जयपुर: राजस्थान में कांग्रेस के मंत्री, विधायक और नेता भले ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत या फिर उनके प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट दोनों में से किसी एक का समर्थन करने का दम भरते हों, लेकिन वे सभी इस बात को लेकर एकमत हैं कि अगर आलाकमान ने इस मामले में तुरंत दखलंदाजी और कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं की तो रेगिस्तानी राज्य में ‘पंजाब की कहानी’ दोहराई जा सकती है.
पायलट के किसान महासम्मेलन के बाद से कांग्रेस के नेताओं की चिंताएं और बढ़ गई हैं. गौरतलब है कि इस महीने की शुरुआत में आयोजित पांच दिवसीय सार्वजनिक आउटरीच कार्यक्रम में पायलट ने गहलोत पर परोक्ष रूप से हमला बोला था. उन्होंने राजस्थान सरकार पर भ्रष्टाचार की जांच करने और पेपर लीक के लगातार मामलों के असली दोषियों का पता लगाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं करने का आरोप लगाया.
नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ विधायक ने दिप्रिंट को बताया, ‘या तो पायलट को एक बड़ी भूमिका दें या उन्हें चुनाव तक चुप रहने के लिए कहें. नहीं तो वह सरकार को शर्मिंदा करते रहेंगे. तब हमें हराने के लिए हमें बीजेपी की जरूरत नहीं पड़ेगी.’
राज्य में इस साल नवंबर-दिसंबर में चुनाव होने हैं.
उधर पायलट ने दिप्रिंट को बताया कि उनकी रैलियां यह सुनिश्चित करने के लिए थीं कि कांग्रेस अगले चुनाव में राज्य में सत्ता को बरकरार रख पाए. यहां मतदाता हर पांच साल में सत्ताधारी दल को बदलने के लिए जाने जाते हैं.
पायलट ने कहा, ‘हमारे पास चुनाव के लिए 10 महीने बचे हैं. राजस्थान में एक धारणा है कि एक मौजूदा सरकार को दूसरा कार्यकाल नहीं मिलता है. इस चक्रव्यूह को तोड़ना होगा. अन्य राज्यों से ऐसे उदाहरण हैं जहां कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों को लगातार दूसरा कार्यकाल मिला, चाहे वह असम में तरुण गोगोई हों या दिल्ली में शीला दीक्षित जी. मेरे आउटरीच कार्यक्रम का उद्देश्य लोगों को प्रेरित करना और उन्हें कांग्रेस को वोट देने के लिए प्रेरित करना था.’
‘गलत संदेश भेजने से कांग्रेस को होगा नुकसान’
दो साल पहले 2020 में पायलट ने कांग्रेस के 18 विधायकों के साथ गहलोत के नेतृत्व के खिलाफ बगावत की थी. गहलोत ने इसे ‘ऑपरेशन लोटस’ कहा था और आरोप लगाया कि पायलट उनकी सरकार को गिराने के लिए भाजपा के साथ बातचीत कर रहे हैं. पायलट और उनके समर्थकों ने आरोपों को निराधार बताते हुए कहा था कि वे तो बस इतना चाहते हैं कि गहलोत को सीएम पद से हटा दिया जाए.
इस संकट के कारण पायलट को राजस्थान के उपमुख्यमंत्री और राज्य पार्टी प्रमुख के पद से हटना पड़ा था. कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि पार्टी आलाकमान ने पायलट को बाद में सीएम बनाने का वादा करते हुए बगावत से किनारा करने के लिए राजी कर लिया था.
केंद्रीय नेतृत्व ने गहलोत को बदलने और पायलट के लिए रास्ता साफ करने के लिए जयपुर में कांग्रेस विधायकों की एक बैठक बुलाकर, पिछले साल किए गए वादे को पूरा करने की कोशिश की थी. हालांकि, सीएम के वफादार विधायकों के भारी बहुमत ने बैठक का बहिष्कार किया था.
