scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होमरिपोर्टवैज्ञानिकों की राय- अल नीनो के असर के बारे अभी से कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, थोड़ा इंतजार करना होगा

वैज्ञानिकों की राय- अल नीनो के असर के बारे अभी से कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, थोड़ा इंतजार करना होगा

भले ही अल नीनो, जो भारत में मानसून की कमी का कारण बन सकता है, भविष्यवाणी के अनुसार सेट हो भी जाता है, तो भी मौसम से संबंधित अन्य घटनाएं संभावित रूप से इसके प्रभावों को कम कर सकती हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: इस सप्ताह की शुरुआत में, यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने यह भविष्यवाणी की थी कि ऊष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर में एक अल-नीनो बनने की संभावना है; और इस बात ने भारत, जिसके कई इलाकों को पिछले साल भीषण गर्मी का सामना करना पड़ा था, में सूखे और मानसून की बारिश में कमी सम्बन्धी अटकलों को जन्म दिया.

अल-नीनो एक मौसम संबंधी परिघटना है, जो प्रशांत महासागर के असामान्य रूप से गर्म होने के कारण पैदा होती है, और भारत में मानसून को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए जानी जाती है.

एनओएए के इस पूर्वानुमान के साथ कि इस वर्ष के अंत में अल-नीनो के जोर पकड़ने की 50 प्रतिशत संभावना है, जिसका अर्थ है कि यह एक उदासीन स्थिति की तुलना में अधिक की संभावना है, भारत में राज्य सरकारें पहले से ही सतर्कता बरत रहीं हैं.

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कथित तौर पर संभावित अल-नीनो के कारण सूखे की स्थिति के बारे में अपने कैबिनेट सहयोगियों को चेतावनी दी है, और उन्हें इसके प्रभावों को कम करने के लिए एक व्यापक शमन योजना तैयार करने सलाह दी है.

हालांकि, कई सारे वैज्ञानिकों का कहना है कि निश्चित रूप से अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि अल-नीनो कब आएगा, क्योंकि साल के इस समय के दौरान की गई भविष्यवाणियां भरोसेमंद नहीं होती हैं.

हालांकि, जो बात तेजी से स्पष्ट होती जा रही है वह यह है कि भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में ला-नीना – असामान्य रूप से ठंडे तापमान वाला मौसम पैटर्न – में गिरावट आ रही है.

ला-नीना पिछले तीन साल से बना हुआ है और इससे भारत में मानसून ज्यादा बारिश वाला रहा और सर्दियों का तापमान भी कम रहा. यह ‘ट्रिपल डिप’ ला-नीना, जिसने 2020 में अपनी उपस्थिति महसूस कराई और फिर साल 2021 और 2022 तक बनी रही, बदलती जलवायु वाली पृष्ठभूमि में होने वाली एक दुर्लभ घटना है.

अर्थ सिस्टम वैज्ञानिक, आईआईटी-बॉम्बे में विजिटिंग प्रोफेसर और एमेरिटस मैरीलैंड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रघु मुर्तुगुड्डे ने कहा, ‘आम तौर पर, जब ऐसे पूर्वानुमान मार्च से पहले किए जाते हैं, तो वे स्प्रिंग प्रेडिक्टेबलिटी बैरियर कहे जाने वाले कारक, जिसका मूल रूप से यह मतलब होता है कि सिस्टम में अभी बहुत शोर है, की वजह से बहुत विश्वसनीय नहीं होते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हालांकि, इस बार हम अपने तीसरे ला-नीना से बाहर आ रहे हैं, जिसके दौरान ऊष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर का क्षेत्र गर्म पानी से भर गया है, इसलिए कोई छोटा सा भी ट्रिगर अल-नीनो को जन्म दे सकता है. ला-नीना की सर्दी से अल-नीनो की गर्मी की ओर होने वाले संक्रमण ने कुछ सबसे जबरदस्त मानसून की कमी देखी है.’ उन्होंने कहा कि इस पूर्वानुमान के गर्मियों में अधिक सटीक होने की संभावना है, जब अल नीनो की गंभीरता के भी और अधिक स्पष्ट होने की संभावना होती है.


यह भी पढ़ेंः ट्रांसफर प्राइसिंग क्या है, क्यों आईटी विभाग BBC में इसकी जांच कर रहा है 


ला-नीना और अल-नीनो का प्रभाव

ला-नीना तब उत्पन्न होता है जब पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक ठंडा होता है. मजबूती के साथ पूर्व की तरफ बहने वाली व्यापारिक हवाएं और महासागरीय धाराएं ठंडे पानी को सतह तक लाती हैं – जिसे अपवेलिंग कहा जाता है – जो इस तापमान विसंगति का कारण बनता है. यह स्थिति पश्चिमी प्रशांत महासागर में कम वायुदाब की ओर ले जाती है, जिससे काफी अधिक वर्षा होती है, जबकि पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में शुष्क स्थिति पैदा होती है.

