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Friday, 22 November, 2024
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‘सुषमा अंधारे’, उद्धव सेना की वो महिला नेता जो बालासाहेब की ‘फायरब्रांड’ स्टाइल को वापस ला रही हैं

शिवसेना (यूबीटी) द्वारा आयोजित दशहरा कार्यक्रम और पार्टी की 'महाप्रबोधन यात्रा' के दौरान अपने जन जुड़ाव के साथ, पार्टी की उपनेता को शिवसेना के पारंपरिक जुझारूपन को वापस लाने वाली शख्स के रूप में देखा जाता है.

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मुंबई: यह इस साल अक्टूबर में मुंबई के शिवाजी पार्क में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), या शिवसेना (यूबीटी),  द्वारा आयोजित ‘दशहरा मेला’ या दशहरा उत्सव के दौरान हुआ था जो पार्टी की उपनेता सुषमा अंधारे के लिए एक ‘प्रेरणा का क्षण’ था.

वह उत्सव में शामिल हुए जनसमूह को संबोधित कर रही थीं, और तभी उन्होंने अचानक से अपने गले में पहने हुए ‘पार्टी के स्कार्फ’ को उतार दिया और इसे भीड़ की ओर लहराते हुए अपने श्रोताओं की भी ऐसा ही करने के लिए प्रोत्साहित किया. भीड़ ने भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी और एक तत्काल जुड़ाव स्थापित हो गया. तब के बाद से अंधारे ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.

एक ऐसे समय में जब शिवसेना (यूबीटी) अपनी पार्टी के संस्थापक बाल ठाकरे की विचारधारा और उनकी आक्रामक, उग्र भाषण की शैली और राजनीति से दूर चले जाने के आरोपों का सामना कर रही है, अंधारे एक ऐसी तेजतर्रार (फायरब्रांड) नेता के रूप में उभरी हैं जो पुरानी शिवसेना के पारंपरिक जुझारूपन की अच्छी मात्रा के साथ शिवसेना (यूबीटी) का प्रतिनिधित्व करने का प्रयास कर रहीं हैं.

पार्टी सूत्रों के अनुसार, हाल के वर्षों में पार्टी के ‘फायरब्रांड नेता’ होने का तमगा कमोबेश इसके राज्यसभा सदस्य संजय राउत के लिए आरक्षित था, जिन्हें इस साल अगस्त में मनी लॉन्ड्रिंग के एक ऐसे मामले में गिरफ्तार किया गया था, जिसे राउत ने उनके खिलाफ रची गई ‘साजिश’ बताया था. राउत फिलहाल जमानत पर बाहर हैं.

अंधारे ने खुद राउत से की जा रही उनकी तुलना को खारिज किया. उन्होंने कहा, ‘मैं राउत के सामने ‘जीरो’ हूं.’ लेकिन उन्होंने आगे जोड़ा: ‘एक व्यक्ति अपनी क्षमता के आधार पर आगे बढ़ सकता या पीछे चला जा सकता है. इसलिए मेरा भविष्य मुझ पर ही निर्भर है.’

पार्टी के दशहरा उत्सव के बारे में बात करते हुए, अंधारे ने दिप्रिंट को बताया कि उनके अनुसार, स्कार्फ लहराने वाला वह पल ही था जिसने उन्हें मुख्यधारा में ला दिया और एक गंभीर नेता के रूप में पहचान दिलाई.

अंधारे ने कहा, ‘यह योजनाबद्ध कतई नहीं था और मुझे नहीं पता था कि इसका इतना बड़ा प्रभाव हो सकता है. यह एक जोखिम जैसा था. यह बॉक्स ऑफिस पर हिट होने के लिए मेरा पास मौजूद एकमात्र मौका था और मुझे इसे एक ही टेक में पूरा करना था. लेकिन मैं अपनी पृष्ठभूमि के कारण भीड़ के मनोविज्ञान को समझती हूं (उनकी स्वघोषित ‘साधारण’ जड़ों और सामाजिक आंदोलनों के साथ जुड़ाव के आधार पर) और यह काम कर गया.’

