गंगटोक: पिछले हफ्ते गंगटोक में सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) के मुख्य कार्यालय पर हमले के बाद पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष पवन कुमार चामलिंग अपने सहयोगियों के साथ पार्टी कार्यालय के पास के एक पुराने सरकारी भवन में डेरा डाले हुए थे. काले और गहरे नीले रंग के सादे से कपड़ों में वह अपनी पार्टी के लोगों के साथ धीमी आवाज़ में बात कर रहे थे. जब वह सर्वदलीय बैठक के लिए अन्य लोगों के आने का इंतजार कर रहे थे, तो वहां का माहौल काफी तनाव भरा नजर आ रहा था.
दिप्रिंट के साथ हुई एक खास बातचीत में उन्होंने कुछ दिन पहले अपने कार्यालय पर हुए पथराव की तुलना जम्मू और कश्मीर से रिपोर्ट की गई पत्थरबाजी की घटनाओं से की. इस हमले में एसडीएफ ऑफिस को काफी नुकसान पहुंचा था. इसकी खिड़कियां और शीशे आदि तोड़ दिए गए थे.
13 जनवरी को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद से सिक्किम पिछले कुछ हफ्तों से उथल-पुथल की स्थिति में है. दरअसल इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सिक्किम में आयकर छूट से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि सिक्किम की आबादी में पुराने बसे भारतीयों और मूल निवासियों के बीच कोई अंतर नहीं है और उन्हें कर छूट की अनुमति दी. लेकिन सुनवाई के दौरान सिक्किम के नेपालियों के लिए ‘विदेशी मूल के लोग’ शब्द का इस्तेमाल करने से विरोध भड़क उठा.
भले ही सिक्किम के नेपाली लोगों के लिए ‘आपत्तिजनक’ संदर्भ केंद्र सरकार की तरफ से एक समीक्षा याचिका दायर करने के बाद हटा दिया गया था, लेकिन चामलिंग ने कहा कि अनुच्छेद 371F के तहत सिक्किम के लोगों को दिए गए विशेष प्रावधान – जो अगस्त 2019 से पहले जम्मू और कश्मीर के अनुच्छेद 370 के समान ही थे- को कमजोर किया गया है.
25 साल तक सिक्किम की सरकार चलाने वाले 73 वर्षीय चामलिंग ने कहा कि राज्य में ‘शांति और स्थिरता’ लाने के लिए वह अगले साल विधानसभा चुनाव लड़ेंगे.
उन्होंने कहा, ‘मैं यह देखकर आहत हूं कि जिन लोगों ने फरवरी 1975 के जनमत संग्रह में भारत में विलय के लिए मतदान किया था, उन्हें अब विदेशी करार दिया जा रहा है. उनके अधिकार दांव पर हैं.’
चामलिंग के माता-पिता नेपाली मूल के हैं और वह बड़े गर्व के साथ अपनी पहचान के बारे में बात करते हैं. उन्होंने कहा कि वो नेपाली मूल के लोग ही थे जिन्होंने उज्ज्वल भविष्य की आकांक्षा रखते हुए विलय के लिए मतदान किया था.
वह आगे कहते हैं, ‘विलय के लिए डाले गए कुल वोटों में से 80 प्रतिशत नेपालियों के वोट थे और अब इन लोगों को ‘प्रवासी’ कहा जा रहा है. मैंने भी जनमत संग्रह में मतदान किया था और आज हम सब विदेशी हैं. यह लोगों का अपमान है और इस तरह की उथल-पुथल के पीछे की वजह राज्य सरकार की अक्षमता है.’
विलय के बाद चामलिंग नर बहादुर भंडारी की पार्टी सिक्किम संग्राम परिषद में शामिल हो गए थे. भंडारी 1979 से 1994 के बीच सीएम रहे. बाद में 1993 में चामलिंग ने एसडीएफ की स्थापना की.
उन्होंने बताया कि सिक्किम देश के संवेदनशील सीमावर्ती राज्यों में से एक है, लेकिन इसने प्रगति की है और शांति बनाए रखने में कामयाब रहा है. लेकिन हाल ही में राज्य में कानून व्यवस्था और प्रशासन ध्वस्त होते नजर आए हैं. लोग असुरक्षित और चिंतित महसूस कर रहे हैं. चामलिंग ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘अगर केंद्र ने इसका तुरंत इसका समाधान नहीं निकाला, तो स्थिति बिगड़ सकती है.’ उन्होंने कहा, ‘यह तो शुरुआत है.’
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भानुमती का पिटारा खोलना
चामलिंग ने कहा, ‘यह भानुमती का पिटारा खोलने जैसा है. आदेश ने एक नमूना पेश किया है. अनुच्छेद के खंडों में कोई भी बदलाव या विस्तार सीमावर्ती राज्य में अशांति को ट्रिगर कर सकता है. यह अब एक केंद्रीय विषय है और केंद्र सरकार को इस आश्वासन के साथ इसका समाधान करना चाहिए कि सिक्किम की पहचान सुरक्षित है.’
चामलिंग को लगता है कि सिक्किम के विलय की शर्तों की अब ‘समीक्षा’ की जानी चाहिए. वह बताते हैं, ‘ऐसी कई चीजें हैं जो विशेष विशेषाधिकार या शर्तों के मामले में जम्मू और कश्मीर एवं सिक्किम के बीच समान हैं. हमारा राज्य अब जम्मू-कश्मीर की तरह ही पथराव की घटनाओं का गवाह बन रहा है. केंद्र को संवेदनशीलता, स्थान और अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर विचार करना चाहिए और समाधान लाने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि उन्होंने पिछले दो सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चार बार लिखा था और एसडीएफ नेताओं ने एक दर्जन से अधिक बार केंद्र सरकार के अधिकारियों से मिलकर निवारण की मांग की थी.
‘भाजपा राज्य सरकार चला रही है’
चामलिंग ने एसकेएम के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को ‘अक्षम और निष्क्रिय’ बताते हुए कहा कि इसका गठन उसके सहयोगी भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से किया गया था.
उन्होंने बताया, ‘भाजपा सरकार चला रही है. मौजूदा सीएम चुनाव लड़ने के योग्य भी नहीं थे क्योंकि उन्हें दोषी ठहराया गया था. लेकिन चुनाव आयोग ने नियम में कुछ मनमाना बदलाव करते हुए इसकी अनुमति दे दी. इसलिए, भाजपा के समर्थन के बिना यह सरकार नहीं चलती है.’
भाजपा सत्तारूढ़ एसकेएम की सहयोगी है, लेकिन सरकार का हिस्सा नहीं है.
राज्य में 2019 में पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एसकेएम के गठबंधन सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ा था. लेकिन उसे यहां एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी. लेकिन एसडीएफ के 10 विधायक उसी साल अगस्त में भाजपा में शामिल हो गए और पार्टी को अक्टूबर में दो सीटों पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल हुई. भाजपा के अब राज्य में 12 विधायक हैं.
(अनुवादः संघप्रिया मौर्या | संपादनः ऋषभ राज)
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