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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतलाभ नहीं, जरूरत-आधारित होनी चाहिए अर्थव्यवस्था, गांधीवादी सिद्धांतों के साथ पूरा हो G-20 का लक्ष्य

लाभ नहीं, जरूरत-आधारित होनी चाहिए अर्थव्यवस्था, गांधीवादी सिद्धांतों के साथ पूरा हो G-20 का लक्ष्य

वसुधैव कुटुंबकम् के मंत्र को आत्मसात् करते हुए गांधी के स्वदेशी, न्यासी और अहिंसा के सिद्धांत को जी-20 समूह के नीतिगत ढांचे में स्थान देना मानव मात्र के लिए शांति स्थापना तथा वहनीय विकास को सुनिश्चित करने की दिशा में एक ठोस कदम होगा.

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भारत द्वारा जी-20 समूह की अध्यक्षता ग्रहण करते ही संपूर्ण देश और विश्व में हर्ष और अपेक्षाओं की एक लहर व्याप्त होती दिखाई दे रही है. वैश्वीकरण का एक परिणाम यह भी हुआ है कि विभिन्न देशों ने मिलकर अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा एवं पैरवी के लिए अनेकानेक समूहों/संगठनों का गठन किया है.

वर्ष 1999 में जी-20 समूह का गठन भी इस कड़ी में दिखाई देता है. प्रारंभ में यह वित्त -मंत्रियों तथा केन्द्रीय बैंकों के गवर्नरों द्वारा आर्थिक व वित्तीय मुद्दों पर चर्चा का मंच रहा, किन्तु वर्ष 2007 के वैश्विक आर्थिक व वित्तीय संकट के दृष्टिगत इसे “अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए प्रधान मंच ” के रूप में नामित किया गया. आगे चलकर वर्ष,2008 में जी-20 समूह राष्ट्राध्यक्षों के विचार विमर्श का मंच बना तथा तभी से लेकर राष्ट्राध्यक्षों का वार्षिक सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है.

जी-20 के उद्देश्य

वर्ष 2022 में यह सम्मेलन इंडोनेशिया में हुआ तथा वर्ष 2023 में भारत में आयोजित हो रहा है . उन्नीस देशों तथा यूरोपियन संघ के इस समूह के शीर्ष सम्मेलन में अतिथि देशों तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों/समूहों के प्रतिनिधि भी शिरकत करते हैं जिससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि वैश्विक परिस्थितियों में जी-20 समूह चर्चा व मंथन का एक महत्वपूर्ण मंच बन गया है.

आज जी-20 समूह का एजेंडा व्यापक रूप ले रहा है जिसमें व्यापार, जलवायु परिवर्तन, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण तथा वहनीय विकास, यहां तक कि भ्रष्टाचार -उन्मूलन आदि मुद्दे सम्मिलित किये जा रहे हैं. घोषित रूप से समूह के उद्देश्य हैं-

  • वैश्विक आर्थिक स्थिरता तथा वहनीय विकास प्राप्त करने के लिए सदस्य -देशों में नीति -सहयोग.
  • ऐसे वित्तीय नियंत्रणों को प्रोत्साहित करना जिनसे जोखिम में कमी आये तथा भविष्य के वित्तीय संकटों से बचा जा सके
  • एक नये अन्तर्राष्ट्रीय वितीय ढ़ांचे का निर्माण.

यदि जी -20 के वार्षिक सम्मेलनों में होने वाली चर्चाओं, विचार विमर्शों और संकल्प पत्रों का गहन अध्ययन किया जाये तो स्पष्ट होगा कि इनमें न केवल सदस्य -देशों के नागरिकों बल्कि समस्त मानव जाति के जीवन को प्रभावित करने वाले अर्थव्यवस्था -आधारित मसलों का बोलबाला रहता है. फिर भी प्रत्यक्षतः एक दूसरे के प्रति चिंता और सहयोग प्रदर्शित करते हुए भी सभी देश कमोवेश ऐसे निर्णयों ओर संकल्प -पत्रों के जुगाड़ में रहते हैं जिनसे अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा एवं प्रोत्साहन हो सके.

चूंकि जी-20 समूह की अध्यक्षता वार्षिक आधार पर रोटेशन पद्धति से आवंटित होती है, इसलिए इसका एजेंडा निरन्तरता धारण करते हुए भी समायोजनों और परिवर्तनों(विचलनों)से प्रेरित रहता है.

भारत द्वारा जी-20 समूह की अध्यक्षता ग्रहण करना एक ऐसे अवसर के रूप में देखा जा रहा है जिसमें नीतियों को मानव-कल्याण की ओर अधिक तत्परता से ले जाया जा सके. इसे भारतीय मूल्यों, परंपराओं और संस्कृति से अन्य देशों को प्रचार प्रसार के माध्यम से अवगत कराने का बेहतर अवसर भी माना जा रहा है.

