राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें सभी लोग पसंद करते हैं और उनकी प्रशंसा भी करते हैं. लेकिन उनके सम्मान में गुरुग्राम पुलिस ने जो किया उससे वह रोंमाचित तो बिलकुल नहीं होंगी. नौ फरवरी को राष्ट्रपति शहर में “परिवार को सशक्त बनाना” नामक एक अखिल भारतीय जागरूकता अभियान का उद्घाटन करने वालीं थीं.
यात्रा की तैयारी में जुटी गुरुग्राम पुलिस ने घोषणा की कि वे राष्ट्रीय राजमार्ग- 8 (एनएच-8) पर सभी यातायात को पांच घंटे के लिए पूरी तरह से रोक देंगे. अगर आप दिल्ली/एनसीआर में रहते हैं, तो आप जानते होंगे कि एनएच-8 यातायात को सुचारू रूप से चलाने के लिए कितना महत्वपूर्ण है. यह एनसीआर को अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे (आईजीआई) से जोड़ता है और इसका इस्तेमाल गुरुग्राम से दिल्ली जाने वाले लोगों द्वारा किया जाता है. हालांकि, पुलिस की इस घोषणा के बाद, कुछ स्कूलों ने अपनी टाइमिंग में बदलाव किए और दफ्तरों को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि लोग काम पर कैसे आएंगे.
इस सब के बीच, लोगों ने भारी हंगामा खड़ा किया, जिसने निश्चित रूप से गुरुग्राम पुलिस को अपना फैसला बदलने पर मजबूर किया और फिर, राष्ट्रपति भवन ने भी तुरंत हरकत में आते हुए विरोध किया और प्रतिबंधों को गैर-ज़रूरी बताया.
इसके बाद, अचानक गुरुग्राम पुलिस ने अपना बचाव करते हुए कहा कि किसी तरह का लंबा प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा. हालांकि, उन्होंने घोषणा की कि राष्ट्रपति के काफिले के गुज़रने के दौरान 5 मिनट के लिए ट्रैफिक को रोका जाएगा.
इतना ही काफी होना चाहिए था, लेकिन गुरुग्राम पुलिस एक कदम और आगे बढ़ी. यातायात प्रवाह को प्रतिबंधित करने के लिए कभी कोई योजना नहीं थी और इससे पीछे हटने का उनका फैसला सुझाव देने वाला ज्यादा लग रहा था.
इसके अलावा, इन प्रतिबंधों की घोषणा करने वाले पुलिस के आधिकारिक हैंडल पर दिखाई देने वाले ट्वीट का क्या?
पुलिस आयुक्त कला रामचंद्रन ने अपने बचाव में कहा ट्वीट पर सलाह “वरिष्ठ अधिकारियों और प्राधिकरण की अनुमति के बिना जारी की गई थी”
क्या सचमुच ऐसा हो सकता है? और वो भी पुलिस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से?
हालांकि, यह और भी खराब हो सकता था. इस दिन दिल्ली-जयपुर राजमार्ग खुला रहा, लेकिन इस तक पहुंचने वाले मार्गों पर बैरिकेडिंग की गई थी, जिससे वाहन चालकों के लिए वैसे भी राजमार्ग पर जाना मुश्किल हो गया था. इसलिए, गुरुग्राम के कुछ हिस्सों में, जिन यात्रियों को रामचंद्रन ने बिना अनुमति वाले ट्वीट को अस्वीकार करने का आश्वासन दिया गया था, उन्होंने खुद को ट्रैफिक में फंसा पाया.
और यह सब कुछ केवल एक वीआईपी व्यक्ति की सुरक्षा के नाम पर था!
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ऊपर से फोन नहीं आया
मुझे कभी-कभी हैरानी होती है कि क्या भारत के राजनेता और गणमान्य व्यक्ति जानते हैं कि उनके कारण आमजनता को कितनी असुविधा होती है. मेरा मानना है कि वह नहीं जानते हैं. सड़कों को अवरुद्ध करने के निर्देश शायद ही कभी ऊपर से आते होंगे. यह हमेशा स्थानीय पुलिस बलों का काम होता है. जब गणमान्य लोगों को पता चलता है कि उनके नाम पर क्या किया गया है, तो वे अक्सर राष्ट्रपति मुर्मू की तरह चकित हो जाते हैं.
