कानपुर: आईआईटी कानपुर के इंजीनियरों ने ‘हृदयंत्र’ नामक एक ऐसी डिवाइस विकसित की है जो हार्ट ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा कर रहे मरीजों की जान बचाने में बेहद कारगर साबित हो सकती है. यही नहीं, इस पर आने वाला खर्च अभी दुनियाभर में उपलब्ध तमाम विकल्पों की कीमत की तुलना में दसवां हिस्सा ही होगा.
हार्ट के ठीक नीचे इंप्लांट किया जाने वाला ‘हृदयंत्र’ दरअसल बैटरी से चलने वाला छोटा पंपिंग उपकरण हैं जिसमें घूमने के लिए एक मोटर लगी हुई है. यह पूरे शरीर में रक्त संचरण में मददगार है और मरीजों को नया जीवन दे सकता है.
दिल के ठीक से काम करना बंद कर देने पर किसी कृत्रिम पंप की मदद से शरीर में खून का संचार बनाए रखने के आइडिया पर 1920 से ही काम चल रहा है.
आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर और प्रोजेक्ट के प्रिंसिपल इंवेस्टिगेटर अमिताभ बंद्योपाध्याय कहते हैं, ‘अभी पूरी तरह कृत्रिम हार्ट पंप और लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस (एलवीएडी) उपलब्ध हैं. लेकिन इनकी कीमत 1 करोड़ रुपये से अधिक हो सकती है, और इसीलिए ये भारत के उच्च मध्यम वर्ग की लिए भी सुलभ नहीं है.’
एलवीएडी को अक्सर ‘ब्रिज टू ट्रांसप्लांट’ के तौर पर देखा जाता है यानी यह हार्ट ट्रांसप्लांट उपलब्ध होने तक की अवधि के लिए एक अस्थायी समाधान है. हालांकि, ‘हृदयंत्र’ के साथ रिसर्च टीम को एक ‘पुख्ता थेरेपी’ उपलब्ध होने की उम्मीद है क्योंकि यह एक ऐसा समाधान है जो जीवन भर काम करेगा.
बंद्योपाध्याय और उनकी टीम के सामने एक ऐसी इनोवेटिव डिवाइस बनाने की चुनौती थी जो न केवल उन्नत और अत्याधुनिक हो, बल्कि अन्य उपकरणों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक किफायती भी हो.
बंद्योपाध्याय के मुताबिक, नारायण हेल्थ के संस्थापक और प्रतिष्ठित हृदय रोग विशेषज्ञ देवी शेट्टी ने सुझाव दिया कि आईआईटी-कानपुर इस प्रोजेक्ट पर काम करे.
डिवाइस तैयार करने वाली टीम में इंजीनियरिंग बैकग्राउंड वाले फेलो शामिल हैं, लेकिन उन्हें मेडिकल क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं था. हार्ट के काम करना बंद करने के बारे में बारीकियों को समझने के लिए उन्होंने अस्पतालों का दौरा किया, डॉक्टरों और मरीजों के साथ बातचीत की और यहां तक कि ओपन हार्ट सर्जरी भी देखी. इस सबके जरिये उन्होंने यह समझने की कोशिश की कि आखिर उन्हें क्या बनाना है.
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भारत में हार्ट फेल होना हृदय संबंधी एक आम समस्या
हर साल करीब आठ से दस लाख मरीज हार्ट फेल के शिकार होते हैं. यह भारत में हार्ट संबंधी रोगों के कारण अस्पताल में भर्ती होने का सबसे आम कारण है, जिससे सामान्यत: हर साल एक फीसदी आबादी प्रभावित होती है.
इस स्थिति में हृदय अपेक्षाकृत कमजोर हो जाता है और शरीर की रक्त संचरण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में अक्षम हो जाता है. ऐसे मरीज मुश्किल से चल पाते हैं, और यहां तक कि कुछ मामलों में उनके लिए बोलना-चालना तक कठिन हो सकता है.
आमतौर पर, जिन मरीजों में यह बीमारी गंभीर स्तर पर पहुंच जाती है, उन्हें हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है. हालांकि, भारत जैसे देश में उपयुक्त डोनर हार्ट का पता लगना किसी चुनौती से कम नहीं है, जहां अंग दान के इच्छुक लोगों की संख्या बहुत कम है. इसके अलावा, दाता और मरीजों के ब्लड ग्रुप का मिलान भी होना चाहिए.
