scorecardresearch
Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशसूखी टहनियों, पत्तियों को जलाने और गाड़ियों का धुआं दिल्ली में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण- स्टडी

सूखी टहनियों, पत्तियों को जलाने और गाड़ियों का धुआं दिल्ली में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण- स्टडी

रियल टाइम सोर्स अपोर्शनमेंट स्टडी के मुताबिक दिसंबर में पीएम 2.5 की बड़ी वजह बायोमास जलाना, वाहनों से होने वाला उत्सर्जन और धूल रही है. औद्योगिक प्रदूषण इनकी तुलना में काफी कम था.

Text Size:

नई दिल्ली: पराली जलाने का मौसम तो अब खत्म हो चुका है. लेकिन दिल्ली के प्रदूषण की स्थिति जस की तस बनी हुई है. अगर रियल टाइम सोर्स अपोर्शमेंट स्टडी की मानें तो निर्माण गतिविधियां, गाड़ियों से निकलते धुएं के अलावा ठंड से बचने के लिए टहनियां और सूखी पत्तियों को जलाया जाना दिल्ली की हवा को खराब करने का एक बड़ा कारण रहा है.

स्टडी के मुताबिक औद्योगिक प्रदूषण अन्य महीनों की तुलना में काफी कम रहा था.

इस प्रोजेक्ट पर दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC), IIT-कानपुर, IIT-दिल्ली और द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) के साथ मिलकर काम कर रही है. इसका नेतृत्व IIT-कानपुर के प्रोफेसर मुकेश शर्मा कर रहे हैं.

परियोजना को शुरू करने के लिए अक्टूबर 2021 में IIT कानपुर और DPCC के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे. लेकिन दिल्ली के प्रदूषण पर यह अध्ययन 23 दिसंबर 2022 को शुरू हुआ था. इसका उद्देश्य दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की हवा को खराब करने वाले स्रोतों की पहचान करना है, ताकि शहर में एयर पोल्यूटेंट को समझा जा सके और फिर उन्हें कम किया जा सके.

दिसंबर के शुरुआती निष्कर्षों ने पता चलता है कि काफी दूरी तय करके आने वाले सेकेंडरी अकार्बनिक एरोसोल एअर पोल्युशन मिक्स के बड़े हिस्से के लिए जिम्मेदार होते हैं. अध्ययन में कहा गया कि पिछले एक महीने में बायोमास जलाना (लकड़ी, ठूंठ आदि), वाहन उत्सर्जन और धूल (सड़क और निर्माण) पीएम 2.5 की बड़ी वजहें रहीं थी.

DPCC के एक अधिकारी ने कहा कि ठंड से बचने के लिए जलाई जा रही आग वायु प्रदूषण में प्रमुख रूप से इजाफा कर रही है.

डीपीसीसी के एक अधिकारी ने कहा, ‘फिलहाल तो सबसे बड़े प्रदूषण स्रोतों में से एक टहनियों और सूखी पत्तियों को जलाना है. पराली का सीजन 30 नवंबर को खत्म हो चुका है. लिहाजा अभी इसका असर इतना नहीं है. लेकिन लोग ठंड से बचने के लिए रोजाना कचरे और लकड़ियों को जला रहे हैं. इससे निकलने वाले धुएं ने पराली की जगह ले ली है. उद्योगों से होने वाला प्रदूषण उतना गंभीर नहीं था. जितना कि अन्य कारकों से होने वाला प्रदूषण. वैसे निर्माण गतिविधियों से होने वाला प्रदूषण भी कम नहीं रहा है.’

डीपीसीसी ने दिप्रिंट को यह भी बताया कि वायु प्रदूषण ‘डायनमिक’ था और किसी एक स्रोत को इसके लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है क्योंकि यह हर घंटे बदलता रहता है. मसलन, सुबह (सुबह 9 बजे से 11 बजे तक) और शाम (शाम 6 बजे से रात 8 बजे तक) को होने वाले वायु प्रदूषण के लिए गाड़ियां काफी हद तक जिम्मेदार रहीं तो वहीं बायोमास जलाने से रात के समय में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैला.