इस साल जुलाई में शिवसेना (यूबीटी) में शामिल होने वाली इस नेत्री को पूरे महाराष्ट्र में किसानों और युवाओं के साथ जुड़ाव स्थापित करने हेतु अक्टूबर में पार्टी की उस समय चल रही ‘महा प्रबोधन यात्रा’ (जो बालासाहेब के पिता प्रबोधंकर ठाकरे के नाम पर आयोजित की जा रही है) की जिम्मेदारी भी सौंपीं गईं थीं.

महाराष्ट्र के लातूर में, भटक्य विमुक्त जाति (अन्य पिछड़ा वर्ग का एक हिस्सा) में जन्मी, अंधारे ने कहा कि उन्हें शिवसेना (यूबीटी) की उपनेता बनने की राह में काफी संघर्ष करना पड़ा है. शिवसेना के आंतरिक पदानुक्रम में, यह वरिष्ठ नेताओं से एक रैंक नीचे का पद होता है.

उनका कहना है, ‘मैं इतनी निडर इस वजह से हो सकती हूं क्योंकि मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं है. लेकिन अगर चीजें बदलती हैं तो सारा खेल मेरा हो जाएगा और मैं चीजों को बदल सकती हूं. मैं ‘करो या मरो’ की स्थिति में हूं.’

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि शिवसेना के भीतर पिछले कुछ महीनों के दौरान मची उथल-पुथल ने उनके (अंधारे के) उत्थान में भूमिका निभाई है.

इस साल जून में, शिवसेना विधायक एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार – जो शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के बीच के गठबंधन की सरकार थी –  को गिराने के लिए पार्टी के विधायकों द्वारा की गई बगावत का नेतृत्व किया था और खुद सत्ता में आने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ साझेदारी कर ली थी.

अंधारे 28 जुलाई को शिवसेना (यूबीटी) में उस वक्त शामिल हुईं थी जब एमवीए सरकार पहले ही गिर चुकी थी और पार्टी में विभाजन भी हो चुका था. उन्हें तुरंत एक ‘उपनेता’ के पद की पेशकश की गई और वह पार्टी की प्रवक्ता भी बन गईं. उन्हें पार्टी सहयोगियों द्वारा एक ‘एसेट’ के रूप में भी देखा जाने लगा है.

वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार प्रताप अस्बे ने कहा, ‘शिवसेना में आई फूट के बाद उसे एक आक्रामक चेहरे की जरूरत थी और वह (अंधारे) इसके लिए उपयुक्त हैं. वह सही समय पर सही जगह पर थीं.’


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अंधारे का राजनैतिक उदय

अंधारे द्वारा डाले गए असर के बारे में बात करते हुए, शिवसेना (यूबीटी) में उनकी साथी सदस्य किशोरी पेडनेकर ने दिप्रिंट को बताया कि क्रिकेट के खेल में, अगर कोई छक्का मारना चाहता है, तो कभी-कभी उसे गेंद को जोर से मारना पड़ता है. उन्होंने कहा,’यह आज के समय में आवश्यक है. और उनकी शैली अलग है.’

पार्टी के अन्य सदस्य भी अंधारे द्वारा छोड़ी गई छाप से खुश हैं.

पार्टी के एक दूसरे सहयोगी और प्रवक्ता आनंद दुबे ने कहा, ‘मुझे यह बात अच्छी लगती है कि वह लोकप्रिय हैं, खासकर महिलाओं के बीच और जैसे को तैसा सुनाने वाला रवैया रखती हैं. एक महिला नेता के रूप में वह काफी सक्षम हैं. जो कोई भी हमारी पार्टी में आ रहा है और इसे मजबूत बना रहा है, हम उसका स्वागत करते हैं.’

अंधारे के अनुसार, उन्हें दशहरा कार्यक्रम के दौरान केवल दो घंटे पहले भीड़ को संबोधित करने के बारे में बताया गया था और तैयारी के लिए समय बहुत कम था.

उन्होंने कहा, ‘फिर मैंने पांच लोगों – एक पत्रकार, एक शिवसैनिक, मेरे एक पुराने दोस्त, एक दूसरे दोस्त जो एक बैंकर है, एक पूर्व विधायक- को फोन घुमाया और उनसे पूछा कि वे क्या सुनना चाहते हैं. और फिर मेरी स्क्रिप्ट तैयार थी.’

