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Friday, 22 November, 2024
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HC के लिए स्वीकृत 8 जजों के नाम में से दो SC ने ठुकरा दिए थे, सरकार की शक्तियों पर क्या कहते हैं नियम

पांच हाई कोर्टों के लिए तय किए गए आठ न्यायाधीशों के नामों में से दो को सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने पिछले हफ्ते तब मंजूरी दी थी जब केंद्र सरकार की तरफ से ‘सकारात्मक ढंग से पुनर्विचार’ करने को कहा गया.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने हाई कोर्टों में नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार को पिछले हफ्ते आठ नामों की सिफारिशों वाली एक सूची भेजी, जिसमें वे दो नाम भी शामिल थे जिन्हें विचार-विमर्श के पहले दौर में खारिज कर दिया गया था. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, केंद्र सरकार के अनुरोध पर शीर्ष नियुक्ति पैनल ने पुनर्विचार के बाद इन दोनों नामों को अपनी मंजूरी दी.

उच्च न्यायालयों में नियुक्तियों को मंजूरी देने वाले सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम का नेतृत्व देश के चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ करते हैं और इसमें जस्टिस संजय किशन कौल और के.एम. यूसुफ के अलावा दो अन्य सदस्य शामिल हैं. ताजा सूची में पांच अलग-अलग हाई कोर्टों—मणिपुर, आंध्र प्रदेश, गुवाहाटी, बांबे और कर्नाटक—में न्यायाधीशों के तौर पर पदोन्नति के लिए तीन महिलाओं सहित आठ नामों की सिफारिश की गई है.

आठ नए नामों में से सात न्यायिक अधिकारी हैं और एक अधिवक्ता हैं. इसके अतिरिक्त, कोलेजियम ने तीसरी बार कर्नाटक हाई कोर्ट में न्यायाधीश के तौर पर अधिवक्ता नागेंद्र रामचंद्र नाइक के नाम को दोहराया है.

इस सूची में शामिल आठ नामों में से दो पहले भेजी गई सूची में नहीं थे. केंद्र सरकार की तरफ से ‘सकारात्मक ढंग से पुनर्विचार’ के लिए फाइलें वापस भेजे जाने के बाद कोलेजियम ने उन पर पुनर्विचार किया और फिर उन्हें मंजूरी दे दी.

एक सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘चूंकि सरकार के पास अपने इनपुट थे और वह सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम के विचार से अलग थे, इसलिए सरकार ने सकारात्मक ढंग से पुनर्विचार के लिए नामों को न्यायाधीशों के पैनल के पास फिर से भेजने का फैसला किया.’

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र सरकार ने पिछले साल शीर्ष कोर्ट के कोलेजियम को छह ऐसे नाम लौटाए थे. इन सभी छह नामों को संबंधित उच्च न्यायालयों की तरफ से मंजूरी दी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम से उन्हें हरी झंडी नहीं मिली थी, और नाम स्वीकार न करके के कारण भी सरकार को नहीं बताए गए थे.

कोलेजियम ने 11 जनवरी को एक बैठक की और छह में से तीन नामों पर चर्चा की, जिनमें से दो उस हाई कोर्ट से संबंधित थे जिसमें पदोन्नति प्रस्तावित की गई है. कोलेजियम ने उन दो नामों को मंजूरी दे दी, लेकिन तीसरे को मंजूरी नहीं देने के अपने फैसले को दोहराया.

सरकार ने ‘सकारात्मक पुनर्विचार’ की मांग 2020 में शुरू की थी. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘कुछ मामलों में कोलेजियम ने हमारे विचार को स्वीकार किया और नामों को मंजूरी दे दी है.’


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नियुक्ति में क्या रहती है सरकार की भूमिका

उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति संबंधी नियम पुस्तिका यानी मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) के मुताबिक, उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया संबंधित उच्च न्यायालय के कोलेजियम की तरफ से ही शुरू की जाती है. इस तीन सदस्यीय कोलेजियम की अध्यक्षता उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश करते हैं और अन्य दो सदस्य अगले दो वरिष्ठतम न्यायाधीश होते हैं.

इसके बाद उपयुक्त उम्मीदवारों की एक सूची केंद्र सरकार के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम को भी भेजी जाती है. हालांकि, एससी कोलेजियम इन उम्मीदवारों के नामों पर तब तक विचार नहीं कर सकता, जब तक कि प्रस्तावित नामों की पृष्ठभूमि पर इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) से इनपुट के साथ सरकार से फाइलें हासिल नहीं कर लेता.

केंद्र की तरफ से फाइलें मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम परामर्शदाता न्यायाधीशों के साथ सूची के प्रत्येक नाम पर सलाह-मशविरा करता है. एक परामर्शदाता न्यायाधीश ऐसा सेवारत सुप्रीम कोर्ट जज होता है जो उसी राज्य से आता है या पहले उसी हाईकोर्ट में रह चुका होता है जहां के लिए नाम की सिफारिश की जानी होती है.

सरकार और सलाहकार न्यायाधीशों से प्राप्त जानकारी के आधार पर एससी कोलेजियम नामों को अंतिम रूप देता है और उन्हें न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त करने की अधिसूचना जारी करने के लिए केंद्र सरकार के पास भेज देता है.

हालांकि, एमओपी सरकार को प्रस्तावित नामों पर पुनर्विचार करने और फाइल सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम को लौटाने की अनुमति देता है. लेकिन नियुक्ति संबंधी दिशा-निर्देशों के मुताबिक, यदि कोलेजियम किसी उम्मीदवार की सिफारिश को दोहराता है, तो सरकार उस व्यक्ति को न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने के लिए बाध्य है.

प्रक्रिया से जुड़े एक अन्य सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि पुनर्विचार ‘सकारात्मक और नकारात्मक’ दोनों हो सकता है.

सूत्र ने बताया, ‘चूंकि एमओपी हमें अपनी सिफारिश पर फिर से विचार करने के लिए कोलेजियम से आग्रह करने का मौका देता है, इसलिए यह जरूरी नहीं है कि यह उन मामलों में ही लागू हो, जिन्हें नियुक्ति पैनल ने मंजूरी दे दी है. ये उन नामों के लिए भी हो सकता है जिन्हें अस्वीकार कर दिया गया है.’

सूत्र के मुताबिक, सरकार के पास खारिज फाइल को अपने पास रखने या संबंधित हाईकोर्ट को वापस लौटाने का अधिकार सुरक्षित है.

सूत्र ने कहा, ‘अगर सरकार के पास यह सुझाव देने के लिए इनपुट हैं कि हाई कोर्ट कोलेजियम की मंजूरी सही थी और सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की तरफ से अस्वीकृत किया जाना सही नहीं है तो वह शीर्ष नियुक्ति निकाय को अपने फैसले की समीक्षा करने के लिए कह सकती है.’

(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादनः ऋषभ राज )

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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