पत्रकार लगभग इसे कभी भी ठीक से समझ नहीं पाएंगे. हम राजनेताओं को बताते रहते हैं कि वे क्या गलत कर रहे हैं. और राजनेता हम पर ध्यान नहीं देते क्योंकि वे जानते हैं कि हमें वास्तव में यह समझ नहीं कि राजनीतिक खेल कैसे खेला जाता है. (क्या आपने कभी सोचा है कि राजनीति में प्रवेश करने वाले कुछ ही पत्रकारों ने अच्छा क्यों किया है).
इसलिए मुझे यह रिपोर्ट करते हुए खुशी हो रही है कि आखिरकार मुझे एक ऐसा उदाहरण मिला है जहां भारतीय पत्रकार ज्यादातर सही थे.
और लगता है यह काम कर रहा है.
वर्षों से भारतीय पत्रकार यही बात कहते रहे हैं. राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘धोखेबाज’ (जैसा कि चौकीदार चोर है) कहते नहीं रहना चाहिए क्योंकि कोई भी उन पर विश्वास नहीं करता है. उन्हें बीच-बीच में विदेश की रहस्यमयी जगहों पर जाना बंद कर देना चाहिए. उन्हें कांग्रेस पार्टी को चलाने की कोशिश बंद कर देनी चाहिए क्योंकि वह लोगों को आंकने या राजनीतिक प्रबंधन में बहुत अच्छे नहीं हैं. उन्हें अनिच्छुक उत्तराधिकारी की भूमिका निभाना बंद कर देना चाहिए. यदि उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है (और उन्होंने कहा कि उन्होंने पिछले आम चुनाव के बाद दिया था), तो उन्हें पार्टी को एक नया अध्यक्ष चुनने देना चाहिए और खुद को दिल्ली सर्किट से बाहर कर लेना चाहिए. हम जानते हैं कि राहुल बीजेपी के लिए क्या सोचते हैं (क्योंकि वह हमें हर हफ्ते बताते हैं), लेकिन कांग्रेस किस चीज के लिए खड़ी है? इसका संदेश क्या है? उन्हें अब हमें यह बताने की जरूरत है.
और क्या? राहुल ने लगभग वह सब कुछ किया है जो उनके आलोचकों ने कहा है कि उन्हें करना चाहिए.
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‘बदले हुए’ राहुल गांधी
आप एक पॉलिटिकल लीडर के रूप में राहुल गांधी के बारे में जो भी सोचते हैं (और मैं पिछले कुछ वर्षों से उनके बारे में चिल्ला रहा हूं), इस बात से इनकार करना मुश्किल है कि वह आखिरकार कुछ ऐसा कर रहे हैं जो अब काम कर रहा है जैसे उनकी ये- भारत जोड़ो यात्रा. नेशनवाइड वॉकथॉन ने राहुल की छवि बदल दी है और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का गिरता हुआ मनोबल अब उठ खड़ा हुआ. और इसने भाजपा की राजनीति को एक राष्ट्रीय प्रतिरूप प्रदान किया है.
यह राहुल का कैरिकेचर नहीं है -जो घर पर बैठकर, पिडी (अपने कुत्ते) के साथ खेलता है, तब जब क्षेत्रीय नेता उसके सामने गिड़गिड़ाते हैं. यह वह व्यक्ति नहीं है जो अजीबोगरीब निर्णय लेता है जिससे राज्य इकाइयां कभी उबर नहीं पातीं. यह कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो अचानक रहस्यमय विदेशी स्थानों पर गायब हो जाता है. यह कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसने अंतत: इंटरव्यू देने के लिए तैयार होने पर, उसका इंटरव्यू कौन ले इसका भी निर्णय खुद लेने की बात कही. जिसने बड़ी ही चालाकी से उसे एक बेवकूफ की तरह दिखाया. यह राहुल गांधी नहीं हैं जो बृहस्पति के पलायन वेग के बारे में पहेलियों में बोलते हैं या कहते हैं कि भारत मधुमक्खी के छत्ते की तरह है.
इसके बजाय, एक वास्तविक व्यक्ति हैं, जो लोगों के बीच चल रहा है, हर उस व्यक्ति तक पहुंच रहा है जो उससे जुड़ना चाहता है, यह प्रदर्शित करता है कि उसे सत्ता के जाल की कोई आवश्यकता नहीं है. (और, थोड़ी और उत्सुकता से, कि उसे स्वेटर या रेजर की भी कोई आवश्यकता नहीं है.)
उन्होंने कांग्रेस के लिए जो पोजिशन चुनी है, वह सही है. ऐसे समय में जब इतनी नफरत है, राहुल कहते हैं कि कांग्रेस प्यार और एकता के लिए खड़ी है. यह एक स्थिति है जिसके साथ कोई बहस नहीं कर सकता है. प्रेम का विरोध कौन कर सकता है?
