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Friday, 22 November, 2024
होमदेशभूकंप, बाढ़, आग- बचाव में ‘एक्ट ऑफ गॉड’ के इस्तेमाल का क्या है मतलब और कब इसे खारिज कर देती हैं अदालतें

भूकंप, बाढ़, आग- बचाव में ‘एक्ट ऑफ गॉड’ के इस्तेमाल का क्या है मतलब और कब इसे खारिज कर देती हैं अदालतें

एक्ट ऑफ गॉड के आधार पर बचाव का वास्तव में क्या मतलब है? इसे अदालतें कब बचाव की दलील के तौर पर स्वीकार करतीं और कब इसे खारिज कर दिया जाता है? दिप्रिंट इसी पर जानकारी दे रहा है.

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नई दिल्ली: कुछ साल पहले आई फिल्म ‘ओएमजी-ओह माई गॉड’ में परेश रावल के निभाए किरदार कांजी लालजी मेहता की दुकान एक भूकंप में तबाह हो जाती है, लेकिन उन्हें बीमा से वंचित कर दिया जाता है क्योंकि उनकी पॉलिसी ‘एक्ट ऑफ गॉड’ के कारण नुकसान को कवर नहीं करती है. इससे हैरान-परेशान होकर भगवान पर ही मुकदमा ठोंक देते हैं.

तभी से ‘एक्ट ऑफ गॉड’ सार्वजनिक चर्चा में बना हुआ है. 2020 में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कहा था कि अर्थव्यवस्था कोविड-19 महामारी के कारण एक्ट-ऑफ-गॉड जैसी स्थिति का सामना कर रही है.

बैंक से जुड़े एक हालिया अदालती फैसले से एक्ट ऑफ गॉड फिर सुर्खियों में हैं. दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट ने इस महीने के शुरू में एक मामले में बैंक ऑफ बड़ौदा के इस तर्क को खारिज कर दिया कि तेज-गति से चली हवाएं ‘एक्ट ऑफ गॉड’ थीं और इसकी वजह से मई 2011 में उसका एक साइनबोर्ड गिरा और एक आदमी गंभीर रूप से घायल हो गया. बैंक का तर्क खारिज करने के साथ ही अदालत ने बैंक को पीड़ित परिवार को 18 लाख रुपये देने का आदेश दिया.

एक्ट ऑफ गॉड के आधार पर बचाव का वास्तव में क्या मतलब है? इसे अदालतें कब बचाव की दलील के तौर पर स्वीकार करतीं और कब इसे खारिज कर दिया जाता है? दिप्रिंट इसी पर जानकारी दे रहा है.

एक्ट ऑफ गॉड का मतलब क्या है

एक्ट ऑफ गॉड या लैटिन भाषा में विस मेजर, को ‘भूकंप, बाढ़, या बवंडर जैसी प्राकृतिक स्थितियों के कारण भीषण और इंसान के काबू से बाहर वाली घटनाओं के तौर पर परिभाषित किया गया है. आमतौर पर इस कानून के तहत बचाव का सहारा किसी भी पक्ष की तरफ से ऐसे मामले में लिया जाता है जो प्राकृतिक आपदा का हवाला देते हुए किसी घटना के लिए उत्तरदायित्व से बचना चाहता है. बचाव की स्थिति इस नागरिक कानून के सिद्धांत से उपजी कि किसी व्यक्ति को तब जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता जब कोई घटना एक्ट ऑफ गॉड के दायरे में आती हो और संबंधित व्यक्ति की तरफ से पूरी सावधानी बरती गई हो.

हालांकि, अदालतों ने स्पष्ट किया है कि ऐसी किसी घटना में एक्ट ऑफ गॉड के आधार पर बचाव का सहारा नहीं मिल सकता जो अनुमानित है या जिनके समय-समय पर होने की संभावना है. ऐसे में बचाव का सहारा लेने के लिए न केवल यह साबित करना जरूरी है कि प्राकृतिक घटना असाधारण थी, बल्कि यह भी साबित करना होगा कि इसका सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता था. दूसरे शब्दों में, बचाव का सहारा लेने के लिए बारिश, तेज हवाएं, बर्फबारी या भूस्खलन जैसी प्राकृतिक घटनाएं इतनी अप्रत्याशित होनी चाहिए कि ‘कोई भी मानवीय दूरदर्शिता या कौशल इस घटना का सही अनुमान न लगा सकता हो.’

इसलिए, दिल्ली हाई कोर्ट ने जब एक व्यक्ति के परिवार को 18 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया, जिसकी मृत्यु बैंक ऑफ बड़ौदा का साइनबोर्ड गिरने से लगी चोटों के कारण हुई थी, तो यह भी स्पष्ट किया कि एक्ट ऑफ गॉड के आधार पर बचाव की दलील उसी स्थिति में स्वीकार की जा सकती है ‘जहां घटना अभूतपूर्व और अप्रत्याशित है.’

बीमा मामलों में, एक्ट ऑफ गॉड की परिभाषा बीमाकर्ता के मुताबिक अलग-अलग होती है. कई बीमाकर्ता ईश्वरीय कृत्यों और प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाले नुकसान को कवर करते हैं. हालांकि, बीमा पॉलिसी में आमतौर पर यह उल्लेख होता है कि इसमें किस प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं को कवर किया जाएगा.

