बिहार: ठंड के मौसम में प्रवासी पक्षियों के लिए भारत के कई क्षेत्र स्वर्ग बन जाते हैं लेकिन पिछले कुछ समय से इन पक्षियों की देश में आने की संख्या में कमी आ रही है. फरवरी 2020 में प्रकाशित स्टेट ऑफ इंडिया बर्ड्स रिपोर्ट भी इसी बात की तस्दीक करती है.
गंगा किनारे बसे वाराणसी, पटना और इलाहाबाद जैसे शहरों में प्रवासी पक्षियों की संख्या अच्छी खासी रहती है. वहीं श्रीनगर का डल झील और उड़ीसा का चिल्का झील लोग प्रवासी पक्षियों को देखने आते हैं. ये प्रवासी पक्षी उपयुक्त जगह और खाने के लिए भोजन के लिए नौ फ्लाइवे की मदद से सफर करते हैं. इन्हीं नौ फ्लाइवे में से एक सेंट्रल एशियन फ्लाइवे करीब 30 देशों को जोड़ता है जिनमें भारत भी एक है.
बिहार के वन और पर्यावरण मंत्रालय की ओर से प्रकाशित ‘बर्ड्स इन बिहार’ पुस्तक के अनुसार शिकारियों की मनमानी और जलाशयों यानी पोखर-तालाब के सिकुड़ने की वजह से प्रवासी मेहमानों की संख्या कम हो रही है जिससे कई प्रजातियां अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं.
कोसी ब्रिज के लिए बतौर इंजीनियर काम कर चुके सुपौल के अमोद कुमार झा बताते हैं कि कोसी तटबंध के भीतर कुछ सालों पहले लाखों की संख्या में प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा लगा रहता था. तटबंध के भीतर का पर्यावरण प्रवासी पक्षियों के लिए अनुकूल था, लेकिन इस पर शिकारियों की बुरी नज़र ने कलरव करती ध्वनियों को हमारे कानों से दूर कर दिया.
उन्होंने दिप्रिंट से बताया, ‘लालसर, गागन, सिल्ली, बगुला, बटेर सहित कितने ही पक्षियों को मारा जाने लगा. पिछले साल बिहार के सुपौल में अधिकारियों ने प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा के लिए एक अभियान शुरू किया था. इसके बावजूद अभी भी शिकारी सक्रिय हैं. साथ ही नदी बहुत तेजी से सिकुड़ रही है.’
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क्यों कम हुए प्रवासी पक्षी?
बिहार के भागलपुर के प्रसिद्ध पर्यावरणविद ज्ञान चंद ज्ञानी बताते हैं कि सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद शिकार, जलवायु परिवर्तन, खेती और मछली पालन में कीटनाशकों का उपयोग और झीलों और पोखरों का तेजी से सूखना प्रवासी पक्षियों के कम होने की मुख्य वजहों में से एक है. उन्होंने बताया, ‘घास के मैदानी इलाके तेजी से घटने की वजह भी प्रवासी पक्षियों पर असर कर रही है.’
वहीं, उत्तर प्रदेश के ‘पर्यावरण पर्सपेक्टिव’ पत्रिका की लेखिका विभा शर्मा ने कहा कि देश के कई इलाकों में प्रवासी पक्षी के कम होने के तीन मुख्य कारण हैं. ‘कृषि भूमि का विस्तार, बिजली के तार का विस्तारीकरण और पक्षियों का शिकार.’
पेशे से शिक्षक और बेगूसराय में समाजसेवा का काम करने वाले राजू सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘प्रवासी पक्षियों का बिहार के उस इलाके में ज्यादा आना होता है जहां पेड़-पौधा और पोखर या वेटलैंड होता है. विकास की रेस में बिहार में जंगली वृक्षों को अंधाधुन काटा गया है. वहीं बिहार के अधिकांश जलाशय या तो सूख रहे हैं या आने वाले समय में सूखने के कगार पर खड़े हैं.’
बिहार आर्थिक सर्वे 2021-2022 के मुताबिक पिछले पांच सालों में 1603.8 हेक्टेयर में फैले वन क्षेत्र को विभिन्न परियोजनाओं के लिए गैर वन क्षेत्र में तब्दील कर दिया गया.
बिहार के बेगूसराय स्थित एशिया का सबसे बड़ा गोखुर झील यानी काबर ताल प्रवासी पक्षियों के लिए मशहूर था. आज के काबर ताल की स्थिति पर बेगूसराय के पर्यावरणविद दीपक कुमार बताते हैं, ‘एक तरफ दुनिया अपने आर्द्रभूमियों को बचाने के लिए कमर कस रही है, दूसरी तरफ हम सब अपने काबर आर्द्रभूमि क्षेत्र को मिटाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखे हैं.’
