मुंबई: ‘महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति’ के साथ काम करने वाले पुणे के एक सामाजिक कार्यकर्ता विशाल विमल ने पिछले छह सालों में 18 अंतर्धार्मिक विवाहों को संपन्न करवाने में मदद की है.
अंतर्जातीय (इंटरकास्ट) और अंतर्धार्मिक (इंटरफेथ) जोड़े अक्सर मदद मांगने के लिए इस संगठन से संपर्क करते हैं. विमल कहते हैं, ‘इनमें से कई के माता-पिता उनके मिलन के खिलाफ होते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हम इस बात की पड़ताल करते हैं कि क्या वे वास्तव में एक दूसरे से प्यार करते हैं या यह सिर्फ आकर्षण है. हम उन्हें कुछ परामर्श देते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि वे स्वतंत्र रूप से जीवन- यापन करने में सक्षम हों.’ इसके बाद यह संगठन अंतर्धार्मिक जोड़ों को विशेष विवाह अधिनियम (स्पेशल मैरेज एक्ट) के तहत अपनी शादी को पंजीकृत करवाने में भी मदद करता है.
विमल ने खुद साल 2016 से एक मुस्लिम महिला से शादी की है. हालांकि, उनके मामले में, उनकी शादी को दोनों के माता-पिता का आशीर्वाद मिला था.
हालांकि, पिछले साल पहले श्रद्धा वालकर और फिर अभिनेत्री तुनिशा शर्मा की मौत के बाद महाराष्ट्र में अंतर्धार्मिक विवाह और ‘लव जिहाद’ की तरफ दिए जा रहे ‘विशेष ध्यान’ ने विमल को चिंतित कर दिया है. उनका कहना है, ‘यह सब वोटों के ध्रुवीकरण के लिए किया जा रहा है.’
बता दें कि पिछले 25 दिसंबर को महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री गिरीश महाजन ने तुनिषा शर्मा की कथित आत्महत्या को ‘लव जिहाद’ का मामला करार देते हुए कहा था कि राज्य सरकार इसके खिलाफ एक कानून बनाने की योजना बना रहा है. उनकी यह टिप्पणी इस नवोदित अभिनेत्री को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में अभिनेता शीजान मोहम्मद खान की गिरफ्तारी के बाद आई थी.
इससे पहले महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी कई बार कह चुके हैं कि उनकी सरकार लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने पर विचार कर रही है. उन्होंने 20 दिसंबर को राज्य विधानसभा में कहा था, ‘अन्य राज्यों ने ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने के लिए सख्त कानून बनाए हैं और इसलिए महाराष्ट्र (भी) महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इसी तरह का कानून बनाने के लिए तैयार है.’
राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई के अनुसार, पहले राज्य के कुछ हिस्सों में ही हिंदू-मुस्लिम तनाव देखा जाता था, लेकिन हाल की घटनाओं के साथ, पूरे राज्य में सांप्रदायिक विभाजन की रेखाएं खींची जा रही हैं.
इससे पहले दिसंबर 2022 में, राज्य में सत्तारूढ़ शिंदे-फडणवीस सरकार ने अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक जोड़ों के बारे में जानकारी इकठ्ठा करने के लिए एक समिति का गठन किया था. इस समिति को इस बात की छानबीन करने का भी दायित्व सौंपा गया था कि क्या ऐसे संबंधों में शामिल महिलाओं के परिवार उनसे अलग-थलग हैं.
हालांकि, इस समिति को जाति व्यवस्था को बढ़ावा देने वाली’ समिति के रूप में मिली विपरीत प्रतिक्रिया के बाद, सरकार ने इसके कामकाज के दायरे में संशोधन करते हुए इसके तहत केवल अंतर्धार्मिक विवाहों को शामिल किया था.
14 दिसंबर को, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता जितेंद्र आव्हाड ने एक ट्वीट में कहा था कि इस समिति का गठन एक ‘संवैधानिक विरोधी’ और ‘घिनौना’ कदम है.
