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Monday, 18 November, 2024
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‘धन की हेराफेरी, जबरन वसूली’- कानपुर विश्वविद्यालय के VC विनय पाठक CBI के निशाने पर क्यों हैं

सीबीआई आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्यकाल के दौरान ठेकेदार के बकाये का भुगतान करने के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने के मामले में पाठक की जांच कर रही है. विपक्ष का कहना है कि उन्हें यूपी सरकार और राजभवन का 'संरक्षण' मिलता है.

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कानपुर के छत्रपति शाहू जी महाराज (CSJM) विश्वविद्यालय के कुलपति, विनय कुमार पाठक, एक साथ तीन विश्वविद्यालयों का प्रभार संभालने से लेकर एक ठेकेदार से बकाया चुकाने के लिए ‘कमीशन’ मांगने और ‘धन की हेराफेरी’ करने के आरोपों का सामना कर रहे हैं. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच कर रही है.

पाठक को बनाए रखने को लेकर योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार पर सवाल उठाते हुए, विपक्ष पूछ रहा है कि उन्हें CSJM के कुलपति के पद से क्यों नहीं हटाया गया और गंभीर तरह के आरोपों के बावजूद ‘अपना वेतन उठा’ रहे हैं.

दिप्रिंट ने छत्रपति शाहू जी महाराज (सीएसजेएम) विश्वविद्यालय, कुलपति के कार्यालय और राजभवन को मेल के माध्यम से एक विस्तृत सवाल भेजे हैं, लेकिन खबर प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. सीएसजेएम के वीसी विनय कुमार पाठक ने फोन कॉल का भी कोई जवाब नहीं दिया. प्रतिक्रिया प्राप्त होने पर यह रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.

पिछले साल 29 अक्टूबर को यूपी पुलिस ने पाठक के खिलाफ जबरन वसूली, भ्रष्टाचार और गलत तरीके से बंधक बनाने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की थी. इसके बाद आरोपों के सिलसिले में उनके तीन कथित साथियों को गिरफ्तार किया गया.

सीबीआई ने इस साल 7 जनवरी को पाठक (53) के खिलाफ मामला दर्ज किया था.

यहां, दिप्रिंट कंप्यूटर विज्ञान के प्रोफेसर के उतार-चढ़ाव भरे अतीत पर नज़र डालता है, जिन्होंने 13 वर्षों की अवधि में तीन राज्यों में आठ अलग-अलग विश्वविद्यालयों के कुलपति के रूप में कार्य किया.

पाठक, कानपुर के हरकोर्ट बटलर टेक्निकल इंस्टीट्यूट (HBTI) के पूर्व लेक्चरर और डीन- अब हरकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी (HBTU) – 25 नवंबर 2009 से नवंबर 2012 तक हल्द्वानी स्थित उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी (UOU) के वीसी के रूप में कार्य किया.

फिर उन्हें 1 फरवरी 2013 को राजस्थान के कोटा में वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी (VMOU) का वीसी नियुक्त किया गया. VMOU में अपने कार्यकाल के दौरान, पाठक को 16 मई 2015 को कोटा में राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति के रूप में अतिरिक्त प्रभार दिया गया. उन्होंने 3 अगस्त 2015 को इन दोनों कार्यालयों को खाली कर दिया, पाठक को यूपी में तकनीकी शिक्षा के लिए एक प्रमुख विश्वविद्यालय एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय (एकेटीयू) का कुलपति नियुक्त किया गया.

हालांकि, वह अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी (सपा) प्रशासन के दौरान एकेटीयू के वीसी नियुक्त किए गए, लेकिन 2017 में सत्ता परिवर्तन का पाठक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. एकेटीयू में अपने कार्यकाल के दौरान जो 9 अगस्त 2021 को समाप्त हुआ, उन्होंने एचबीटीयू, कानपुर के वीसी के रूप में अतिरिक्त प्रभार संभाला. जनवरी 2021 में, पाठक को लखनऊ के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय (KMCLU) का वीसी भी बनाया गया था, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के राज्य विश्वविद्यालयों के चांसलर होने के बाद, उम्मीदवारों की एक शॉर्टलिस्ट को ‘रिजेक्ट कर दिया’ और पद के लिए नए सिरे से साक्षात्कार तय किया गया.

