नई दिल्ली: बच्चन, बिग बी और एबी से लेकर ‘कंप्यूटर जी लॉक किया जाए’ कहने के उनके अनोखे अंदाज तक- हर कोई उनका दीवाना है. लेकिन कुछ लोग या कंपनियां ऐसी हैं जो बिग की इस पर्सनालिटी, कड़क आवाज और तस्वीरों को बिना उनकी इजाजत के अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने में लगे हैं. इसी के चलते अभिनेता अमिताभ बच्चन ने दिल्ली हाईकोर्ट से अपने पर्सनालिटी राइट्स, अपनी फोटो, नाम और आवाज की सुरक्षा की मांग की.
बच्चन ने ‘एक सेलिब्रिटी के तौर पर अपने पब्लिसिटी राइट्स’ के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए एक याचिका दायर की थी. उन्होंने कहा था कि कुछ लोग बिना उनकी इजाजत के अपने फायदे के लिए उनके सेलिब्रिटी स्टेटस का इस्तेमाल कर रही हैं. जो सरासर गलत है और कानून का उल्लंघन है.
उन्होंने अदालत से कहा कि बिना उनकी इजाजत के किसी भी निजी या कमर्शियल फायदे के लिए उनके नाम, आवाज या फोटो या फिर उनकी पर्सनालिटी से संबंधित कंटेंट के इस्तेमाल करने पर स्थायी रोक लगाई जाए. उनका कहना था कि कुछ लोग उनके नाम आदि का गलत तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे उनकी इमेज को नुकसान पहुंच रहा है. वकीलों ने उनकी प्रतिष्ठा और सद्भावना के नुकसान के बदले दो करोड़ रुपये की भी मांग की.
इस मुकदमे की एक प्रति दिप्रिंट के पास भी है. इसमें ‘जॉन डो’ और ‘अशोक कुमार्स’ यानी कुछ अज्ञात कंपनियों के अलावा नौ जाने-पहचाने नामों के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया था. उन्होंने अपने अपनी ‘कड़क, पावरफुल बैरिटोन आवाज’, उनका नाम और उनकी फोटो आदि का बिना उनकी इजाजत के इस्तेमाल न किए जाने की मांग की थी. इसमें उनके तरह-तरह के नाम जैसे बच्चन, एबी और बिग बी का इस्तेमाल किया जाना भी शामिल है. दिल्ली हाईकोर्ट ने उनके हक में फैसला सुनाते हुए पाया कि कंपनियां या लोग अभिनेता की अनुमति के बिना अपने बिजनेस और उत्पादों का प्रचार-प्रसार करने और अपनी मार्केटिंग करने के लिए बिग बी की तस्वीरों, आवाज, ब्रांडिंग आदि का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह उनके अधिकारों का उल्लंघन है.
उनके इस मुकदमे में उन्होंने अपने खास अंदाज में बोले जाने वाक्य जैसे ‘कंप्यूटर जी लॉक किया जाए’ आदि पर भी रोक लगाने की मांग की थी.
25 नवंबर को दिए गए अपने फैसले में जस्टिस नवीन चावला ने पाया कि दूसरा पक्ष ‘वादी की अनुमति के बिना, अपने फायदे के लिए उनकी सेलिब्रिटी स्टेटस का इस्तेमाल करता हुआ नजर आ रहा हैं’. उन्होंने कहा कि बच्चन एक मशहूर शख्सियत हैं. ऐसा करने से ‘उनकी इमेज पर गलत प्रभाव पड़ने की संभावना है’. और अपनी शिकायत में उन्होंने जिन कुछ गतिविधियों का जिक्र किया है, उससे उनकी बदनामी भी हो सकती है.’
जस्टिस चावला ने निषेधाज्ञा का ‘पूर्व-पक्षीय विज्ञापन-अंतरिम आदेश’ जारी किया. यह अंतरिम आदेश प्रतिवादियों को सुने बिना पारित किया गया है. इसका मतलब यह है कि बच्चन की पर्सनालिटी से जुड़ी किसी भी चीज यानी उनकी आवाज, फोटो, बोलने के लहजे आदि का व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए बिना उनकी इजाजत के इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
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क्या हैं पर्सनालिटी राइट्स
हालांकि पर्सनालिटी राइट्स की कानून के तहत कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं है, अदालतों ने इसे निजता के अधिकार के अंतर्गत आने वाले कानून के रूप में परिभाषित किया है और माना कि ‘पर्सेनिलिटी राइट उन लोगों के लिए जरूरी है जिन्हें सेलिब्रिटी का दर्जा प्राप्त है’.
