नई दिल्ली: संसद के साथ-साथ उर्दू अखबारों के पहले पन्नों पर भी इस हफ्ते चीन सुर्खियों में बना रहा और संपादकीय में तर्क दिया गया कि हालांकि मोदी सरकार और विपक्ष दोनों के लिए राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होना चाहिए, मगर चीन वाले मुद्दे पर मोदी सरकार के चुप्पी साधने पर जोर दिया जाना इस समस्या से निपटने का सबसे बेहतर तरीका नहीं हो सकता है. संपादकीयों में कहा गया है कि अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों द्वारा अपनी तरफ से चिंता व्यक्त किए जाने के बावजूद सीमाओं पर क्या कुछ हो रहा है, इस बात पर सरकार की लगातार बनी हुई चुप्पी ने भारत के पड़ोसियों का हौसला बढ़ाया है.
पहले पन्ने पर जगह बनाने वाली अन्य ख़बरों में चीन में कोविड की चिंताजनक स्थिति और इसके नतीजतन भारत में बरती जाने वाली सतर्कता, कर्नाटक में हलाल मीट को लेकर चल रही बहस और न्यायिक नियुक्तियों को लेकर न्यायपालिका के साथ सरकार की खींचतान शामिल थीं.
दिप्रिंट उर्दू प्रेस साप्ताहिक राउंड-अप में बता रहा है कि कौन-कौन सी खबरें सुर्खियों में रहीं.
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सीमा पर चीन की हरकत
17 दिसंबर को अपने संपादकीय में ‘इंकलाब’ ने तर्क दिया कि ऐसा कुछ तो है जिसे छिपाने की कोशिश की जा रही है. भारत-चीन सीमा पर ऐसा कुछ तो चल रहा होगा जिसने संयुक्त राज्य अमेरिका को यह कहने के लिए मजबूर किया कि वह कड़ी निगरानी रख रहा है, या जिसने जर्मन राजदूत अपनी चिंता व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया.
संपादकीय में कहा गया है कि इसी वजह से भारतीय प्रधानमंत्री की ‘चुप्पी’ हैरान करने वाली है और कुछ छुपाने की कोशिश की जा रही है. यह संपादकीय अरुणाचल प्रदेश के तवांग में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प के एक हफ्ते बाद प्रकाशित हुआ था.
18 दिसंबर को ‘सियासत’ ने अपने एक संपादकीय में कहा कि चीन के साथ सीमा पर बने हालात को लेकर राजनीति हो रही है. इसमें कहा गया था कि सरकार को इस सारे हालात के बारे में विपक्षी दलों और अन्य संबंधित लोगों को यकीन में लेने की जरूरत है.
यह कहते हुए कि इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है कि चीन सीमाओं पर तनाव पैदा करने की कोशिश कर रहा है, इस संपादकीय में कहा गया है कि इस मुद्दे से निपटने के दौरान सरकार और विपक्ष दोनों को राष्ट्रीय हित के प्रति सचेत रहने की जरूरत है.
‘बातचीत बंद नहीं होनी चाहिए’ वाले शीर्षक के साथ उसी दिन छपे एक अन्य संपादकीय में ‘इंकलाब’ ने कहा कि चीन अधिक से अधिक दुस्साहसी हो गया है और भारत सरकार की चुप्पी का फायदा उठा रहा है. इसे रोकने के लिए, यह अहम हो गया है कि सीमा पर के हालात को छिपाया न जाए और जनता को बताया जाए कि वहां हो क्या हो रहा है.
फिर 20 दिसंबर को ‘इंकलाब’ ने लिखा कि सीमा के हालात पर चर्चा की अनुमति नहीं दिए जाने के बाद कांग्रेस ने राज्यसभा से वॉक आउट कर दिया.
संपादकीय में यह भी कहा गया था कि दिल्ली स्थित थिंकटैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) – जहां विदेश मंत्री एस जयशंकर के बेटे ध्रुव काम करते हैं – द्वारा कथित रूप से चीनी दूतावास से धन प्राप्त करने का मुद्दा भी सदन में उठाया गया था.
‘रोजनामा राष्ट्रीय सहारा’ ने 22 दिसंबर को अपने पहले पन्ने की प्रमुख खबर के रूप में कांग्रेस संसदीय दल को सोनिया गांधी द्वारा दिए गए संबोधन के बारे में खबर छापी. सोनिया ने अपने इस भाषण में कहा था कि सीमा के हालात पर चर्चा से इनकार करना देश के लोकतंत्र को कमजोर करने जैसा है.
इसी खबर के साथ संसद में अपना विरोध जता रहे कांग्रेस नेताओं की एक तस्वीर भी छापी गई थी.
फिर, 23 दिसंबर को, ‘सहारा’ ने अपने पाठकों को बताया कि विपक्ष चीन के मुद्दे पर चर्चा पर जोर दे रहा था और संसदीय कार्यवाही बाधित रही.
चीन में फैलता कोविड, भारत में ‘रेड अलर्ट’
21 दिसंबर को, सियासत के पहले पन्ने की प्रमुख खबर ने चीन में कोविड के मामलों में हुई जबरदस्त बढ़ोत्तरी की सूचना दी. इस खबर में इस बात पर भी रौशनी डाली गई कि विशेषज्ञ वहां ‘लाखों लोगों’ की मौत की भविष्यवाणी कर रहे हैं.
23 दिसंबर को, तीनों अखबारों- इंकलाब, सियासत और सहारा ने – इस बात की खबर दी कि चीन में कोविड के मामलों में आए उछाल के बारे में चिंतित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की.
