मुकेश अंबानी कहते रहे हैं कि उनकी रिलायंस कंपनी किसी व्यवसाय में तभी हाथ डालती है जब उसे भरोसा होता है कि वह उस व्यवसाय का चेहरा बदल सकती है. टाटा ग्रुप के अध्यक्ष नटराजन चंद्रशेखरन तो और भी सतर्कता बरतते हैं लेकिन इसमें शक नहीं है कि उड्डयन के व्यवसाय में एक विशाल एयरलाइन के निर्माण— जिसकी घोषणा टाटा समूह ने इस सप्ताह की है— वह इस व्यवसाय का पूरा स्वरूप बदल सकता है.
इस नई एयरलाइन में एयर इंडिया (113 विमान), विस्तारा (54 विमान), एयर इंडिया एक्सप्रेस (24 विमान) और एयर एशिया (28 विमान) शामिल होंगे. यह भारत में उड़ान भरने वाली सबसे बड़ी विमान सेवाओं में शुमार होगी. और अगर चर्चाओं पर ध्यान दें तो टाटा समूह अगले कुछ वर्षों में 300 और विमानों की खरीद करेगा या पट्टे पर लेगा. इस तरह वह एशिया की सबसे महत्वपूर्ण एयरलाइन बन जाएगी.
इस क्षेत्र में उसे एक मात्र चुनौती देने वाली एयरलाइन होगी एमिरेट्स. याद रहे कि इसे कुछ बिजनेस भारत में मिलता है. भारत से पश्चिमी देशों के लिए सीधी उड़ानें इतनी कम हैं कि यात्रियों को दुबई में विमान बदलना आसान लगता है, जो कि भारत के लिए सबसे बड़ा एयरलाइन केंद्र बन गया है. नयी ताकत के साथ रनवे पर उतरी एयर इंडिया इस स्थिति को आसानी से बदल सकती है.
चूक कहां हुई
यात्रा और उड्डयन के बारे में इतने सालों से लिखते हुए मुझे एक विचित्र विरोधाभास दिखा है. भारतीय लोग प्रायः एयर इंडिया के बारे में शिकायत करते हैं, लेकिन अगर आप इस एयरलाइन के बारे में सकारात्मक ट्वीट करें तो आपको उतना ही सकारात्मक जवाब मिलेगा.
हमें एयर इंडिया की आलोचना करना अच्छा लग सकता है लेकिन आलोचना पर प्यार भारी पड़ता है. अधिकतर भारतीयों में इस एयरलाइन के प्रति काफी सद्भावना भरी है. यह हमारी एयरलाइन है इसलिए हमें इससे प्यार है. लेकिन कई दशकों में आईं सरकारों ने कुछ ऐसा किया है कि यह एयरलाइन जिस प्यार का हकदार है वह उसे मिल पाना मुश्किल हो गया.
हमेशा ऐसी स्थिति नहीं थी. 1960 के दशक तक (जब इसका राष्ट्रीयकरण किया गया लेकिन जेआरडी टाटा को इसका चेयरमैन बनाए रखा गया) एयर इंडिया को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ एयरलाइन्स में गिना जाता रहा. उन दिनों, मध्य-पूर्व में कोई एयरलाइन न के बराबर थी, और सिंगापुर एयरलाइन्स मलेशियाई विमान सेवा का ही संयुक्त उपक्रम था. एयर इंडिया आसमान पर राज कर रहे बीओएसी, पैनऐम, टीडब्लूए जैसी विशालकाय एयरलाइन्स के विकल्प के रूप में बेहतर सेवा देने के लिए मशहूर थी.
लेकिन 1970 के दशक में हालात बिगड़ गए, जब करण सिंह सरीखे नागरिक उड्डयन मंत्रियों (जिन्होंने एयर इंडिया के कामकाज में अनावश्यक दखल न देकर उसका कामकाज हमदर्दी से चलाया और उसे सफल बनाया) की जगह ऐसे मंत्री आए जो खुद को उसका मालिक समझ बर्ताव करने लगे. सबसे बुरी बात यह हुई कि नौकरशाह उसके संचालन की छोटी-छोटी बातों में टांग अड़ाने लगे. 1980 के दशक तक, स्थिति यह हो गई कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय का संयुक्त सचिव एयर इंडिया के रोज-रोज के कामों में उसका असली बॉस बन बैठा.
हर किसी को यह मालूम था. लेकिन किसी सरकार ने इस मामले में कुछ नहीं किया. 1990 के दशक में, नागरिक उड्डयन मंत्री माधवराव सिंधिया ने इसका निजीकरण करने की कोशिश की लेकिन यह प्रस्ताव मंत्रिमंडल से आगे नहीं बढ़ पाया. इसके एक दशक बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने फिर यह कोशिश की लेकिन टाटा के सिवा किसी ने इसमें दिलचस्पी नहीं ली इसकी कोई बोली नहीं लगाई गई.