उन्होंने समझाया है कि पर्सनालिटी राइट्स के अंतर्गत मशहूर व्यक्ति की आवाज, उसके हाव-भाव और सिग्नेचर शामिल है. उदाहरण के लिए फरवरी 2015 में मद्रास उच्च न्यायालय ने फिल्म ‘मैं हूं रजनीकांत’ की रिलीज पर रोक लगाकर अभिनेता रजनीकांत के पर्सनालिटी राइट्स की रक्षा की थी.
अमिताभ बच्चन की ओर से इस मामले की पैरवी वकील हरीश साल्वे के साथ अमित नाइक और प्रवीण आनंद ने भी की थी. आदेश पर टिप्पणी करते हुए कानूनी फर्म आनंद एंड नाइक के पार्टनर वकील आनंद ने दिप्रिंट को बताया कि यह आदेश ‘किसी व्यक्ति की पर्सनालिटी की मजबूत पहचान’ कराती हैं, जो उनका नाम, छवि, आवाज और हस्ताक्षर कुछ भी हो सकते हैं.
आनंद ने जोर देकर कहा कि इसके तहत पब्लिक फिगर की पर्सनालिटी से जुड़े विभिन्न पहलुओं को संरक्षित किया जा सकता है. उन्होंने समझाते हुए कहा, ‘कानून दो चीजों को रोकता है. यानी एक ऐसी दुनिया में पर्सनालिटी की रक्षा करना जहां फेक न्यूज जंगल में आग की तरह फैलती हैं और दूसरा, आम जनता को उस धोखे से बचाना जहां हस्तियां अक्सर निर्णय लेने के लिए प्रेरित और प्रभावित करती हैं.’
आनंद ने कहा, ‘उदाहरण के लिए अगर अमिताभ बच्चन लॉटरी का टिकट खरीदने के लिए कहते हैं, तो लोग बात मान लेते हैं और अंत में धोखा खा सकते हैं.’
‘जंजीर’ से लेकर ‘अमर अकबर एंथनी’ तक
इस मुकदमे में बच्चन की फिल्म ‘जंजीर’ से लेकर ‘अमर अकबर एंथोनी’ तक के उनके फिल्मी सफर के बारे में बात की, जिसके जरिए उन्होंने ‘भारतीय दर्शकों के साथ गहरा रिश्ता बनाया और भारतीय फिल्म उद्योग में सबसे लोकप्रिय अभिनेता के रूप में उभरे’. याचिका की सुनवाई के समय कहा गया कि वह ‘एक अनुकरणीय नागरिक’ हैं. यहां उनकी उपलब्धियों और पुरस्कारों की भी बात की गई.
क्योंकि वह एक बड़ी हस्ती हैं, इसलिए उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत अपने निजता के अधिकार के लिए ‘पर्सेनैलिटी / प्राइवेसी राइट्स’ की मांग की है. इसके साथ ही उन्होंने कॉपीराइट अधिनियम 1957 के तहत अपने अधिकारों पर भरोसा जताया, जो धारा 38 (कलाकार का अधिकार), 38ए (कलाकारों का विशेष अधिकार) और 38बी (कलाकारों के नैतिक अधिकार) के तहत लेखकों और कलाकारों को उनके काम के क्रेडिट और ऑथरशिप का दावा करने का अधिकार देता है.
नौ अन्य लोगों और कंपनियों के साथ अज्ञात उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया था. प्रतिवादियों में एक दिल्ली स्थित रजत नेगी शामिल है, जिसने ‘अमिताभ बच्चन वीडियो कॉल’ नामक एक मोबाइल ऐप बनाया है.