जो बात इसे और भी विचित्र बनाती है वो यह कि ऐसी सभी पाबंदियां आमतौर पर दिल्ली पर लागू नहीं होतीं. संभवतः गुरुग्राम पहुंचने के लिए राष्ट्रपति का काफिला दिल्ली से होकर जाएगा, लेकिन दिल्ली पुलिस ने नागरिकों को परेशान करना ज़रूरी नहीं समझा.
चलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मामला देखते हैं. बहुत से लोग विवाद नहीं करेंगे कि प्रधानमंत्री खतरे में हैं, लेकिन जब वह दिल्ली की यात्रा करते हैं तो सभी सड़कों को बंद करने के लिए नहीं कहा जाता है.
हालांकि, जैसे ही मोदी दूसरे शहर की यात्रा पर निकलते हैं, वहां के निवासियों को परेशानी होने लगती है. मैं कुछ महीने पहले बेंगलुरु में था जब प्रधानमंत्री नये एयरपोर्ट टर्मिनल का उद्घाटन करने आ रहे थे. पीएम के सुरक्षाकर्मियों ने असुविधा को कम करने के लिए उनके लिए शहर से (जहां उनका रेलवे स्टेशन पर कार्यक्रम था) हवाईअड्डे तक हेलीकॉप्टर से यात्रा की व्यवस्था करने की कोशिश की.
हालांकि, बेंगलुरु पुलिस ने पूरे शहर में सड़कों को अवरुद्ध कर दिया और यह भी घोषणा की कि वे हवाईअड्डे तक जाने वाली एलिवेटेड रोड को बंद कर देंगे, लेकिन क्या मोदी हेलीकॉप्टर से जा रहे थे? ओह हां, पुलिस ने कहा था कि अगर मौसम खराब हो और उन्हें सड़क मार्ग से यात्रा करनी पड़े तो क्या होगा? सभी संभावनाओं को कवर करना बेहतर है.
पुलिस ने एक वीडियो जारी किया, जिसमें एक अधिकारी ने नागरिकों को असंख्य यातायात प्रतिबंधों के बारे में सूचित किया, लेकिन यह भी कहा कि उन्हें बुरा नहीं मानना चाहिए क्योंकि एक दिन की असुविधा से बेंगलुरु को वर्षों तक लाभ होगा.
क्या सच में ऐसा होगा? अगर उद्घाटन करने के लिए कोई वीआईपी समारोह नहीं होता तो क्या हवाईअड्डा कभी नहीं खुलता? क्या मोदी ने बेंगलुरु आने और ‘वर्षों के लाभ’ देने से इनकार कर दिया होता अगर निवासियों को ट्रैफिक से असुविधा नहीं होती?
वैसे यह रहस्य लगातार बना हुआ है किः दिल्ली छोड़ने के बाद ही प्रधानमंत्री क्यों निशाने पर आ जाते हैं? अन्य शहरों के नागरिकों को उस तरह से असुविधा क्यों होती है जो दिल्ली के नागरिकों को नहीं होती है?
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बस एक और भारतीय बात
आप सामान्य तौर पर वीआईपी संस्कृति को दोष दे सकते हैं, लेकिन इसकी एक खास वजह है. यह पुलिस अधिकारियों की विफलता है कि वे शहर के एक झुंड को बंद किए बिना सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं.
केवल भारत में- और किसी अन्य लोकतांत्रिक देश में- क्या आप किसी प्रमुख राजमार्ग को 5 घंटे के लिए बंद करेंगे क्योंकि राष्ट्रपति वहां से यात्रा करने वाले हैं. ब्रिटेन में जब मार्गरेट थैचर आईआरए द्वारा हत्या के प्रयासों का लक्ष्य थी, तब भी उन्होंने यात्रा के दौरान सड़कों को बंद करने के लिए नहीं कहा था. इसके अलावा, अमेरिकी राष्ट्रपति जिनके पास किसी भी लोकतांत्रिक नेता की तुलना में सबसे अधिक सुरक्षा मौजूद है, जब भी सड़क पर होते हैं तो राजमार्गों को कई घंटों के लिए बंद करने के लिए नहीं कहते हैं.
