नई दिल्ली: नौशाद अली अपने इलाके के हिसाब से फिट नहीं बैठता था. उसका रहन-सहन, उसके कपड़े बाकी लोगों से अलग थे. उत्तर पश्चिमी दिल्ली की श्रद्धा नंद कॉलोनी में एक किराना (राशन) स्टोर चलाने वाले शैलेंद्र कुमार ने बताया, ‘वह काफी अच्छे कपड़े पहना करता था और यहां का तो बिल्कुल नहीं लगता था. मैं उसके बारे में जानने के लिए बेताब रहता था.’ उन्होंने नौशाद से सिर्फ दो बार बातचीत की थी.
छोटे से किराना स्टोर के ठीक बगल में एक छोटा सा मकान है. दिल्ली पुलिस के मुताबिक, यहां एक कमरे में नौशाद (56) और सह-आरोपी जगजीत (29) ने कथित तौर पर ‘पाकिस्तान स्थित आकाओं’ के इशारे पर एक 21 वर्षीय व्यक्ति का सिर कलम कर दिया. पुलिस सूत्रों का कहना है कि आदमी के शरीर को आठ भागों में काटकर पास के एक दलदल में फेंक दिया गया था.
कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि नौशाद करीब दो महीने पहले इस इलाके में आया था.
कुमार कहते हैं, ‘यहां किराया बहुत सस्ता है और मकान मालिक दूर रहते हैं. एक व्यक्ति इसे किराए पर लेता है और आगे उसे किसी और को दे देता है. मैं अपनी दुकान पर सारा दिन बाहर बैठा रहता हूं. नौशाद इस इलाके से बाहर का लग रहा था. मैंने जब उससे पूछा कि वह यहां क्यों रह रहा है, तो उसने कहा कि उसका घर बना रहा है. इसलिए कुछ समय के लिए यहां आया है. महरौली में वह अपने परिवार के साथ रहता है.’ कुमार ने बताया कि वह नौशाद और जगजीत को इलाके में अक्सर एक साथ देखा करता था.
पुलिस को संदेह है कि दोनों की मुलाकात 2020 में उत्तराखंड की हल्द्वानी जेल में हुई थी.
कुमार बताते हैं कि एक दिन उन्होंने नौशाद को घर के अंदर एक रेफ्रिजरेटर ले जाते हुए देखा था. उसने पूछने पर बताया कि वह इसे ठीक करने के लिए लाया है.
कथित अपराध स्थल से सटे कमरे में पुलिस ने दो हथगोले और इंसान के खून के निशान बरामद किए थे. कुमार ने अपने पास के सीलबंद कमरे की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘कौन जानता था कि यहां आतंकवादी रहते हैं?’ कुमार के मुताबिक, हमें तो बस इतना पता था कि था यहां एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति और उसका बेटा रहता है. वह एक गैस मरम्मत की दुकान पर काम किया करता था. दरवाजे पर या आम शौचालय के पास कभी-कभार सलाम के अलावा नौशाद के साथ उन्होंने कभी कोई बातचीत नहीं की थी.
उस तल पर मौजूद अन्य तीन कमरे कथित अपराध के पहले से ही खाली हैं.
12 जनवरी को आतंकवादी संगठनों के साथ उनकी संदिग्ध संलिप्तता के आरोप में गिरफ्तार किए गए, नौशाद और जगजीत के खिलाफ सख्त गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है. स्पेशल सेल ने उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120बी (आपराधिक साजिश) के अलावा आर्म्स एक्ट, विस्फोटक अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, या यूएपीए की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है.
पूछताछ के दौरान ही पुलिस को उनके कमरे पर खून के निशान मिले था. इसके बाद शनिवार को पीड़ित के अंगों की बरामदगी हुई थी.
नौशाद और जगजीत कथित तौर पर पाकिस्तान स्थित एक हैंडलर सोहेल के निर्देश पर काम कर रहे थे. नौशाद ने हिरासत में लेकर की गई पूछताछ में बताया कि वह 2011 में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद था.
दिल्ली पुलिस के सूत्रों का दावा है कि ‘सोहेल’ पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा हुआ है. वहीं जगजीत कनाडा स्थित गैंगस्टर से आतंकवादी बने अर्शदीप सिंह उर्फ अर्श डल्ला की छत्रछाया में बंबीहा गिरोह का हिस्सा था.
