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Saturday, 23 November, 2024
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‘बातचीत से नहीं मिल सकती आज़ादी’, RPF के अध्यक्ष और मायावी गुरिल्ला नेता इरेंगबम चाओरेन का निधन

राष्ट्रीय सुरक्षा विश्लेषकों ने दिप्रिंट को बताया कि हो सकता है कि वह अपने अंतिम दिनों में मांडले, म्यांमार में रहे हों. चाओरेन ने 1990 से लेकर अंतिम सांस तक RPF अध्यक्ष के रूप में काम किया.

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गुवाहाटी: प्रतिबंधित संगठन रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ) के अध्यक्ष और पूर्वोत्तर भारत के सबसे मायावी गुरिल्ला नेताओं में से एक, इरेंगबम चाओरेन का शुक्रवार को निधन हो गया. वह 65 वर्ष के थे और उनका मानना था कि ‘बात-चीत से कभी भी स्वतंत्रता हासिल नहीं की जा सकती.’

शनिवार को जारी एक बयान में, आरपीएफ के उप सचिव, पब्लिसिटी, रोबेन खुमान ने कहा कि चाओरेन की मृत्यु टर्मिनल ब्रेन ट्यूमर के कारण हुई है.

आरपीएफ राज्य के सबसे शक्तिशाली आतंकी समूहों में से एक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की राजनीतिक शाखा है, जिसका गठन 1978 में मणिपुर को ‘आज़ाद’ करने के लिए किया गया था. एक साल बाद स्थापित आरपीएफ बांग्लादेश में निर्वासित सरकार चलाती है. पीएलए/आरपीएफ पूर्वोत्तर के कई अलगाववादी विद्रोही समूहों में से एक है जो सरकार के साथ बातचीत के प्रस्ताव को हमेशा से नकारती रही है.

रक्षा विश्लेषकों ने दिप्रिंट को बताया कि आरपीएफ के कुछ नेता बांग्लादेश और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों से काम करते हैं. हालांकि, यह पता नहीं चल पाया है कि चाओरेन की मृत्यु कहां हुई है.

राष्ट्रीय सुरक्षा विश्लेषकों ने दिप्रिंट को बताया कि हो सकता है कि वह अपने अंतिम दिनों में मांडले, म्यांमार में रहे हों. चाओरेन ने 1990 से लेकर अंतिम सांस तक आरपीएफ अध्यक्ष के रूप में काम किया.


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आरपीएफ और चाओरेन की यात्रा

पीएलए/आरपीएफ ने मणिपुर की संप्रभुता के लिए हथियार उठाने का संकल्प लिया था. जो मेइती, नागा और कुकी-चिन सहित राज्य के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं. आरपीएफ/पीएलए उन कुछ पार्टियों में से एक रही है, जो गुटों से अलग हुए बिना बरकरार रही है.

लगभग 2,000 कैडरों की अनुमानित ताकत के साथ, पीएलए/आरपीएफ चीन, भूटान और बांग्लादेश की सीमा से लगे पूर्वोत्तर क्षेत्र में सबसे बड़े सक्रिय विद्रोही समूहों में से एक है.

आरपीएफ की स्थापना के तुरंत बाद, इस क्षेत्र में उग्रवाद बढ़ गया था जिस कारण सितंबर 1980 में मणिपुर सरकार ने पूरी घाटी को डिस्टर्ब एरिया घोषित कर दिया था, साथ ही सशस्त्र बल ( स्पेशल पावर) अधिनियम (अफ्सपा), 1958 लागू कर दिया गया था.

26 अक्टूबर, 1981 को आरपीएफ के साथ पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलीपाक (PREPAK) और कांगलीपाक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी) को गैरकानूनी संगठन घोषित किया था.

नान न बताने की शर्त पर मणिपुर के एक लेखक ने दिप्रिंट को बताया, ”आरपीएफ में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे आइडल माना जाता हो. चाओरेन के बारे जो भी बाते पता चलती हैं, वो पार्टी अध्यक्ष के नाम से जारी वार्षिक बयानों के माध्यम से ही पता लगती हैं.”

