हैदराबाद: तेलंगाना का नाम देश के उन राज्यों में शामिल हो गया है जहां सबसे ज्यादा संख्या में सरकारी स्कूलों में टॉयलेट की सुविधा नहीं है.
राज्यसभा में बुधवार को इस संदर्भ में सामने रखे गए 2021-2022 के आंकड़ों के मुताबिक 30,023 सरकारी स्कूलों में से 2,124 यानी करीब 7 प्रतिशत में टॉयलेट नहीं है, जबकि 11,124 स्कूलों या करीब 37 प्रतिशत में पानी के लिए नल की सुविधा नहीं है.
केरल के राज्यसभा सदस्य अब्दुल वहाब की तरफ से देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के सरकारी स्कूलों में टॉयलेट, नल के पानी और पीने के पानी की स्थिति पर सवाल उठाए जाने के बाद यह डेटा सामने आया.
टॉयलेट के लिहाज से बुनियादी ढांचे के मामले में देश में सबसे खराब स्थिति वाला दूसरा राज्य राजस्थान है, उसके बाद यूपी का नंबर आता है, लेकिन दोनों ही तेलंगाना की तुलना में काफी बेहतर हैं. राजस्थान के 68,948 स्कूलों में से करीब 1.8 फीसदी और यूपी के 1,37,024 स्कूलों में 0.8 फीसदी में शौचालय नहीं है.
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव को पूर्व में इसे लेकर आलोचना का सामना करना है कि उन्होंने शिक्षा क्षेत्र की चिंताओं को लेकर अपनी आंखें मूंद रखी हैं.
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अकुनुरी मुरली ने दिप्रिंट को बताया, ‘शिक्षा क्षेत्र को मुख्यमंत्री ने हमेशा ही अनदेखा किया है, खासकर पिछले कई सालों में धन आवंटित किए जाने के मामले में.’
उनका अनुमान है कि तेलंगाना के 60 प्रतिशत से अधिक सरकारी स्कूलों में पूरी तरह उपयोग लायक टॉयलेट नहीं हैं. मुरली ने कहा, ‘भले ही कुछ सरकारी स्कूलों में टॉयलेट हैं, लेकिन सवाल यह है कि उनमें से कितने पूरी तरह उपयोग लायक हैं, जहां उचित तरीके से दरवाजे-खिड़कियों, नल के पानी और अच्छे रखरखाव की सुविधा हो?’
दिप्रिंट इस संबंध में अपने सवालों के साथ तेलंगाना की शिक्षा मंत्री सबिता इंद्रा रेड्डी के कार्यालय से संपर्क साधा लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने तक उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. जवाब आने पर यह रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.
राज्यसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों जैसे चंडीगढ़, सिक्किम और तमिलनाडु में सभी सरकारी स्कूलों में शौचालय हैं. दिल्ली, गोवा और अंडमान भी इस सूची में आते हैं.
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लड़कियों को होती है परेशानी
2014 में आधिकारिक तौर पर तेलंगाना गठन के समय केसीआर की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) अपनी एक शिक्षा योजना—‘केजी टू पीजी’ के वादे के साथ सत्ता में आई थी. पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कहा था कि किंडरगार्टन से स्नातकोत्तर स्तर तक शिक्षा निःशुल्क होगी. लेकिन इस योजना पर अमल को लेकर उसे आलोचना का सामना करना पड़ा है और वह उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई है.
इस साल मार्च में, तेलंगाना सरकार ने राज्य में स्कूल के बुनियादी ढांचे और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से ‘माना ओरु माना बाड़ी’ (हमारा गांव, हमारा स्कूल) नामक एक कार्यक्रम शुरू किया था.
तीन सालों में तीन चरणों में लागू की जाने वाली इस योजना के तहत राज्य सरकार ने पहले चरण में 3,497 करोड़ रुपये की लागत से 9,123 स्कूलों को विकसित करने की योजना बनाई है.
हालांकि, जोरदार प्रचार के साथ लॉन्च की गई इस योजना की शुरुआत काफी धीमी रही है और विपक्षी दल कांग्रेस और शिक्षाविदों की तरफ से इसकी आलोचना की जाती रही है.
मुरली ने कहा, ‘उनके (केसीआर के) कार्यक्रमों और शिक्षा क्षेत्र की योजनाओं को विशुद्ध रूप से वोट-बैंक और चुनावों को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है. इन पर अमल होने के आसार कम ही होते हैं. शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास में उनकी कोई रुचि नहीं है.’ मुरली तेलंगाना में सरकारी स्कूलों के उत्थान के लिए काम करने वाले सोशल डेमोक्रेटिक फोरम नामक एक स्वतंत्र संगठन के संयोजक भी हैं.
इस संगठन का हिस्सा होने के तौर पर ही उन्होंने स्थितियों का जायजा लेने के लिए राज्य के 100 से अधिक सरकारी स्कूलों का दौरा किया.
इस दौरान उन्होंने पाया कि टॉयलेट न होने से लड़कियों को काफी परेशानी होती है. मुरली ने कहा, ‘कुछ मामलों में, हमने पाया कि हाई स्कूल की लड़कियां पूरे-पूरे दिन पानी नहीं पीती हैं क्योंकि स्कूल में टॉयलेट की सुविधा नहीं है और उन्हें खुले में जाना पड़ता है. वे स्कूल आने से पहले घर में ही पानी पीती हैं और फिर स्कूल से लौटने के बाद पानी पीती हैं.’
उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण में शामिल केवल 10 स्कूलों में टॉयलेट थे. साथ ही आरोप लगाया, ‘टॉयलेट के अभाव में छात्र-छात्राओं को खुले में शौच जाना पड़ता है.’
राज्यसभा को दिए आंकड़ों के मुताबिक, तेलंगाना के अविकसित जिलों में से एक आदिलाबाद में 1,288 सरकारी स्कूलों में से 1,052 में पानी के लिए नल की सुविधा नहीं है. वहीं 258 स्कूलों में टॉयलेट नहीं है.
मुरली ने कहा, ‘केसीआर शासन के तहत सरकारी स्कूलों के रखरखाव की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों को दी गई. ग्राम पंचायतों के सफाई कर्मचारी रखरखाव को लेकर लापरवाह रहे हैं. ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जब स्कूल के प्रधानाध्यापकों ने शौचालयों की सफाई के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च किए.’
उनकी यह टिप्पणी तेलंगाना विधान परिषद में विपक्ष के पूर्व नेता मोहम्मद अली शब्बीर के आरोपों की तरह ही है, जिन्होंने सितंबर 2020 में हैदराबाद में शिक्षक दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि मुख्यमंत्री ने शिक्षा क्षेत्र के साथ-साथ शिक्षकों की भी उपेक्षा की है.
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(अनुवाद: रावी द्विवेदी)
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