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Thursday, 5 September, 2024
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मी लार्ड! हमें भी चाहिए ऐसी सज़ा, आपको दुआ देंगे: देश के किसान

उद्योगपति अनिल अंबानी व एरिक्सन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर कर्ज़मंद किसानों ने गुहार लगानी शुरू कर दी है कि उन्हें भी ऐसी सजा से नवाज़ा जाय.

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बजट में सालाना छह हज़ार रुपये मिलने और कांग्रेस के कर्ज़माफी के वादे से ज़्यादा कर्ज़मंद किसानों को सुप्रीम कोर्ट से राहत की उम्मीद जगी है. उद्योगपति अनिल अंबानी और एरिक्सन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की चर्चा के बीच कर्ज़मंद किसानों ने ये जुबानी गुहार लगानी शुरू कर दी है कि हमें भी इस तरह की सजा से नवाज़ा जाए. उनकी इस मांग पर बाकी तबके भी हमदर्दी जताकर जायज़ ठहरा रहे हैं. हालांकि कुछ लोग किसानों की किस्मत में ऐसे फैसले न आने से मायूस भी हैं.

20 फरवरी को आरकॉम बनाम एरिक्सन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरकॉम के चेयरमैन अनिल अंबानी को अवमानना का दोषी करार दे दिया. दो अन्य निदेशकों को भी दोषी करार दिया गया. एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने कहा कि ये साफ है कि रुपये देने की अंडरटेकिंग देने के बावजूद कंपनी रुपये नहीं देना चाहती थी. अनिल अंबानी व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में दी अंडरटेकिंग का उल्लंघन किया है. कोर्ट ने ये भी कहा, यह जान बूझकर किया गया है. आरकॉम को 453 करोड़ रुपये और देने हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर अंबानी चार सप्ताह के भीतर रुपये नहीं देंगे तो तीन महीने की जेल होगी. इस दौरान अनिल अंबानी कोर्ट में मौजूद थे. जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और जस्टिस विनीत सरन की बेंच ने यह फैसला सुनाया है.

फैसला आने के बाद सोशल मीडिया के ज़रिए खबर देशभर में फैल गई. गांव से जुड़े शहरियों ने गांवों तक चर्चा का प्रसार किया तो प्रतिक्रिया भी आना शुरू हो गईं. फेसबुक पेज ‘आओ तर्क करें’ पर इससे संबंधित गरमागरम तर्क-वितर्क जारी है.

इस पेज पर पोस्ट डाली गई हैं,

गणित का सवाल
‘यदि अनिल अंबानी को 500 करोड़ न चुकाने की सजा 90 दिन होती है तो एक किसान को 1 लाख रुपये बैंक कर्ज़ न चुकाने की कितनी सज़ा मिलेगी?’

इसके जवाब भी अलग-अलग आए, लेकिन आम बात ये रही कि किसान विरोधी वक्तव्य नहीं आया. किसी ने जवाब दिया- फांसी-आत्महत्या, तो किसी ने कैलकुलेशन लगाकर सज़ा का समय बताने की कोशिश की, या फिर ये भी कहा कि महज एक लाख कर्ज़ की चिंता ही किसान की चिंता बन जाती है, काफी लोगों ने इसका जवाब कर्ज़माफी बताया.

जवाब ये भी आया-

500 करोड़ = 90 दिन
5 करोड़ 55 लाख 55 हज़ार 555=एक दिन
23 लाख 15 हज़ार= एक घंटा
38 हज़ार 580 = एक मिनट
1 लाख 15 हज़ार 740 रुपये =3 मिनट

यानि 3 मिनट से भी कम सज़ा होगी.

इसी हिसाब से किसानों को सज़ा देकर छुट्टी की जाए..

बहरहाल, इस मामले में जब किसानों से बात की गई तो उन्हें रकम के एवज में मिलने वाली सज़ा जंच गई. बरेली में नवाबगंज तहसील के किसान रमेश गंगवार ने कहा कि कोऑपरेटिव सोसाइटी से खाद का और क्रेडिट कार्ड से लिया लोन कई साल से नहीं चुका पा रहे हैं, कर्ज़माफी में भी चुकता नहीं हुई क्योंकि दो भाइयों का साझा खाता था और उसमें कम करके भी इतना है कि मुसीबत हो गई है.

