए वैकल्पिक मार्ग पर विचार करना व्यावहारिक रूप से ‘असंभव’ था.

नागरिक समूह ने 2019 से परियोजना के खिलाफ सामूहिक विरोध प्रदर्शन आयोजित किए हैं, लेकिन कभी-कभी छोटे समूहों को इसके खिलाफ आवाज उठाते देखा जा सकता है.

गुरुवार सुबह, जब हैदराबाद में भीषण गर्मी की ओर बढ़ रहा था, जिसके लिए वह जाना जाता है, एक 17 वर्षीय लड़का तेलंगाना विधानसभा के सामने एक तख्ती लेकर खड़ा था जिसमें जलते हुए ग्लोब की तस्वीर बनी थी. उसपर लिखा था कि भविष्य यही है. अपना विरोध जताने के लिए वह लड़का पूरा दिन वहीं खड़ा रहा.

उसने कहा, ‘मैं बरगद के पेड़ों को गायब होते नहीं देखना चाहता.’

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस फ़ीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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