अलविदा कहने जा रहे साल 2022 के बारे में कोई बात अगर पक्के तौर पर कही जा सकती है, तो यही कि जाते-जाते इसने दिवंगत कवि वीरेन डंगवाल द्वारा अपनी कविता में पूछे गए इस सवाल को और बड़ा बना दिया है कि ‘आखिर हमने कैसा समाज रच डाला है?’
इसका मतलब यह नहीं कि राजनीति में विडंबनाएं कम होने लगी हैं या वह अपनी पतनशील प्रवृत्तियों पर लगाम लगाने के संकेत देने लगी हैं. इसके उलट उसकी सदाबहार अनैतिकताएं व मूल्यहीनताएं अब हमारे सामाजिक-पारिवारिक ढांचों को अपने अंदर कहीं ज्यादा समाहित करने लगी हैं.
इस कदर कि पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिकाओं और लिव-इन पार्टनरों के ही नहीं, मां-बेटों और गुरु-शिष्यों के संबंध भी रिसने लगे हैं और मामले केवल श्रद्धा जैसी युवतियों को मारकर उनके शरीर के 35 टुकड़े करने तक ही सीमित नहीं रह गए हैं.
कुपुत्र
हालातों की भयावहता को समझने के लिए पिछले कुछ महीनों की घटनाओं पर नज़र घुमा लेना काफी होगा. इस साल सितंबर माह के अंत में उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के दो जवान बेटे अपनी मां के बुढ़ापे का सहारा बनने के बजाय उनके हत्यारे बन गए.
जिले के रामगांव थाना क्षेत्र के टेपरहा गांव की 55 वर्षीया चिम्पी देवी की चंद रुपयों के लिए हत्या कर दी गई और लाश को गोबर के ढ़ेर में छिपा दिया गया. बेटा बेखबर हो कर अपने काम में लग गया जैसे कुछ हुआ ही न हो! भाइयों के पूछने पर ढिठाई से गुनाह कुबूल भी कर लिया.
दूसरी वारदात में मुर्तिहा थाना क्षेत्र के अहिरनपुरवा गांव में 60 वर्षीय नंदरानी के बेटे निरंकार ने शराब और जुए की लत छोड़ने की नसीहत से चिढ़कर सूजे से चोंक-चोंककर अपनी मां को मार डाला.
दूसरी वारदात में मुर्तिहा थाना क्षेत्र के अहिरनपुरवा गांव में 60 वर्षीय नंदरानी के बेटे निरंकार ने शराब और जुए की लत छोड़ने की नसीहत से चिढ़कर सूजे से चोंक-चोंककर अपनी मां को मार डाला. इससे पहले बलरामपुर जिले के राजपुर थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत पहाड़खडूवा निवासी एक बेटे ने भी रुपए न देने पर अपनी मां की कुल्हाड़ी से हत्या कर दी, जबकि इसी जिले के देहात थाना क्षेत्र के रघवापुर गोसाईंपुरवा की प्रेमा देवी को अपने बेटे को ‘निरबंसिया’ कहने की कीमत उसके हाथों जान गंवाकर चुकानी पड़ी. बेटे ने मां को तब तक पीटा जब तक उनकी मौत नहीं हो गई.
लखनऊ में पंचम खेड़ा की यमुनानगर कॉलोनी के एक किशोर ने पिता की लाइसेंसी बंदूक से अपनी मां को भून डाला, लाश घर में ही छिपा दी और दोस्तों के साथ आउटिंग व पार्टी में मशगूल हो गया. दो दिन बाद जब पिता तक यह खबर पहुंची तो ‘एक अंकल’ द्वारा हत्या की झूठी कहानी गढ़ दी. इससे ‘कलयुगी’ पूत्रों के कुपुत्र बनने का यह सिलसिला किसी एक जिले, अंचल या प्रदेश तक सीमित नहीं है.