उनके नेतृत्व में आयोजित पार्टी की ‘महा प्रबोधन यात्रा’ को भी इसी तरह का आकर्षण प्राप्त हो रहा है, और कई सारे चैनल उनके सार्वजनिक संबोधनों को प्रसारित भी कर रहे हैं.

हालांकि, अंधारे के इस त्वरित गति के साथ उत्थान के बारे में राजनीतिक गलियारों में कुछ इस तरह की चर्चाएं भी हैं कि यह पार्टी के भीतर के कुछ लोगों के नागवार गुजरी है, मगर शिवसेना (यूबीटी) के उपनेता और पार्टी में उनके सहयोगियों दोनों ने ऐसी अफवाहों को खारिज कर दिया.

पेडनेकर ने कहा, ‘मैं लंबे समय से पार्टी में हूं. मेरी निष्ठा सिद्ध हो चुकी है. (किसी को) बेचैन होने या असुरक्षित महसूस करने की कोई जरूरत नहीं है. मैं ऐसी खबरों से परेशान हूं. मुझे अच्छे से पता है कि मैं पार्टी में क्या करना चाहता चाहती हूं.’

शिवसेना (यूबीटी) की राजनैतिक सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रवक्ता क्लाइड क्रैस्टो ने भी अंधारे के बारे में उत्साहपूर्वक बातें की.

क्रैस्टो ने कहा, ‘अगर वह कोई रेखा पार करती हैं, जो उन्होंने अभी तक की नहीं है, तो उन्हें दुरुस्त करना उनकी पार्टी और उद्धव ठाकरे का विशेषाधिकार है. लेकिन वह निर्भीक, आक्रामक और मुखर है, किसी न किसी तरह से सच ही बोलती है और एक क्रांतिकारी की तरह अधिक है.’

इस बीच, अंधारे ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने खुद उद्धव ठाकरे से बात की थी कि पार्टी के भीतर उनके त्वरित उत्थान की अफवाहें उनके सहयोगियों को परेशान कर रही हैं, लेकिन उनसे कहा गया कि वे ‘इससे परेशान या विचलित न हों और अपने काम को जारी रखें.’

हालांकि, राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने दावा किया कि अंधारे को अपनी अहमियत का पता है और वह पार्टी में कोई कमतर स्थिति को स्वीकार नहीं करेगी.

अस्बे ने कहा, ‘अंधारे की फैन फॉलोइंग (प्रशंसकों का समूह) काफी अधिक है, हाशिये पर रहने वाले समुदाय उन पर विश्वास करते हैं. उसकी अपनी खुद की भाषा है. उन्हें शिवसेना में एक मंच मिला है, लेकिन उनके गुण उनके अपने हैं. इसलिए अगर शिवसेना उन्हें कोई क़मतर पद देती है, तो वह इसके लिए पीछे नहीं हटेंगी या अगर उन्हें पता चलता है कि उनका महत्व कम हो रहा है, तो वे एक अलग रास्ता अपनाने से पहले दुबारा सोचेंगी भी नहीं.’


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‘सीधी-सादी शुरुआत’

साल 1984 में महाराष्ट्र के लातूर जिले के मुरुड गांव में सुषमा गुट्टे के रूप में जन्मी, अंधारे ने कहा कि उन्होंने अपने दादा के उपनाम का इस्तेमाल किया और अपने बड़े होने के वर्षों को उनके ही साथ बिताया.

शिवसेना (यूबीटी) की इस उपनेता ने कहा कि लातूर के एक विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने लातूर के डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर विश्वविद्यालय से बी.एड किया और फिर पुणे के एक विश्वविद्यालय से पीएचडी की पढ़ाई शुरू की, हालांकि उन्होंने इसे पूरा नहीं किया.

एक उत्सुक पाठक रहीं अंधारे ने कहा कि यह पी.एल. देशपांडे, आचार्य अत्रे, वासुदेव बलवंत फड़के, महात्मा गांधी, महादेव गोविंद रानाडे, बी.आर. अम्बेडकर, कार्ल मार्क्स और अन्य की कृतियों को पढ़ना ही था जिसने उनके विचारों को आकार दिया.