गहलोत ने अपने तरीके से इस ओर जाने से इंकार कर दिया और फिर कांग्रेस आलाकमान को दूसरी राह की तरफ आग बढ़ने की राह को चुनना पड़ा.
यहां तक कि राजस्थान के प्रभारी महासचिव के रूप में पिछले नवंबर में अजय माकन के इस्तीफे– एक कदम जिसे आलाकमान को हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर करने के उनके प्रयास के रूप में देखा गया था – से भी कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि पार्टी का ध्यान भारत जोड़ो यात्रा पर केंद्रित है, जो इस समय पूरे देश में घूम रही है.
इस पृष्ठभूमि में गहलोत पर नए सिरे से हमले और पायलट की रैलियों को केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाने के नए प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है.
मंत्रियों और विधायकों सहित आधा दर्जन से अधिक कांग्रेस नेताओं के एक वर्ग ने दिप्रिंट के साथ बातचीत की. उनका मानना था कि गहलोत सरकार इस समय किसी भी तरह की सत्ता विरोधी लहर का सामना नहीं कर रही है. इन नेताओं से कुछ गहलोत के साथ थे, तो कुछ पायलट के. लेकिन वो सभी इस बात पर एकमत थे कि अगर राज्य में तनाव नहीं सुलझता है, तो इससे पंजाब की कहानी दोहराई जा सकती है.
गौरतलब है कि अमरिंदर सिंह-बनाम-नवजोत सिद्धू की लड़ाई में कांग्रेस के समय से फैसला न ले पाने के कारण पिछले साल पंजाब विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार हुई.
कांग्रेस के राजस्थान अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि हालांकि गहलोत के नेतृत्व वाली पार्टी और सरकार के बीच एक अच्छा संतुलन है और कांग्रेस राज्य में बीजेपी की तुलना में बेहतर स्थिति में है. लेकिन शीर्ष दोनों नेता गलत संदेश भेज रहे हैं.
डोटासरा ने कहा, ‘सरकार ने अच्छा काम किया है. कल्याणकारी योजनाएं समाज के सभी वर्गों की मदद कर रही हैं. कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है. लेकिन अगर वरिष्ठ नेता विरोधाभासी बातें कह रहे हैं और वह भी पार्टी मंचों के बजाय सार्वजनिक रूप से, तो इससे गलत संदेश जाता है. इससे कांग्रेस को नुकसान होगा.’
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‘गहलोत के खिलाफ नकारात्मकता नहीं, लेकिन पायलट भी लोकप्रिय’
राज्य के कई कांग्रेस नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि चार साल सत्ता में रहने के बाद भी सीएम गहलोत के खिलाफ कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है. पार्टी को इसका फायदा उठाना चाहिए.
कांग्रेस विधायक और राजस्थान राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष रफीक खान ने कहा, ‘गहलोत के खिलाफ कोई नकारात्मकता नहीं है. आप जाइए और आसपास जाकर पूछिए, लोग आपको बताएंगे कि सरकार की किसी न किसी कल्याणकारी योजना से उन्हें फायदा पहुंचा है. लेकिन सचिन पायलट बार-बार अपनी ही पार्टी की सरकार पर हमला करते हैं. यह गलत प्रभाव डालता है कि दो शीर्ष नेता अलग-अलग दिशाओं में गाड़ी खींच रहे हैं.’
एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, ‘नेताओं के साथ-साथ कार्यकर्ताओं (पार्टी कार्यकर्ताओं) के बीच भी अनिश्चितता है. यह जमीन पर सामान्य कांग्रेस कार्यकर्ता के मनोबल को प्रभावित कर रहा है.’
गहलोत के प्रति वफादार वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री के खिलाफ ‘कोई नकारात्मकता नहीं’ है क्योंकि उनकी सरकार की तरफ से चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाएं जनता की मदद कर रही है. लेकिन साथ ही उन्होंने स्वीकार किया कि पायलट भी यहां काफी लोकप्रिय हैं.