1990 से, आरपीएफ ने मणिपुर में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा रखा है. पीएलए कैडरों ने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ एक सशस्त्र अभियान शुरू किया, जिसके तहत ड्रग पेडलर्स के खिलाफ एक जोरदार अभियान शुरू किया गया. पूर्ण शराबबंदी लागू की गई और बलात्कारियों को मार गिराया गया.

सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह संगठन यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF), PREPAK के साथ-साथ नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-खापलांग (एनएससीएन-के), यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम-इंडिपेंडेंट (उल्फा-आई) के साथ काम करता है और बर्मा की काचिन इंडिपेंडेंट आर्मी (केआईए) – पश्चिमी दक्षिण पूर्व एशिया (WESEA) में सक्रिय समूह, पूर्वोत्तर भारत, भूटान, उत्तरी बंगाल और म्यांमार सहित कई क्षेत्रों में काम करते हैं.

दो नवंबर, 1957 को जन्मे, चाओरेन, जो इंफाल पश्चिम में खगमपल्ली हुइड्रोम लीकाई से थे. वे 2011 में गठित समन्वय समिति (कॉरकॉम) नामक समूह के संयोजक भी थे और साथ सशस्त्र समूहों – केसीपी, कंगलाइ यवोल कन्ना लुप (केवाईकेएल), प्रेपक, प्रेपक प्रो, आरपीएफ, यूएनएलएफ और यूनाइटेड पीपल पार्टी ऑफ कंगलीपक (यूपीपीके) से जुड़े थे.

फरवरी 2022 में, चाओरेन ने कथित तौर पर कहा था कि उनका संगठन भारत के साथ किसी तरह की बातचीत नहीं करना चाहते हैं. सरकार द्वारा विश्वासघात की उनकी भावना और मणिपुर में अफ्सपा को केंद्र द्वारा लागू करने के खिलाफ क्रोध ने उन्हें शांति-वार्ता के विचार के प्रति शत्रुतापूर्ण बना दिया है.

आरपीएफ 1995 से 25 फरवरी को स्वतंत्रता मांग दिवस के रूप में मनाता आ रहा है. कथित तौर पर चाओरेन ने कहा कि शांति वार्ता विभिन्न बाध्यकारी कारणों से की गई थी.

इम्फाल फ्री प्रेस स्वतंत्रता मांग दिवस के अवसर पर मणिपुर के लोगों को संदेश देते हुए चाओरेन ने कहा, ”हमने शांति-वार्ता और समझौतों को नाकाम होते देखा है. हम देख चुके हैं कि 1947 का 9 सूत्रीय समझौता, 1960 का 16 सूत्रीय समझौता और 1975 में भारत और नगा क्रांतिकारी के बीच शिलांग समझौता और छह साल से अधिक पुराना ढांचागत समझौता, कुछ भौतिक लाभों के साथ नागा की स्वतंत्रता का व्यापार करने के लिए है.”

चाओरेन ने कहा था, ”ऐसी स्थिति में, विशेष रूप से WESEA क्षेत्र में शांति वार्ता के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करना संभव नहीं है, क्योंकि भारत अफ्सपा और अन्य कठोर कानूनों को लागू करने के बाद इसे अपना दुश्मन मानता है.”

इतिहासकार और लेखक मालेम निंगथौजा ने दिप्रिंट को बताया कि आरपीएफ अध्यक्ष की मौत ने संगठन के भविष्य पर सवाल खड़ा कर दिया है. उन्होंने कहा, ”उनकी मृत्यु पार्टी के लिए एक बड़ा नुकसान है. क्या उनकी मृत्यु पार्टी को भारत सरकार के साथ हाथ मिलाने पर मज़बूर कर देगी? क्या उनकी मृत्यु से पार्टी की विचारधारा, राजनीतिक सिद्धांतों, कार्यक्रमों और कार्यों में बदलाव आ जायेगा?”

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: अलमिना)


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