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Wednesday, 18 December, 2024
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कैसे रूस से सस्ती दरों पर मिले तेल और अधिक FDI की बदौलत कीमतों में आई भारी बढ़ोत्तरी को पार करेगा भारत

आनन-फानन में इकट्ठे किए गए टैंकरों के अपने बेड़े के साथ मास्को, यूरोपीय संघ की तरफ से कच्चे तेल पर लगाए गए प्रतिबंधों की अवहेलना करने की संभावना है. यही नहीं भारत की मांग को पूरा करने के लिए वेनेजुएला के कच्चे तेल पर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों में ढील दी गई है.

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नई दिल्ली: भले ही कई सारी मौजूदा वैश्विक घटनाओं की वजह से तेल की कीमतों में और अधिक वृद्धि हो सकती है, मगर अर्थशास्त्रियों के विश्लेषण अनुसार, भारत पहले से ही किए गए सौदों के कारण इससे काफी अधिक प्रभावित नहीं होगा, और ऐसा इसलिए भी है क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था अब इस तरह के बाहरी झटकों के प्रति अधिक लचीली बन चुकी है.

पिछले महीने के अंत में, अमेरिका ने शेवरॉन कॉर्पोरेशन को वेनेजुएला से तेल निर्यात करने की अनुमति देते हुए कच्चे तेल के मामले में समृद्ध माने जाने वाले इस देश पर लगाए गए प्रतिबंधों को कटौती कर दी है. कच्चे तेल की इस बढ़ी हुई आपूर्ति से मध्यम अवधि में अगले कुछ महीनों के दौरान इसकी कीमतों में थोड़ी कमी आने की उम्मीद थी.

हालांकि, हाल की कुछ घटनाएं वैश्विक रूप से तेल की कीमतों को ऊंचा रखते हुए खेल ख़राब करने का काम कर सकती है. रविवार को पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (आर्गेनाईजेशन ऑफ़ आयल प्रोड्यूसिंग कन्ट्रीज- ओपेक) ने अपनी अक्टूबर की बैठक में लिए गए तेल उत्पादन में कटौती के फैसले को बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की.

इसके अलावा, खबर यह भी है कि चीन अपने कुछ कोविड संबंधी प्रतिबंधों को कम कर रहा है, जिससे इस एशियाई आर्थिक दिग्गज की तरफ से बढ़ती हुई मांग की उम्मीद में तेल की कीमतों में वृद्धि हुई है. इन घटनाक्रमों को और जटिल करने वाला तथ्य यह है कि रूस ने चेतावनी दी हुई है कि वह उन देशों को अपना तेल नहीं बेचेगा जो यूरोपीय संघ समर्थित ‘मूल्य सीमा’ को स्वीकार कर लेंगें.

हालांकि, जैसा कि ऊर्जा अर्थशास्त्र और वित्तीय विश्लेषण संस्थान (इंस्टिट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंसियल एनालिसिस- आईईईएफए के दक्षिण एशिया निदेशक विभूति गर्ग ने दिप्रिंट को बताया, इन घटनाक्रमों की वजह से भारत के बहुत अधिक प्रभावित होने की संभावना नहीं है. क्योंकि यह पहले से ही रियायती दर पर तेल का आयात कर रहा है, और आगे भी ऐसा करना जारी रखेगा.

गर्ग ने कहा, ‘मुझे लगता है कि भारत रूस से रियायती तेल का आयात जारी रखेगा और रूस अपने खुद के जहाजों के बेड़े के साथ आ रहा है. पहले वे तेल निर्यात करने के लिए यूरोपीय मालवाहक जहाजों का उपयोग कर रहे थे, लेकिन अब वे अपना खुद का तेलवाहक बेड़ा बना रहे हैं.’

उन्होंने इसे समझाते हुए कहा, ‘इसलिए, प्रतिबंधों के कारण बीमा और माल ढुलाई के रूप में रूस पर अतिरिक्त शुल्क लगाने वाले यूरोप के ‘मूल्य दबाव वाले बिंदु’ (प्राइस प्रेस्सर पॉइंट) से राहत मिलेगी, और रूस भारत जैसे देशों को वैश्विक बाजार की तुलना में सस्ते दामों पर तेल बेचना जारी रख सकता है.’

रूस द्वारा तेलवाहक जहाजों के अपने बेड़े का विकास ऐसे समय में हुआ है जब यूरोपीय संघ रूस द्वारा उसके कच्चे तेल के परिवहन के लिए यूरोपीय जहाजों का उपयोग करने को और अधिक महंगा बनाने की कोशिश कर रहा है.


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भारत को मिलने वाला रूसी लाभ

गर्ग ने आगे कहा, ‘भारत एक बहुत ही संवेदनशील अर्थव्यवस्था है और तेल के आयात से जुड़ी इसकी आवश्यकता बहुत अधिक है, इसलिए यदि इसे रूस से सस्ता तेल मिल रहा है, तो यह उससे आयात करना जारी रखेगा.’

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, विदेश मंत्री एस जयशंकर, और पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने भारत द्वारा रूस से सस्ते तेल का आयात जारी रखने के फैसले का बचाव करते हुए बार-बार इसी तरह की भावना की पुष्टि की है.