पाठक ने 12 अप्रैल 2021 को कानपुर के सीएसजेएम विश्वविद्यालय के वीसी के रूप में पदभार संभाला, जबकि वे एकेटीयू के वीसी के रूप में अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे थे.

जनवरी 2021 और अप्रैल 2021 के बीच, पाठक प्रभावी रूप से तीन विश्वविद्यालयों के कुलपति के रूप में काम कर रहे थे – CSJM के नियमित प्रभार और AKTU और KMCLU के अतिरिक्त प्रभार के तौर पर. उन्होंने केएमसीएलयू का प्रभार 9 अप्रैल 2021 को ही छोड़ा, जब उनके स्थान पर पूर्णकालिक वीसी नियुक्त किया गया. हालांकि, जनवरी 2022 में, पाठक को आगरा में डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के वीसी के रूप में अतिरिक्त प्रभार दिया गया – यह प्रभार उनके पास सितंबर 2022 तक था.


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पाठक के खिलाफ आरोप

पाठक के लिए परेशानी पिछले साल 29 अक्टूबर को शुरू हुई जब यूपी पुलिस ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार, जबरन वसूली, गलत तरीके से बंधक बनाने और आपराधिक धमकी के आरोप में मामला दर्ज किया, तब जब वे आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे थे.

प्राथमिकी एक ठेकेदार डेविड मारियो डेनिस की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई थी, जिन्होंने दावा किया था कि उसने डेनिस की फर्म को बकाया भुगतान जारी करने के लिए पाठक को 1.41 करोड़ रुपये का ‘कमीशन’ दिया था. इसकी वेबसाइट के अनुसार, फर्म, लखनऊ स्थित डिजीटेक्स्ट टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड, ओएमआर (ऑप्टिकल मार्क रिकगनिशन) और आईसीआर (इंटेलिजेंट कैरेक्टर रिकगनिशन) प्रौद्योगिकियों के माध्यम से फॉर्म प्रोसेसिंग और स्वचालित डेटा कैप्चरिंग से संबंधित है.

पुलिस को दी अपनी शिकायत में डेनिस ने कहा कि उनकी कंपनी को 2014-15 से 2019-20 तक परीक्षा पूर्व और बाद की प्रक्रियाओं के लिए सीधे आगरा विश्वविद्यालय की तरफ से काम कर रही थी. लेकिन शैक्षणिक वर्ष 2020-21 में, विश्वविद्यालय ने राज्य के स्वामित्व वाली यूपी इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड की सेवाओं का विकल्प चुना, जिसने इसके लिए डिजिटेक्स्ट को काम पर रखा, जिसके परिणामस्वरूप शैक्षणिक सत्र 2020-21 और 2021-22 के लिए डेनिस को बकाया राशि का भुगतान नहीं किया गया.

प्राथमिकी के अनुसार, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, डेनिस ने यह भी आरोप लगाया है कि पाठक ने अपना बकाया चुकाने के लिए कमीशन की मांग करते हुए ‘आठ विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति’ करने के बारे में बताया और कहा कि उन्हें ‘उच्च पद का भुगतान’ करना होगा. डेनिस ने आगे दावा किया कि फरवरी 2022 में कानपुर विश्वविद्यालय परिसर में पाठक के आधिकारिक आवास पर एक बैठक के दौरान पाठक ने भुगतान जारी करने के लिए ’15 प्रतिशत का कमीशन’ की मांग की थी.

