चीन के अमीर नागरिक अन्य देशों में जाने की योजना बना रहे हैं क्योंकि देश की घरेलू राजनीति काफी जटिल होती जा रही है. चीनी नागरिक केवल निवेश के जरिए अपनी संपत्ति को स्थानांतरित करने के बजाय खुद भी विदेश की राह तलाशने लगे हैं.
गिटहब जैसे प्लेटफॉर्म पर कई चैट समूह हैं जहां चीन से जाने को एक शब्द के रूप में वर्णित किया जा रहा है जिसे ‘रनोलॉजी’ कहा जा रहा है. लेकिन अब चीन के अमीर लोग दूसरी जगह जाकर रहने का मन बनाने लगे हैं.
जापान, सिंगापुर और कुछ दक्षिण पूर्व एशियाई देश अमीरों के लिए पसंदीदा स्थान है. उनका मानना है कि महामारी से निपटने के तरीकों को सही बताकर चीनी सरकार उनके प्राइवेट स्पेस में दखल दे रही है.
इससे पहले, चीनी तीन दशकों के आर्थिक विकास में जमा हुई अपनी संपत्ति को स्थानांतरित करने के लिए अमेरिका, कनाडा और यूरोप में निवेश करते थे. लेकिन ट्रंप के शासन के दौरान यह प्रवृत्ति धीमी हो गई क्योंकि बीजिंग और वाशिंगटन के बीच भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और कोविड महामारी के बाद ‘नस्लीय’ प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप पश्चिमी देशों में अमीरों को डर था.
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूरोप अब धनी चीनियों के लिए पसंदीदा जगह नहीं रह गए हैं क्योंकि भू-राजनीतिक और घरेलू चिंताओं ने परेशानियां बढ़ा दी हैं.
लेकिन जब अमीर चीनी कनाडा या पुर्तगाल में अपना पैसा निवेश करते थे, तब भी वे खुद वहां जाकर नहीं रहा करते थे. पश्चिमी देशों में व्यापार निवेश वीजा एक परिसंपत्ति विविधीकरण रणनीति थी, जो अब बदलती हुई नजर आ रही है क्योंकि कुछ धनी चीनी देश की घरेलू राजनीति को अनिश्चितता से भरा पाते हैं.
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जापान और सिंगापुर की तरफ रुख
जापान, धनी चीनियों द्वारा पसंद किए जाने वाले स्थलों में से एक है लेकिन लगता है कि वह विदेश नीति के मोर्चे पर बीजिंग के प्रति आक्रामक दिख सकता है. वहीं टोक्यो को चीन के अमीरों द्वारा अपनी अर्थव्यवस्था में पैसा लगाने से कोई दिक्कत नहीं है.
द वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए एक साक्षात्कार में लगभग तीन दशकों से जापान में रहने वाली एक चीनी व्यवसायी ने अधिकारियों द्वारा चीन में एक सहकर्मी के अपार्टमेंट में जबरदस्ती घुसने और कीटाणुनाशक का छिड़काव करने के बारे में बताया.
पिछले कुछ हफ्तों में, जैक मा (जिनका असली नाम मा यून है) काफी समय बाद टोक्यो में दिखाई दिए, क्योंकि बीजिंग में टेक क्रेकडॉउन पूरे जोश के साथ जारी है. जापान में छह महीने रहने के बाद, मा को हाल ही में बैंकॉक में भी देखा गया था, जहां वे अपने अगले उद्यम के लिए कृषि तकनीक सीख रहे थे.
जापान एक व्यापार निवेश वीजा प्रदान करता है जिसका उपयोग धनी चीनी देश में प्रवेश करने के लिए करते हैं. वीजा अपेक्षाकृत आकर्षक है क्योंकि एक विदेशी को यूएस के लिए 800,000 डॉलर और सिंगापुर वीजा के लिए 1.85 मिलियन डॉलर के मुकाबले 40,000 डॉलर का निवेश करना होगा.
सिंगापुर एक और ऐसा देश है जहां चीन के अमीरों ने अपना पैसा लगाया है. ‘एशिया के स्विट्जरलैंड’ कहे जाने वाले, सिंगापुर को हमेशा अमेरिका और चीन के बीच भू-राजनीतिक विवाद से बचने के लिए एक गंतव्य के रूप में देखा जाता रहा है. लेकिन अब निवेश के साथ नगदी भी बढ़ने लगी है.
सिंगापुर में अत्यधिक रुचि का ऐसा ही एक उदाहरण है, सिंगापुर में पंजीकृत रोल्स रॉयस कारों की संख्या 2021 और 2022 के बीच बढ़ी है. अब यहां लोगों को एक साल प्रतीक्षा करनी पड़ रही है. चीनी खरीदार इन कारों की मांग को बढ़ा रहे हैं.
राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के पारित होने के बाद हांगकांग की घटती संभावना ने सिंगापुर की संभावनाओं को फिर से बढ़ा दिया है.
फाइनेंशियल टाइम्स के लिए मर्सिडीज रुएहल और लियो लुईस ने रिपोर्ट में कहा, ‘कई सालों से, सिंगापुर ने खुद को एशिया के स्विट्जरलैंड के रूप में बेचा. एक पूर्व शीर्ष अधिकारी का कहना है कि नया शीत युद्ध आखिरकार इसे हकीकत में बदल रहा है. हालांकि, बड़ा सवाल यह है कि सिंगापुर चीनी विशेषताओं के साथ कितने समय तक स्विट्जरलैंड बना रह सकता है.’
