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Sunday, 3 November, 2024
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‘हम भगवान राम के सिद्धांतों पर चलते हैं’- MLC मौर्य के रामचरितमानस वाले बयान से सपा ने खुद को किया दूर

रामचरितमानस पर टिप्पणी को लेकर सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ लखनऊ में तीसरी एफआईआर दर्ज. वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव ने कहा है कि एमएलसी के विचार पार्टी का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं.

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लखनऊ: समाजवादी पार्टी (सपा) ने अपने एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्य की रामचरितमानस पर की गई टिप्पणी से खुद को दरकिनार कर लिया है, साथ ही वह यह कहकर विवाद से बचते नज़र आये कि उन्हें पाठ के केवल कुछ हिस्से ही आपत्तिजनक लगे.

सपा नेता शिवपाल यादव ने मंगलवार को कहा कि मौर्य का बयान पार्टी के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है.

सपा विधायक, जो पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के चाचा भी है उन्होंने मीडियाकर्मियों से कहा, ‘पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं है. हम भगवान राम और कृष्ण के सिद्धांतों पर चलने वाले लोग हैं. क्या भाजपा के लोग श्रीराम की राह पर चल रहे हैं? भगवान कभी झूठ का सहारा नहीं लेते थे, लेकिन ये लोग खुद राम को बेच रहे हैं.’

इस बीच, मौर्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 295ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य, किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का इरादा), 298 (जानबूझकर, इरादे से अपशब्द बोलना, आदि), 504 (जानबूझकर अपमान), 505 (2) (वर्गों के बीच दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना पैदा करने या बढ़ावा देने वाला बयान) और 153A (समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत मंगलवार को लखनऊ में तीसरी प्राथमिकी दर्ज की गई.

लखनऊ के ऐशबाग निवासी शिवेंद्र मिश्रा ने शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें दावा किया गया है कि मौर्य के बयान से हिंदू धर्म के मानने वालों को ठेस पहुंची है और लोगों में गुस्सा है.

उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा, साथ ही अखिल भारतीय हिंदू महासभा जैसे हिंदुत्व समूहों ने मौर्य की टिप्पणियों के लिए उन पर पलटवार किया है. यह बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर द्वारा रामायण पर आधारित एक हिंदू ग्रंथ रामचरितमानस पर इसी तरह की टिप्पणी के कुछ दिनों बाद आया है.

मौर्य ने रविवार को कहा था कि रामचरितमानस के कुछ हिस्से आपत्तिजनक हैं क्योंकि वे पिछड़ी जाति के विरोधी हैं इसलिए उन्होंने इसे हटाने या पूरी किताब पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी. उन्होंने कहा, ‘किताब के कुछ हिस्सों पर मुझे गंभीर आपत्ति है.. इससे पहले भी मैंने सार्वजनिक मंचों पर यह कहा है और मैं फिर से कह रहा हूं, किसी धर्म को किसी को गाली देने का अधिकार नहीं है. सरकार को आपत्तिजनक हिस्से का संज्ञान लेना चाहिए और इसे (किताब से) हटा देना चाहिए.’

मौर्य ने पाठ से एक चौपाई पढ़ते हुए कहा था कि इसका अर्थ शूद्रों और महिलाओं के लिए हानिकारक है. चौपाई में लिखा है, ‘ढोल गवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी.’ कथित रूप से जातिवादी और महिला विरोधी होने के कारण इस पर लंबे समय से बहस होती रही है.

अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी महासंघ (बामसेफ) के प्रमुख वामन मेश्राम ने 2005 में बहुत पहले कहा था कि पाठ कहता है कि ओबीसी और महिलाओं को पीटा जाना चाहिए.

चौपाई की व्याख्या करते हुए मौर्य ने कहा, ‘कोई असाधारण रूप से बुद्धिमान, बौद्धिक और ज्ञानी हो सकता है लेकिन फिर भी उसका सम्मान नहीं किया जाता है क्योंकि वह शूद्र है? क्या यही धर्म है?’

उन्होंने कहा, ‘ऐसे धर्म का सत्यनाश हो, जो हमारा सत्यानाश चाहता है.’

बागेश्वर धाम के धार्मिक उपदेशक धीरेंद्र शास्त्री के आसपास के विवाद पर टिप्पणी करते हुए, जिन्होंने हाल ही में कथित तौर पर एक कार्यक्रम छोड़ दिया जब उन्हें चमत्कारी शक्तियों को प्रदर्शित करने के लिए चुनौती दी गई थी, जो उनके पास होने का दावा करते हैं, मौर्य ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि धर्म के तथाकथित रक्षक उन समाज सुधारकों की प्रगति पर पानी फेर रहे हैं जिनके कारण देश वैज्ञानिक सोच के पथ पर आगे बढ़ रहा है.

