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Friday, 22 November, 2024
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भारत को मिली G20 की अध्यक्षता – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में शक्ति असंतुलन को ठीक करने का मौका

दुनिया भर में एआई की चुनौतियों पर विचार किए बगैर, इसके फायदों को समान रूप से ले पाना मुमकिन नहीं होगा, एक अधिक गैर- बराबर और विभाजित भविष्य की तरफ ले जा सकता है.

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दुनिया की सबसे उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या एआई का इस्तेमाल आपको हर जगह दिखेगा, टार्गेटेड एडवर्टाइजिंग से लेकर प्रिसिजन एग्रीकल्चर और सेहत से जुड़े बेहतर डायग्नॉस्टिक तक. उन देशों में भी, जहां अभी एआई की पहुंच सीमित है, यह इनोवेशन के इंजन की तरह काम कर रहा है और सामाजिक और आर्थिक विकास के रास्ते में चली आ रही लंबे समय की चुनौतियों से निपटने के नए तरीके सुझाने की संभावना रखता है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर ग्लोबल पार्टनरशिप के संस्थापक सदस्य और एआई अपनाने वाले शुरुआती देश के रूप में, भारत ने प्रौद्योगिकी के लिए विशिष्ट और महत्वपूर्ण तैयारी दिखाई है.

हालांकि, एआई के प्रसार के पिछले दशक ने साफ- साफ दिखाया है कि इसके दूरगामी नुकसान भी हो सकते हैं जिन पर काम करना जरूरी है. उदाहरण के लिए, यह साबित हो चुका है कि व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए मौजूद फेशियल एनालिसिस सॉफ्टवेयर में नस्लीय और लिंग- आधारित पूर्वाग्रह हैं, और अगर कानून लागू करने वाली एजेंसियां इनका इस्तेमाल करती हैं तब नतीजे गंभीर नुकसान पहुंचाने वाले हो सकते हैं, और व्यक्तियों की गलत पहचान हो सकती है.

अमेरिका में, बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए गए हेल्थ- रिस्क प्रिडिक्शन एल्गोरिदम अश्वेत मरीजों के प्रति भेदभाव दिखाते रहे हैं, जिसका नतीजा यह हुआ कि देखभाल के मानकों में बड़ा अंतर. ब्लैक- बॉक्स की तरह, एआई का डेटा के आधार पर संचालित होने का स्वभाव पूर्वाग्रह को छिपाने और जवाबदेही को नजरअंदाज करने का असरदार साधन बना देता है, और कभी- कभी ये ताकतवर प्रौद्योगिकी अधिकारों की रक्षा के खिलाफ चली जाती है.

इस बात से चिंतित होना वाजिब है कि एआई पर निर्भरता लंबे समय से चले आ रहे शक्ति के असंतुलन और भेदभाव को तेज कर देगी, और हाशिए पर, बहिष्कृत, या उत्पीड़ित समुदायों को इस नुकसान का खामियाजा भुगतना पड़ेगा. ऐसे समुदाय दुनिया भर में मौजूद हैं. हालांकि, उन प्रभावित समुदायों में – जो आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े देशों में हैं – ऐसे नजरिए वाले लोगों की कमी लगातार बनी हुई है कि एआई से होने वाले नुकसानों पर वैश्विक सहमति बनाई जाए और इसके लिए जिम्मेदार एआई समुदाय इन पर विचार करे.

कुछ आशावादी कदमों के बावजूद, ग्लोबल एआई गवर्नेंस को आकार देने का जिम्मा मुख्य रूप से आर्थिक रूप से उन्नत देशों के विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के पास है, जबकि एआई टेक्नोलॉजी को आर्थिक- सामाजिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में तैनात और निर्यात किया जा रहा है.


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भारत का नेतृत्व महत्वपूर्ण क्यों है

भारत इस चुनौती से निपटने के लिए अच्छी स्थिति में है. जी20 के भीतर इसकी भूमिका, और डिजिटल बदलाव के फायदे सभी तक पहुंचाने का इरादा इसे एआई के विकास और प्रसार को सक्रिय रूप से आगे बढ़ा रहे लोगों को ये समझाने में मदद कर सकता है कि कुछ दर्दनाक सच्चाई ना सिर्फ घरेलू मोर्चे पर बल्कि दुनिया भर में आकार लेने लगी हैं.

एआई सिद्धांतों की औपचारिक घोषणाएं सरकारों, अंतर-सरकारी संगठनों, कॉर्पोरेशन, और सिविल सोसायटी गठबंधनों ने पेश की हैं. उन्होंने जवाबदेह एआई की कई परिभाषाएं दी हैं, साथ ही प्रासंगिक खतरों से निपटने के तरीके भी बताए हैं. 2019 में, इसी तरह के एआई सिद्धांतों को जी20 ने अपनाया, जो ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) की सिफारिशों पर आधारित था.

लेकिन जब भारत जी20 के नेतृत्व की भूमिका में कदम रख रहा है, तो इसके सामने मौका है ना सिर्फ इस एजेंडे को प्राथमिकता देने का कि इन सिद्धांतों को कैसे लागू किया जाए, बल्कि यह तय करने का भी कि ऐसा किसके द्वारा हो और किसके लिए हो.