राजस्थान के जोधपुर में सदस्य देशों के शेरपाओं की बैठक शीर्ष सम्मेलन का एजेंडा निर्धारित करेगी जिसमें प्रौद्योगिकीय रूपांतर,हरित विकास, नारी -नीत विकास को उजागर करना, वहनीय विकास लक्ष्यों (SDG’s) में तेजी लाना तथा समावेशी(inclusive) व लचकदार (resilient) वृद्धि के मुद्दों के सम्मिलित होने की संभावना है.

इस बात की पूरी संभावना है कि ऐजेंडा के मुद्दों को लेकर सदस्य देश राष्ट्रीय हितों के प्रति सचेत होकर भी आपसी सहयोग, सद्भाव और हित चिंतन को बढ़ावा देंगे क्योंकि भारत का विकास -मंत्र स्व-केन्द्रित न होकर परहित आधारित रहा है. इतिहास साक्षी है कि भारत ने संकट की घड़ी में अपने मित्र और गैर-मित्र देशों को अकेला नहीं छोड़ा बल्कि भरपूर सहायता की है. कोविड महामारी में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सक्रिय और कुशल नेतृत्व में कोविड वैक्सीन न केवल भारतीय नागरिकों बल्कि अन्य देशों को भी उपलब्ध करवाई गई.

आज भारत वैश्विक गतिविधियों का केंद्र बिन्दु बन गया है तथा इसने वैश्विक निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता का परिचय दिया है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रो का यह कथन संपूर्ण विश्व की भावनाओं और आशाओं का प्रतिरूप है: “भारत ने जी-20 की अध्यक्षता ग्रहण कर ली है. मुझे मेरे मित्र नरेंद्र मोदी पर पूरा भरोसा है कि वे हमें शांति -निर्माण और अधिक वहनीय विश्व बनाने के लिए एक साथ लाएंगे.”

यह वांछनीय है कि भारत की अध्यक्षता में जी-20 समूह की होने वाली गतिविधियां ऐसी हों जिनका मार्ग दर्शक सिद्धांत ऐसा हो जिसमें तत्परता और सम्मानपूर्वक भारत में व्यक्त किया गया विश्वास बरकरार रहे. इसकी शुरुआत हो चुकी है. देश की समृद्ध और गौरवपूर्ण परम्पराओं और सिद्धांतों के अनुरूप मोदी ने जी-20 के 2023 के शीर्ष सम्मेलन के प्रतीक चिन्ह, मूल विषय (थीम), वेबसाइट लांच के अवसर पर कहा, ” भारत ने एक सूर्य, एक दुनिया और एक ग्रिड के संकल्प के साथ अक्षय ऊर्जा क्रांति का आह्वान किया था और अब जी-20 में भी हमारा मंत्र ‘ एक धरती,एक परिवार,एक भविष्य है. उन्होंने यह भी कहा कि वसुधैव कुटुंबकम् के जिस मंत्र के जरिए विश्व बंधुत्व की भावना को हम जीते आए हैं,यह उसका प्रतिबिंब है. यह मंत्र विश्व के प्रति भारत की करुणा का प्रतीक है. ”


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जी 20 और महात्मा गांधी

प्रधानमंत्री के उपरोक्त शब्द भारतीय दृष्टिकोण को उजागर करने के लिए पर्याप्त है. भारत की सर्वोत्तम परम्पराओं की पहचान बने उदात्त आदर्शों के जखीरे के साथ आज आवश्यकता है कि गांधीवादी सिद्धांतों को उस नीतिगत ढांचे के साथ एकीकृत किया जाये जो जी-20 के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निर्धारित हों तथा जो न केवल सदस्य देशों बल्कि अधिकांश विश्व के एक एक नागरिक की भलाई पर केंद्रित हों.

आज महात्मा गांधी के शहादत की 75वीं वर्षगांठ है. महात्मा गांधी एक अलग किस्म के विचारक हैं जो स्वयं द्वारा अनुभूत विचारों को ही आगे बढ़ाते हैं और कथनी और करनी के अन्तर को पाटते हैं. गांधी जी सामाजिक प्रणाली के केन्द्र में व्यक्ति को मानते हुए मनुष्य का लक्ष्य अपने नैतिक पक्ष को अनुभूत करना मानते हैं. आर्थिक गतिविधियां भी नैतिक मूल्यों से विलग नहीं होनी चाहिए. गांधी जी इस बात से असंतुष्ट थे कि अर्थशास्त्री अधिकांशतः लाभों को बढ़ाने के लिए उत्पादन एवं स्वामित्व में वृद्धि को अधिमान देते हैं. उनका मानना था कि व्यवस्था का जोर लाभ-आधारित अर्थव्यवस्था की बजाय जरुरत-आधारित अर्थव्यवस्था पर होना चाहिए जिसमें सभी की जरुरतें पूरी हों तथा जिसमें बहुलता, विलासिता और फिजूलखर्ची का कोई स्थान न हो.