अखिल भारतीय किसान महासभा के नेता हरिनंदन सिंह ने कहा कि सरकार और अदालतें तो उन पर मेहरबान हैं, जिनके पास पहले ही कोई कमी नहीं है. यही सज़ा किसानों को क्यों नहीं दे देते, उनकी जिंदगी बच जाएगी. खेत मजदूर यूनियन के नेता राजीव शांत का कहना है कि किसानों को झूठी खैरात बांटने की जगह सरकार इसी तरह की सज़ा दे दे, वे तो मामूली से कर्ज़ पर जेल भेजे जाते हैं, जमीन कुर्क कर दी जाती है. बैंक और वसूली करने वाले अमीन जरा भी रहम नहीं खाते, अनिल अंबानी तो किस्मत वाले हैं जो उन्हें इतने बड़े कर्ज़ पर इतनी सी सज़ा मिल गई. किसानों को तो आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा ही नहीं छोड़ा गया है. सुप्रीम कोर्ट किसानों के लिए भी अनिल अंबानी जैसी व्यवस्था दे, इसके लिए याचिका डाली जाएगी. या फिर ऐसा हो जाए कि किसान को कर्ज़ के आधार पर मिली सज़ा को आधार बनाकर अनिल अंबानी को भी जेल भेजा जाए.

किसानों की आत्महत्या की खबरें पिछले कई बरसों से मीडिया में छाई रहीं हैं. कभी राहत पैकेज देकर तो कभी कर्ज़माफी का फाहा रखकर उनके जख्मों को ठीक बताया गया या फिर बदनाम भी किया गया. अलबत्ता किसानों के मुंबई मार्च और दिल्ली में मुचैटा ने लोगों की आंखें खोलीं, लेकिन सरकार ने कान बंद ही रखे. जबकि कुछ रिपोर्टें सरकार के रुख को कठघरे में खड़ा करती रहीं. स्वामीनाथन रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने की मांग को अब तक लागू नहीं किया गया, जबकि किसान आंदोलनों की ये प्रमुख मांग रही है. इंडिया टुडे की हालिया रिपोर्ट ने सरकार की बेरुखी को सामने रखा. रिपोर्ट में बताया गया है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा 2015 से अपडेट ही नहीं किया गया है. राज्यों से मिला आधा अधूरा डाटा भी गृह मंत्रालय ने जारी नहीं किया, वजह जो भी हो.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, छह जुलाई 2017 को भारत संघ द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत एक हलफनामे के अनुसार, वर्ष 2015 में लगभग 12,602 किसानों और खेती करने वालों ने आत्महत्या की, इसमें से 4,291 किसानों ने आत्महत्या की, जिनमें सबसे ज़्यादा आत्महत्या दर थी. कर्नाटक सूची में दूसरे नंबर पर 1,569 किसानों के साथ और उसके बाद तेलंगाना में 1,400 और मध्य प्रदेश में 1,290 पर है.

सरकार के अन्तरिम आंकड़ों के अनुसार, भारत भर में किसानों की आत्महत्या की संख्या पहले ही 11,458 तक पहुंच गई है. ऐसा तब है जब पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्यों का डेटा नहीं मिला है. वहीं, कर्नाटक जैसे राज्यों में आत्महत्याओं में 2,067 की वृद्धि हुई है, महाराष्ट्र में आत्महत्याओं में मामूली रूप से 3,661 की गिरावट आई है, जबकि मध्य प्रदेश में 1,321 की वृद्धि दर्ज की गई है. नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, विदर्भ के छह जिलों में जनवरी 2001 से अक्टूबर 2018 तक अलग-अलग कारणों से 15,629 किसानों ने आत्महत्या थी, जिसमें 7,008 किसानों की मदद दी गई, जबकि 8,406 मामलों में किसानों को अपात्र ठहराया गया.

(आशीष सक्सेना स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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