2022 के पहले छह महीनों में सिंगापुर को 8.2 बिलियन डॉलर का विदेशी निवेश प्राप्त हुआ, जो दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले देश मलेशिया से दोगुना था.
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राजनीतिक अनिश्चितता एक बड़ी वजह
निजी संपत्ति प्रबंधकों के कारण सिंगापुर के प्रति विशेष रूप से आकर्षण है, जो निवेश समाधान और कर-बचत उपाय बताते हैं. एक लोकप्रिय दृष्टिकोण से परिवार कार्यालयों की स्थापना हो रही है जिससे टैक्स में छूट मिल रही है.
लेखक के साथ एक साक्षात्कार में सिंगापुर में बीएनवाई मेलॉन इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट में उपाध्यक्ष और एशिया मैक्रोइकोनॉमिक्स एंड इनवेस्टमेंट स्ट्रैटेजी के प्रमुख अनिंदा मित्रा ने कहा, ‘स्पष्ट तौर पर यह बात है कि निजी कंपनियां और पारिवारिक कार्यालय, यहां तक कि हांगकांग से भी बड़े पैमाने पर सिंगापुर जा रहे हैं. सिंगापुर उन्हें हांगकांग से भी ज्यादा आजादी देता है. संपत्ति की कीमतें बहुत बढ़ गई हैं, और चीनी प्रवासियों के सिंगापुर जाने के कारण स्कूल में दाखिले बढ़ गए हैं. क्योंकि हांगकांग के अप्रवासियों के बाहर चले जाने से किराए में वृद्धि हुई है.’
मित्रा ने मुझे बताया, ‘चीन में, राजनीतिक अनिश्चितता उभरी है और चीनी नीतियां कई दिशाओं में बिखर गई हैं, चाहे वह कोविड के मोर्चे पर हो या प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर. नई सरकार का राष्ट्रवादी आवेग, जो मार्च से देश को चलाएगा, जब नए प्रीमियर और राजनेता आएंगे, अनिश्चितता की स्थिति को ही और बढ़ाएगा. राजनीति में अनिश्चितता वर्तमान हेजिंग रणनीति से साफ तौर पर दिखती है, जो कि जापान, सिंगापुर और क्षेत्र के अन्य देशों में चीन से हो रहे पूंजी प्रवाह में दिखाई देता है.’
बीजिंग की कोविड प्रतिक्रिया एकमात्र कारण नहीं है कि चीन के अमीर एक बार फिर देश के बाहर देख रहे हैं. चीनी राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम निजी उद्यमों में बड़ी हिस्सेदारी ले रहे हैं. हाल ही में, चीनी सरकार ने दो अलीबाबा इकाइयों में एक ‘गोल्डन शेयर’ हासिल किया, जो कंपनी के संचालन में निर्णय लेने का नियंत्रण हासिल करने की रणनीति है.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, ‘ये गोल्डन शेयर, आमतौर पर एक फर्म के लगभग 1% के बराबर होते हैं, सरकार समर्थित फंड या कंपनियों द्वारा खरीदे जाते हैं जिससे प्रमुख व्यावसायिक निर्णयों के लिए बोर्ड प्रतिनिधित्व और/ या वीटो अधिकार मिलता है.’
बीजिंग सरकार उन क्षेत्रों में धन आवंटित करने के लिए भारी-भरकम रुख अपना रही है, जिनमें उसे लगता है कि इन्हें राज्य का समर्थन मिलना चाहिए. सरकार ने हाल ही में देश के स्टॉक एक्सचेंजों में ‘रेड लाइट’ कंपनियों- जैसे रेस्तरां चेन- को ब्लॉक कर दिया ताकि कुछ क्षेत्रों में फंड को चैनल किया जा सके.
पसंदीदा क्षेत्रों में यूएस के साथ उच्च प्रौद्योगिकी प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र शामिल हैं जैसे सेमीकंडक्टर चिप डिजाइन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और अगली पीढ़ी की नेटवर्क प्रौद्योगिकियां, जिन पर दोनों पक्ष हावी होने की होड़ में हैं.
हो सकता है कि चीन के अमीर अपनी संपत्ति के साथ अधिक अनुकूल स्थानों पर जाने में सफल रहे हों. लेकिन देश के हालिया इतिहास को देखते हुए, बीजिंग अपनी सीमाओं के बाहर अपने नागरिकों की निगरानी के अपने प्रयासों को दोगुना कर देगा.
शी जिनपिंग की ‘नृजातीय राष्ट्रवादी शक्ति’ (एथनो-नेशनलिस्ट) को लागू करने की लंबे समय से चली आ रही रणनीति से अमीरों के लिए बचना आसान नहीं होगा.
(लेखक स्तंभकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह बीबीसी वर्ल्ड सेवा में काम कर चुके हैं. फिलहाल वह ताइपे में एमओएफए ताइवान फेलो हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @aadilbrar. व्यक्त विचार निजी हैं)
(संपादन: कृष्ण मुरारी)
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