वसुधैव कुटुंबकम् के मंत्र को आत्मसात् करते हुए गांधी के स्वदेशी, न्यासी और अहिंसा के सिद्धांत को जी-20 समूह के नीतिगत ढांचे में स्थान देना मानव मात्र के लिए शांति स्थापना तथा वहनीय विकास को सुनिश्चित करने की दिशा में एक ठोस कदम होगा. ए.टी.हिन्गोरानी ने अपनी सम्पादित एवं प्रकाशित पुस्तक ‘गांधी,एम.के.द गोस्पल आफ स्वदेशी, भारतीय विद्या भवन, बोम्बे 1967’ में गांधी को उद्धृत करते हुए लिखा है: “जनता की अधिकांश गहरी गरीबी आर्थिक और औद्योगिक जीवन में स्वदेशी के (से) विनाशकारी अलगाव के कारण है. “वास्तव में स्वदेशी के विचार को सही परिप्रेक्ष्य में समझना होगा. इसका अभिप्राय विदेशी चीजों का पूर्ण बहिष्कार न होकर स्थानीय उत्पादन पर निर्भर रहते हुए आवश्यकता पूर्ति हेतु विदेशी चीज़ों का प्रयोग भी है.

जी-20 समूह के देशों को स्वदेशी की भावना को अपनाते हुए आगे बढ़ना चाहिए तथा इसी के अनुसार अपनी व अन्य देशों की आवश्यकताओं की पूर्ति करें तथा तकनीकी विकास को भी समायोजित करें. गांधी जी के इस कथन की ओर ध्यान देना होगा: ” स्वदेशी का सच्चा समर्थक विदेशी के प्रति कभी भी दुर्भावना नहीं पालेगा,वह धरती पर किसी के प्रति भी विरोध के भाव से संचालित नहीं होगा. स्वदेशीवाद घृणा का मार्ग नहीं है. यह निस्वार्थ सेवा का सिद्धांत है जिसकी जड़ें विशुद्धतम अहिंसा यानि प्रेम में है. ” गांधी एम,.के., यंग इंडिया, 18 जून 1931

गांधी के निजी स्वामित्व को सम्पूर्ण समाज के न्यास के रूप में देखते थे जिसका संबंध समूची मानवता से था तथा जिसका प्रयोग जरुरतमंदों के लाभ के लिए किया जाना चाहिए. अमीरों के लिए उनका परामर्श था: ” मैं चाहता हूं कि अमीर अपनी समृद्धि गरीबों के न्यास के रूप में धारण करें या उसे(समृद्धि को) उनके (ग़रीबों के) लिए त्याग कर दें. ” यंग इंडिया अप्रैल 2,1931. न्यासी सिद्धांत की सच्चाई गांधी जी के शब्दों में इस प्रकार व्यक्त होती है: ” न्यासी सिद्धांत एकांगी नहीं है, और न ही यह न्यासी की श्रेष्ठता को इंगित करता है.यह, जैसा कि मैंने बताया है,एक पूर्णतया आपसी मामला है, और प्रत्येक पक्ष(न्यासी तथा लाभार्थी) मानता है कि उसके अपने हित अन्य के हित की सुरक्षा में ही अच्छी प्रकार सुरक्षित है. “हरिजन, जून 25,1938. न्यास की उक्त भावना निश्चित रूप से आपसी विकास और वृद्धि में सहायता करेगी.

गांधी जी का अहिंसा का सिद्धांत तो ऐसा रामबाण है कि मनसा, वाचा, कर्मणा इसका अनुकरण मानवीय व्यवहार को साधते हुए जीवन के हर क्षेत्र में विजय पताका फहराने में सक्षम है. राष्ट्र की इकाई के रूप में मानव तथा विश्व की इकाई के रूप में राष्ट्र, हर इकाई को इसे अपनाना चाहिए ताकि जीवन की स्पर्धाजन्य परिस्थितियां न मानव को और न ही राष्ट्र को विचलित कर पाये. परिणाम यह होगा कि आपसी वैर, वैमनस्य, आपाधापी, स्वार्थपरकता को पीछे छोड़ते हुए समाज और विश्व उत्तरोत्तर आग बढ़ेंगे.

एक ऐसे समाज का,एक ऐसे वैश्विक परिवेश का निर्माण होगा जिसमें आपसी प्रेम, सहयोग और सद्भावना का बोलबाला होगा. सभी एक दूसरे के सहायक और समर्थक होंगे और मिलजुलकर आगे बढ़ेंगे, विकास करेंगे और वृद्धि को प्राप्त होंगे -ऐसी वृद्धि जिसमें सभी की आवश्यकताएं पूरी होंगी और किसी को भी अभाव का दंश नहीं झेलना पड़ेगा. यह आवश्यक है यदि जी 20 के 2023 शीर्ष सम्मेलन के मंत्र को जीना है- एक धरती,एक परिवार,एक भविष्य.

(डॉ वेदाभ्यास कुंडू, गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के कार्यक्रम अधिकारी है और मानसी शर्मा, वकील और मीडिएटर हैं) (व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन- आशा शाह)


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