सहज रूप से, हम में से अधिकांश जानते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा काम कर रही है – कम से कम इस हद तक कि इसने राहुल के “बिगड़ैल बच्चा“ वाले कैरिकेचर को भी खत्म कर दिया है और उनकी लोकप्रियता बढ़ा दी है. लेकिन अब हमारे पास इनट्यूशन के अलावा और भी बहुत कुछ है.
मैं बरखा दत्त की मोजो स्टोरी पर सी-वोटर के यशवंत देशमुख को सुन रहा था, और उनके पास आंकड़े हैं कि इस यात्रा से राहुल गांधी के प्रति लोगों की धारणा कैसे बदल रही है. कांग्रेस समर्थक हमेशा यशवंत को पसंद नहीं करते क्योंकि वह उन्हें सच बताता है, सच्चाई हमेशा कड़वी होती है और अच्छी नहीं लगती है. लेकिन मैंने हमेशा उनके फैसले पर भरोसा किया है और उनके आंकड़ों को गंभीरता से लिया है.
कर्नाटक में राहुल गांधी की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है. एक साल पहले सिर्फ 38.8 फीसदी वोटर ही उनसे संतुष्ट थे. यात्रा के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 57.7 फीसदी हो गया. और हालांकि यात्रा के आगे बढ़ने के बाद यह संख्या थोड़ी कम हुई है, फिर भी यह लगभग 55.8 प्रतिशत है. मध्य प्रदेश में एक साल पहले 45.7 फीसदी वोटर राहुल से संतुष्ट थे. यात्रा के बाद यह आंकड़ा 54 फीसदी हुआ. और राहुल की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है. यह अब 56.3 प्रतिशत पर है.
तेलंगाना में भी यही कहानी है. एक साल पहले सिर्फ 34.6 फीसदी वोटर राहुल से संतुष्ट थे. यात्रा के ठीक बाद यह आंकड़ा 55.6 प्रतिशत था. और यह वास्तव में अब थोड़ा ऊपर चला गया है. राजस्थान में एक साल पहले यह आंकड़ा 32.8 फीसदी था. यात्रा के बाद यह बढ़कर 40.8 फीसदी हो गया. यह अन्य राज्यों की तुलना में कम नाटकीय है, लेकिन राहुल गांधी की छवि में सुधार निर्विवाद है.
राहुल खिल उठे
इन सब बातों से यही पता चलता है कि जब से कांग्रेस को मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में नया अध्यक्ष मिला है, तब से राहुल खिल उठे हैं. पार्टी का नेतृत्व करने के बोझ से मुक्त होकर, उन्होंने आखिरकार अपने व्यक्तित्व को उभारने की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया और अपनी छवि बदलने के लिए कड़ी मेहनत की (यात्रा एक वास्तविक नारा है). उन्होंने लोगों को यह देखने का मौका दिया है कि वह वास्तव में कौन है, उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि मुझे ऐसे देखो जैसा मैं हूं मुझे वैसे मत देखो जैसा तुम्हें मुझे न पसंद करने वाली मीडिया दिखाती है या फिर ट्रोल्स जिस नाम से मुझे बुलाते हैं.
उनके मामले में सभी असामान्य चेतावनियां लागू होती हैं. एक सफल यात्रा जरूरी नहीं कि वह चुनावी जीत में ही तब्दील हो. चंद्रशेखर ने 1983 में एक सफल यात्रा शुरू की, केवल अगले वर्ष अपनी ही लोकसभा सीट गंवाने के लिए. मुरली मनोहर जोशी 1991 में भाजपा अध्यक्ष के रूप में एकता यात्रा पर निकले थे लेकिन उसका जो परिणाम निकला वह उनकी अपेक्षा के विपरीत था. उन्हें भाजपा अध्यक्ष के रूप में दूसरा कार्यकाल नहीं मिला और उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन हास्य-व्यंग्य के रूप में भी बिताया.
तो हां, हो सकता है कि चुनावी लिहाज से भारत जोड़ो यात्रा से कुछ नहीं निकले. लेकिन हमें इंतजार करना होगा और देखना होगा. लेकिन इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि राहुल गांधी का यह अवतार उनके कार्यकर्ताओं को प्रेरित कर रहा है और कांग्रेस को फिर से एक खिलाड़ी की तरह दिखने लगी है? यह उससे कहीं अधिक है जिसकी किसी ने एक साल पहले कल्पना भी नहीं की थी.
(वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार और टॉक शो होस्ट हैं. उनका ट्विटर हैंडल @virsangvi है. व्यक्त विचार निजी है.)
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(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)
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