प्राथमिकी में कहा गया है कि कुल राशि (1.41 करोड़ रुपये) में से डेनिस ने कथित तौर पर अजय मिश्रा को भुगतान किया, जिसके बारे में उन्होंने दावा किया कि वह पाठक के सहयोगी हैं, 20 लाख रुपये की किस्त और 15.5 लाख रुपये नकद में भुगतान किए गए थे. इसके अलावा, 51.63 लाख रुपये, 11.8 लाख रुपये और 10.98 लाख रुपये की किस्तों को डिजीटेक्स्ट के बैंक खाते से अलवर स्थित एक फर्म, इंटरनेशनल बिजनेस फॉर्म्स को ‘अप्रैल 2022 में मिश्रा के कहने पर’ ट्रांसफर किया गया था.

डेनिस ने दावा किया कि यह ‘4.45 करोड़ रुपये के बिलों के क्लीयरेंस के लिए’ भुगतान किया गया था. शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि पाठक ने उन्हें पिछले साल अक्टूबर में धमकी दी थी जब वह आगरा विश्वविद्यालय के साथ अपनी कंपनी के अनुबंध को जारी रखने के लिए 10 लाख रुपये का भुगतान करने से इनकार कर दिया था.

पाठक के खिलाफ लखनऊ के इंदिरा नगर पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के अनुसार जांच को बाद में यूपी स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को स्थानांतरित कर दिया गया था.

जबकि सह-आरोपी मिश्रा को प्राथमिकी दर्ज होने के अगले दिन गिरफ्तार किया गया था, अजय जैन – पाठक के एक अन्य कथित सहयोगी – को एसटीएफ ने पिछले साल 6 नवंबर को गिरफ्तार किया था, जिसके बाद 16 दिसंबर को सुल्तानपुर के संतोष कुमार सिंह को गिरफ्तार किया गया था. एसटीएफ ने कथित तौर पर पाया कि सिंह की फर्म, सत्यम सॉल्यूशंस ने पिछले कुछ वर्षों में मिश्रा के इशारे पर 23 वर्क ऑर्डर दिए थे और वे लगातार संपर्क में बने हुए थे.

मिश्रा लखनऊ स्थित आईटी सॉल्यूशन्स प्रदाता एक्सएलआईसीटी के मालिक हैं. एसटीएफ के सूत्रों ने कहा कि मिश्रा ने कथित तौर पर विभिन्न विश्वविद्यालयों से अनुबंध हासिल करने के लिए अन्य फर्मों को ‘फ्रंट’ के तौर पर इस्तेमाल किया. सूत्रों ने दिप्रिंट से पुष्टि की कि पाठक को पिछले साल नवंबर-दिसंबर में एजेंसी के सामने पेश होने के लिए तीन नोटिस भेजे गए थे, लेकिन वह सामने नहीं आए.

पिछले साल 29 दिसंबर को यूपी सरकार ने इंदिरा नगर थाने में दर्ज पाठक के खिलाफ मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश की थी. एक हफ्ते बाद, केंद्र सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने मामले में सीबीआई जांच शुरू करने के लिए एक राजपत्र (गैजेट) अधिसूचना जारी की, दिप्रिंट द्वारा एक्सेस किए गए सरकारी दस्तावेज से यह पता चलता है.

सीबीआई की 7 जनवरी 2023 की एफआईआर में, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, पाठक और अजय मिश्रा पर आईपीसी की धारा 386 (जबरन वसूली), 342 (गलत तरीके से बंधक बनाने), 504 (सार्वजनिक शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान और उकसावे) के तहत मामला दर्ज किया गया है. 506 (आपराधिक धमकी), 409 (लोक सेवक द्वारा विश्वास का आपराधिक उल्लंघन), और 420 (धोखाधड़ी). उनके खिलाफ लगाई गई अन्य धाराओं में आईपीसी की धारा 467 (बहुमूल्य सुरक्षा, वसीयत आदि की जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (धोखाधड़ी या बेईमानी से किसी भी दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को वास्तविक के रूप में उपयोग करना), और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 (धोखे से घूस प्राप्त करने वाला व्यक्ति) के अलावा, 120 (आपराधिक साजिश) शामिल हैं.)

