मुंबई/बेंगलुरु: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भले ही महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों से सीमा विवाद पर संयम बरतने को कहा हो, लेकिन फिलहाल यह विवाद जल्द खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे. खासकर ऐसे समय में जब दोनों राज्यों में सोमवार से विधानसभा का शीत सत्र शुरू होने वाला है.
कर्नाटक विधानसभा का शीतकालीन सत्र एक सीमावर्ती शहर बेलगावी में आयोजित होना है, जिस पर महाराष्ट्र की तरफ से अपना दावा जताया जाता है. ऐसे में यह माना जा रहा है कि बसवराज बोम्मई सरकार के लिए सदन की कार्यवाही खासी हंगामे वाली होना तय है.
महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस वाला विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाडी (एमवीए) को लगता है कि मोदी सरकार को सिर्फ संयम बरतने और मंत्रिस्तरीय समिति गठित करने की सलाह देने से आगे भी कुछ करना चाहिए.
गौरतलब है कि शाह ने दोनों राज्यों से सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक अपने दावों पर संयम बरतने का निर्देश देने के अलावा दशकों से जारी सीमा विवाद सुलझाने के लिए छह सदस्यीय मंत्रिस्तरीय समिति बनाने को कहा है.
कर्नाटक में हंगामेदार शीत सत्र के आसार
1950 के दशक में राज्यों के पुनर्गठन के बाद से ही महाराष्ट्र की तरफ से कर्नाटक सीमा और बेलगावी शहर से लगे 814 गांवों को अपने क्षेत्र में शामिल करने की मांग की जा रही है, जहां मराठी भाषी आबादी रहती है. यद्यपि मामला शीर्ष कोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन महाराष्ट्र सरकार के फैसलों और कर्नाटक के सीएम बोम्मई की टिप्पणियों के कारण विवाद एक बार फिर भड़क गया है.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के कर्नाटक के मराठी भाषी सीमावर्ती गांवों में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए पेंशन योजना का विस्तार करने के विवादास्पद फैसले ने पड़ोसी राज्य की नाराजगी बढ़ा दी है. इसी तरह, महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों जैसे सांगली के जाट तालुका और सोलापुर के अक्कलकोट तालुका को कर्नाटक में मिलाने को लेकर बोम्मई की टिप्पणियों ने भी गुस्सा भड़काया है.
इस सबके बीच, कर्नाटक विधानसभा का शीतकालीन सत्र विवादों के केंद्र बने बेलगावी में आयोजित होना है. बेलगावी हर साल दस दिनों के लिए सत्ता का केंद्र बन जाता है क्योंकि पूरा सरकारी अमला सुवर्ण विधान सौध में पहुंच जाता है. यह विधान सौध जिले पर कर्नाटक की पकड़ मजबूत करने के उद्देश्य से ही बनाया गया था.
कांग्रेस विधायक और पार्टी की कम्युनिकेशन विंग के प्रमुख प्रियांक खड़गे ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि भाजपा का अपनी राज्य इकाइयों पर कोई नियंत्रण नहीं है जो अलग-अलग खेमों के तौर पर काम कर रही हैं. और गृह मंत्रालय ने इस पर अपनी आंखें मूंद रखी हैं. यह कोई अकेली घटना नहीं है. ऐसा लगता है कि शायद भाजपा खुद सारी योजना बना रही है, पहले विवाद को भड़काती है और फिर मरहम लगाने की कोशिश करती दिखती है. पहले बंगाल, असम, मेघालय में यही हुआ…और अब, कर्नाटक और महाराष्ट्र में हो रहा है.’
भाजपा शासित कर्नाटक में विधानसभा चुनाव अगले साल होने वाले हैं.
कन्नड़ समर्थक संगठन जहां सोमवार को विधानसभा के बाहर विरोध प्रदर्शन करेंगे, वहीं कांग्रेस ने सीमा विवाद पर अपने विनम्र आग्रह के साथ सदन के अंदर ही भाजपा सरकार को घेरने की योजना बनाई है.