इसके अलावा, बैंकों से सुरक्षित जमा लॉकर किराए पर लेने के मामले में भारतीय रिजर्व बैंक के नए दिशानिर्देशों के मुताबिक, यदि लॉकर में रखा सामान प्राकृतिक आपदाओं या बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं के कारण गुम हो जाती है या क्षतिग्रस्त हो जाता है तो बैंक इसमें ग्राहक को होने वाले नुकसान के लिए उत्तरदायी नहीं होगा. हालांकि, बैंकों को ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से अपनी सुविधाओं को सुरक्षित करने के लिए उचित सावधानी बरतने की आवश्यकता है.


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‘इन घटनाओं को टाला जा सकता था’

अदालतों ने स्पष्ट तौर पर इस बात पर जोर दिया है कि बतौर बचाव एक्ट ऑफ गॉड का इस्तेमाल करने के इच्छुक पक्ष की तरफ से उचित और सुरक्षात्मक कार्रवाई किए जाने की आवश्यकता है.

इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि एक कंपनी के गोदाम में लगी आग ‘एक्ट ऑफ गॉड’ था और इसके आधार पर शराब निर्माण में लगी कंपनी को उत्पाद शुल्क देनदारी से छूट दी गई थी.

शीर्ष कोर्ट ने समझाया, ‘जब किसी हिंसक तरीके या अचानक ही किसी बाहरी प्राकृतिक ताकत का हाथ नहीं था तो आग लगने की इस घटना को कानूनी भाषा में एक्ट ऑफ गॉड नहीं माना जा सकता.’

कोर्ट ने यह भी कहा कि उचित तरीके से बिजली के अग्निरोधक उपकरणों के साथ-साथ अग्निशमन उपाय करके इस ‘घटना को टाला जा सकता था या नुकसान कम से कम किया जा सकता था.’

2016 में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी फैसला सुनाया था कि अगर नुकसान दो-तीन कारणों से हुआ हो—एक्ट ऑफ गॉड के साथ-साथ किसी पक्ष की लापरवाही भी शामिल हो—तो नुकसान केवल उस चोट की भरपाई के लिए दिया जा सकता है जिसे उत्तरदायी पक्ष की लापरवाही का नतीजा माना जा सकता हो.

2001 गुजरात भूकंप—जब कोर्ट ने एक्ट ऑफ गॉड के आधार पर बचाव को खारिज किया

इसलिए, अदालतें सभी परिस्थितियों, यहां तक प्राकृतिक आपदा की स्थिति में भी एक्ट ऑफ गॉड के तहत बचाव की दलील को स्वीकार नहीं करती हैं.

उदाहरण के तौर पर, दिसंबर 2010 में गुजरात हाई कोर्ट ने 2001 के भूकंप के दौरान अहमदाबाद स्कूल परिसर के अंदर मारे गए 32 छात्रों के परिवारों को 3.75 लाख रुपये का मुआवजा दिया.

यह फैसला 26 जनवरी 2001 को भूकंप के बाद श्री स्वामीनारायण स्कूल की चार मंजिला इमारत ढहने के मामले में सुनाया गया जहां 32 बच्चों की मलबे में दबकर मौत हो गई थी. 26 बच्चों के माता-पिता और रिश्तेदारों ने स्कूल प्रशासन से मुआवजे की मांग की है. उन्होंने तर्क दिया था कि स्कूल प्रशासन और निर्माण कंपनी ने ढाई माह की अवधि में 25 कमरों, कार्यालय और विशाल पानी की टंकी के वाले चार मंजिला स्कूल भवन का निर्माण किया था. उन्होंने स्कूल भवन के निर्माण में कई कमियां गिनाई थीं.

स्कूल प्रशासन और निर्माण कंपनी ने अपने बचाव में एक्ट ऑफ गॉड का हवाला दिया था. हालांकि, कोर्ट ने उनकी दलीलों को खारिज कर दिया और कहा, ‘इस तथ्य में कोई संदेह नहीं है कि भूकंप एक प्राकृतिक आपदा या एक्ट ऑफ गॉड है जो किसी भी इंसान के नियंत्रण से परे है. साथ ही इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अपीलकर्ताओं को उचित तरीके से स्कूल भवन का निर्माण कराना चाहिए था. इस बात को ध्यान में रखना चाहिए था कि नींव का ढांचा पर्याप्त मजबूत हो, मिट्टी की प्रकृति निर्माण के अनुकूल हो और निर्माण कार्य में अच्छी गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग किया जाए.

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब स्कूल प्रशासन ने उचित और पर्याप्त इंतजाम नहीं किए थे तो वे एक्ट ऑफ गॉड का सहारा लेकर अपने दायित्व से बच नहीं सकते. फैसले में कहा गया, ‘भूकंप को एक प्राकृतिक आपदा कहा जा सकता है लेकिन स्कूल भवन के निर्माण में पूरी सावधानी बरती गई होती तो शायद यह त्रासदी नहीं होती.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवादः रावी द्विवेदी)


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