कौन हैं दीन दयाल उपाध्याय
1916 में यूपी के मथुरा में पैदा हुए दीन दयाल उपाध्याय 1937 में कानपुर के दीनदयाल सनातन धर्म कॉलेज में पढ़ने के दौरान आरएसएस के संपर्क में आ गए थे. वे प्रादेशिक सेवाओं के लिए चुन लिए गए थे, लेकिन आरएसएस में उनका मन इतना रम गया था कि उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ आरएसएस को फलने-फूलने में अहम योगदान दिया. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में जनसंघ की स्थापना की. लेकिन उसके दो साल बाद ही उनकी मृत्यु हो गई. उसके बाद 1953 से लेकर 1967 तक दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ का प्रमुख चेहरा बने रहे. 1980 में इसी जनसंघ का नाम बदलकर भाजपा कर दिया गया.
मोदी और नेहरू के बीच दीन दयाल उपाध्याय की बात
नेहरू और दीनदयाल उपाध्याय
‘एकात्म मानववाद’ क्या है
दीनदयाल उपाध्याय के इस विचार ने बीजेपी को चलने के लिए एक रास्ता बनाया. इस थ्योरी के मुताबिक साम्यवाद, पूंजीवाद और समाजवाद के अलावा भारत को एक ऐसे विकल्प की तलाश करनी चाहिए, जिसके मुताबिक इंसान को केंद्र में रखा जा सके. उसको एक इकाई मानकर उसके समग्र ज़रूरतों जैसे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, को ध्यान में रख कर उसका सतत विकास किया जा सके. उनके विचारों में हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना नहीं थी. वो धर्म को हमारे सांस्कृतिक विकास की तरह देखते थे, जिसके मुताबिक हमें अपनी समस्याओं को सामाजिक संस्कृति के सहारे हल करना चाहिए.
लेकिन बीजेपी ने क्या किया
दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर बीजेपी ने योजनाओं के नामकरण किए. स्टेशन (मुगलसराय) के नाम बदले. लेकिन बीजेपी पिछले पांच सालों में एक ही नाम के सहारे अपनी नैय्या पार कराने में लगी है. मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने से लेकर, पोस्टर, नारे हर जगह एक ही नाम दिखाई देता है. इससे यह प्रतीत होने लगा है कि दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्म मानववाद’ विचार पर चलने का दावा करने वाली बीजेपी उनके विचारों के भाव को आत्मसात करने की जगह उसके शाब्दिक अर्थ पर चल रही है.
हाल की घटना के देखे तो पिछले दिनों लोकसभा में प्रस्तुत हुआ अंतरिम बजट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. जहां सत्ता पक्ष के सांसदों ने बजट में होने वाली हर एक घोषणा के साथ ‘मोदी-मोदी’ कहकर मेज़ थपथपाई. यही नहीं भाषण के समय जब वित्तमंत्री पीयूष गोयल ने आयकर छूट की सीमा को बढ़ाकर पांच लाख रुपये करने के प्रस्ताव की घोषणा की तब सत्तरूढ़ सांसदों ने करीब एक मिनट तक ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगाए.
इसके अलावा पिछले महीने सपा-बसपा ने लोकसभा चुनाव के लिए एक साथ आने की घोषणा की. उसी के कुछ घंटे बाद रामलीला मैदान पर आयोजित भव्य रैली में मोदी ने मंच से कहा कि यह सभी राजनीतिक दल केवल एक व्यक्ति को हराने के लिए साथ आ रहे हैं. मोदी का स्वंय कहना कि ये लड़ाई एक पार्टी की नहीं, बल्कि एक व्यक्ति के खिलाफ है. ये बताता है कि मोदी खुद अपने आप को पार्टी के ऊपर तरजीह देते हैं.
सादगी की सीख
भारतीय राजनीति में कुछ एक उदाहरण ही हैं, जिन्होंने अपनी सादगी की वजह से भी सम्मान अर्जित किया है. इसमें लाल बहादुर शास्त्री के अलावा दीनदयाल उपाध्याय का नाम प्रमुख है. उपाध्याय सादगी पसंद इंसान थे. वे अपना सारा काम खुद करते थे. उनके बारे में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि उपाध्याय जी कभी संसद के सदस्य नहीं थे, लेकिन वे जनसंघ के सभी संसद सदस्यों के निर्माता थे. 11 फरवरी 1968 को दीनदयाल उपाध्याय की मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास रहस्यमयी मौत हो गई थी. भले उनकी मौत को 50 साल हो गए हैं, लेकिन उसको लेकर कयास अभी तक लगाए जा रहे हैं.