उदाहरण के लिए, जो लोग मानव- केंद्रित एआई की वकालत कर रहे हैं, वे अक्सर एआई उपकरणों का उत्पादन कर रहे ‘ह्यूमन सप्लाई चेन’ को नजरअंदाज कर देते हैं. ये लोग ट्रेनिंग डेटा को लेबल करने का थकाऊ और कम तनख्वाह वाला काम कर रहे हैं या कंटेंट मॉडरेशन का भावनात्मक रूप से थकाने वाला और दर्दनाक काम कर रहे हैं. ‘बाजार- अनुकूलित’ श्रम व्यवस्थाएं इन कामों को उन लोगों तक पहुंचा देती हैं जो इन्हें सबसे कम पारिश्रमिक पर करने को तैयार रहते हैं, और अक्सर नाममात्र की सुरक्षा के साथ.

नतीजा ये कि ऐसे काम उन जगहों पर आउटसोर्स हो जाते हैं जहां व्यवस्थाएं शोषण आधारित होती हैं. उत्पादन में लगी इस मानवीय लागत को तब भी अक्सर नजर अंदाज किया जाता है, जब इस बात पर विचार किया जाता है कि किस तरह एआई पॉलिसी यह सुनिश्चित कर सकती है कि उसके उपकरणों का एंड-यूज ‘मानव- केंद्रित’ हो.

इसी तरह, एआई के नकारात्मक जलवायु प्रभाव तेजी से बढ़ते जा रहे हैं क्योंकि ऊर्जा की खपत करने वाले मॉडलों को ‘सबसे उन्नत’ करने का काम लगातार जारी है. एक बड़े एआई मॉडल की ट्रेनिंग सिर्फ एक बार भी की जाए तो वो पांच कारों के जीवन भर के उत्सर्जन को टक्कर दे सकती है. आर्थिक- सामाजिक पिछड़े देशों पर वैसे ही जलवायु परिवर्तन का असंगत बोझ है, ऐसे में एआई पर जिम्मेदारी भरी चर्चा को इस मुद्दे पर विचार से फायदा मिलेगा कि इस क्षेत्र की ऊर्जा खपत का सही तरीके से प्रबंधन कैसे किया जाए.

ग्लोबल एआई इकोसिस्टम लगातार इस तरह से विकसित हो रहा है कि एआई- आधारित प्रौद्योगिकियों का विकास और उपयोग स्थानीय, राष्ट्रीय, या वैश्विक स्तर पर शक्ति के असंतुलन से फायदा तक उठाता है. इसलिए हम ऐसा नहीं सोच सकते कि सभी प्रभावित लोगों की व्यापक और सार्वभौमिक भागीदारी के बगैर जवाबदेह एआई का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.

जी20 एक अच्छा अवसर है

सैद्धांतिक एआई को बढ़ावा देने की जी20 की कोशिशें ऐसा करने की अंतरराष्ट्रीय कोशिशों के साथ मेल खा सकती हैं जिनमें व्यापक प्रतिनिधित्व हो. 2021 में, यूनेस्को ने औपचारिक तौर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की नैतिकता पर सिफारिशों को अपनाया. इस गाइडेंस को विकसित करने और सोचने- विचारने के वैश्विक, सहयोगी दृष्टिकोण के कारण इसके प्रति ना सिर्फ विकसित देशों, बल्कि यूनेस्को के सभी 193 सदस्य देशों ने प्रतिबद्धता जताई है. इन प्रतिबद्धताओं का सफलतापूर्वक कार्यान्वयन अभी भी, भारत समेत, पूरी दुनिया में अभी दूर की कौड़ी है.

फिर भी कम से कम सफलतापूर्वक कार्यान्वयन की नींव डाल दी गई है. समावेशन, प्रतिनिधित्व, और अंतरराष्ट्रीय जुड़ाव, जिस पर एआई निर्भर करता है, को प्राथमकिता देकर, बड़े सिद्धांतों को धरातल पर उतारने की कोशिशें तब बेहतर नतीजे दिखाएंगी, जब ऐसा करने में स्थानीय दृष्टिकोण के साथ, नैतिक चिंताओं के व्यापक दायरे के बारे में सोचा जाएगा. ये चिंताएं दुनिया भर के अलग- अलग हिस्सों में पैदा होने लगी हैं.

जी20 एआई सिद्धांतों को लागू करने के एजेंडे के साथ यूनेस्को के कार्यान्वयन की कोशिशों से मिले सबकये सुनिश्चित करने में मदद करेंगे कि जिन रास्तों से दुनिया की सबसे उन्नत अर्थव्यवस्थाएं एआई में निवेश कर रही हैं, उनके फायदे सिर्फ कुछ लोगों को नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत को मिले.

विकासशील देशों में एआई की चुनौतियों पर विचार किए बिना, इसके नुकसानों से निपटने और इसके फायदों को समान रूप से लेने की अंतरराष्ट्रीय कोशिश नाकाफी रहेगी, और दुनिया को कहीं ज्यादा गैर- बराबरी और विभाजित भविष्य की तरफ ले जाएगी. चूंकि भारत अपना जी20 एजेंडा सेट करने जा रहा है, यह इस बात पर विचार करने का एक सही समय है कि आर्थिक- सामाजिक रूप से पिछड़े देशों से अधिक काम के इनपुट कैसे लें और वैश्विक समुदाय को अधिक जिम्मेदार, सैद्धांतिक एआई की तरफ कैसे ले जाएं.

ऑब्रा एंथोनी कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में टेक्नोलॉजी एंड इंटरनेशनल अफेयर्स प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं. यहां उनके निजी विचार व्यक्त किए गए हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक कर)

(अनुवाद: आदिता सक्सेना)
(संपादन: अलमिना खातून)


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