गत सितंबर की दस तारीख को हरियाणा के जींद जिले के उझाना गांव में संजीव ऊर्फ काला नाम के बेटे ने अपनी वयोवृद्ध मां शांति देवी से झगड़ने के बाद चारपाई के पाये से दिनदहाड़े उन्हें उसी चारपाई पर ही मौत की नींद सुला दिया. बिहार के सीतामढ़ी जिले की मां मीना देवी ने अपने बेटे को खून-पसीने की खाने की नसीहत दी तो उसने उसे चाकू से गोद डाला. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के थाना ढली स्थित जुंगा के ठुंड गांव में पंडिताई करने वाले 36 साल के एक शख्स ने मामूली पारिवारिक विवाद में दिनदहाड़े अपनी मां को तलवार से काट दिया.
गौर कीजिए, पितृसत्ता की मारी यह माताएं इन्ही बेटों के कंधों पर इस दुनिया से जाने में अपने जीवन की सार्थकता समझती आईं और उनकी चाह में बेटियों से जन्म लेने का अधिकार तक छीनती रहीं. चूंकि इन बेटों के मातृहंता बनने का सबसे प्रत्यक्ष कारण उनकी नशे की लत दिखाई पड़ती है, इसलिए उनके किये-कराए का ठीकरा उसी पर फोड़ना बहुत आसान है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि ये बेटे नशे के इतने शिकार क्यूं हुए कि उन्हें मां की हत्या भी बहुत छोटा गुनाह लगने लगा? इसका जवाब समाज व परिवारों की पतनशील प्रवृत्तियों द्वारा पोषित संस्कारहीनता की ओर ही संकेत करता है, जो उनके जीवन को लगातार उद्देश्य विहिन, निरर्थक और निस्सार बनाती रही है.
यह भी पढ़ेंः अटल की राह तो कब की छोड़ आई बीजेपी! अब यह वह भाजपा नहीं रही जो पहले थी
पाठशाला, गुरु और शिष्य
अफसोस कि इस पहली पाठशाला के बाद बच्चे जिन दूसरी पाठशालाओं में जाते हैं, 2022 में वहां शिक्षक या गुरुजन भी उनके प्रति अपना दायित्व निभाते नहीं नज़र आते हैं. हाल में ही देश की राजधानी दिल्ली के मॉडल बस्ती के एक प्राथमिक स्कूल में एक गुस्सैल शिक्षिका ने पांचवी क्लास की छात्रा को कैंची से मारा, फिर पहली मंजिल से नीचे फेंक दिया. इससे पहले उसने छात्रा पर पानी की बोतलें फेंकी और जबरन उसके बाल काटने की कोशिश की.
कर्नाटक के गडग जिले में हुगली गांव के ‘आदर्श’ प्राथमिक विद्यालय का एक शिक्षक तो इस शिक्षिका से भी आगे निकल गया. उसने चौथी कक्षा के भरत नामक छात्र को पीटकर पहली मंजिल की बालकनी से धक्का दे दिया, जिससे उसकी मौत हो गई. इस छात्र की मां भी उसी स्कूल में पढ़ाती हैं और कहते हैं कि शिक्षक ने उससे अनबन का बदला उसके बेटे को मारकर लिया.
सोचिए ज़रा, यह हालत तब है, जब गुरु और ज्ञान का जितना महिमा मंडन हमारे देश में किया जाता है, किसी और देश में नहीं किया जाता. गुरु के बिना ज्ञानप्राप्ति को हमेशा असंभव बताया जाता है, लेकिन अब वे अपने शिष्यों को ज्ञान देने के बजाय उनकी जानें लेने लगे हैं! शायद इसी स्थिति के लिए संत कबीर कह गये हैं कि
‘जाका गुरु है आन्हरा, चेला खरा निरंध. अन्धे को अन्धा मिला, दोऊ कूप पड़ंत’.
