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Friday, 22 November, 2024
होमदेश'7 दिन में 50 हजार लोगों को नहीं उजाड़ सकते', हल्द्वानी अतिक्रमण मामले में HC के आदेश पर SC की रोक

‘7 दिन में 50 हजार लोगों को नहीं उजाड़ सकते’, हल्द्वानी अतिक्रमण मामले में HC के आदेश पर SC की रोक

हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को एक सप्ताह का अग्रिम नोटिस जारी कर हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया था.

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नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने हल्द्वानी में रेलवे की 29 एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के निर्देश पर गुरुवार को रोक लगा दी.

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा, ‘सात दिन में 50 हज़ार लोगों को नहीं उजाड़ा जा सकता है’.

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति ए एस ओका की पीठ ने कहा कि यह एक ‘मानवीय मुद्दा’ है और कोई उचित समाधान निकालने की ज़रूरत है.

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई सात फरवरी के लिए निर्धारित की है.

हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को एक सप्ताह का अग्रिम नोटिस जारी कर हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया था, जिसके बाद लगातार वहां के निवासी एक ओर जहां प्रदर्शन कर रहे थे. वहीं, उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत ने मौन विरोध भी किया था.

आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद रावत ने फैसले का स्वागत किया और कहा कि, ‘इससे मानव अधिकारों की रक्षा होगी.’

उन्होंने कहा, ‘SC का फैसला मानवाधिकारों की रक्षा करेगा. हम सभी अतिक्रिमण के बारे में चिंतित थे जिससे 52,000 लोग बेघर हो जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमण पर रोक लगा दी. 2016 में भी हमने लोगों के पुनर्वास को लेकर कदम उठाए थे.’

बता दें कि हाईकोर्ट के फैसले का विरोध जताते हुए हल्द्वानी के कुछ निवासियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे तथा उत्तराखंड सरकार से हल्द्वानी में अतिक्रमण हटाने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जवाब मांगा है.

रेलवे के मुताबिक, उसकी 29 एकड़ से अधिक भूमि पर 4,365 अतिक्रमण हैं.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ ने बुधवार को उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर आपत्ति जताई कि सात दिनों में अतिक्रमण हटा दिया जाए.

उस आदेश के बाद, अधिकारियों ने एक बेदखली नोटिस जारी किया था जिसने चार अधिकारियों से अधिक परिवारों को प्रभावित किया.

निवासियों ने यह भी दावा किया कि उनके पास सरकारी अधिकारियों द्वारा मान्यता प्राप्त दस्तावेज़ हैं.

न्यायमूर्ति एस.के. सुनवाई के दौरान कौल ने कहा, ‘मुद्दे के दो पहलू हैं. एक, वे मकान का दावा करते हैं. दूसरा, वह कहते हैं कि लोग 1947 के बाद चले गए और ज़मीनों की नीलामी हुई. लोग इतने सालों तक वहां रहे. उन्हें पुनर्वास करना होगा. आप कैसे कह सकते हैं कि सात दिनों में उन्हें उजाड़ दें?’

विशेष अवकाश याचिकाओं के बैच की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति ओका ने कहा, ‘लोग कहते हैं कि वे 50 वर्षों से वहां रह रहे हैं.’

ओका ने कहा, ‘हाईकोर्ट ने प्रभावित पक्षों की बात सुने बिना ही बेदखली का आदेश पारित कर दिया. कोई उपाय निकालिए. यह एक मानवीय मुद्दा है.’

निवासियों ने अपनी याचिका में दलील दी कि हाई कोर्ट ने इस तथ्य से अवगत होने के बावजूद विवादित आदेश पारित करने में गंभीर भूल की है कि याचिकाकर्ताओं सहित निवासियों को लेकर कुछ कार्यवाही जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित है.

बनभूलपुरा में रेलवे की कथित तौर पर अतिक्रमित 29 एकड़ से अधिक जमीन पर धार्मिक स्थल, स्कूल, कारोबारी प्रतिष्ठान और आवास हैं.


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