गांधीनगर: हिंद महासागर में खनिजों का विशाल भंडार भारत को निकेल और कोबाल्ट धातु के मामले में आत्मनिर्भर बना सकता है. अंतरराष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (आईएसए) के एक शीर्ष अधिकारी ने मंगलवार को यह जानकारी दी.
अधिकांश इलेक्ट्रिक वाहनों में उपयोग की जाने वाली लिथियम-आयन बैटरी में निकेल और कोबाल्ट महत्वपूर्ण तत्व हैं.
आईएसए के महासचिव माइकल डब्ल्यू लॉज ने ‘डीप ओशन मिशन’ के माध्यम से इस दिशा में भारत सरकार की ओर से किए गए प्रयासों की प्रशंसा करते हुए विश्वास व्यक्त किया कि भारत गहरे समुद्र में खनन में एक वैश्विक भूमिका निभा सकता है.
माइकल डब्ल्यू लॉज ने गांधीनगर में गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में आयोजित ‘समुद्रतल खनन पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन’ से इतर संवाददाताओं को संबोधित करते हुए यह बात कही.
आईएसए के महासचिव ने कहा, ‘1980 के दशक से भारत गहरे समुद्र में खनन के क्षेत्र में शुरुआती अग्रणी निवेशकों में से एक था. हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में भारी प्रगति हुई है. ‘डीप ओशन मिशन’ के तहत भारत की प्रगति अभूतपूर्व रही है. भारत में गहरे समुद्र में खनिज अन्वेषण और दोहन के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर नेतृत्व करने की क्षमता है.’
आईएसए 167 सदस्य देशों और यूरोपीय संघ का एक अंतर सरकारी निकाय है, जिसका मुख्यालय जमैका के किंग्सटन में स्थित है.
माइकल डब्ल्यू लॉज ने कहा कि वह भारत में इसे लेकर राजनीतिक, वैज्ञानिक और तकनीकी स्तर पर प्रतिबद्धता से ‘बेहद प्रोत्साहित’ हुए हैं और भारत इस क्षेत्र में किसी भी अन्य देश के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है.
उन्होंने कहा, ‘भारत निकेल के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं है, और यह भारत के लिए एक बड़ी समस्या पैदा कर सकता है, जब तक कि आप घरेलू आपूर्ति विकसित नहीं कर लेते. लेकिन, समुद्र तल में भारत की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए निकेल पर्याप्त मात्रा में है. यदि भारत वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण खनिजों के क्षेत्र में अग्रणी बनना चाहता है, तो भारत के पास ऐसा करने की क्षमता है. इसी तरह, भारत के पास कोबाल्ट के लिए कोई सुरक्षित स्रोत नहीं है. लेकिन, समुद्र तल वह स्रोत प्रदान करता है.’
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