उस दिन की अपनी प्रमुख खबर में ‘सहारा’ ने लिखा था कि एक नए कोविड वैरिएंट बीएफ़. 7 की वजह से पूरे देश में अलर्ट जारी हुआ है. इस खबर में केंद्र सरकार के हवाले से यह भी कहा गया था कि एक तरफ जहां देश ‘पूरी तरह से तैयार’ है, वहीं आम जनता को भी उचित सावधानी बरतनी चाहिए.
इसी अखबार में एक अलग खबर में कहा गया था कि देश भर की राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करने के लिए बैठकें कर रही हैं कि वे तैयार रहें.
इस बारे में अपनी खबर में ‘सियासत’ ने कहा कि केंद्र सरकार ने लोगों को सतर्क रहने की सलाह दी है और विभिन्न मुद्दों पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में एक विशेष बैठक भी हुई है.
इसी अख़बार की एक अन्य खबर में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का यह आरोप भी शामिल किया गया था कि उनकी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को रोकने के लिए कोविड का एक बहाने के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.
वह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया के उस पत्र का जवाब दे रहे थे जिसमें कहा गया था कि ‘यात्रा’ के दौरान अनिवार्य रूप से मास्क पहनने और अन्य कोविड प्रोटोकॉल का पालन किया जाना चाहिए.
‘भारत जोड़ो यात्रा’
21 दिसंबर को, ‘सहारा’ के संपादकीय में राहुल गांधी के हवाले से लिखा गया था कि यह यात्रा ‘भाजपा के नफरत के बाजार में प्यार की दुकान खोल रही है.’
संपादकीय में कहा गया है कि ‘तथ्य यह है कि यह लड़ाई विचारधारा की लड़ाई है’, साथ ही इसमें यह भी कहा गया है कि यह एक ऐसी विचारधारा के खिलाफ लड़ाई है जो पूरे भारत में ‘नफरत और भद्देपन’ को बढ़ावा दे रही है.
इस में आगे कहा गया है कि सदियों से भारतीय लोग धर्म के नाम पर एक-दूसरे के खिलाफ नफरत रही है. इसमें कहा गया है कि इस नफरत से पैदा हुई हिंसा की आग देश की शांति और स्थिरता को नष्ट करने पर आमदा है.
इसने टिपण्णी की कि ‘वैचारिक मतभेदों को राष्ट्र के प्रति शत्रुता घोषित कर दिया गया है. नफरत के इस माहौल ने भाई को भाई के खिलाफ कर दिया है. हर भारतीय एक दूसरे को शक की निगाह से देख रहा है. अल्पसंख्यक, महिलाएं और दलित भी असुरक्षित हैं. लोकतांत्रिक मूल्यों को पैरों तले कुचला जा रहा है.‘
अपने 23 दिसंबर के संपादकीय में, ‘सहारा’ ने लिखा कि फिलहाल हरियाणा में चल रही ‘भारत जोड़ो यात्रा’ अपनी 85 प्रतिशत यात्रा पूरी कर चुकी है और अगले 9 दिनों में दिल्ली पहुंच जाएगी.
संपादकीय में कहा गया है कि इस यात्रा का केवल 570 किलोमीटर का हिस्सा बचा है, साथ ही इसमें कहा गया था कि इस यात्रा ने अपने पुरे भ्रमण के दौरान प्रेम, भाईचारे और सांप्रदायिक सद्भाव फ़ैलाने का काम किया है जिसकी देश को सख्त जरूरत है.
संपादकीय में कहा गया है कि यह एक ‘फैलते हुए वायरस के खिलाफ टीके’ के रूप में काम कर रही है और लोगों को एक दूसरे से जोड़ रही है, लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार और भाजपा को यह पसंद नहीं है और इसलिए कोविड के बहाने इस यात्रा को बंद करने की सलाह और निर्देश दिए जा रहे हैं.
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अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना
19 दिसंबर को ‘इंकलाब’ ने भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी के उस बयान पर खबर छापी कि ‘सच्चर कमेटी’ के नाम पर सरकार के प्रति मुसलमानों के भरोसे को डर और भ्रम में बदलने की कोशिश की गई थी. नकवी उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग द्वारा आयोजित ‘अल्पसंख्यक अधिकार दिवस’ वाले कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.
2005 में तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (सप्रग) सरकार द्वारा स्थापित, सच्चर कमेटी ने यह रिपोर्ट दी थी कि मुसलमान भारतीय समाज के आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक रूप से सबसे पिछड़े वर्गों में से एक हैं.
20 दिसंबर को उर्दू अखबारों ने हलाल मीट पर लगाए जा रहे प्रतिबंध को लेकर कर्नाटक विधानसभा में हुए हंगामे की खबर को प्रमुखता से छापा. बोम्मई सरकार के प्रस्तावित हलाल मांस विरोधी कानून को लेकर कर्नाटक के चल रहे शीतकालीन सत्र के दौरान सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष के सदस्य आमने-सामने भिड़ गए.
सरकार बनाम न्यायपालिका
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) पर बहस के फिर से जिन्दा हो जाने ने भी पहले पन्ने पर जगह बनाई.
19 दिसंबर को, ‘इंकलाब’ ने वरिष्ठ वकील और निर्दलीय राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल द्वारा इस विषय पर दिया गया एक बयान छापा कि सरकार न्यायपालिका को ‘अपने हाथ में लेने’ की कोशिश कर रही है और इसका विरोध करना महत्वपूर्ण है. अखबार के पहले पन्ने पर छपी इस खबरे में सिब्बल के हवाले से यह भी कहा गया है कि अदालतें लोकतंत्र का आखिरी किला हैं और अगर वे भी ध्वस्त हो गईं तो फिर कोई उम्मीद नहीं बचेगी.
(संपादनः हिना फ़ातिमा । अनुवादः रामलाल खन्ना)
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