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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतजंग की तरफ बढ़ता अमेरिका, रिपब्लिकन का बंटा खेमा विरोधियों को धुर-दक्षिणपंथी आतंकवाद की ओर धकेल रहा

जंग की तरफ बढ़ता अमेरिका, रिपब्लिकन का बंटा खेमा विरोधियों को धुर-दक्षिणपंथी आतंकवाद की ओर धकेल रहा

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अपने मार-ए-लागो रिसॉर्ट में एक श्वेत वर्चस्ववादी और हिटलर के प्रशंसक एक अश्वेत सिंगर के साथ की गई अजीब-सी मुलाकात से पता चलता है कि अमेरिकी लोकतंत्र के साथ सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा.

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कहीं दूर से आती एक आवाज सुनाई दी, ‘लिंच द एन…..’ सामने तो कोई नजर नहीं आया लेकिन किसी ने न्यूयॉर्क के टेंडरलॉइन जिले में एक लैंप पोस्ट पर कुछ कपड़ा जरूर बांध दिया. फिर जो हुआ, उसका ब्योरा देते हुए अगस्त 1900 में न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा कि करीब 8 से 11 घंटों तक एट्थ एवेन्यू की तरफ आने और जाने वाली हर कार को भीड़ ने रोका, और जिसमें कोई एन…सवार मिला, उसे बाहर खींच लिया गया. उन्हें जमकर प्रताड़ित किया गया और पीट-पीटकर अधमरा तक कर दिया गया. स्थानीय पुलिस भी थोड़ी देर में घटनास्थल पर पहुंच गई लेकिन उसने ‘हमलावरों को पकड़ने के लिए या तो ज्यादा प्रयास नहीं किए, या फिर कतई कुछ किया ही नहीं.’

आज, गाहे-बगाहे अमेरिका की धुर-दक्षिणपंथी छवि उभरने लगी है जैसा अमूमन नहीं होता था. फिलहाल, एक एलीट गोल्फ क्लब में थोड़ी अजीब-सी बैठक सुर्खियों में हैं जिसमें एक श्वेत वर्चस्ववादी और स्वघोषित इंसेल; एक अफ्रीकी-अमेरिकी रैप म्यूजिशन—जो एडॉल्फ हिटलर का प्रशंसक है और ऐसा मानता है कि यहूदी उसे सनकी घोषित करने की साजिश रच रहे हैं, और बखेड़ा खड़ा करने वाली सेक्सुअल पॉलिटिक्स के साथ वापसी की कोशिश में जुटे अमेरिका के एक पूर्व राष्ट्रपति शामिल थे.

दुनियाभर में और कहीं—निश्चित तौर, पर उन लोगों को छोड़कर जो इसे जीने-मरने का सवाल बनाने की निंदा करते हैं—यह हंसी-मजाक का विषय है. लेकिन लगता है कि अमेरिका की दक्षिणपंथी राजनीति में कुछ तो ऐसा चल रहा है जो काफी ज्यादा मायने रखता है. वैश्विक व्यवस्था, अन्य बातों के साथ-साथ, अमेरिका के राजनीतिक जीवन को लेकर लगाए जाने वाले कयासों पर पर टिकी है. ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पिछले सप्ताह अपने फ्लोरिडा स्थित मार-ए-लागो रिसॉर्ट में एक अजीबो-गरीब बैठक करने को हल्के में लेना नासमझी होगी.

ट्रम्प के प्रभुत्व का आधार बने धुर-दक्षिणपंथी राजनीतिक संगठन दरअसल जनसांख्यिकीय समीकरणों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. आव्रजन और शहरीकरण के साथ-साथ, उदार-विचारधारा के प्रति झुकाव रखने वाली नई पीढ़ी के बढ़ने से रिपब्लिकन के टेक्सास, एरिजोना और जॉर्जिया जैसे भरोसेमंद गढ़ ढहते नजर आ रहे हैं.

