नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुताबिक, ‘मुस्लिम आउटरीच’ हिंदू-मुस्लिम के बीच चल रहे संघर्ष के ‘सभ्यतागत और सांस्कृतिक’ समाधान के लिए संगठन की ओर से किया जा रहा बड़ा प्रयास है. अपने इन प्रयासों के तहत आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी मुस्लिम नेतृत्व से मुलाकात कर रहे हैं.
आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘‘यह प्रयास मुस्लिम समुदायों तक पहुंच बनाने की उन कोशिशों से अलग है, जो राजनीतिक रूप से केंद्रित होते हैं और चुनावी फायदे को ध्यान में रखकर किए जाते हैं.’’ आरएसएस की चार सदस्यीय टीम और मुस्लिम बुद्धिजीवियों की नौ सदस्यीय टीम के बीच हुई दो बैठकों के महत्व को समझाते हुए पदाधिकारी ने कहा, ‘‘इस तरह की बातचीत अल्पकालीन समाधान होती हैं जो लंबे समय तक देश हित में काम नहीं करती हैं.’’ इनमें से एक बैठक दिल्ली में इस महीने की शुरुआत में हुई थी और एक पिछले साल अगस्त में की गई थी.
नाम न छापने की शर्त पर वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि तीसरी और अगली बैठक अप्रैल में दिल्ली में की जाएगी. यह मुद्दों, विचारों पर चर्चा करने और दो समुदायों के बीच संघर्ष को कम करने के तरीके खोजने की एक प्रक्रिया है. उन्होंने आगे कहा, ‘‘यह पहला ऐसा मुस्लिम आउटरीच है जिसे संघ ने शुरू किया है. हम किसी चुनावी लाभ या किसी राजनीतिक लाभ की तलाश में नहीं हैं. हम मुसलमानों के किसी विशेष समुदाय को नहीं चुन रहे हैं. हम उन सभी लोगों तक पहुंच रहे हैं जो दीर्घकालिक समाधान में रुचि रखते हैं. हम सभी इस युगों पुराने सांप्रदायिक संघर्ष के सामाजिक सभ्यतागत समाधान के लिए काम कर रहे हैं.’’
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने संवाद को आगे बढ़ाने के लिए चार वरिष्ठ पदाधिकारियों – कृष्ण गोपाल, राम लाल, मनमोहन वैद्य और इंद्रेश कुमार को नामित किया है. मुस्लिम बुद्धिजीवियों में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी, दिल्ली के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर नज़ीब जंग और वरिष्ठ पत्रकार शाहिद सिद्दीकी शामिल हैं.
दिप्रिंट से बातचीत में कुरैशी ने कहा, ‘‘यह एक शुरुआत है. हमें एक दूसरे के साथ बेहतर समझ की दरकार है. दोनों पक्षों के बीच एक-दूसरे के खिलाफ कुछ गलत धारणाएं हैं और दोनों पक्ष संघर्ष की भावना को कम करने के लिए अपने समुदाय के नेताओं और आध्यात्मिक नेताओं से बात कर रहे हैं.’’
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हिंदू राष्ट्र
कई अलग-अलग मसलों पर चर्चा करते हुए मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने संघर्ष, एक दूसरे (हिंदू और मुस्लिम) के खिलाफ आक्रामकता, हिंदू राष्ट्र का उल्लेख और काशी एवं मथुरा से संबंधित मुद्दों को उठाया.
कुरैशी ने कहा, ‘‘हमने उन घटनाओं का ज़िक्र किया है, जहां आरएसएस के कुछ सहयोगियों या फ्रिंज तत्वों की तरफ से भड़काने और (कैसे) मुसलमानों से जुड़ी जगहों को लक्षित किया गया था. हमने उन्हें बताया कि इन घटनाओं से माहौल खराब होता है. उनके पास भी हमारे साथ चर्चा करने के लिए समान मुद्दे हैं. एक कमांड सिस्टम होना चाहिए, मंदिरों और मस्जिदों में आध्यात्मिक नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन ये रातों-रात नहीं होगा. इसमें समय लगता है.’’
बैठक में हिंदू राष्ट्र के मुद्दे पर चर्चा हुई. कुरैशी ने कहा, ‘‘भागवत जी और सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों ने समझाया कि जब वे सभी भारतीयों को हिंदू कहते हैं, एक ही डीएनए और एक ही पूर्वजों के बारे में बात करते हैं तो उनका मतलब धर्म नहीं होता है. उनका मानना है कि धर्मांतरित सभी मुस्लिम और ईसाई हिंदू थे और उनके पूर्वज एक ही हैं. हम इस पर उनसे सहमत हैं और यह काफी उचित बिंदु है. उन्होंने कहा कि वे मुसलमानों के बिना हिंदू राष्ट्र की कल्पना नहीं कर सकते. वे राजनीतिक प्रक्रिया में भी अधिक मुस्लिम भागीदारी के बारे में बात करते हैं.’’
कई स्तरों पर मेलजोल
आरएसएस टीम और मुस्लिम बुद्धिजीवियों के बीच हुई इन बैठकों की जानकारी रखने वाले संघ के एक अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘‘मुस्लिम बुद्धिजीवियों का सिर्फ एक समूह है जो बैठकों में खुल कर बात कर रहा है, लेकिन हमने अलग-अलग समूहों के साथ ऐसी कई बैठकें की हैं, उनमें से अभी तक किसी ने खुलकर बात नहीं की है. संघ अपने आप कभी इस बारे में खुलकर बात नहीं करेगा, लेकिन प्रक्रिया जारी है और हमें सभी से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘मुस्लिम भी रोज़ाना के इस तरह के संघर्षों और आक्रामकता से थक चुके हैं. हर कोई समाधान और आगे की राह पर काम करना चाहता है. हम गांव, ब्लॉक और जिला स्तर पर मस्जिद कमेटियों, इमामों, पेशेवरों और समूहों से संपर्क कर रहे हैं. यह नियमित रूप से जारी है, ताकि हम शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारने वाली किसी भी घटना को रोक सकें.’’
(अनुवादः संघप्रिया | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
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