उन मामलों में, स्थानीय पुलिस केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों के साथ काम करती है ताकि नागरिकों को कम से कम असुविधा के साथ सुरक्षा कवरेज सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा सके. भारत में, पुलिस अधिकारी सुरक्षा प्रदान करने की अपनी क्षमता के बारे में इतने कम आश्वस्त होते हैं कि वे बिना सोचे-समझे शहरों के कुछ हिस्सों को बंद कर देते हैं और नागरिकों पर कहर बरपाते हैं.
गुरुग्राम पुलिस की छवि खराब है इसलिए वह सॉफ्ट टारगेट बनाती है, लेकिन सभी पुलिस बल (दिल्ली के बाहर) ऐसा व्यवहार करते हैं और यह सदियों से चला आ रहा है. 1990 के दशक में, कलकत्ता हवाईअड्डे से मेरी फ्लाइट छूट गई थी क्योंकि स्थानीय पुलिस द्वारा हवाईअड्डे की सड़क को बंद करने के फैसले के कारण जाम लग गया था, चूंकि वियतनाम से एक मंत्री आ रहे थे और ऐसा बार-बार होता रहा है.
शायद, पुलिस अधिकारियों के पास अपनी क्षमता पर कम भरोसा करने के कारण हैं. वीआईपी सुरक्षा का इतिहास पुलिस की नाकामियों के किस्सों से भरा पड़ा है चलिए ज़रा, इंदिरा गांधी के साथ शुरू करते हैं, जिनकी हत्या उनकी सुरक्षा के लिए नियुक्त पुलिसकर्मियों द्वारा कर दी गई थी. दो साल बाद, पुलिस को खुफिया ब्यूरो से एक गुप्त सूचना मिली कि एक आदमी राजघाट पर एक पेड़ में छिप जाएगा और राजीव गांधी और ज्ञानी जैल सिंह को मारने की कोशिश करेगा. उन्होंने इलाके की छानबीन की और उस हत्यारे को तलाशा, जिसने भविष्यवाणी के अनुसार प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पर शांति से गोलियां चलाईं. सौभाग्य से, वह चूक गया.
अक्सर गलतियां बुनियादी होती हैं. राजीव गांधी के हत्यारे को नाकाम कर दिया गया होता अगर बैठक स्थल पर मेटल डिटेक्टर होता, जहां उसने खुद को उड़ा लिया. हाल ही में, पंजाब पुलिस उस मार्ग को कवर करने में विफल रही जिस पर नरेंद्र मोदी का काफिला जा रहा था. उन एजेंसियों से बात करें जो गणमान्य व्यक्तियों (जैसे विशेष सुरक्षा समूह) की सुरक्षा में विशेषज्ञ हैं, उनके पास कईं डरावनी और चौंका देने वाली कहानियां हो सकती हैं.
सभी पुलिस प्रमुखों के पास एक विकल्प होता है – या तो अपनी सेना पर विश्वास करें या वीआईपी की सुरक्षा के लिए मुख्य क्षेत्रों को बंद कर दें. यह महत्वपूर्ण है कि उनमें से बहुत कम लोग अपनी ताकत पर विश्वास करना चुनते हैं और आम नागरिकों का जीवन बदतर बनाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.
अंतत: यही वीआईपी सुरक्षा का बुनियादी दोष है. हमारे पुलिस बल वीआईपी के साथ सशस्त्र ‘कमांडो’ के साथ जीप भरने और स्वचालित हथियार ले जाने वाले पुलिस अंगरक्षक प्रदान करने में अच्छे हैं, जो राजनेताओं और उनके परिवारों के लिए प्रतिष्ठा के प्रतीक के रूप में काम करते हैं.
लेकिन यह सब आंखों में धूल झोंकने वाला है. जब हमारे नेताओं की सुरक्षा की बात आती है, तो हमारे पुलिस बल यह नहीं जानते कि आमलोगों के जीवन को नरक बनाए बिना इसे कैसे किया जाए.
जी हां, बात वीआईपी कल्चर की है, लेकिन यह उस अवमानना के बारे में भी है जो पुलिस बलों के पास नागरिकों के लिए है, जिन्हें वे अपनी अयोग्यता को ढंकने और अपने राजनीतिक आकाओं के साथ खुद को जोड़ने में असुविधा करेंगे.
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(वीर सांघवी प्रिंट और टेलीविजन जर्नलिस्ट और टॉक शो होस्ट हैं. उनका ट्विटर हैंडल @virsanghvi हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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