युवा शहरी उदारवादियों का बढ़ता प्रभाव—जो हालिया मध्यावधि चुनावों में दक्षिणपंथियों के वर्चस्व वाले राज्यों में डेमोक्रेट्स के अप्रत्याशित ढंग से बेहतरीन प्रदर्शन से साफ दिखता है—बदलावों के लिए बाध्य करने वाला है. पत्रकार डेरेक थॉम्पसन का मानना है कि, रिपब्लिकन को ‘जेनोफोबिया पर रुढ़िवादी भावनाओं को हवा देना बंद करना होगा, (और) न्यू साउथ बने वोटबैंक को साधने के लिए अधिक आक्रामक ढंग से प्रतिस्पर्धा करनी होगी, जिसका मतलब है उदारवादियों, अश्वेत मतदाताओं और आप्रवासियों की पार्टी बनना.’

धुर दक्षिणपंथियों—कट्टरपंथी ईसाइयों, श्वेत वर्चस्ववादियों, यहूदी-विरोधियों, उत्तरजीवितावादियों आदि—के लिए इसका मतलब है दशकों की मेहनत के बाद जो राजनीतिक प्रभाव कायम किया है, उसे ही गंवा देना. द राइट को उम्मीद थी कि ट्रम्प एक नई सहस्राब्दी की शुरुआत करेंगे जिसमें अमेरिका की महानता ईश्वर और श्वेत वर्चस्ववाद के इर्द-गिर्द केंद्रित होगी, लेकिन ये सपना टूटता जा रहा है. यह राजनीतिक हार कैसे नए खतरों को जन्म दे सकती है—यह आक्रामक विचारधारा वाले लोगों के आतंकवाद की ओर रुख करने से जाहिर भी होता है.


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कहीं ये अमेरिका के लोन वुल्फ तो नहीं

लोन वुल्फ को सिर्फ जिहादी सोच का नतीजा नहीं कहा जा सकता. नव-नाजी समूह ‘आल्ट-राइक-नेशन’ सदस्य सीन उरबांस्की ने एक बस स्टाप पर खड़े रिचर्ड कोलिन्स को सिर्फ इसलिए मार डाला, क्योंकि नए-नए सेकेंड लेफ्टिनेंट बने रिचर्ड ने अपनी जगह से हटकर उसे रास्ता नहीं दिया था. जेरेमी क्रिश्चियन ने पोर्टलैंड में एक ट्रेन में दो लोगों की हत्या कर दी, जो उसे हिजाब पहने एक महिला का अपमान करने से रोक रहे थे.

संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) के एजेंट अक्सर ही धुर-दक्षिणपंथी लोगों को बम बनाने के तरीके बताने वाले पर्चे बांटते और धार्मिक और नस्लीय अल्पसंख्यकों पर बड़े पैमाने पर हमलों की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार करते रहते हैं.

क्रिमिनोलॉजिस्ट मैथ्यू स्वीनी और अर्लियर पर्लिगर के मुताबिक, अमेरिका में धुर-दक्षिणपंथियों का आतंकवाद अमूमन आवेग में आकर अंजाम दी गई घटनाओं से जुड़ा है, जिसके लिए ‘अक्सर कोई खास योजना नहीं बनाई जाती है और इसे अंजाम देने वाले अपराधी न तो किसी सक्रिय समूह से जुड़े होते हैं और न ही उनकी कोई आपराधिक या हिंसक पृष्ठभूमि होती है.’

हालांकि, चिंता करने के पर्याप्त कारण हैं. कैथलीन बेलेव ने अमेरिकी सेना के अंदर आतंकवाद को लेकर शानदार शोध पर आधारित अपनी किताब में लिखा है कि अमेरिका के लंबे समय तक चलने वाले युद्धों से नाराज पूर्व सैनिकों के बीच एक अलग ही तरह का ब्रदरहुड जन्मा, जिनकी राय में एक भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था ने उन्हें जीत से वंचित कर दिया. द ओथ कीपर्स जैसे संगठनों का दावा है कि बंदूकों और ट्रेनिंग सेल को सैन्य रणनीति में इस्तेमाल करके अमेरिका ने एक तरह से अपने नागरिकों के अधिकारों को सीमित करने की साजिश ही रची है.