उधर, महाराष्ट्र एकीकरण समिति ने 19 दिसंबर को बेलगावी में अपने ‘मराठी महामेलवा’ के लिए महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना अध्यक्ष राज ठाकरे को पहले ही आमंत्रण भेज रखा है.
यह भी पढ़ें: ‘सुषमा अंधारे’, उद्धव सेना की वो महिला नेता जो बालासाहेब की ‘फायरब्रांड’ स्टाइल को वापस ला रही हैं
‘शिंदे-फडणवीस महाराष्ट्र का नुकसान कर रहे’
महाराष्ट्र में एमवीए सहयोगियों ने अन्य मुद्दों के साथ-साथ सीमा विवाद को लेकर शिंदे की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार की कथित अक्षमता उजागर करने के लिए शनिवार को मुंबई में एक संयुक्त विरोध मार्च की योजना बनाई है.
विपक्षी नेताओं का कहना कि उन्हें उम्मीद है कि शाह और अधिक कड़ा रुख अपनाएंगे और यह देखते हुए दोनों राज्यों के साथ-साथ केंद्र में भी भाजपा की ही सरकार है, इस विवाद को सुलझाने की दिशा में कोई ठोस पहल करेंगे.
एनसीपी नेता छगन भुजबल ने नासिक में संवाददाताओं से कहा कि वह शांति बनाए रखने के लिए शाह के आह्वान का स्वागत करते हैं, लेकिन साथ ही बोले कि केंद्र सरकार को अदालत के बाहर जल्द से जल्द समाधान के लिए अपनी स्थिति का इस्तेमाल करना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘कोई नहीं जानता कि मामले की सुनवाई कब होगी, फैसला कब आएगा. लेकिन अगर वे (केंद्रीय मंत्री) मुद्दे का गहराई से अध्ययन करते हैं और समाधान निकालने में सक्षम होते हैं तो अदालत के बाहर भी बातचीत हो सकती है. उन्हें उस दिशा में प्रयास करना चाहिए.’
शिवसेना (यूबीटी) एमएलसी मनीषा कायंडे ने कहा कि बुधवार को शाह और दोनों मुख्यमंत्रियों की बैठक का जो नतीजा निकाला, वो दिखाता है कि यह ‘मामले को कुछ समय टालने’ की कोशिश है.
उन्होंने कहा, ‘आखिरकार मामला सुप्रीम कोर्ट में है, और केंद्र को सुनवाई में तेजी लाने की कोशिश करनी चाहिए, जैसा उसने राम मंदिर मामले में किया था. अमित शाह को ऐसी प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए. शाह को बोम्मई के प्रति कड़ा रुख दर्शाना चाहिए था क्योंकि उन्होंने महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों का दावा करते हुए टिप्पणी की थी. शीतकालीन सत्र में विपक्ष इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाएगा.’
कांग्रेस नेता सचिन सावंत ने ‘विवाद भड़कने’ के लिए भाजपा को जिम्मेदारा ठहराया.
उन्होंने कहा, ‘विवाद से जुड़े तीनों हिस्सों—महाराष्ट्र, कर्नाटक और केंद्र—में भाजपा की सरकारें हैं. बोम्मई लगातार भड़काऊ बयान दे रहे हैं. लेकिन उनसे जवाब मांगने के बजाये अमित शाह संयम बरतने की अपील कर रहे हैं, जिसका कोई मतलब नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘अगर एकनाथ शिंदेजी और (देवेंद्र) फडणवीसजी बोम्मई के आक्रामक रुख के खिलाफ नहीं बोल रहे तो महाराष्ट्र को नुकसान पहुंचा रहे हैं.’ साथ ही जोड़ा कि कर्नाटक चुनावों के मद्देनर इस मुद्दे को भड़का रहे हैं.
(अनुवादः रावी द्विवेदी | संपादनः ऋषभ राज)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: कौन है ‘मायावी’ रणनीतिकार कानूनगोलू और उनके तेलंगाना ऑफिस पर छापेमारी से कांग्रेस क्यों हुई नाराज