दिल्ली कड़ाके की ठंड की चपेट में है और मौसम विभाग ने अगले दो-तीन दिनों तक हवा की गुणवत्ता बेहद खराब श्रेणी में रहने की बात कही है.

ऐसे में ‘रियल टाइम सोर्स अपोर्शनमेंट स्टडी’ वायु प्रदूषण को रोकने के प्रशासन के प्रयासों में मदद कर सकती है. खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि आईआईटी कानपुर की रियल टाइम सोर्स अपोर्शनमेंट स्टडी से दिल्ली को प्रदूषण से जुड़े आंकड़ों में सक्रिय तरीके से मदद मिल रही है.

दिल्ली सरकार के एक बयान के मुताबिक, केजरीवाल ने सुझाव दिया कि आईआईटी-कानपुर को रियल टाइम सोर्स से और ज्यादा विस्तृत विश्लेषण देने का प्रयास करना चाहिए. मसलन अलग-अलग समय और इलाकों में प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों के प्रकार. इसके अलावा जिन इलाकों में बायोमास और कचरा जलाया जा रहा है, उनके बारे में भी विस्तृत जानकारी दी जानी चाहिए.

दिल्ली सरकार के सूत्रों का कहना है कि जहां वे बीएस I, II, III और IV वाहनों से सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन के अनुपात का एक मोटा अनुमान लगा सकते हैं, वहीं अधिक बारीक पहचान करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है. उन्होंने कहा, अध्ययन का उद्देश्य किसी खास प्रदूषणकारी ट्रांसपोर्ट पर ध्यान केंद्रित करना नहीं था. बल्कि उनका मकसद यह जानना था कि क्या गाड़ियों की वजह से प्रदूषण का स्तर और खराब हो रहा है.

सूत्रों ने कहा, अतीत में सोर्स अपोर्शमेंट स्टडी ने ‘दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार अलग-अलग कारणों का वर्णन करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन उनके अनुमानों में काफी भिन्नता थी. ‘सटीक कारणों का अनिश्चित निर्धारण वायु गुणवत्ता सुधार उपायों को कमजोर बनाता है और उन्हें अप्रभावी कर देता है. लेकिन माना जाता है कि साल-दर साल की जाने वाली पड़ताल वायु प्रदूषण की डायनेमिक नेचर को पकड़ सकती हैं और अधिक सटीक व वास्तविक समय की जानकारी दे पाने में सक्षम हो सकती है.


यह भी पढ़ें: दार्जिलिंग की पहचान- चाय खो रही अपनी महक, नेपाल ही केवल समस्या नहीं


प्रोजेक्ट में क्या-क्या शामिल

परियोजना के लिए ‘सुपरसाइट’ और एक मोबाइल लैब दो मुख्य घटक हैं जो दिल्ली में 13 प्रदूषण हॉटस्पॉट को कवर करेंगे. जिन इलाकों में सल्फर ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, ओजोन जैसे प्रदूषकों की निगरानी की जाएगी वो जहांगीरपुरी, आनंद विहार, अशोक विहार, वजीरपुर, पंजाबी बाग, द्वारका सेक्टर 8, रोहिणी सेक्टर 16 , आरके पुरम, बवाना, मुंडका, नरेला, ओखला फेज II और विवेक विहार हैं.

अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि एक घंटे, दैनिक और साप्ताहिक आधार पर वायु प्रदूषण के स्तर का अनुमान लगाने में मदद करने के लिए सुपरसाइट राउज़ एवेन्यू में आ गया है, लेकिन मोबाइल लैब अभी भी अपने प्रारंभिक चरण में है.

इस परियोजना पर काम कर रहे एक TERI वैज्ञानिक ने कहा, ‘रियल टाइम सोर्स अपोर्शनमेंट स्टडी एक निश्चत समय के दौरान अलग-अलग क्षेत्रों से निकलने वाले प्रदूषकों की सांद्रता का एक सेट मुहैया कराती है. यह किसी विशेष समय तक सीमित नहीं है. यह पूरी प्रक्रिया अपने आप चलती रहती है. इससे आप आज और कल की हवा की गुणवत्ता को जान पाते हैं. साथ ही ये भी देख सकते हैं कि प्रदूषकों को कम करने के लिए उठाए गए कदम कारगार साबित हुए हैं या नहीं.’ उन्होंने कहा, ‘इस तरह से पूर्वानुमान के लिए उपलब्ध आंकड़ों से आप अगले 10 दिनों के लिए प्रदूषण के स्तर और स्रोतों का अनुमान लगाने में सक्षम हों पाएंगे.’