मानवविज्ञानी जॉन कोनर बताते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की हार ने भी पूर्व सैनिकों में इसी तरह के ब्रदरहुड को जन्म दिया था और वे नाजीवाद की ओर आकृष्ट हुए—उनमें एक तरह का उन्माद चरम पर था जिसमें वह खुद को बर्बरता के खिलाफ लड़ने वाला आखिरी सिपाही मानते थे.

विद्वान ऐरी पेरिलिगर ने लिखा है, एक दूसरी प्रवृत्ति उन उन्मादी लोगों से बनती है जो मानते हैं कि लेफ्ट-विंग की तरफ से अमेरिका के ईसाई-बहुल स्वरूप को खत्म करने की साजिश रची जा रही है. एक प्रभावशाली फार-राइट ऑनलाइन नेटवर्क पर एक पोस्ट में एक नेता ‘हमारे स्कूलों से प्रार्थना हटाने, हमारी सरकारी संपत्ति से क्रिसमस के दृश्यों को हटाने, कई म्यूनिसिपल फ्लैग और लोगो से क्रॉस या किसी भी धार्मिक प्रतीकों को हटाने’ की ओर ध्यान आकृष्ट करते हैं.

पत्रकार जेम्स पोग का तर्क है, अप्रभावित एलीट न्यू राइट को भी इन समूहों में जोड़ना चाहिए, मसलन—’दुनिया में अनाम ब्रो-ईश ट्विटर पोस्टर, ऑनलाइन फिलॉस्फर, कलाकार, और अनाकार सिनेस्टर को ‘असंतुष्ट’, ‘नव-प्रतिक्रियावादी’ ‘उत्तर-वामपंथी’ या ‘हेटरोडॉक्स’ जैसे मुक्त तत्वों के तौर पर जाना जाता है.

यूरोपीय राजशाही से लेकर बमबारी करने वाले टेड काक्जिनस्की तक विविध तरह के इंफ्लूएंशर्स से प्रभावित ये समूह मानता है कि ‘व्यक्तिवादी उदारवादी विचारधारा, नौकरशाह सरकारों का बढ़ना, और बड़े पैमाने पर तकनीक का आना, यह सब कुल मिलाकर एक ऐसी दुनिया बना रहे हैं जो कभी अत्याचारी, अराजक और मूल्य आधारित व्यवस्था और नैतिकता से रहित थी.

लंबे समय से जारी है नस्लीय तनाव

दक्षिणपंथी श्वेत मतदाता की चिंताओं को समझने के लिए किसी खास कल्पनाशक्ति की जरूरत नहीं है. इस सदी के उत्तरार्द्ध में अमेरिका एक श्वेत-बहुसंख्यक देश से एक ऐसे देश में बदल जाएगा जहां गोरे केवल सबसे बड़ा एकल जातीय समूह होंगे. विशेषज्ञों का अनुमान है कि 18 से 29 आयु वर्ग वाले समूह के लिए तो टिपिंग प्वाइंट बहुत जल्द ही आ जाएगा, शायद इस दशक के भीतर ही. हालांकि, विविधता को अपनाने में अमेरिका कभी पीछे नहीं रहा है, लेकिन कुछ लोगों—खासकर छोटे शहरों और ग्रामीण समुदायों—की नजर में यह बदलाव कुछ ज्यादा ही तेजी से हो रहे हैं.

अमेरिका में पहले भी ऐसा होता रहा है—1850 के दशक से 1870 के दशक तक; 1915 से 1920 के दशक तक; 1950 से सिविल राइट मूवमेंट तक. अमेरिका के श्वेत राष्ट्रवादी हमेशा ही समानता को लेकर अश्वेतों के दावों को दबाने के लिए बड़े पैमाने पर हिंसा का सहारा लेते रहे हैं.

