नई दिल्ली: भारत और चीन में जारी तनाव के बीच तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने बुधवार को दोनों देशों के बीच उतार-चढ़ाव पर रोशनी डाली.
बुधवार को गुरुग्राम में एक कार्यक्रम में बोलते हुए, तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने कहा, ‘भारत और चीन दो सबसे अधिक आबादी वाले देश हैं. हाल के दशकों में कई उतार-चढ़ाव आए हैं. भारत एक लोकतंत्र है और सभी धर्मों का सम्मान करता है. भारत की परंपरा बहुत अच्छी है. इसलिए युवा भारतीयों को भारत की हजार साल पुरानी धर्मनिरपेक्ष परंपरा को बनाए रखना चाहिए.’
तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने करुणा और अहिंसा की भारत की अवधारणा का भी जिक्र किया और सभी से इसे संरक्षित करने का आग्रह किया. उन्होंने आगे कहा, ‘यह दुनिया अंततः पूरे दिल से निर्भर करती है. समुदायों और धर्मों के बीच कोई भेद नहीं है. हम एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं और एक साथ प्रार्थना करते हैं. भारत की ‘करुणा’ और ‘अहिंसा’ की अवधारणा एक महत्वपूर्ण चीज है और हमें इसे बनाए रखना चाहिए.’
दलाई लामा ने जोर देकर कहा कि आजकल मानव मस्तिष्क का इस्तेमाल पड़ोसियों को नष्ट करने के लिए हथियार के रूप में किया जा रहा है. उन्होंने अपने भाषण में कहा, ‘तो, अब हम दुनिया को देखते हैं. आक्रामकता, अत्याचार, हिंसा, इतने सारे लोग मारे गए हैं, परमाणु हथियार बनाने के इच्छुक हैं. पिछली कुछ शताब्दियों में, बहुत अधिक हिंसा देखी गई है. अब, मानव मस्तिष्क का उपयोग हथियारों के लिए किया जाता है, कैसे मारना, और अपने पड़ोसी को कैसे नष्ट करना है. यह पूरी तरह से गलत है.’
बिना हथियार के शांतिपूर्ण दुनिया बनाने की बात पर बल देते हुए नेता ने कहा कि शांति और हिंसा हम पर निर्भर है. उन्होंने कहा, ‘हम सभी एक ही इंसान हैं. सभी को बिना किसी हिंसा के एक साथ रहना होगा. जब हम विश्व शांति के लिए प्रार्थना करते हैं, तो शांति आसमान से नहीं आएगी, हिंसा आसमान से नहीं आती, सब हम पर निर्भर है. हमारे मस्तिष्क में, हमारे पास यह राष्ट्र है, वह राष्ट्र है, यह धर्म है, वह धर्म है. जो लड़ाई का कारण बनते हैं. वह पुराना हो चुके हैं. मतभेदों को सुलझाना चाहिए, यह ध्यान में रखते हुए कि सभी हमारे भाई-बहन हैं, और बिना हथियार के दुनिया का निर्माण करना चाहिए.’
प्राचीन भारतीय आचार्यों को अपना प्रेरणा स्रोत बताते हुए दलाई लामा ने भारतीय परंपरा को ‘बेहद समृद्ध’ और ‘उपयोगी’ बताया और युवा पीढ़ी से इसे संरक्षित करने को कहा.
दलाई लामा ने आगे कहा, ‘भारतीय परंपरा अत्यंत समृद्ध है, खासतौर से मन के बारे में. आधुनिक भारत को प्राचीन भारतीय परंपरा पर अधिक ध्यान देना चाहिए. हमें अपने मन के ज्ञान की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए.’ उन्होंने कहा, ‘प्राचीन भारतीय मास्टर्स मेरे प्रेरणा स्रोत हैं. ये पूरी तरह से तर्क और सोच पर आधारित है. मैं उस परंपरा का छात्र हूं.’
इससे पहले सोमवार को कहा कि भारत एक आदर्श स्थान है और उनका स्थायी निवास है.
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा हवाईअड्डे पर तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने तवांग झड़प पर एक सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘अब चीजें सुधर रही हैं, मुझे लगता है कि यूरोप और अफ्रीका और एशिया में भी. अब चीन भी लचीला हो गया है. ठीक है. लेकिन चीन लौटने का कोई मतलब नहीं है. मुझे भारत पसंद है, सबसे अच्छी जगह और कांगड़ा, पंडित नेहरू की पसंद रहा है. यह स्थान मेरा स्थायी निवास है. यह बहुत अच्छा है. शुक्रिया.
यह बयान 9 दिसंबर की उस झड़प के बाद आया है, जहां पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के जवानों ने तवांग सेक्टर में एलएसी पर आगे बढ़े थे, जिसका भारतीय सैनिकों ने दृढ़ता और दृढ़ तरीके से विरोध किया था. इस आमने-सामने की लड़ाई में दोनों पक्षों के कुछ कर्मियों को मामूली चोटें आईं थी.
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