कांग्रेस के एक दूसरे वरिष्ठ नेता और विधायक ने कहा, ‘तथ्य यह है कि पायलट राज्य इकाई का समर्थन न मिलने के बावजूद (अपनी रैलियों में) एक बड़ी भीड़ खींचने में कामयाब हो रहे हैं. यह न सिर्फ गुर्जर समुदाय के बीच बल्कि युवाओं के बीच उनकी बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है. गहलोत 70 साल से ज्यादा उम्र के हैं, जबकि पायलट को अगली पीढ़ी के रूप में देखा जाता है.’
राजस्थान में राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, सभी की निगाहें अब चल रहे विधानसभा सत्र पर टिकी हैं कि पायलट और उनके समर्थक बजट के बाद हंगामा करते हैं या नहीं.
गहलोत 8 फरवरी को राज्य का बजट पेश करेंगे. राज्य सरकार के सूत्रों ने कहा, उम्मीद है कि वह चुनाव को ध्यान में रखते हुए कल्याणकारी/लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा करेंगे.
पायलट समर्थकों ने कहा, वह बस अपना काम कर रहे हैं
पायलट के समर्थकों के मुताबिक गहलोत सरकार की नीतियों पर हमला करने वाले पूर्व डिप्टी सीएम को अंदरूनी कलह और कांग्रेस के हित के खिलाफ जाने वाले व्यक्ति के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए.
पायलट के करीबी माने जाने वाले राजस्थान के वन और पर्यावरण मंत्री हेमाराम चौधरी ने दिप्रिंट को बताया कि एक कांग्रेस नेता के रूप में पायलट उन मसलों को सामने लाने का काम कर रहे हैं, जिनके बारे में लोगों के मन में शिकायतें हैं.
उन्होंने कहा, ‘ये खामियां गिनाने की बात नहीं है. अगर लोगो को परेशानी है, तो पायलट जी सरकार का ध्यान उन की तरफ कर रहे हैं, ताकि सरकार लोगों की परेशानियां को दूर कर सके.’
नागौर जिले के परबतसर में पायलट की रैली में शामिल हुए चौधरी ने कहा कि लोगों के मुद्दों को उठाकर युवा कांग्रेस नेता वास्तव में पार्टी को मजबूत कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘अगर लोगों की समस्याओं का समय रहते समाधान हो जाता है, तो कांग्रेस मजबूत होगी. इसे अन्यथा नहीं लिया जाना चाहिए.’
राजनीतिक टिप्पणीकारों ने स्वीकार किया कि युवाओं को झुकाव पायलट की ओर है. क्योंकि वह युवा और करिश्माई नेता हैं. लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि उनका प्रभाव राज्य में गुर्जरों तक ही सीमित है. और यहां भी वह अपने पिता राजेश पायलट जैसी लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाए है.
राजस्थान के वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार ओम सैनी ने कहा, ‘गुर्जरों में 14 अलग-अलग खाप हैं. राजेश पायलट ने सभी को एक साथ संगठित करने की कोशिश की थी, लेकिन उनके बेटे का पूरे समुदाय में प्रभाव नहीं है.’
सैनी ने कहा कि भाजपा को भी यहां एक अवसर का आभास हो गया है और वह गुर्जरों को लुभाने की कोशिश कर रही है.
देहाती समुदाय गुर्जर की संख्या कथित तौर पर राजस्थान की आबादी की लगभग पांच प्रतिशत है और करीब 40 सीटों पर उनका प्रभाव है. हालांकि इस समुदाय को पारंपरिक तौर पर भाजपा का समर्थक माना जाता रहा था, लेकिन 2018 में यह कांग्रेस की ओर चला गया.
सैनी ने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुर्जर समुदाय के लिए एक पवित्र स्थान माने जाने वाले भगवान देवनारायण की जन्मस्थली मालासेरी डूंगरी जाने के लिए तैयार हैं. यह एक महत्वपूर्ण दौरा है. भाजपा समुदाय को संगठित करने की कोशिश कर रही है.’
