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Friday, 22 November, 2024
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2023 के विधानसभा चुनाव से पहले तेलुगु पार्टियों के लिए तेलंगाना का खम्मम क्षेत्र क्यों है अहम

आंध्र प्रदेश की सीमा से लगा खम्मम राज्य के दूसरे जिलों से काफी अलग है. सीमा के दोनों तरफ की पार्टियों को इस क्षेत्र में संभावनाएं दिखती हैं.

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हैदराबाद: तेलंगाना में 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले तेलुगु राजनीतिक दलों के सभी रास्ते खम्मम क्षेत्र की ओर जाते दिखाई दे रहे हैं.

उदाहरण के तौर पर, तेलंगाना में संगठन को दोबारा से सक्रिय बनाने के मकसद से तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने पिछले हफ्ते खम्मम में एक जनसभा की. राज्य के मुख्यमंत्री वाई.एस.जगन मोहन रेड्डी की बहन और नवगठित वाईएसआर तेलंगाना पार्टी की संस्थापक वाई.एस. शर्मिला ने इस महीने की शुरुआत में खम्मम में पार्टी ऑफिस की आधारशिला रखी. इस दौरान उन्होंने खम्मम जिले के पलेयर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की भी घोषणा की.

खुद को ‘पलेयर की बेटी’ कहते हुए शर्मिला ने बताया कि कैसे उनके दिवंगत पिता और राज्य के पूर्व सीएम वाईएस राजशेखर रेड्डी (वाईएसआर) ने खम्मम के विकास के लिए काम किया और 20,000 घरों का निर्माण किया और जलाशयों की मरम्मत करवाई.

हालांकि, खम्मम क्षेत्र का अन्य दलों के लिए भी उतना ही महत्व है.

पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के अनुसार, सत्तारूढ़ के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) के नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ‘मिशन खम्मम’ पर काम कर रही है. तेलंगाना में साख बचाए रहने के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस ने कभी अपना गढ़ रहे खम्मम को गंभीरता से लिया है.

राजनीतिक विश्लेषक नागेश्वर राव खम्मम क्षेत्र को क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के लिए एक ‘माइक्रोकोस्म’ (सूक्ष्म जगत) के रूप में देखते हैं, जो इस क्षेत्र में अपनी संभावित जीत की आस लगाए हुए यहां अपनी नजरें गड़ाए बैठे हैं.

तो, खम्मम के बारे में क्या खास है? आंध्र-तेलंगाना बॉर्डर पर स्थित, खम्मम की पड़ोसी राज्य के साथ कई सांस्कृतिक और सामाजिक समानताएं हैं. इस क्षेत्र की आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कम्मा समुदाय का है, जो वर्तमान आंध्र प्रदेश में सामाजिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है.

खम्मम, उन 10 जिलों में से एक था, जिन्हें 2016 में तेलंगाना ने अलग किया था, जिसके कारण इसके कुछ हिस्से अन्य जिलों में समाहित हो गए. इसी तरह, कुछ क्षेत्रों को अन्य जिलों से खम्मम में मिला दिया गया. हालांकि, इसने अपना राजनीतिक महत्व नहीं खोया है.


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‘आंध्र अगर आकाश है तो धरती है तेलंगाना’

दो जून 2014 को आधिकारिक तौर पर आंध्र प्रदेश से अलग होकर नया राज्य तेलंगाना अस्तित्व में आया. सरकार से संसाधनों और विकास में आवंटन के बारे में लगातार शिकायतों के कारण, अलग राज्य बनाने की मांग के लिए एक दशक पुराने आंदोलन की जीत हुई थी.

वाईएसआर, जिनकी 2009 में मृत्यु हो गई थी, कभी भी आंध्र प्रदेश के विभाजन के पक्ष में नहीं थे. 2014 से 2019 तक राज्य के सीएम रहे नायडू ने भी आंदोलन के समय तटस्थ रुख अपनाया था. वहीं, वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और टीडीपी जैसी पार्टियां खम्मम में किसी समर्थन की उम्मीद कैसे कर रही हैं?

राजनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि खम्मम कैसे तेलंगाना के अन्य जिलों की तरह नहीं है.

नागेश्वर राव बताते हैं, ‘खम्मम क्षेत्र पर आंध्र के प्रभाव को देखते हुए तेलंगाना के दूसरे जिलों के मुकाबले में यह क्षेत्र अलग राज्य के आंदोलन या तत्कालीन टीआरएस के मजबूत समर्थन में कभी नहीं था.’ इसका नतीजा रहा कि तेलंगाना को अलग राज्य बनाने के लिए चलाए गए आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले मुख्यमंत्री केसीआर के लिए भी बीआरएस/टीआरएस में समर्थन यहां सबसे ठंडा है.

नागेश्वर राव ने बताया, ‘2014 के विधानसभा चुनाव में जब टीआरएस ने 119 में से 63 सीटें जीतीं, केसीआर को लगा कि यह अंतर कम था और उन्होंने टीडीपी से तुम्माला नागेश्वर राव जैसे अन्य दलों के नेताओं को अपने खेमे में ला कर इस खाई को भर दिया. उन्होंने अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह का प्रबंधन किया.’

गौरतलब है कि बंटवारे के बाद शर्मिला के भाई और वाईएसआर के बेटे वाईएस जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआरसीपी ने 2014 के चुनाव में खम्मम में तीन विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर जीत हासिल की थी.

