नई दिल्ली: कंटेप्ट ऑफ कोर्ट मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई के पूर्व अतंरिम निदेशक नागेश्वर राव को सजा सुनाई है. शीर्ष अदालत ने उन्हें मंगलवार को अदालत की कार्यवाही समाप्त होने तक पीछे बैठने की सजा सुनाई है, साथ ही एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है. कंटेप्ट ऑफ कोर्ट का मामला मुजफ्फरपुर सेल्टर होम से संबंधित सुप्रीम कोर्ट की अवमानना से जुड़ा है. कोर्ट ने कहा था कि मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में सीबीआई जांच में सुप्रीम कोर्ट की इजाजत के बिना जांच में जुटी टीम के किसी भी अधिकारी का ट्रांसफर नहीं किया जाएगा.
कोर्ट के आदेश की अनदेखी करते हुए नागेश्वर राव ने जांच टीम के चीफ सीबीआई अधिकारी एके शर्मा का ट्रांसफर 17 जनवरी को सीबीआई से सीआरपीएफ में कर दिया था. इसके बाद नागेश्वर राव ने सर्वोच्च न्यायालय से माफी मांग ली थी उन्होंने इस मामले में सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय में बिना शर्त माफीनामा दाखिल किया था. अटॉर्नी जनरल केके वेनुगोपाल ने सीबीआई की तरफ से वकालत करते हुए माना कि सीबीआई मानती है कि हमने लगातार गलतियां की हैं और बिना किसी शर्त के माफी मांगने को तैयार है.
इस पर सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि यह मामला सीधा कोर्ट की अवमानना का है और यह उनके करियर में मार्क किया जाता है. वेनुगोपाल ने अदालत से कहा कि यह जानबूझ कर की गई गलती नहीं है इसलिए उन्हें माफ कर दिया जाए. वेनुगोपाल ने यह भी कहा कि नागेश्वरराव का 32 साल का रिकॉर्ड बेदाग रहा है..वेनुगोपाल ने अदालत से दया की भीख मांगी. इसपर रंजन गोगोई ने कहा कि सरकार को नागेश्वर की पैरवी क्यों करनी पड़ रही है.
लेकिन नागेश्वर राव का यह पहला मामला नहीं है जिसमें कोर्ट ने सजा सुनाई है. चुनिंदा मामलों में जस्टिस करनन का मामला हुआ था सबसे ज्यादा चर्चित.
जस्टिस करनन को दी गई थी छह महीने की सजा
सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में जस्टिस चिन्नास्वामी स्वामीनाथन करनन को कंटेप्ट ऑफ कोर्ट का दोषी मानते हुए छह महीने जेल की सजा सुनाई थी. वहीं इस मामले में अदालत ने मीडिया में उनसे रिलेटेड कुछ भी रिपोर्ट न छापने का भी आदेश दिया था. अदालत ने न्यायाधीश को सजा सुनाते हुए कहा था कि अदालत की नजर में कोई आम या खास नहीं बल्कि सभी एक समान होते हैं.
भारत के इतिहास में पहली बार था जब किसी हाई कोर्ट के जज को अवमानना का दोषी पाया गया और उसे जेल की सजा सुनाई गई. उस समय भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खेहर थे. तत्कालीन सीजेआई ने सजा सुनाते हुए कहा था कि अगर हम जस्टिस करनन को जेल नहीं भेजेंगे तो हम पर धब्बा लगेगा कि सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करने वालों को माफ कर दिया.
वैसे तो अदालत की अवमानना के कई चर्चित मामले हैं इसमें कई धाराओं के बीच सजा भी सुनाई गई है.
क्या होता है अदालत की अवमानना
पहला दीवानी अवमानना, जो अदालत की अवमानना अधिनियम 1971 के सेक्शन 2(बी) में आता है. इसमें वे मामले आते हैं, जिसमें कोई व्यक्ति जान-बूझकर अदालत के किसी आदेश और फैसले को नहीं मानता है. वहीं दूसरा मामला
आपराधिक अवमानना सेक्शन 2 (सी) के तहत आता है, जिसमें लिखे हुए शब्दों से, मौखिक या कुछ दिखाकर किया जा सकता है. ऐसे मामले में किसी अदालत के आदेश को नीचा दिखाने की कोशिश की गई हो या पूर्वग्रह से ग्रसित हो न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालने की कोशिश की गई हो. इसमें वह मामले भी आते हैं जिसमें न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करता है या फिर उसे रोकने की मंशा रखता है.
वहीं कंटेप्ट ऑफ कोर्ट की धारा-15 के तहत भी सुनवाई होती है और ऐसे मामलों में पहले एडवोकेट जनरल को भेजा जाता है और उनकी अनुशंसा के बाद मामला अदालत में जाता है. ऐसे मामलों में दोषी को अदालत छह महीने की कैद या फिर 2 हजार रुपये का जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान रखा गया है. लेकिन पूर्व सीबीआई निदेशक के मामले में सीजेआई ने एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया और अदालत की कार्रवाई चलने तक पीछे बैठने की सजा सुनाई है.