इसके अलावा, विश्व बैंक के वरिष्ठ अर्थशास्त्री ध्रुव शर्मा के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था से जुड़े घटनाक्रमों ने पूंजी के देश से बाहर जाने वाली संभावना, जिसका व्यापार की स्थितियों के प्रतिकूल होने पर विकासशील देशों को आम तौर पर सामना करना पड़ता है, से भारत को आंशिक रूप से बचाये रखने में मदद कर रहा है.

शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम पहले से ही देख रहे हैं कि तेल की बढ़ी हुई कीमतें अब थोड़ी मंद हो गई है, हमारा अनुमान है कि कच्चे तेल की कीमत में होने वाली हर 10 डॉलर की वृद्धि से भारत का चालू खाते का घाटा (करंट अकाउंट डिफिसिट) एक प्रतिशत पॉइंट तक बढ़ जाएगा.’

उन्होंने कहा, ‘हालांकि, यह भारत के लिए और भी बहुत बुरा हो सकता था. फिलहाल जो हो रहा है वह यह है कि कुल निवेश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का हिस्सा बढ़ गया है, जिसका मतलब है कि ये अधिक सुरक्षित हैं और उनके यहां बने रहने की संभावना है.’

इसका कारण यह है कि एफडीआई, जो कि कारखानों और संयंत्रों जैसे वास्तविक भौतिक बुनियादी ढांचे के रूप में होता है, की तुलना में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश – जो बड़े पैमाने पर धन का प्रवाह होता है – को देश से बाहर निकालना अपेक्षाकृत आसान होता है.

वेनेजुएला से मिलने वाला संभावित लाभ

विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि भारत दुनिया के उन कुछ देशों में से एक है जो वेनेजुएला पर लगे प्रतिबंधों में मिली ढील का लाभ उठा सकता है.

तेल उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘जामनगर स्थित रिलायंस की रिफाइनरी दुनिया की उन कुछ रिफाइनरी में से एक है जो भारी कच्चे तेल (हैवी क्रूड आयल), जो बड़े पैमाने पर वेनेजुएला में विशेषज्ञता वाला कच्चा तेल है, को संसाधित कर सकती है. यह निश्चित रूप से भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है.’

गर्ग ने कहा, ‘अगर भारत अपने लिए अनुकूल शर्तों पर वेनेजुएला के साथ सौदा करने में सक्षम होता है, तो यह एक और कारक होगा जो (कच्चे तेल की) कीमतों को कम करने में मदद कर सकता है.’

पिछले 27 नवंबर को, बिडेन प्रशासन ने कैलिफोर्निया स्थित शेवरॉन कारपोरेशन को वेनेजुएला में फिर से व्यापार शुरू करने की अनुमति देकर ट्रम्प प्रशासन द्वारा लगाए गए कुछ प्रतिबंधों में कटौती करने का निर्णय लिया था.

बता दें कि जनवरी 2019 में, डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने वेनेजुएला की सरकार के स्वामित्व वाली तेल कंपनी पेट्रोलोस डी वेनेजुएला के खिलाफ प्रतिबंध लगाए थे. यह साल 2018 के चुनाव, जिसे वाशिंगटन ने ‘दिखावा’ करार दिया था, में वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की जीत की प्रतिक्रिया में किया गया था.

प्रकट रूप से, इन प्रतिबंधों में दी गई ढील मादुरो सरकार और विपक्ष द्वारा एक मानवीय समझौते पर हस्ताक्षर करने के निर्णय की प्रतिक्रिया स्वरुप दी गई है. अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने कहा कि यह कार्रवाई ‘वेनेजुएलावासियों की पीड़ा को कम करने के उद्देश्य से और लोकतंत्र की बहाली का समर्थन करने वाले ठोस कदमों के उठाये जाने के आधार पर लक्षित रूप से लगाए गए प्रतिबंधों से राहत प्रदान करने की लम्बे समय वाली अमेरिकी नीति का हिस्सा है.’

लेकिन प्रतिबंधों में दी गई इस ढील के समय को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है. जैसा कि प्रमुख पर्यवेक्षकों का तर्क है कि यह ‘वेनेजुएला के लोगों की पीड़ा को कम करने’ की तुलना में तेल की कीमतों और मुद्रास्फीति को कम करने के लिए अधिक किया गया लगता है.‘

यूक्रेन युद्ध और ओपेक प्लस द्वारा तेल उत्पादन में कटौती पर सहमत होने के कुछ ही हफ़्तों बाद छाए वैश्विक तेल आपूर्ति संकट के बीच यह निर्णय आया है. उत्पादन में कटौती के कदम ने निश्चित रूप से बिडेन प्रशासन को परेशान किया हुआ था.

वेनेज़ुएला पर लगे प्रतिबंधों में कटौती करने का वाशिंगटन का निर्णय बिडेन प्रशासन द्वारा इस दक्षिण अमेरिकी देश में कथित तौर पर ऊर्जा प्रतिबंधों से राहत पर चर्चा करने के लिए भेजे गए एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भेजने के लिए मिली द्विपक्षिय आलोचना के आठ महीने बाद आया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रामलाल खन्ना)
(संपादन: अलमिना खातून)


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