सत्तारूढ़ बीजेपी द्वारा मौर्य पर हमला किए जाने पर लखनऊ सेंट्रल से सपा विधायक रविदास मेहरोत्रा ​​ने सोमवार को कहा कि मौर्य का बयान उनकी निजी राय है.

उन्होंने कहा, ‘यह पार्टी का स्टैंड नहीं है. राजनेताओं को महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, विकास और जनता के मुद्दों पर बोलना चाहिए और किसी धार्मिक ग्रंथ पर बोलने से बचना चाहिए. मौर्य द्वारा वर्णित चौपाई में ताड़ना का अर्थ न्याय करना या पहचानना है. जानकारी के अभाव में उन्होंने बयान दिया है… राष्ट्रीय अध्यक्ष (सपा) ने मामले का संज्ञान लिया है और जल्द ही उचित कार्रवाई करेंगे.’


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मौर्य के खिलाफ कार्रवाई की मांग

मौर्य की टिप्पणियों ने भाजपा के तीखे हमले को आकर्षित किया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने उन्हें ‘मानसिक रूप से परेशान’ कहा. इससे पहले दिन में, यूपी के मंत्री नंद गोपाल नंदी ने कहा कि मौर्य खुद बकवास है और वे समाजवादी पार्टी को समाप्तिवादी पार्टी बना देंगे.

सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव ने भी मौर्य के बयान पर हमला बोला. उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि किसी राजनेता के लिए इस तरह की टिप्पणी करना सही है और रामचरितमानस के लिए इस तरह के विचार रखना निम्न मानसिकता को दर्शाता है, मुझे लगता है कि उन्होंने रामचरितमानस को पढ़ा नहीं है और इसे नहीं जिया है.’

अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने अपने प्रवक्ता शिशिर चतुर्वेदी के नेतृत्व में लखनऊ के सिविल अस्पताल चौराहा में मौर्य के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और उनकी गिरफ्तारी की मांग की. संगठन के सदस्यों ने नारेबाजी की और उनके खिलाफ हजरतगंज थाने में शिकायत भी की. प्रदर्शनकारियों ने बाद में मौर्य के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए सीएम आवास की ओर मार्च किया.

लखनऊ निवासी अवधेश तिवारी ने भी लखनऊ के ठाकुरगंज थाने में कम्प्लेन करते हुए आरोप लगाया है कि मौर्य के बयान से उनके साथ-साथ पूरे हिंदू समुदाय की आस्था को ठेस पहुंची है और इस तरह के बयानों से जाति आधारित शत्रुता बढ़ेगी एवं इससे धर्म और महिलाओं की भावनाओं को ठेस पहुंची है. तिवारी की शिकायत में पुलिस से एक प्राथमिकी दर्ज करने और मौर्या को गिरफ्तार करने के लिए भी कहा गया है.

मौर्य ने कहा 

जैसे ही लगा की मौर्य का मामला थोड़ा शांत हो चुका है, उन्होंने रविवार को फिर से रामचरितमानस की एक और चौपाई का पाठ किया और कहा कि चौपाई में तेली, कुम्हार, शुपज, किरात, कोल, कलवार सहित विशिष्ट जातियों, जो सभी हिंदू धर्म के अनुयायी हैं, को अधम कहा गया है- जिसका अर्थ है नीच (नीच).

उन्होंने कहा, ‘यह शब्द इस जाति के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाता है. ढोल, गवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी. शूद्र, पशु (पशु) और नारी (स्त्री)…स्त्रियों और शूद्रों को पशुओं की श्रेणी में रखा गया है. सभी को सजा मिलनी चाहिए. शूद्रों ने कौन-सा पाप किया है? देश के सभी दलित, पिछड़े और आदिवासी इस शूद्र श्रेणी में आते हैं और वे सभी हिंदू धर्म के अनुयायी हैं.’

उन्होंने आश्चर्य जताया कि कौन सा धर्म ‘एक ही धर्म के लोगों को दंडित करने का प्रावधान देता है.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि धर्म मनुष्य के कल्याण और सम्मान के लिए और मानवता के लिए है लेकिन अगर कोई इंसान और मानवता के सम्मान के साथ खिलवाड़ करता है, तो वह धर्म नहीं हो सकता. मुझे लगता है कि धर्म सभी के लिए समान है लेकिन तुलसीदास की एक चौपाई से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसका मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग होता है.

उन्होंने कहा कि वह रामचरितमानस को एक धार्मिक ग्रंथ के रूप में नहीं मानते हैं क्योंकि तुलसीदास ने खुद कहा है कि उन्होंने इसे स्वंता-सुखाये (अपनी खुशी के लिए) लिखा था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद/संपादन: अलमिना खातून)


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