‘हाउसिंग फंड में 450 करोड़ रुपये का निवेश’

एसटीएफ की जांच में आरोप सामने आने के बाद पाठक की मुश्किलें और बढ़ गईं कि एकेटीयू के वीसी के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, यूपी सरकार के नियमों का उल्लंघन करते हुए निजी वित्त कंपनियों में 450 करोड़ रुपये का निवेश किया गया था और फंड का एक हिस्सा कथित तौर पर बेईमानी से निकाल लिया गया था.

23 फरवरी 2016 को जारी एक आदेश में, यूपी सरकार के वित्त विभाग ने निगमों/सार्वजनिक उद्यमों और स्थानीय निकायों को अपने खाते खोलने, अपने सरप्लस धन के निवेश करने की अनुमति दी थी ‘वित्त विभाग की मंजूरी के बिना केवल आरबीआई द्वारा लिस्ट में शामिल बैंकों में’. वित्त विभाग के तत्कालीन सचिव मुकेश मित्तल द्वारा जारी आदेश की एक प्रति दिप्रिंट के पास है.

हालांकि, एसटीएफ ने पाया कि पाठक के वीसी के रूप में कार्यकाल के दौरान एकेटीयू ने निजी क्षेत्र की हाउसिंग कंपनियों के दो हाउसिंग फंड में 450 करोड़ रुपये का निवेश किया, जो आरबीआई की सूची में नहीं हैं.

24 मार्च 2018 को तत्कालीन वीसी पाठक की अध्यक्षता में एकेटीयू की वित्त समिति की 50वीं बैठक के दौरान दो अलग-अलग हाउसिंग फंड में 450 करोड़ रुपये का निवेश करने का निर्णय लिया गया था, बैठक के मिनट्स दिप्रिंट ने देखें हैं. प्रस्ताव यह था कि यूनिवर्सिटी अपने फंड में से 400 करोड़ रुपये एक हाउसिंग फंड में और 50 करोड़ रुपये दूसरे में निवेश करे.

सूत्रों ने दावा किया, ‘नियमों के अनुसार, विश्वविद्यालय के फंड को सूची में शामिल सार्वजनिक और निजी बैंकों निवेश किया जाना चाहिए था, लेकिन निजी वित्त कंपनियों के हाउसिंग फंड में निवेश किया गया था. एक वर्ष की अवधि के बाद समय से पहले कम से कम दो-तीन बार उन्हें वापस ले लिया गया, हालांकि निवेश की अवधि लगभग दो वर्ष थी. जितनी बार निकासी की गई, निवेश की गई राशि का एक हिस्सा उस एजेंट के पास चला गया जिसके माध्यम से पहले निवेश किया गया था. एजेंट के पास जाने वाले पैसे का हिस्सा राजनीतिक व्यक्तियों को भेजा गया था’.

सूत्रों ने कहा कि पैसा निकालने के बाद, ‘दो-तीन बार पुनर्निवेश किया गया और हर बार, जो हिस्सा एजेंट के पास गया, उसे गबन कर लिया गया’.


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पाठक को ‘वरिष्ठतम मंत्री का आशीर्वाद’

कानपुर के आर्य नगर से सपा विधायक, अमिताभ बाजपेयी, जिन्होंने कानपुर कैंट के विधायक हसन रूमी के साथ सोमवार को सीएसजेएम के बाहर पाठक के खिलाफ धरने का नेतृत्व किया, ने पाठक पर एकेटीयू के वीसी के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान ‘करोड़ों रुपये के विश्वविद्यालय जमा निधि’ हड़पने का आरोप लगाया. बाजपेयी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने यूपी विधानसभा (शीतकालीन सत्र) में इस बारे में विस्तृत सवाल फाइल किए हैं, लेकिन उत्तर की प्रतीक्षा है. देखते हैं कि बजट सत्र में हमें जवाब मिलता है या नहीं.’

