(अंजलि पिल्लै और सलोनी भाटिया)
नयी दिल्ली, आठ फरवरी (भाषा) दिल्ली के छावला सामूहिक बलात्कार व हत्या मामले में पीड़िता के पिता ने कहा कि उम्मीद है कि इस बार उच्चतम न्यायालय उनकी बेटी के साथ न्याय करेगा।
उच्चतम न्यायालय ने 2012 में छावला इलाके में 19 वर्षीय एक लड़की से सामूहिक बलात्कार और उसकी हत्या किए जाने के मामले में तीन आरोपियों को बरी करने के फैसले की समीक्षा संबंधी दिल्ली पुलिस की याचिका पर विचार के लिए तीन सदस्यीय पीठ गठित करने पर बुधवार को सहमति जताई।
पीड़िता के पिता ने कहा, ‘‘जब उन्हें रिहा किया गया, तब हमें आशंका थी कि वे फिर से दूसरों को नुकसान पहुंचाएंगे और वही हुआ।’’
उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि अदालत इस बार उनकी बेटी को न्याय देगी। उन्होंने कहा कि बरी किये गये लोग खूंखार अपराधी हैं जिन्हें सुधारा नहीं जा सकता।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा एवं न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ से कहा कि इस अदालत द्वारा बरी किए गए एक आरोपी ने हाल में एक व्यक्ति का गला रेत दिया था।
पिता ने यह भी आरोप लगाया कि मामले में बरी किए गए अन्य दो लोग खुले घूम रहे हैं और उन्हें तुरंत जेल में डाला जाना चाहिए।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमारी आशंका सही साबित हो गई। सामूहिक बलात्कार मामले में शामिल खूंखार अपराधियों में से तीन को उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल दिसंबर में बरी कर दिया था, और जेल से बाहर आने के बाद भी वे नहीं सुधरे। उनमें से एक, विनोद ने द्वारका में एक ऑटोरिक्शा चालक की हत्या कर दी। इसलिए, यह जरूरी है कि इन अपराधियों को जेल में डाला जाए क्योंकि वे इस तरह के अपराधों को फिर से दोहरा सकते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि अन्य दो बरी किये गये अपराधी राहुल और रवि, जो अब खुलेआम घूम रहे हैं, को भी जेल में डाला जाए क्योंकि वे फिर से इस तरह के अपराध कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी पिछली गलतियों से कोई सबक नहीं सीखा है।’’
उन्होंने कहा कि वह शुरू से ही मांग कर रहे हैं कि दुष्कर्म और हत्या के दोषियों को फांसी पर लटकाया जाए। उन्होंने कहा, ‘‘सभी आरोपियों के खिलाफ गहन जांच होनी चाहिए।’’
पीड़िता की मां ने कहा कि वह अपनी बेटी के लिए न्याय चाहती हैं ताकि एक सख्त संदेश जाए कि देश में कानून का शासन है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे हम पिछले 11 सालों से लड़ रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि यह इस देश की बेटियों की सुरक्षा की लड़ाई भी है।
उन्होंने कहा, ‘‘’मुझे बहुत निराशा हुई थी जब न्यायाधीश ने पिछले साल उन तीन लोगों को बरी कर दिया था। देखिये अब क्या हुआ है। उनमें से एक ने एक ऑटोरिक्शा चालक की हत्या कर दी और उसके परिवार को बर्बाद कर दिया। हम केवल न्याय चाहते हैं।’
महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता भयाना ने कहा कि अभी भी उम्मीद बाकी है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारे लिए उम्मीद की किरण है। उच्चतम न्यायालय ने अब तीन न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया है, और इससे इस तरह के मामले लड़ रहे अन्य परिवारों को भी उम्मीद है। अगर आरोपियों को बरी नहीं किया गया होता तो द्वारका में हुई हत्या की घटना टल सकती थी।’’
गौरतलब है कि 2012 में तीनों आरोपियों ने 19 वर्षीय लड़की से कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया था और उसकी हत्या कर दी थी। निचली अदालत ने तीनों को मौत की सजा सुनाई थी और उच्च न्यायालय ने अगस्त 2014 में इसे बरकरार रखा था।
उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया था और पिछले साल नवंबर में आरोपियों को बरी कर दिया था।
भाषा
देवेंद्र सुभाष
सुभाष
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