TERI पहले इमिशन इन्वेंटरी का अनुमान लगाएगा ( एक निश्चित समय में छोड़े गए वायु प्रदूषकों की संख्या का विस्तृत मूल्यांकन) और फिर पीएम 10 और पीएम 2.5 जैसे सूक्ष्म कणों के स्तर का आकलन करने के लिए डेटा को आईआईटी-दिल्ली के ‘मॉडलिंग एक्सरसाइज’ में फीड किया जाएगा. आईआईटी-कानपुर प्रोजेक्ट की सभी गतिविधियों के समग्र समन्वय की देखरेख कर रहा है.

TERI के शोधकर्ता ने कहा, ‘उदाहरण के लिए अगर आप कहते हैं कि मेरी इमारत के बाहर एंबिएंट वायु गुणवत्ता 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, तो यह वैल्यू है. इसके बाद स्टडी में यह निर्धारित किया जाएगा कि परिवहन क्षेत्र, उद्योगों, सेवा क्षेत्र, निर्माण गतिविधियों आदि से कितना प्रदूषण आ रहा है. यह जानकारी दिल्ली सरकार को उपलब्ध कराई जाएगी और यह तय किया जाएगा कि प्रदूषण को रोकने के लिए कौन से सक्रिय कदम उठाए जाने चाहिए.’

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के एक विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा कि अगर पूर्वानुमान प्रणाली के साथ-साथ सीएक्यूएम के साथ जोड़ दिया जाए तो ऐसी तकनीक प्रदूषण के स्तर को रोकने के मामले में खासी महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं. क्योंकि कुछ उद्योगों या प्रदूषण के अन्य स्रोतों को बंद करने के लिए वास्तविक समय में दिशा-निर्देश जारी करने के लिए कार्रवाई की जा सकती है.

उन्होंने कहा कि अगर प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए पांच थर्मल पावर संयंत्रों को बंद कर दिया जाता है हम इस बात का पता लगा सकते हैं कि क्या वास्तविक समय के हस्तक्षेपों ने बिजली क्षेत्र से होने वाले प्रदूषण को कम करने में मदद की है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य सभी शहरों को इसे अपनाना चाहिए. क्योंकि भले ही हमारे पास इस प्रकार के अध्ययन न हों, यह कोई बड़ी समस्या नहीं होगी क्योंकि हमारे पास पहले से ही यह जानने के लिए पर्याप्त शोध है कि प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारण क्या हैं. हम जानते हैं कि जीवाश्म ईंधन या जीवाश्म ईंधन की मानवजनित खपत, चाहे वह परिवहन क्षेत्र के उद्योगों में हो या बिजली उत्पादन में मुख्य दोषी यही हैं.’

उन्होंने कहा, ‘जब तक उनकी खपत कम नहीं होती है या उन क्षेत्रों से उत्सर्जन भार कम नहीं होता है, तब तक हम स्वच्छ हवा में सांस नहीं ले पाएंगे.’

दहिया ने कहा कि यह जरूरी था कि अध्ययन के निष्कर्ष और स्थिति को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जाए. अतीत में दिल्ली में ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां कुछ ऐसा ही करने का प्रयास किया गया था लेकिन काम फिर बीच में ही रुक गया. सार्वजनिक डोमेन में अधिक पारदर्शिता या जानकारी उपलब्ध नहीं थी, इसलिए यह पता लगाने का कोई तरीका नहीं था कि प्रदूषण को रोकने के किन उपायों ने अच्छा प्रदर्शन किया या और किसने नहीं.

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘सफ़ाई से लेकर पानी तक हर तरह से करूंगी लोगों की मदद,’ बिहार के गया में गलियों में झाड़ू लगाने वाली बनी डिप्टी मेयर


 

share & View comments