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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतबैंकों से परेशान किया जाना और हिडेन चार्जेज मोदी के PMJDY और फाइनेंशियल इन्क्लूज़न को धता बता रहे

बैंकों से परेशान किया जाना और हिडेन चार्जेज मोदी के PMJDY और फाइनेंशियल इन्क्लूज़न को धता बता रहे

सरकार ने लाभप्रदता में सुधार के लिए कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय किया है. लेकिन इन विलयों के कारण होने वाली जटिलताओं के बारे में उपयोगकर्ताओं को सूचित नहीं किया गया है.

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सरकार ने वित्तीय समावेशन पर एक सराहनीय काम किया है, इसमें कोई संदेह नहीं है. लेकिन अब यह सुनिश्चित करना होगा कि इन सभी नए-नए ग्राहकों को उधारदाताओं के हाथों उत्पीड़न का सामना न करना पड़े या अपने खातों को वास्तव में संचालित करने के लिए हतोत्साहित न किया जाए. समाचार रिपोर्टों के अनुसार, इन नए ग्राहकों को इस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

सरकार की प्रमुख वित्तीय समावेशन योजना – प्रधानमंत्री जन धन योजना – की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार इस पहल के तहत लगभग 48 करोड़ खाते खोले गए हैं, जिनमें लगभग 1.8 लाख करोड़ रुपये जमा हैं. इन खातों को खोलना और उनमें धनराशि स्थानांतरित करना एक बात है; खाताधारकों को उनका उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना दूसरी बात है.

प्रमुख मुद्दों में से एक नियमों की अस्पष्टता प्रतीत होती है. पिछले कुछ वर्षों में, सरकार ने कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) का विलय उनकी लाभप्रदता और ऑपरेशनल क्षमता में सुधार के लिए किया है, जो कि एक ऐसा कदम है जिसके परिणाम सामने आ रहे हैं. हालांकि, ऐसा भी प्रतीत होता है कि उपयोगकर्ताओं को इन विलयों के कारण होने वाली जटिलताओं के बारे में सूचित नहीं किया गया है.


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नए नियम, नई समस्याएं

मान लीजिए किसी व्यक्ति का यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में जन धन योजना खाता है और बाद में वह कॉर्पोरेशन बैंक में सैलरी अकाउंट खोलता है. अब जबकि दो बैंकों का विलय कर दिया गया है, उस उपयोगकर्ता के एक ही बैंक में दो खाते हैं- भारतीय रिजर्व बैंक का कहना है कि इसकी अनुमति नहीं है.

आरबीआई के नियमों के अनुसार, “किसी बैंक में बेसिक सेविंग बैंक अकाउंट रखने वाला व्यक्ति उसी बैंक में कोई अन्य सेविंग अकाउंट खोलने के लिए पात्र नहीं होंगे. यदि किसी ग्राहक का उस बैंक में कोई अन्य मौजूदा बचत खाता है, तो उसे बेसिक सेविंग बैंक अकाउंट खोलने की तारीख से 30 दिनों के भीतर इसे बंद करना होगा.

अगर खाताधारक को इस बात की सूचना दी जाती है तब तो यह ठीक है. लेकिन समस्या यह है कि बहुतों को बताया नहीं जा रहा है. ग्राहकों को इस बात का पता तब चलता है, जब वे कुछ अन्य लेन-देन करने के लिए अपनी शाखा में जाते हैं. इसके बाद उन्हें अपना सैलरी अकाउंट (जहां उन्हें नियमित आय प्राप्त होती है) या पीएमजेडीवाई खाता (जहां सरकार जो भी सब्सिडी देती है, उसे स्थानांतरित कर दिया जाता है) को बंद करने के लिए कहा जाता है.

वे कैसे चुनते हैं? इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें ऐसा क्यों करना चाहिए? सरकार को बैंकों के विलय से पहले इन नॉक-ऑन प्रभावों का पता लगाना चाहिए था. अब जबकि विलय हो गया है, सरकार को कम से कम यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ग्राहक के लिए किसी भी कीमत पर एक अलग बैंक में एक और खाता खोला जाए.

पीएमजेडीवाई खातों के मुद्दे यहीं खत्म नहीं होते हैं. नियमों के मुताबिक, पीएमजेडीवाई खातों में जीरो बैलेंस हो सकता है और पेनाल्टी नहीं लगती है. हालांकि, कुछ समाचार रिपोर्टों में कहा गया है कि खाताधारकों द्वारा महीने में चार बार से ज्यादा पैसा निकालने पर उनसे चार्ज लिया जा रहा है.

यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) लेन-देन के युग में, पीएमजेडीवाई खातों के उपयोगकर्ता यह जान रहे हैं कि उनके द्वारा हर महीने किए जाने वाले कई छोटे यूपीआई लेनदेनों पर लगने वाले चार्ज के कारण उनका सारा पैसा खत्म हो गया है. यह उन उपयोगकर्ताओं के लिए दोगुना दुखदायी है, जो बैंक खाता खुलवाने नहीं गए थे, लेकिन पीएमजेडीवाई ड्राइव के दौरान उन्होंने खाता खुलवा लिया था.

शायद यही कारण है कि पीएमजेडीवाई खातों का लगभग करीब 20 प्रतिशत लेन-देन न होने के कारण निष्क्रिय है या 4.44 करोड़ खाताधारकों ने अपने पीएमजेडीवाई रुपे डेबिट कार्ड का नवीनीकरण क्यों नहीं किया.

बैंक कोई शुल्क लगाने से इनकार करते हैं, लेकिन बहुत से लोग शिकायत करते हैं कि उनका पैसा काट लिया जाता है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. पहला कदम नियमों को बिल्कुल स्पष्ट करना है. नए-नए बैंक से जुड़े लोगों से यह अपेक्षा करना अनुचित है कि वह सभी नियमों के बारे में खुद ही पता लगा पाएं.

पिरामिड के निचले स्तर पर स्थित उन ग्राहकों पर बोझ डालने के अलावा एक और तरीका है जिससे बैंक, ग्राहकों को परेशान कर रहे हैं, और वह है- लॉकर सेवाओं के लिए केवाईसी (अपने ग्राहक को जानें) मानदंड. अगस्त 2021 में, RBI ने बैंकों द्वारा दी जाने वाली लॉकर सेवाओं को नियंत्रित करने वाले नियमों का एक नया सेट जारी किया. इन नियमों में एक नियम यह था कि “किसी ग्राहक को लॉकर के आवंटन के समय, बैंक एक स्टाम्प पेपर के जरिए उस ग्राहक के साथ एक एग्रीमेंट करेगा.”

लेकिन उनका क्या होता है जिनके पास पहले से ही बैंकों के पास लॉकर सेवाएं हैं? जब तक वे स्टैम्प्ड पेपर पर एक एग्रीमेंट नहीं देते हैं, तब तक उन्हें अपने लॉकर को ऑपरेट करने से मना कर दिया जाता है. इसके अलावा, इस स्टांप पेपर का मूल्य क्या होना चाहिए, इस पर कोई सहमति नहीं लगती है. समाचार रिपोर्टों से पता चलता है कि अलग-अलग राज्यों में स्थित एक ही बैंक की शाखाएं अलग-अलग मूल्य के स्टाम्प पेपर मांगती हैं.


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आरबीआई का मानकीकरण जरूरी

आरबीआई को एक मानक बनाने और इसे सभी लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है. विलय के बाद बैंक की कार्यशैली के  बारे में स्पष्टता की कमी के कारण लोगों को उनके कीमती चीजों को ऐक्सेस करने से नहीं रोका जा सकता. इस तरह के कदम बैंकिंग सेवाओं के प्रति घृणा पैदा करते हैं, जो बदले में घर पर नकदी और क़ीमती सामान रखने के लिए एक प्रोत्साहन पैदा करता है – जो कि काले धन की जमाखोरी की ओर पहला कदम है.

और इन सबमें, निश्चित रूप से, स्पैम कॉल और बैंक द्वारा ग्राहकों को प्रि- अप्रूव्ड लोन व क्रेडिट कार्ड के मैसेज शामिल नहीं हैं. इसे भी रोकने की जरूरत है.

बैंकिंग एक अभिन्न क्षेत्र है, और बैंक रहित लोगों के बीच वित्तीय समावेशन में सुधार करना एक आवश्यक कार्य है जिसे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक निभाते हैं. जाहिर है, वे इसे मुफ्त में नहीं करना चाहते हैं, लेकिन किसी भी तरह से, पीएमजेडीवाई ग्राहकों को भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं होना चाहिए बल्कि सरकार को भुगतान करना चाहिए. इसके अलावा, ग्राहक-जागरूकता पहलों में सुधार और स्पैम को बंद करना यह दर्शाएगा कि बैंकिंग क्षेत्र वास्तव में परिपक्व हो गया है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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