शिवसेना की उपनेता अपने नाना और बाबासाहेब अंबेडकर का अपने ऊपर सबसे बड़ा प्रभाव मानती हैं. अंधारे ने कहा कि वह अपने कॉर्पोरेट कैरियर को पीछे छोड़ते हुए अंधविश्वास के खिलाफ दिवंगत तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर के आंदोलन और अंबेडकरवादी तथा  अन्य सामाजिक आंदोलनों में उन मकसदों के साथ जुड़ने के लिए  शामिल हो गई थीं,  जो उन्हें आकर्षित करते थे.

अंधारे ने कहा, ‘मैं अभी भी पुणे में एक (कोचिंग) संस्थान चलाती हूं जहां छात्रों को सिविल सेवा प्रवेश परीक्षा के लिए मुफ्त में कोचिंग दी जाती है. लेकिन मुझे लगा कि यह पर्याप्त नहीं है तथा मुझे कुछ और करने की जरूरत है. मेरे दोस्तों ने मुझसे कहा कि मुझमें हिम्मत है और मुझे किसी राजनीतिक दल में शामिल होना चाहिए या ऐसा ही कुछ शुरू करना चाहिए. इस तरह साल 2015 में ‘गणराज्य संघ’ (उनके द्वारा शुरू किया गया एक संगठन) का जन्म हुआ.’ इस संगठन ने साल 2019 में भाजपा विरोधी मंच के रूप में एमवीए का समर्थन किया था.

अपनी वर्तमान लोकप्रियता के बावजूद, अंधारे को अपने करियर में अक्सर आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है.

उन्होंने याद करते हुए बताया कि कैसे वह साल 2019 में तब एक विवाद में घिर गई थीं जब अतीत में एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और उनके सहयोगी उद्धव ठाकरे की आलोचना करने के बावजूद उन्होंने और गणराज्य संघ ने विधानसभा चुनावों से पहले एनसीपी के लिए प्रचार किया था. उन्होंने स्पष्टीकरण के साथ कहा, ‘लेकिन मैं कभी औपचारिक रूप से एनसीपी में शामिल नहीं हुई.’

शिवसेना (यूबीटी) की इस  उपनेता के अनुसार, पूर्व मुख्यमंत्री ठाकरे के प्रति उनका सम्मान उन दो वर्षों के दौरान  बढ़ गया था जब उन्होंने राज्य सरकार का नेतृत्व किया था, जिसके कारण अंततः वह उनकी पार्टी में शामिल हो गईं.

उनका निजी जीवन भी छान-बीन का विषय रहा है. पिछले महीने, उनके पूर्व पति और शिंदे खेमे के सदस्य, वैजयनाथ वाघमारे ने कथित तौर पर दावा किया था कि उनका तलाक उनके विचारों में मौजूद  असमानता का परिणाम था और वह ‘कोई फायरब्रांड नेता नहीं’ हैं, जैसा कि उनकी पार्टी द्वारा पेश किया जा रहा है.

अंधारे ने दिप्रिंट को बताया, ‘किसी महिला के चरित्र पर टिप्पणी करना आसान है, लेकिन मेरा मानना है कि पुरुषों और महिलाओं दोनों के चरित्र समान रूप से खराब हो सकते हैं. आलोचक सिर्फ मुझ पर व्यक्तिगत हमला करते हैं, लेकिन (उनके पास) मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं है.’

उधर अस्बे के अनुसार, शिवसेना (यूबीटी) की यह नेता ‘हमेशा विद्रोही प्रवृत्ति की रहीं हैं.’

इन राजनीतिक टिप्पणीकार ने कहा, ‘उनकी प्रकृति काफी आक्रामक है. उनकी पिछली पृष्ठभूमि के कारण, वह हमेशा लोकप्रिय रही हैं और केवल शिवसेना में शामिल होने के बाद ही लोकप्रिय नहीं हुईं हैं.’

अंधारे के अनुसार, उनका प्रशंसक आधार और जनजुड़ाव, अपने साथ जिम्मेदारी का तत्व लेकर आते हैं.

शिवसेना (यूबीटी) की उपनेता ने कहा, ‘इसीलिए कभी-कभी मुझे डर लगता है कि राजनीतिक रूप से सही होने के चक्कर में मैं सामाजिक रूप से गलत हो सकती हूं और मेरा मानना है कि सामाजिक रूप से सही होना अधिक महत्वपूर्ण है.’

(अनुवादः राम लाल खन्ना | संपादनः ऋषभ राज)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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