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक तेलकापल्ली रवि ने दिप्रिंट को बताया, ‘आंध्र प्रदेश के विभाजन से पहले खम्मम क्षेत्र में एक कहावत थी– खम्मम में, आकाश अगर आंध्र है, तो धरती तेलंगाना है. यह दर्शाता है कि राज्य के अन्य जिलों के उलट खम्मम में कितनी चीज़ों का मिश्रण है. इस क्षेत्र में आंध्र प्रदेश की सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव और विशेषताएं हैं.’

जैसा कि बताया गया है कि इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण ‘कम्मा’ समुदाय की आबादी भी है और चंद्रबाबू नायडू इस समुदाय से आते हैं. दर्शाता है कि उन्होंने खम्मम को चुनाव से पहले एक सार्वजनिक बैठक की मेजबानी के लिए मुख्य स्थान के रूप में क्यों चुना होगा.


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कांग्रेस और लेफ्ट का रह चुका है मजबूत गढ़

पहले के आंध्र प्रदेश के खम्मम में टीडीपी के आने से पहले इस क्षेत्र में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के बीच मुकाबला था.

हालांकि अब समीकरण बदल चुका है.

2018 के चुनाव में कांग्रेस ने चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी, सीपीआई और तेलंगाना जन समिति के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था. अविभाजित खम्मम जिले की 10 सीटों में टीडीपी ने दो सीट जीती थी. वहीं कांग्रेस ने खम्मम में 6 सीटें हासिल की थी जो कि तेलंगाना में उसके द्वारा जीती गई 19 सीटों में से एक बड़ा हिस्सा था.

हालांकि दर्जन भर कांग्रेस के विधायक दूसरी पार्टी में चले गए, खासकर सत्तारूढ़ बीआरएस में, जिस कारण पार्टी प्रमुख विपक्षी दल भी नहीं रह पाई. खम्मम में कांग्रेस के लिए मधिरा सीट काफी अहम है जिस पर पार्टी के वरिष्ठ नेता भट्टी विक्रमार्का का कब्जा है.

नागेश्वर राव ने कहा, ‘कांग्रेस समझती है कि लोग पहले उसके टिकट पर जीते हैं जो फिर दूसरी पार्टियों में चले गए, इसलिए इस क्षेत्र में अभी भी पार्टी के लिए समर्थन है.’ उन्होंने कहा, ‘जब लेफ्ट पार्टियों की बात होती है, हालांकि अब वे राज्य में सिमट चुके हैं और खुद के दम पर जीत नहीं सकते. ऐसे समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि वे किसके साथ गठबंधन करते हैं, जबकि हाल ही में मुनुगोडे उपचुनाव में उन्होंने सत्तारूढ़ बीआरएस के साथ हाथ मिलाया था.’

पिछले महीने सत्तारूढ़ बीआरएस ने नालगोंडा जिले के मुनुगोडे उपुचनाव में लेफ्ट के साथ गठबंधन किया था, यह जगह खम्मम के नजदीक ही है. पार्टी को सिर्फ 10 हजार मतों से ही जीत मिली. विशेषज्ञों का मानना है कि लेफ्ट पार्टी का इस क्षेत्र में करीब 15 हजार मतों का समर्थन है, इसलिए यह जीत मिल पाई.

नागेश्वर राव ने कहा, ‘अगर बीआरएस लेफ्ट पार्टियों के साथ गठबंधन करना चाहती है तो फिर वो राज्य में खम्मम से ही शुरू होगा. अगर खम्मम में यह सफल हुआ तब ये फिर दूसरे जिलों में होगा.’


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भाजपा की राजनीति

खम्मम के शीर्ष नेता तुम्माला नागेश्वर राव दो दशक तक विधायक रहे हैं. वह भी चंद्रबाबू नायडू के समुदाय से ही हैं.

खम्मम में 2016 में हुए उपचुनाव में उन्होंने बीआरएस के टिकट पर चुनाव जीता था लेकिन उसके बाद हुए चुनावों में वह हार गए. राजनीतिक हलकों में यह बात बड़े जोर से चल रही है कि 2023 चुनाव से पहले राव बीआरएस में अनिश्चित स्थिति के बीच टीडीपी में शामिल हो सकते हैं.

लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दूसरी पार्टियों से नाराज नेताओं को शामिल कराने को लेकर भी आशावान है.

नागेश्वर राव ने कहा, ‘भाजपा की राजनीति हमेशा दूसरों की कमजोरी के सहारे खुद को मजबूत करना होता है. खुद के दम पर राज्य में उनकी स्थिति मजबूत नहीं है. इसलिए बीआरएस एक बार फिर से लेफ्ट के साथ इस क्षेत्र में जाना चाहती है और अगर वे सीट की मांग करते हैं तो तुम्माला को बलिदान देना पड़ सकता है.’

भाजपा ने हालांकि 2020 और 2021 के दो अहम उपचुनाव जीते हैं और दोनों ही बार जीतने वाले उम्मीदवार दूसरी पार्टियों से आए हुए नेता थे, जिसमें एक तो सत्तारूढ़ पार्टी से ही था.

शर्मिला को मजबूती के लिए वाईएसआर के महत्व और उनके प्रभाव का सहारा लेना होगा.

(अनुवाद: फाल्गुनी शर्मा/कृष्ण मुरारी | संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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