हालांकि अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि सोहेल कौन है या वह मामला क्या था जिसने उसे तिहाड़ तक पहुंचा दिया. इस बात की भी कोई पुष्टि नहीं है कि यह उसका असली नाम है या फिर उपनाम. समाचार एजेंसी एएनआई की एक रिपोर्ट बताती है कि सोहेल को कश्मीर की एक जेल से दिल्ली स्थानांतरित किया गया था.
अपनी पूछताछ के दौरान नौशाद और जगजीत ने पुलिस को बताया कि उन्होंने सिर काटने का एक वीडियो शूट किया और इसे इंस्टेंट मैसेजिंग एप्लिकेशन सिग्नल के जरिए सोहेल को भेज दिया. आरोपी के पास से जब्त फोन को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है. वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि हैश वैल्यू के साथ छेड़छाड़ से बचने के लिए उन्होंने फोन नहीं खोला. हैश वैल्यु का मतलब जब्ती के समय डिवाइस की फाइल स्थिति से होता है ताकि डिवाइस में गड़बड़ या हेरफेर न की जा सके. यह बरामद साक्ष्य को प्रमाणित करने में मदद करता है.
दिल्ली पुलिस के सूत्रों का कहना है कि नौशाद को अपने ‘पाकिस्तान स्थित हैंडलर’ के संपर्क सूत्रों और हवाला चैनलों के जरिए पिछले कुछ महीनों में लगभग 5 लाख रुपये मिले थे. हत्या के बाद उसे 2 लाख रुपये दिए गए थे.
पुलिस के मुताबिक, दोनों को लगा कि पीड़ित- जिसके हाथ पर त्रिशूल का एक टैटू बना था- एक ‘ड्रग एडिक्ट’ है. इसके बारे में किया को पता भी नहीं चलेगा. उन्होंने अपने पाकिस्तान स्थित आकाओं के प्रति अपनी निष्ठा साबित करने के लिए वो उसे धोखे से अपने कमरे पर ले आए और 15 दिसंबर को कथित तौर पर उसकी हत्या कर दी.
दिल्ली पुलिस ने यह भी आरोप लगाया है कि नौशाद और जगजीत को पंजाब स्थित शिवसेना सहित ‘दक्षिणपंथी हिंदू नेताओं’ की हत्या करने का निर्देश भी दिया गया था.
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नौशाद – हत्या का आरोपी, ‘कट्टरपंथी’
मूल रूप से बिहार के रहने वाला नौशाद और उसका परिवार काफी पहले राष्ट्रीय राजधानी चले आए थे, और यहीं आकर बस गए. पुलिस को नहीं पता कि उसने कहां तक पढ़ाई की है. सूत्रों के मुताबिक, उसकी पहली पत्नी की 1998 में मौत हो गई थी और उस शादी से उसकी दो बेटियां हैं. बाद में उसने दोबारा शादी कर ली और उसका 30 साल का एक बेटा है.
नौशाद ने पहला गंभीर अपराध 1991 में किया था. अपनी उम्र के 20वें दशक में उसने कथित रूप से दिल्ली के जहांगीरपुरी में एक मौखिक विवाद के बाद जितेंद्र कुमार नामक एक व्यक्ति को सरेआम चाकूओं से गोद डाला था. एक निचली अदालत ने उसे हत्या का दोषी ठहराया और 1999 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
1996 में जब वह दो महीने की पैरोल पर बाहर आया, तो उस पर एक और हत्या का आरोप लगाया गया और उसके खिलाफ विस्फोटक अधिनियम के तहत एक अलग मामला भी दर्ज किया गया था.
अदालत और पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, नौशाद और सह-आरोपी नदीम पर अब्दुल्ला शेरवानी की हत्या का आरोप था. दिल्ली पुलिस के सूत्रों को संदेह है कि यह नदीम ही था जिसने नौशाद को पाकिस्तान स्थित इस्लामी आतंकवादी संगठन हरकत-उल-अंसार से मिलवाया होगा.