कांग्रेस आलाकमान ‘सतर्क’
कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व सतर्क हो गया है. पार्टी के एक तीसरे वरिष्ठ नेता ने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि सितंबर 2022 कांग्रेस विधायक दल की बैठक में गहलोत के वफादार 80 से अधिक विधायकों ने बहिष्कार किया था. यह बैठक अगले सीएम को चुनने के लिए बुलाई गई थी, जिसमें व्यापक रूप से पायलट को चुने जाने की उम्मीद थी.
नेता ने समझाया, ‘80 से ज्यादा विधायकों ने पिछले साल गहलोत के समर्थन में रैली की और इस्तीफा दे दिया था. हो सकता है कि पार्टी आलाकमान आशंकित हो. उसे लगता है कि नेतृत्व में कोई बदलाव करना या पायलट को बड़ी भूमिका देना ऐसे परिदृश्य में उल्टा पड़ सकता है, क्योंकि उन्हें राज्य के अधिकांश विधायकों का समर्थन प्राप्त नहीं है. हस्तक्षेप करने की उनकी अनिच्छा के पीछे यह वजह भी हो सकती है.’
राजस्थान के कोटा में वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति, राजनीतिक विश्लेषक नरेश दाधीच ने कहा कि अगर पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव जीतना चाहती है तो कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को जल्द से जल्द हस्तक्षेप करना होगा.
उन्होंने कहा, ‘वे अब सिर्फ दूसरी तरफ नहीं देख सकते, नहीं तो स्थिति और बिगड़ जाएगी. उन्हें व्यावहारिक होना होगा और दोनों नेताओं से बात करनी होगी. पायलट युवा हैं और युवाओं में लोकप्रिय हैं और उन्हें कांग्रेस के पीछे लामबंद कर सकते हैं. उन्हें बड़ी भूमिका देने से यह संदेश जाएगा कि पार्टी पीढ़ीगत बदलाव की ओर देख रही है.
कांग्रेस नेताओं के एक वर्ग को यह भी लगता है कि विपक्षी भाजपा मौजूदा समय में बंटी हुई है और इससे पार्टी को मदद मिल सकती है.
पार्टी के एक राज्य मंत्री ने कहा, ‘बीजेपी का घर बहुत सारे सीएम उम्मीदवारों के साथ अस्त-व्यस्त है. वरना वे मौजूदा परिस्थितियों में हमारे लिए चीजों को वास्तव में कठिन बना सकते थे. पायलट गहलोत का विरोध कर रहे हैं और विभिन्न मुद्दों पर सरकार को घेर रहे हैं- चाहे वह कड़ी कार्रवाई करने के बारे में हो, पेपर लीक मामले में हो या भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना. उन्होंने कांग्रेस में विपक्ष की भूमिका निभाई है.’
पंजाब की स्थिति की तुलना करते हुए राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने बताया कि कांग्रेस आलाकमान राज्य के चुनावों से पहले पंजाब में एक कमजोर विपक्ष – शिरोमणि अकाली दल जिसने केंद्र के विवादास्पद कृषि कानूनों के कारण जनता का समर्थन खो दिया था- को लेकर इसी तरह से आश्वस्त थे. इसने सितंबर 2021 में अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए कांग्रेस का हौसला बढ़ाया. यह एक बड़ी भूल थी, जिसकी पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ी.
सचिन पायलट हालांकि नवजोत सिद्धू नहीं हैं. वह एक लोकप्रिय चेहरा हैं और यहां तक कि गहलोत समर्थक भी मानते हैं कि वह ‘करिश्माई’ हैं.
पायलट समर्थकों का तर्क है कि पंजाब के मामले में असली गलती कुछ और थी. दरअसल कांग्रेस आलाकमान महीनों तक टाल-मटोल करता रहा और आखिरी समय में सिंह से मुलाकात की, फरवरी 2022 में राज्य के चुनाव से बमुश्किल पांच महीने पहले. उन्हें डर है कि अगर नेतृत्व राजस्थान में भी सुस्ती जारी रखता है, तो पार्टी ‘जीतने की क्षमता’ रखने वाले इस चुनाव को हार सकती है.
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादनः ऋषभ राज)
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