उन्होंने कहा, ‘काबर झील पक्षी विहार क्षेत्र में अक्सर शिकारियों के द्वारा पक्षी को पकड़ने के लिए फंदा मिलेगा. काबर ताल आद्रभूमि को बिहार की पहली रामसर साइट का दर्जा मिले 2 साल से ऊपर हो चुके हैं. सरकार के रवैए को देखकर पता नहीं चल रहा पक्षी विहार क्षेत्र या पक्षी संहार क्षेत्र?’
विभा शर्मा के मुताबिक राजस्थान के सांभर झील के क्षेत्र की बिगड़ती स्थिति की वजह से हजारों पक्षी अचानक से मरने लगे थे.
वहीं बिहार के सुपौल जिला के वीना बभनगामा गांव के 68 वर्षीय माधव शाह बताते हैं, ‘तीन चार साल पहले तक कोसी क्षेत्र के अधिकांश इलाकों के खेतों में प्रवासी पक्षी देखने को मिलता था लेकिन अब प्रवासी पक्षी दूर दूर तक देखने को नहीं मिलता है.’
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उत्तर बिहार में होती है पक्षियों की खरीद-बिक्री
देश के अधिकांश इलाकों में प्रवासी पक्षियों का शिकार होता है लेकिन कुछ क्षेत्रों में यह काफी ज्यादा होता है. पर्यावरणविद अरविंद मिश्रा बताते हैं कि दक्षिणी बिहार में प्रवासी पक्षी सबसे सुरक्षित है, वहीं उत्तरी बिहार के कई इलाकों में इसे व्यापार और शिकार की नजर से देखा जाता हैं.
उन्होंने बताया, ’80 के दशक के वक्त उत्तरी बिहार में जाड़े के मौसम में बड़े अधिकारियों और मंत्रियों को नदियों के आसपास के क्षेत्र में भ्रमण के दौरान उपहार के रूप में प्रवासी पक्षियों को दिया जाता था. उत्तर बिहार में स्टेटस सिंबल और मिथक के कारण हर साल प्रवासी पक्षियों का शिकार होता है. प्रवासी पक्षी का मांस खरीदने वाले रईस वर्ग के लोग होते हैं और शिकार करने वाले गरीब वर्ग के.’
2020 में तो प्रवासी पक्षियों के शिकार पर अंकुश लगाने के लिए अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक प्रभात कुमार गुप्ता की अध्यक्षता में एक समिति भी बनाई गई थी जिसमें अरविंद मिश्रा भी शामिल थे.
भागलपुर के नारायणपुर प्रखंड के वीरबन्ना चौक, सुपौल जिला के कोसी तटबंध का भीतरी इलाका और खगड़िया जिला का परबत्ता प्रवासी पक्षियों के मांस के अवैध व्यापार के लिए प्रसिद्ध है. वहां 20 साल से 40 साल तक का व्यक्ति डोरी में बांधा प्रवासी पक्षी को बेचता मिल जाएगा. हालांकि प्रशासन के सख्त होने के बाद अब शराब की तरह प्रवासी पक्षियों की भी होम डिलीवरी होती है.
नारायणपुर प्रखंड के वीरबन्ना चौक पर किराना दुकान चलाने वाले राजीव बताते हैं, ‘प्रशासन की मुस्तैदी की वजह से पिछले दो-तीन सालों से शिकारियों की संख्या में कमी आई है. इसके बावजूद शिकारी प्रवासी पक्षियों का शिकार करने में सफल हो जाते हैं. अब चौराहे पर नहीं बल्कि गांव में कुछ खास जगहों पर प्रवासी पक्षी मिल जाते हैं. अधिकांश शिकार किए हुए पक्षी को शहर भेज दिया जाता है क्योंकि वहां ठीक-ठाक कीमत मिलती है.’
नारायणपुर प्रखंड के जारमपुर गांव के एक 22 वर्षीय शिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘भोजन की तलाश में आए पक्षी जब नदी किनारे आते हैं तब हम लोग जाल और फंदा की मदद से इनका शिकार करते हैं. पहले बंदूक और तीर कमान का उपयोग किया जाता था. ‘बंजारा शिकारी’ अब भी तीर कमान से पक्षियों का शिकार करते हैं. 300-350 के दर से पक्षियों की बिक्री की शुरुआत होती है. लालसर और गुलाबसर का ज्यादा डिमांड रहता है.’
गौरतलब है कि वन्यजीव संरक्षण कानून 1972 की धारा 9 के तहत प्रवासी पक्षियों का शिकार कानूनन अपराध है. बिहार सरकार ने प्रवासी पक्षियों को बचाने के लिए कई कदम भी उठाए हैं. शिकार का कोई आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है लेकिन समयानुसार राज्य सरकार की तरफ से शिकारियों पर सख्ती का आदेश भी निकाला जाता है. सोशल मीडिया के माध्यम से भी प्रवासी पक्षी के शिकार को लेकर जागरूक किया जाता है.
(राहुल कुमार गौरव स्वतंत्र पत्रकार हैं)
(संपादनः कृष्ण मुरारी)
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