चंडीगढ़: अमृतसर में अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने मंगलवार को बिहार के पटना साहिब में ऐतिहासिक गुरुद्वारे के संचालन को कारगर बनाने के लिए कई अभूतपूर्व फैसलों की घोषणा की.
फैसलों में तख्त के पूर्व जत्थेदार को ‘तनखैया’ घोषित करना और गुरुद्वारे के सभी कर्मचारियों के लिए ड्रग टेस्ट शामिल हैं.
तख्त श्री पटना साहिब को तख्त श्री हरिमंदिर जी के नाम से भी जाना जाता है. इसका अपना ऐतिहासिक महत्व है. यह उस स्थान पर बनाया गया है जहां दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हुआ था.
यह सिख सत्ता के पांच तख्तों या अस्थायी सीटों में से एक है. प्रत्येक तख्त का नेतृत्व एक जत्थेदार करता है. इनमें से स्वर्ण मंदिर के परिसर में स्थित अकाल तख्त को सर्वोच्च माना जाता है.
हरप्रीत सिंह के कड़े फैसले तख्त श्री पटना साहिब के प्रबंधन बोर्ड के भीतर दो गुटों के बीच सत्ता के लिए चल रही खींचतान के मद्देनजर आए हैं. मामला पिछले हफ्ते अमृतसर के अकाल तख्त पहुंचा था.
पटना साहिब गुरुद्वारा प्रबंधन बोर्ड के सदस्यों को तलब किए जाने के बाद हरप्रीत सिंह ने अमृतसर में अकाल तख्त की प्राचीर से बाकी फैसलों की घोषणा की. यह दंड और फरमानों की घोषणा करने की एक ऐतिहासिक कर्मकांड परंपरा के अनुसार किया गया था.
अकाल तख्त के जत्थेदार ने तख्त श्री पटना साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह को ‘तनखैया’ (एक धार्मिक दोषी) घोषित किया और उन्हें अपने ‘पापों’ का प्रायश्चित करने के लिए अकाल तख्त के सामने पेश होने को कहा.
उन्होंने तख्त श्री पटना साहिब के कार्यवाहक जत्थेदार ज्ञानी बलदेव सिंह से सिख धर्म की पांच दैनिक प्रार्थनाओं को कैमरे पर सुनाने के लिए एक परीक्षण के रूप में यह साबित करने के लिए कहा कि वह उन्हें दिल से जानते हैं.
पूर्व जत्थेदार रणजीत सिंह को सभी अधिकारिक पदों से हटाने के अलावा, अकाल तख्त जत्थेदार ने पटना साहिब गुरुद्वारे के सभी कर्मचारियों के तंबाकू सहित नशीले पदार्थों के सेवन की जांच के लिए डोप और दांतों का परीक्षण करने का आदेश दिया.
उन्होंने 15 जनवरी से पहले पटना साहिब में नए प्रबंधन बोर्ड के चुनाव के भी आदेश दिए.
प्रबंधन बोर्ड के दो सदस्यों – महिंदर पाल सिंह ढिल्लों और राजा सिंह – के लिए सजा की घोषणा की गई. उन्होंने एक ‘अवैध’ बैठक की थी, जिसमें उन्होंने खुद को बोर्ड का अध्यक्ष और महासचिव घोषित किया था.
दोनों को एक घंटे के लिए पटना साहिब में आने वालों के जूते साफ करने, एक घंटे के लिए कीर्तन सुनने, एक घंटे के लिए लंगर के बर्तन धोने और पांच बार जपजी साहिब का पाठ करने के लिए कहा गया.
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फैसलों का विरोध
अकाल तख्त जत्थेदार के फैसलों का मंगलवार दोपहर स्वर्ण मंदिर परिसर में मौजूद लोगों ने ‘बोले सो निहाल सत श्री अकाल’ के नारों के साथ स्वागत किया.
दिप्रिंट से बात करते हुए राजा सिंह ने कहा कि वह सजा को स्वीकार नहीं करेंगे. अकाल तख्त का पटना साहिब में तख्त पर कोई नियंत्रण नहीं है. वह स्वतंत्र है और उसका अपना संविधान है. उन्होंने कहा, ‘हमें वहां जाने के लिए बरगलाया गया था. मैं किसी भी आदेश का पालन करने से इनकार करता हूं.’
इस बीच, बोर्ड के कार्यवाहक अध्यक्ष जगजोत सिंह सोही ने दिप्रिंट को बताया कि वह और बोर्ड के अन्य सदस्य अकाल तख्त के आदेशों का पूरी तरह से पालन करेंगे.
इस घोषणा का पटना साहिब गुरुद्वारे में विरोध शुरू हो गया है. गुरुद्वारे के बाहर जमा सिखों की भीड़ ने मंगलवार को हरप्रीत सिंह का पुतला फूंका. भीड़ और इकबाल सिंह के कर्मचारियों और समर्थकों के एक वर्ग ने उस रात विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया.