What's this rubbish of committee to check inter caste/religion marriages? Who is govt to spy on who marries whome? In liberal Maharashtra this a retrograde, nauseating step.Which way is progressive #Maharashtra heading towards. Stay away from people's pvt life. pic.twitter.com/pnjwNjE6Rt
— Dr.Jitendra Awhad (@Awhadspeaks) December 14, 2022
महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के सदस्य अंबादास दानवे ने दिप्रिंट को बताया कि ‘लव जिहाद’ कानून की बात छेड़ना भाजपा द्वारा उठाया जा रहा राजनीति से प्रेरित कदम है.
उन्होंने कहा, ‘एक बार इस कानून के लाये जाने के बाद हम उसका अध्ययन करेंगे. अगर कोई जोड़ा सोच-समझकर ऐसी शादियों में शामिल हो रहा है, तो इसका विरोध क्यों करें?’ साथ ही, उन्होंने कहा कि जबरन धर्मांतरण को जरूर कुछ शर्तों के साथ बंधा होना चाहिए.
इस बीच, कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत ने दिप्रिंट से कहा, ‘राज्य सरकार संविधान के प्रति घोर अनादर रखती है. यह कानून महिला विरोधी होगा, क्योंकि यह उनके द्वारा स्वयं के लिए साथी चुनने के अधिकार को छीन लेता है. यह भारत के विचार (आईडिया ऑफ़ इंडिया) के विपरीत भी है.‘
राजनीतिक विशेषज्ञों का भी कहना है कि यह एक खतरनाक मिसाल कायम करता है और लोगों को सांप्रदायिक आधार पर बांटता है.
राजनीतिक टिप्पणीकार प्रताप अस्बे ने कहा, ‘भाजपा द्वारा अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को ये दो मामले [श्रद्धा और तुनिशा] थाली में परोस कर मिल गए हैं वे एक ऐसा नैरेटिव बना रहे हैं जो जनता को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करती है.’
महिला अधिकार कार्यकर्ता, और बॉम्बे हाई कोर्ट में वकील, फ्लाविया एग्नेस, ने इस इंटरफेथ मैरिज कमेटी को ‘बेतुका’ कहा.
उन्होंने कहा, ‘वे (सरकार) घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं की सुरक्षा करने का दावा करते हैं, लेकिन यह सभी प्रकार के विवाहों में होता रहता है, न कि केवल अंतर्धार्मिक विवाह में.’ उन्होंने कहा कि ऐसे कानून केवल हिंदू महिलाओं और उनके ‘चुनने के अधिकार’ को ही नुकसान पहुंचाएंगे.
राजनीतिक फायदा?
कुछ लोगों का मानना है कि भाजपा इन दो मामलों का इस्तेमाल विपक्ष, खासकर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), को हिंदू विरोधी के रूप में पेश करने के लिए कर रही है.
हेमंत देसाई ने कहा, ‘भाजपा उद्धव ठाकरे को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रही है जो हिंदू विरोधी है और एनसीपी एवं कांग्रेस के करीब जा रहा है.’
इस बीच, अस्बे का मानना है कि हालांकि भाजपा इसका राजनीतिक लाभ हासिल करने की कोशिश कर रही है, मगर बीएमसी (बृहत् मुंबई कारपोरेशन) के चुनाव बीएमसी के मुद्दों पर लड़े जाएंगे, न कि सांप्रदायिक आधार पर. उन्होंने कहा, ‘सफलता दर से अधिक, यह महाराष्ट्र में सांप्रदायिक मुद्दों की कड़ाही को उबालते रहने के लिए किया जा रहा है.’
देसाई ने कहा कि पहले राज्य के औरंगाबाद, मालेगांव और भिवंडी जैसे कुछ ही इलाके ऐसे थे जहां हिंदू-मुस्लिम तनाव बना रहता था, लेकिन अब इन मामलों का इस्तेमाल कर सरकार राज्य भर में एक जैसा नैरेटिव स्थापित करने की कोशिश कर रही है.
इसे तब देखा गया जब कोल्हापुर, जो देसाई के अनुसार ऐतिहासिक रूप से कभी भी सांप्रदायिक नहीं रहा है, में हिंदू संगठनों द्वारा ‘लव जिहाद’, कथित अवैध धर्मांतरण और गोहत्या के खिलाफ सोमवार को एक मार्च का आयोजन किया गया था.
उन्होंने कहा कि भाजपा भविष्य में इसी मुद्दे पर चुनाव लड़ना चाहेगी.
(अनुवाद: राम लाल खन्ना | संपादन : ऋषभ राज)
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