याचिका के अनुसार, ऐप से लोग बच्चन जैसी आवाज में ‘वीडियो कॉल / प्रेंक कॉल और वॉयस कॉल कर सकते हैं. एक अन्य आरोपी कोलकाता का रहने वाला राणा प्रताप सिंह हैं, जिन पर ‘केबीसी लॉटरी’ पर व्हाट्सएप मैसेज फैलाने का आरोप लगाया गया है. इस लिस्ट में त्रिपुरा की एक कंपनी मैसर्स स्वैग शर्ट्स भी शामिल है, जो बच्चन के चेहरे वाली टी-शर्ट ऑनलाइन बेचती है. इसके अलावा ग्वालियर की एक कंपनी का नाम भी है, जो बच्चन की तस्वीरों वाले दीवार पोस्टर बनाती है.
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‘अशोक कुमार’ कनेक्शन
ऐसे अधिकारों के मामले में अधिकारों का उल्लंघन करने वाले सभी लोगों को ट्रैक करना लगभग असंभव हो जाता है. इसलिए पार्टियां अक्सर बलैंकेट निषेधाज्ञा या बैन ऑर्डर पाने का प्रयास करती हैं, जिसे ‘जॉन डो ऑर्डर’ के रूप में जाना जाता है. यह सबसे पहले यूके में आया था. भारत में इसे ‘अशोक कुमार ऑर्डर’ के नाम से जानते हैं.
इंटलेक्चुअल राइट लिटिगेशन में विशेषज्ञता रखने वाली एक कानूनी फर्म इरा लॉ में अटॉर्नी कृतिका विजय ने कहा कि पब्लिसिटी राइट्स के मामलों में जॉन डो के आदेश ‘काफी हद तक असामान्य हैं क्योंकि ये मुकदमे आमतौर पर तब शुरू किए जाते हैं जब ऐसे व्यक्ति की पहचान कर ली गई होती है, जिसने किसी सेलिब्रिटी के नाम या उसकी पर्सनालिटी से जुड़ी किसी चीज का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए गलत तरीके से किया है.’
उन्होंने कहा, ‘बच्चन की रेपुटेशन, गुडविल और क्रेडिबिलिटी और जनता को धोखा देने व मुनाफा कमाने के मकसद से तीसरे पक्ष की कृत्यों को देखते हुए यह आदेश अपने आप में आश्चर्यजनक नहीं है.’
‘सेलिब्रिटी को प्रोत्साहन’
नाइक ने इस मामले में अज्ञात अपराधियों के खिलाफ ऐसे आदेश से पड़ने वाले असर के बारे में भी बताया. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘अगर स्टेडियम के बाहर अमिताभ बच्चन की नकली टी-शर्ट बिक रही है, तो उसे रोकने से पहले निर्माता और विक्रेता की पहचान निर्धारित करना बिल्कुल ही अव्यावहारिक है. क्योंकि तब तक हम उन्हें खोजेंगे सामान बिक चुका होगा. जॉन डो ऑर्डर गलत करने वाले व्यक्ति को अदालती कार्यवाही में एक पक्ष बनाने से पहले रोकने में सक्षम बनाता है.
उन्होंने जोर देकर कहा कि व्यक्ति या कंपनी की पहचान ने हो पाने की वजह से इंटरनेट पर यह कानून कमजोर पड़ जाते हैं और इन्हें प्रबंधित करने का एक तरीका गलत करने वाले की पहचान किए बिना गलत को रोकने में सक्षम होना है.
विजय ने कहा कि यह आदेश अन्य हस्तियों को इसी तरह के मामले दर्ज करने के लिए आगे लाने में मदद करेगा. उन्होंने कहा, ‘ऐसे बहुत ही कम चर्चित मामले हैं जहां मशहूर हस्तियों ने अपने पब्लिसिटी राईट्स की रक्षा के लिए खुद अदालतों का दरवाजा खटखटाया है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘दिल्ली के उच्च न्यायालय का इस आदेश की ताकत और व्यापक प्रकृति को देखते हुए, उम्मीद है कि यह आदेश उन मशहूर शख्सियतों को भी आगे आने की हिम्मत देगा जो आमतौर पर अपने नाम और अपनी पर्सनालिटी से मिलती-जुलती चीजों के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के बावजूद किसी भी मुकदमे को दायर करने से हिचकिचाते हैं.’
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अनुवाद: संघप्रिया मौर्या
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