अल-नीनो इसके ठीक विपरीत की स्थिति है, जब पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक गर्म होता है. इससे पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में बारिश हो सकती है, और कभी-कभी पश्चिमी भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में गंभीर सूखा पड़ सकता है.

अल नीनो और ला नीना, अल नीनो-दक्षिणी दोलन (अल नीनो साउथर्न ऑसिलेशन-ईएनएसओ) के दो चरण हैं, जो समुद्र की सतह के तापमान और वायु दबाव में प्राकृतिक परिवर्तन को दर्शाता है. अल-नीनो और ला-नीना दोनों ही वैश्विक तापमान को प्रभावित कर सकते हैं, पहले वाले के मामले में गर्माहट वाला प्रभाव पैदा होता है, और बाद वाला शीतलन प्रभाव पैदा करता है. जब ईएनएसओ उदासीन होता है, तो न तो अल-नीनो और न ही ला-नीना मौजूद होता है.

हालांकि, ईएनएसओ में आने वाले ये बदलाव स्वाभाविक रूप से होने वाली मौसमी घटनाएं हैं, पर वे मानवों द्वारा प्रेरित किये गए जलवायु परिवर्तन के परिणामों, जिसने पहल से ही वैश्विक तापमान को पूर्व औद्योगिक स्तरों की तुलना में 1.1 डिग्री अधिक बढ़ा दिया है, को और खराब कर सकते हैं.

भारतीय ऊष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के निदेशक आर. कृष्णन ने कहा, ‘यदि अल-नीनो विकसित होता है, जिसकी संभावना प्रतीत होती है, तो वैश्विक औसत तापमान निश्चित रूप से और बढ़ेगा. एक बार जब औसत वैश्विक तापमान बढ़ जाता है, तो कई जगहों पर स्थानीय प्रभाव भी पैदा हो सकते हैं, लेकिन अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि वे क्या हो सकते हैं.’

पिछले साल, संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी, विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने 93 प्रतिशत संभावना के साथ कहा था कि 2022 और 2026 के बीच का कोई एक वर्ष अब तक दर्ज किया गया सबसे गर्म वर्ष होगा, और अस्थायी रूप से 1.5 डिग्री की उस सीमा को पार कर जाएगा, जो कि 2015 के पेरिस समझौता – एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता जो ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रण में रखने हेतु वचनबद्ध है – द्वारा निर्धारित निचली सीमा है.

स्काईमेट वेदर में मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन के उपाध्यक्ष महेश पलावत के अनुसार, सभी राज्य कम पानी की आवश्यकता वाली फसलें उगाकर इसकी तैयारी कर सकते हैं.

उन्होंने कहा, ‘असामान्य तापमान खरीफ की फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को प्रभावित तो करेगा, लेकिन अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि ऐसे किसी प्रभाव का पैमाना क्या होगा.’

शमनकारी कारक भी हो सकते हैं

कृष्णन ने कहा कि भले ही अल-नीनो भविष्यवाणी के अनुसार ही सेट हो, पर मौसम से जुड़ी कई अन्य घटनाएं हैं जो इसके प्रभावों को कम कर सकती हैं. हिंद महासागर के समुद्री सतह के तापमान में परिवर्तन – जिसे हिंद महासागर डिपोल (आईओडी) कहा जाता है – ईएनएसओ के प्रभावों के खिलाफ काम कर सकता है.

उन्होंने कहा, ‘साल 1997 में, एक बहुत ही जोरदार अल-नीनो के दौरान एक सकारात्मक आईओडी भी था. हालांकि, तब गंभीर सूखे की आशंका थी, मगर सकारात्मक आईओडी, जिसने भारत पर मिनी ला-नीना की तरह काम किया, के प्रभावों के कारण मानसून काफी सामान्य रहा.’ उन्होंने आगे यह भी कहा कि, ‘इस साल भी एक सकारात्मक आईओडी विकसित होने की संभावना है, लेकिन, एक बार फिर से, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी. हमें इसके लिए इंतजार करना होगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ेंः भारत का ग्रीन GDP सुधर रहा है मगर पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कड़े कदम जरूरी हैं


 

share & View comments