कानूनी रिकॉर्ड यह भी बताते हैं कि अभियोजन पक्ष ने कहा था कि पुलिस को 11 नवंबर 1996 को दिल्ली के आदर्श नगर में शाह आलम बंद में एक अज्ञात शव मिलने की सूचना मिली थी. बाद में मृतक की पहचान अब्दुल्ला शेरवानी के रूप में हुई, जो मूल रूप से असम का रहने वाला था. अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि नौशाद ने शेरवानी को पकड़ा और नदीम ने उस पर एक ‘कट्टा’ (देश निर्मित पिस्तौल) से गोली चला दी. उसके बाद दोनों मौके से फरार हो गए.
अभियोजन पक्ष ने कहा कि नदीम ने पूछताछ के दौरान खुलासा किया कि उसके एक आतंकवादी संगठन से संबंध थे और वह शेरवानी से मिला था. उसने उससे 4-5 लाख रुपये की धोखाधड़ी की थी. इसके बाद पुलिस ने नौशाद, नदीम और एक बिलाल सिद्दीकी के खिलाफ विस्फोटक अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत एक और मामला दर्ज किया.
1996 की प्राथमिकी के अनुसार, पूछताछ के दौरान बिलाल का नाम सामने आया और उसके कब्जे से 2 किलोग्राम आरडीएक्स (विस्फोटक) बरामद किया गया.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने नवंबर 2006 में जांच में खामियों का हवाला देते हुए और इस संभावना पर गौर फरमाते हुए कि आरोपियों के बयान दर्ज किए जाने के 15 दिन बाद जांच अधिकारियों ने उद्धृत कट्टा और कारतूस बरामद किए थे, शेरवानी हत्या मामले में नदीम और नौशाद दोनों को बरी कर दिया.
पुलिस के मुताबिक, कुल मिलाकर नौशाद ने इन सभी मामलों में 25 साल जेल में बिताए और आखिरकार 2018 में रिहा कर दिया गया.
दिल्ली पुलिस की आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि नौशाद हत्या के दो मामलों में आजीवन कारावास की सजा काट चुका है और विस्फोटक अधिनियम मामले में उसे 10 साल की और सजा सुनाई गई है. 2020 में उसे उत्तराखंड में जबरन वसूली के एक मामले में गिरफ्तार भी किया गया था. और 2022 में वहां की जेल से रिहा किया गया था. माना जाता है कि नौशाद की जगजीत से मुलाकात उत्तराखंड जेल के दौरान हुई थी.
दिल्ली पुलिस के सूत्रों के मुताबिक, पिछले साल पैरोल से रिहा होने के बाद नौशाद और जगजीत एक -दूसरे के साथ संपर्क में रहते थे.
सूत्रों का कहना है कि तिहाड़ में रहने के दौरान नौशाद 2000 के लाल किले पर हमले के मामले में आरोपी मोहम्मद आरिफ सहित कई आतंकवादियों के संपर्क में आया था.
पुलिस का दावा है कि जेल में रहने के दौरान नौशाद और भी कट्टर हो गया था.
लोग से ज्यादा मेल-मिलाप नहीं
वापस जहांगीरपुरी की तरफ आते हैं. जिस घर में नौशाद अपनी दूसरी पत्नी और बेटे के साथ रहते थे, फिलहाल वह बंद पड़ा है. इस इलाके में हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के घर हैं.
पड़ोसियों का कहना है कि आतंकवादी आरोपी ने कभी भी ऐसा कुछ नहीं कहा या किया जिससे उन्हें विश्वास हो कि वह इतना जघन्य अपराध करने में सक्षम है.
नौशाद की बिल्डिंग में कम से कम तीन-चार हिंदू परिवार और एक मुस्लिम परिवार रहते हैं. उन्होंने बताया कि वे उसके बारे में ज्यादा नहीं जानते. सबसे ऊपर की मंजिल पर रहने वाले एक मुस्लिम पड़ोसी ने कहा, ‘वह कभी यहां रहता और कभी नहीं रहता. हमने उसके परिवार को ज्यादा नहीं देखा. हम नहीं जानते कि वह अपना गुजारा करने के लिए क्या काम करता था.
दिप्रिंट ने इमारत में रहने वाले सभी लोगों और लगभग एक दर्जन पड़ोसियों से बात की. इनमें से सभी ने नौशाद का नाम जानने से भी इनकार कर दिया. सबसे ऊपर की मंजिल पर रहने वाला एक पुरुष और बगल की इमारत में रहने वाली महिला ही बस उसका नाम जानते थे.
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादन: ऋषभ राज)
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