पटना साहिब गुरुद्वारे के एक स्टाफ सदस्य ने बुधवार को दिप्रिंट को बताया, ‘अकाल तख्त जत्थेदार के फैसलों के खिलाफ गुरुद्वारे के गेट पर धरना प्रदर्शन चल रहा है. यहां स्थिति काफी तनावपूर्ण है.’
कदम पीछे खींच रहे हैं
पटना साहिब गुरुद्वारे के प्रबंधन बोर्ड में दो गुटों के बीच महीनों से रस्साकशी चल रही है.
पटना साहिब गुरुद्वारे के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि प्रबंधन में समस्याएं 2019 में शुरू हुईं, जब जत्थेदार इकबाल सिंह को अनौपचारिक रूप से हटा दिया गया और गुरुद्वारा कमेटी के तत्कालीन अध्यक्ष अवतार सिंह हिट ने जत्थेदार रणजीत सिंह को बदल दिया था.
अगस्त में हिट ने जत्थेदार रणजीत सिंह पर चंदे के पैसे की हेराफेरी के आरोप लगाए और उनकी सेवाओं को समाप्त कर दिया. अगले महीने रणजीत सिंह को तख्त श्री पटना साहिब के पंज प्यारे ने हिट की कार्रवाई का समर्थन करते हुए उन्हें ‘तनखैया’ घोषित कर दिया था.
पंज प्यारे पांच सिखों की एक परिषद है जो अकाल तख्त जत्थेदार के विभिन्न निर्णयों का मार्गदर्शन करती है और अन्य तख्तों को सलाह देती है.
सितंबर में हिट की मौत के बाद, बोर्ड के तत्कालीन वरिष्ठ उपाध्यक्ष सोही को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया. प्रमुख ग्रन्थि (जो गुरु ग्रंथ साहिब के पाठ की अगुवाई करते हैं) बलदेव सिंह को स्थायी नियुक्ति होने तक कार्यवाहक जत्थेदार बनाया गया था.
अक्टूबर में रणजीत सिंह ने जत्थेदार के रूप में अपनी पुरानी स्थिति को वापस पाने के लिए चंडीगढ़ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ लगे सभी आरोपों का खंडन किया था.
इस बीच, ज्ञानी इकबाल सिंह (जिन्हें 2019 में जत्थेदार के रूप में हटा दिया गया था) भी जत्थेदार के पद के दावेदार के रूप में उभरे, जब पटना की एक अदालत ने गुरुद्वारा बोर्ड को उसे बहाल करने का आदेश दिया.
बोर्ड के अध्यक्ष पद के लिए लड़ाई अपने चरम पर पहुंच रही थी, कार्यवाहक अध्यक्ष सोही ने घोषणा की कि नए अध्यक्ष का चुनाव करने या नए जत्थेदार को स्थापित करने का कोई भी कदम गुरु गोबिंद सिंह की जयंती मनाने वाले गुरुपर्व के बाद ही किया जाएगा, जो 29 दिसंबर को समाप्त हो जाएगा.
सोही ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने यह घोषणा 16 नवंबर को की थी. फिर भी महासचिव इंद्रजीत सिंह ने मेरी अनुमति के बिना 30 नवंबर को चुनावों पर चर्चा के लिए एक बैठक बुलाई.’
लेकिन 30 नवंबर की बैठक से दस दिन पहले बोर्ड के महासचिव इंद्रजीत सिंह ने रंजीत सिंह को जत्थेदार के रूप में बहाल कर दिया और दावा किया कि दो पंज प्यारे ने बोर्ड को लिखा था कि उन्होंने दबाव में रंजीत सिंह को हटाने का आदेश दिया था.
इंद्रजीत सिंह के कदम ने बोर्ड के अन्य सदस्यों के विरोधी बना दिया. 25 नवंबर को पंज प्यारे ने रणजीत सिंह को सिख पंथ से बाहर कर दिया और इंद्रजीत सिंह को ‘तनखैया’ घोषित कर दिया.
सोही ने कहा, ’30 नवंबर को बोर्ड के कुछ सदस्यों ने एक बैठक की, जिसमें महिंदर पाल सिंह ढिल्लों ने खुद को अध्यक्ष घोषित किया और राजा सिंह ने खुद को महासचिव घोषित किया.’
सोही ने बताया, ‘जब जत्थेदार के पद के दावों और प्रतिदावों के बारे में लिखित शिकायतें अकाल तख्त तक पहुंचीं, तो जत्थेदार ने मामले में हस्तक्षेप किया. इसके बाद मंगलवार को बोर्ड के सदस्यों को अकाल तख्त में सुनवाई के लिए बुलाया गया.’ सोही सुनवाई में शामिल होने वालों में से एक थे.
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य | संपादन: ऋषभ राज)
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