विडंबना यह भी कि कबीर के समय शिष्य खुद अपने गुरु चुना करते थे, लेकिन अब उनके लिए शिक्षक शिक्षा व्यवस्था चुनती है और दावा करती है कि उसने निर्धारित चयन प्रक्रिया से गुज़र कर आये ऐसे शिक्षक नियुक्त किए हैं, जो अध्यापन कुशल तो हैं ही, यह भी जानते हैं कि उन्हें छात्रों से किस तरह पेश आना चाहिए, लेकिन ये घटनाएं बताती हैं कि यह दावा कितना खोखला है और किस तरह अनेक शिक्षकों का न अपनी कुंठाओं पर काबू है, न ही गुस्से पर.
राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा के एक स्कूल के 12 साल के एक छात्र की उसके शिक्षक की पिटाई से हुई मौत का मामला भी लोग अभी नहीं ही भूले होंगे. उस छात्र का कुसूर इतना भर था कि उसने होमवर्क नहीं किया और परीक्षा में उसके कम अंक आए थे.
इससे पहले उत्तर प्रदेश के औरेया जिले में दसवीं कक्षा का ‘पढ़ाई में मन न लगाने वाला’ एक छात्र भी शिक्षक की पिटाई से मारा गया था, जबकि राजस्थान में एक शिक्षक ने एक दलित छात्र की कथित तौर पर मटके से पानी लेने के ‘अपराध’ में बेरहमी से जान ले ली थी.
यह भी पढ़ेंः क्या आप अयोध्या की गंगा को जानते हैं, जिसे फिर से जीवित करने की कोशिश हो रही
अंधविश्वास
ऐसे शिक्षकों के रहते देश में बेहतर सामाजिक चेतना की उम्मीद कैसे की जा सकती है? ताज्जुब कि बात है कि कई क्षेत्रों में वह इक्कीसवीं सदी में भी सोलहवीं सदी से आगे नहीं बढ़ पा रही! बढ़ पाती तो 2022 को देश के सर्वाधिक शिक्षित राज्य केरल में नरबलियों का साक्षी नहीं बनना पड़ता, क्योंकि तब केरल के पथानमथिट्टा जिले से भगवल सिंह और उसकी पत्नी लैला को जल्द अमीर बनने का लालच इतना नही सताता कि वे तंत्र-मंत्र के चक्कर में फंसकर देवी को खुश करने के वास्ते दो महिलाओं की बलि देकर उनका मांस खायें! पुलिस के अनुसार, लैला ने बलि के लिए 49 साल की रोजलीन का सिर काट डाला था, जबकि तांत्रिक शफी ने 52 साल की पद्मा की चाकू मारकर हत्या कर दी थी. इसके बाद, भगवल सिंह ने क्रूरतापूर्वक रोजलीन के स्तन काट दिए थे और सभी ने मिलकर दोनों शवों को टुकड़ों में काटकर गड्ढों में दफना दिया था.
2022 में हुई बलि की यह इकलौती घटना होती तो भी गनीमत होती, लेकिन इसी अक्टूबर महीने में दक्षिणी दिल्ली की लोधी काॅलोनी में छह साल के बच्चे की भी बलि चढ़ा दी गई थी. बलि चढ़ाने वाले ने दावा किया था कि भगवान ने सपने में उसे ऐसा करने का आदेश दिया था. दिल्ली पुलिस की मानें तो इसके बाद नवंबर में उसने गढी गांव से अपहृत दो माह के एक बच्चे की बलि का प्रयास विफल कर दिया था जो किसी तरह अपने मृत पिता को जिंदा करने के लिए किया जा रहा था.
21वीं सदी के 22वें साल में ऐसी सोच! खयाल भर से ही रूह कांप जाती है…क्या हमारे भविष्य को वैज्ञानिक चेतना से विपन्न ऐसी सोच वालों के हमारे बीच होने से बड़ा कोई खतरा हो सकता है?
(कृष्ण प्रताप सिंह फैज़ाबाद स्थित जनमोर्चा अखबार के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
यह भी पढ़ेंः हिंदी वाले क्यों चाहते हैं कि उनके बच्चे ‘हाय-बाय’ तो बोलें, मगर उनका चरण स्पर्श करना न भूलें