19वीं शताब्दी के फ्रांसीसी राजनयिक एलेक्सिस डी टोकेविले ने लिखा था, ‘लगभग उन सभी राज्यों, जहां गुलामी की प्रथा खत्म कर दी गई, में एन…को मताधिकार तो मिल गए लेकिन उनके लिए वोटिंग का मतलब अपनी जान जोखिम में डालना है.’ उन्होंने आगे बताया, ‘उन्हें श्वेत लोगों की तरह पूजा करने की अनुमति है, लेकिन उन्हें एक ही धार्मिक स्थल पर पूजा नहीं करनी चाहिए.’

डेसमंड किंग और स्टीफन टक जैसे विद्वानों का अध्ययन बताता है कि लिबरल नार्थ में भी चीजें अलग नहीं थीं. उदाहरण के तौर पर जनसंख्या समायोजित करने की स्थितियों के बारे में बात करें तो अश्वेत अमेरिकियों को साउथ से इतर भी लिंच किए जाने का बहुत अधिक जोखिम था.

भारी पड़ गए ट्रम्प के वादे

स्कॉलर रोजर्स स्मिथ और डेसमंड किंग कहते हैं कि ट्रंप ने अपने समर्थकों से ‘श्वेतों के हितों के संरक्षण’ का वादा किया था. उन्होंने जिस तरह के कदम उठाने की बात कही, उनमें ‘स्वैच्छिक पुलिसिंग, सिविल राइट्स पर अमल घटाना, और मताधिकार और आप्रवासन सीमित करना’ आदि शामिल थे. ट्रंप अपने वादे के मुताबिक न केवल संबंधित कार्यक्रमों पर वीटो करते रहे बल्कि ‘ऐसे सक्रिय उपायों पर जोर देते रहे जिन्हें कथित असमानताओं को दूर करने के बजाये श्वेतों के पक्ष में माना गया.’

गौरतलब है कि नस्लीय संघर्ष कमजोर पड़ जाने के डर से ही अमेरिका ने राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन के अगुआई में चलने का फैसला किया था जो कि अपने इरादों और धारणाओं के खिलाफ समानता पर जोर देते रहे थे.

यद्यपि इसके फायदे हुए लेकिन आस-पड़ोस और शहरों में अभी भी एक विभाजन नजर आता है. हर तीसरे अश्वेत परिवार के पास कोई संपत्ति नहीं या वे कर्ज के बोझ तले दबे हैं, और तीन अश्वेत बच्चों में से एक गरीबी में जीता है. फ्रैंक एडवर्ड्स, हेडविग ली और माइकल एस्पोसिटो ने यह तथ्य भी सामने रखा है कि श्वेतों की तुलना में अश्वेत पुरुषों और लड़कों को पुलिस द्वारा मार गिराए जाने की संभावना दोगुनी रहती है.

अमेरिका अब जब चीन और रूस के साथ बढ़ी रणनीतिक प्रतिस्पर्धा में उलझा है, उसके लिए अपनी इन समस्याओं का समाधान निकाला बहुत ही जरूरी है—लेकिन ऐसा करने पर उसे श्वेतों का कोपभाजन झेलना पड़ सकता है.

मध्यावधि चुनावों में भले ही अमेरिकी राजनीति में अति-आतंकवाद तत्वों की हार दिखी हो, लेकिन मार-ए-लागो की बैठक बताती है कि अमेरिकी लोकतंत्र में सब-कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा. अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ा रहा रिपब्लिकन आंदोलन एक दोराहे पर पहुंचकर विभाजित नजर आ रहा है जिसमें एक ओर जनसांख्यिकीय आंकड़ों की हकीकत के साथ कदमताल करने वाले मध्यमार्गी हैं तो दूसरी तरफ उनके प्रतिद्वंद्वी जो देश में अति-आतंकवाद तत्वों की भावनाओं को मुखर बनाने के इच्छुक हैं. अमेरिकी लोकतंत्र का भाग्य इनके संघर्ष से तय होने वाली जीत-हार पर ही निर्भर करेगा.

(लेखक दिप्रिंट में नेशनल सिक्योरिटी एडिटर है. उनका ट्विटर हैंडल @praveenswami है. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद- रावी द्विवेदी)

(संपादन: आशा शाह)


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