धरने के दौरान, सपा नेताओं और उनके समर्थकों ने यूनिवर्सिटी के गेट के बाहर पाठक की एक तस्वीर लगाई और उसे करेंसी नोटों की माला पहनाई, इससे पहले वहां एक जोड़ी खड़ाऊं (चप्पल) रखी गई, ताकि यह पता चले कि विश्वविद्यालय वास्तव में ‘बिना वीसी के काम कर रहा है’.

बाजपेई ने कहा, ‘2 महीने तक अनुपस्थित रहने वाले, वह (पाठक) पद पर बने रहे और यहां तक कि 6 जनवरी को 2 महीने के लिए उन्हें वेतन भी मिला, जिसके लेकर हमने आधिकारिक दस्तावेज देखे हैं. उनके खिलाफ इतनी बड़ी जांच के बावजूद न तो किसी को निलंबित किया गया है और न ही हटाया गया है. राज्यपाल सीएसजेएम की चांसलर हैं. जाहिर है, इससे पता चलता है कि उन्हें सरकार और राजभवन का संरक्षण प्राप्त है.’

पिछले साल अक्टूबर में पाठक पर मामला दर्ज होने के बाद, राष्ट्रवादी पूर्व विधायक समिति के बैनर तले यूपी के छह पूर्व विधायकों के एक निकाय ने 4 नवंबर 2022 को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखकर पाठक के खिलाफ ‘सख्त कार्रवाई’ की मांग की थी, साथ ही यह भी अनुरोध किया था कि उन्हें ‘तरजीही सलूक’ नहीं दिया जाना चाहिए.

पत्र, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, जिस पर भूधर नारायण मिश्रा, नेक चंद्र पांडे, हाफिज मोहम्मद उमर, गणेश दीक्षित, संजीव दरियाबादी और सरदार कुलदीप सिंह सहित कानपुर और कानपुर देहात जिलों के पूर्व विधायकों के हस्ताक्षर हैं.

पाठक ने कहा, पत्र, ‘भ्रष्टाचार, कदाचार और धोखाधड़ी’ का पर्याय बन गया है. इसमें कहा गया है कि ‘इस तरह के कदाचार के बावजूद, पाठक को अब तक किसी निलंबन, गिरफ्तारी या बुलडोजर का सामना नहीं करना पड़ा है …’

यह आरोप लगाते हुए कि पाठक पर ‘यूपी और केंद्र में एक वरिष्ठतम मंत्री और परिवार का आशीर्वाद है.’ हस्ताक्षरकर्ताओं ने दावा किया, ‘नतीजतन, उनके खिलाफ गंभीर मामलों में, कार्रवाई के बजाय केवल कवरअप हो रहा है और जनता, छात्र, शिक्षक और कर्मचारी का भविष्य अधर में हैं.’

लेटर पर दस्ताख्त करने वालों में से एक, भूधर नारायण मिश्रा ने दिप्रिंट को बताया कि ‘इतने गंभीर अपराध’ के मामलों में अधिकारियों द्वारा की जाने वाली कार्रवाई में सबसे पहले गिरफ़्तारी होनी चाहिए.’

‘लेकिन इस मामले में, लोग जानबूझकर उन्हें (पाठक) बचाने की कोशिश कर रहे हैं. गंभीर आरोपों के बावजूद, वह वीसी बने हुए हैं. हमने मांग की थी कि उन्हें बर्खास्त किया जाए और सीएसजेएमयू के लिए तुरंत एक नया वीसी नियुक्त किया जाए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.’ मिश्रा ने दावा किया कि ‘वह वीसी के रूप में काम करना जारी रखे हुए हैं, जबकि विश्वविद्यालय में नजर नहीं आ रहे.’

(संपादन : इन्द्रजीत)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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