नरेंद्र मोदी सरकार को इसका श्रेय दिया जाना चाहिए कि जो काम तीन दशक पहले हो जाना चाहिए था वह अब हुआ है. संयोग से निजीकरण का जो काम पिता ने शुरू किया था उसे उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पूरा किया है. और इस बार भी टाटा ने ही गंभीरता से बोली लगाई (मुझे शक है कि स्पाइसजेट वास्तव में गंभीर थी), तो सरकार ने फटाफट काम को संपन्न किया.
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एक चतुराई भरा व्यावसायिक उद्यम
तमाम नकारात्मकता के बावजूद, भारत में एक एयरलाइन के फलने-फूलने की पूरी गुंजाइश है. हम अक्सर भूल जाते हैं कि इंडिगो कितनी बड़ी एयरलाइन बन गई है, उसके पास 289 विमान हैं और वह टाटा की नयी कंपनी से बड़ी ही होगी. और वह मुख्यतः घरेलू सेक्टर में ही सक्रिय है.
भारतीय लोग भी हॉस्पिटैलिटी में कम नहीं हैं. टाटा को यह मालूम है, वह ताज ग्रुप चलाती है, जो दुनिया के सबसे मजबूत होटल ब्राण्डों में शुमार है. जेट एयरवेज जब सक्रिय थी तब उसने इस क्षेत्र में एमिरेट्स और सिंगापुर एयरलाइन्स के बराबर की सेवाएं देकर एयरलाइनों के लिए नया पैमाना गढ़ा था. महत्वाकांक्षी उद्यमियों द्वारा स्थापित जेट और इंडिगो अगर यह सब कर सकती है तो भारत का सबसे प्रतिष्ठित व्यावसायिक घराना क्यों नहीं कर सकता?
इसलिए, भावुकता में की गई खरीद एक चतुर व्यावसायिक फैसला साबित हो सकता है. लेकिन यह आसान नहीं होगा. अपनी तमाम सफलताओं के बावजूद जेट एयरवेज अचानक धराशायी हो गई. सिंगापुर एयरलाइन और टाटा के अजेय दिखते मेल से बनी विस्तारा अपनी क्षमता कभी साबित नहीं कर पाई. सभी लिहाज से, खासकर ग्राउंड हैंडलिंग में दिलचस्प रूप से कमजोर यह ब्रांड (जेट के उत्कर्ष वाले दौर जैसी नहीं) दयनीय साबित हुई. नयी एयर इंडिया को जेआरडी की विरासत के अनुरूप बनना है तो उसे विस्तारा से कहीं बेहतर प्रदर्शन करना होगा.
अब तक तो संकेत अच्छे हैं. मुझे लगता है कि नयी कंपनी को घरेलू सेक्टर में इंडिगो से कड़ी चुनौती मिलेगी. लेकिन चुस्त प्रबंधन एयर इंडिया को इसमें वर्चस्व स्थापित करने में मदद देगा, जो कि इंडियन एयरलाइन्स वाले दिनों में उसका पारंपरिक बाजार रहा है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उसे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ एयरलाइनों में शुमार एमिरेट्स जैसी एयरलाइन से ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, खासकर तब जब वह प्रीमियम यात्रियों (जो हर एक एयरलाइन के मुनाफे के स्रोत होते हैं) को रिझाने की कोशिश करेगा.
पूरे जीवन मैं एयर इंडिया का घोर समर्थक रहा हूं लेकिन उसकी गलतियों की ओर से मैंनें आंखें नहीं मूंदी हैं. टाटा ने जब बागडोर संभाली उन्हें कई विमानों की आंतरिक बदहाली (मसलन टूटी सीटें) और बाहरी बदहाली (इंजनों की) देखकर सदमा लगा. एयर इंडिया के कई विमानों को बैठा देना पड़ा. इस वजह से कंपनी ने उन अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को रद्द कर दिया जो कोरोना से पहले की जा रही थीं.
लेकिन हौसले में काफी इजाफा हुआ है. हाल में मैंने तीन अंतर्राष्ट्रीय उड़ान भारी और उनमें (दिल्ली, सिडनी, बैंगलुरू, माले और लंदन में) ग्राउंड हैंडलिंग शानदार पायी, अमेरिकी या यूरोपीय एयरलाइन से बेहतर.
समस्या विमान के अंदर के अनुभव को लेकर है. खाना, शराब आदि में सुधार करने की जगह टाटा ने केवल मेन्यु की भाषा में सुधार किया है, जो सुनने में शानदार है मगर स्वाद में बदतर. और विमान के अंदर की सेवाओं में वैसा सुधार नहीं हुआ है जैसा ग्राउंड हैंडलिंग में हुआ है.
लेकिन नयी एयर इंडिया को तैयार करने का उद्यम जारी है. किस्मत का साथ मिलेगा तो टाटा समूह इसे जल्दी ही दुरुस्त कर लेगा. और हां, वह उड्डयन उद्योग का चेहरा भी बदल देगा तथा भारत को एक ऐसी एयरलाइन देगा जिस पर हम सब गर्व कर सकेंगे.
(वीर सांघवी भारतीय प्रिंट और टीवी पत्रकार, लेखक और टॉक शो होस्ट हैं. उनका ट्विटर हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त विचार निजी हैं)
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(संपादनः शिव पाण्डेय)
(अनुवादः अशोक कुमार)
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