इसके अलावा, हार्ट ट्रांसप्लांट के सबसे गंभीर जोखिमों में से एक यह भी है कि मरीज का इम्यून सिस्टम डोनर हार्ट को अस्वीकार कर सकता है. हार्ट ट्रांसप्लांट कराने वाले मरीजों की प्रतिरक्षा प्रणाली डोनर हार्ट के साथ तालमेल बना पाए इसके लिए तमाम तरह की दवाएं दी जाती हैं जो इसके बदले में घातक संक्रमण और यहां तक कि कैंसर का जोखिम भी बढ़ाती हैं.
डिवाइस के लिए पेटेंट मिला
टीम को डिवाइस के डिजाइन के लिए एक पेटेंट पहले ही मिल चुका है, और अब यह टीम डिवाइस का एक आदर्श प्रोटोटाइप तैयार करने में जुटी है. पशुओं पर इस डिवाइस के परीक्षण से पहले टीम के लिए दो प्रमुख चुनौतियों से निपटना आवश्यक है.
बंद्योपाध्याय ने समझाया, ‘सबसे पहले, हमें रक्त के थक्के को रोकने के लिए धातु की सही कोटिंग या बनावट का पता लगाना होगा. साथ ही दो सेल्स पर खास ध्यान देना होगा. पहली लाल रक्त कोशिकाएं. जो इसकी सतह के संपर्क में आने पर खत्म नहीं होनी चाहिए. दूसरी प्लेटलेट्स हैं, जो एक्टिव नहीं होनी चाहिए. यदि प्लेटलेट्स एक्टिव होंगी तो रक्त के थक्के बनेंगे और आगे चलकर जटिलताएं बढ़ जाएंगी.’
टीम मैगनेटिक लेविटेशन के इस्तेमाल के साथ इंपेलर—जो कि द्रव का प्रेशर और फ्लो बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला रोटर होता है—को कांटैक्टलेस बनाने पर भी काम कर रही है. अभी इंपेलर को एक शॉफ्ट के सपोर्ट से चलाया जाता है. इसके बजाये वे इसे हवा में तैराना चाहते हैं. और यह इस तरह होना चाहिए कि मरीज की गतिविधियों से उस पर कोई फर्क न पड़े. यानी मरीज चाहे खड़ा हो, बैठा हो, झुके या लेटे लेकिन इंपेलर अपनी जगह से न हिले-डुले.
टीम ने एक विस्तृत प्रणाली का निर्माण पूरा कर लिया है जो हृदय के पंपिंग फंक्शन की तरह ही कार्य करता है. इसे बायोफ्लुइड के साथ पूरा किया जाता है जो मानव रक्त की तरह ही होता है, यह एक ऐसा सेट जो उन्हें पशुओं पर परीक्षण की मंजूरी से पहले डिवाइस के प्रोटोटाइप का टेस्ट करने में मदद करता है.
आगे एक लंबा रास्ता तय करना बाकी
इन चुनौतियों से निपटने के बाद भी ‘हृदयंत्र’ को एक लंबा रास्ता तय करना होगा. एक बार डिवाइस लैब टेस्ट में खरी उतरे तो फिर इसे पशुओं पर परीक्षणों से गुजरना होगा जो मार्च तक शुरू होने की संभावना है.
टीम उम्मीद कर रही है कि वे इस तरह का परीक्षण सूअरों या गायों पर कर पाएंगे क्योंकि उनके दिल का आकार लगभग इंसानों की तरह होता है. बंद्योपाध्याय ने कहा, ‘यह काम संभवत: विदेशों में किया जाएगा.’ साथ ही जोड़ा कि एक बार पशुओं पर परीक्षण सफल होने के बाद टीम इस डिवाइस के ह्यूमन ट्रायल में सक्षम हो पाएगी.
उन्होंने कहा, ‘हालांकि, यह डिवाइस बहुत सस्ते में उपलब्ध नहीं होने जा रही क्योंकि यह अब तक उपलब्ध एलवीएडी का सबसे उन्नत संस्करण होगा. लेकिन हम इसकी कीमत लगभग 10 लाख रुपये रखने की कोशिश कर रहे हैं, जो बाजार में अभी उपलब्ध तमाम विकल्पों की कीमत की तुलना में दसवां हिस्सा ही है.’
(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: ऋषभ राज)
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