नई दिल्ली: अपनी खोजी पड़ताल के लिए प्रसिद्ध हो चुके कोबरापोस्ट ने एक नए घोटाले का पर्दाफाश किया है. कोबरा पोस्ट इसे देश का सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला बताया है जिसमें उसका दावा है कि यह करीब 31 हज़ार करोड़ रुपए से ज्यादा का घोटाला है. इस घोटाले की सूत्रधार निजी क्षेत्र की जानी मानी कंपनी दीवान हाउसिंग फिनांस कॉर्पोरेशन लिमिटेड यानि डीएचएफ़एल है. कोबरापोस्ट का आरोप है कि इस कंपनी ने कई शैल कंपनियों को करोड़ों रुपए का लोन दिया और फिर वही रुपया घूम फिर कर उन कंपनियों के पास आ गया जिनके मालिक डीएचएफ़एल के प्रमोटर है.
खोजी पड़ताल का दावा करने वाले कोबरापोस्ट का दावा है कि इस तरह से डीएचएफएल ने 31 हज़ार करोड़ से ज्यादा की हेराफेरी को अंजाम दिया है. इसके जरिए डीएचएफ़एल के मालिकों ने देश और विदेश में बड़ी बड़ी कंपनियों के शेयर और एसेट्स भी खरीदे हैं. ये एसेट्स भारत के अलावा इंग्लैंड, दुबई, श्रीलंका और मॉरीशस में खरीदी गई है. डीएचएफ़एल के मामले में एक बात और खुल के सामने आ रही है कि इन संदिग्ध कंपनियों को डीएचएफ़एल के मुख्य हिस्सेदारों ने अपनी खुद की प्रमोटर कंपनियों, उनकी सहयोगी कंपनियों और अन्य शैल कंपनियों के जरिए बनाया है. कपिल वाधवन, अरुणा वाधवन और धीरज वाधवन डीएचएफ़एल के मुख्य साझेदार है.
कोबरापोस्ट का कहना है कि इस तहकीकात के दौरान उसे डीएचएफ़एल के बड़े घोटाले के सिलसिले में कई और जानकारियां हाथ लगी हैं.
इस घोटाले को अंजाम देने के लिए डीएचएफ़एल के मालिकों ने दर्जनों शैल कंपनियां बनाई. इन कंपनियों को समूहों में बांटा गया. इन कंपनियोंमें से कुछ तो एक ही पते से काम कर रही है और उन्हे चला भी निदेशकों का एक ही ग्रुप रहा है. घोटाले को छुपाने के लिए इन कंपनियों का ऑडिट ऑडिटरों के एक ही समूह से कराया गया. बिना किसी सिक्योरिटी के इन कंपनियों को हजारों करोड़ रुपए की धनराशि कर्ज में दी गई. इस धन के जरिए देश और विदेश में निजी संपत्ति अर्जित की गई. स्लम डेव्लपमेंट के नाम पर इन शैल कंपनियोंको हजारों करोड़ रुपए की राशि लोन के तौर पर दी गई. लेकिन उसके लिए जरूरी पड़ताल की प्रक्रिया की अनदेखी की गई.
कोबरापोस्ट ने कहा है कि इस मामले में सारे नियमों को ताक पर रख दिया गया है. पोस्ट ने यह भी दावा किया है कि कंपनी ने बंधक या डेब्ट इक्विटी के प्रावधानों को भी दरकिनार कर दिया. लोन की धनराशि एक मुश्त सौंप दी गई जोकि स्थापित नियमों के विरुद्ध है. किसी भी प्रोजेक्ट के लिए लोन की धनराशि प्रोजेक्ट में हुए कार्य की प्रगति को देखते हुए दी जाती है. लेकिन यहां ऐसा देखने में नहीं आया है.
अधिकांश शैल कंपनियों ने अपने कर्जदाता डीएचएफ़एल का नाम और उससे मिले कर्ज की जानकारी को अपने वित्तीय ब्यौरा नहीं दर्शाया गया है जो सरासर कानून के विरुद्ध है. डीएचएफ़एल ने गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की कई कंपनियोंको 1160 करोड़ रुपए का कर्ज बांटा था.
कपिल वाधवन और धीरज वाधवन डीएचएफ़एल की फ़ाइनेंस कमेटी के सदस्य है. यह कमेटी 200 करोड़ या इससे ऊपर का लोन किसी भी कंपनी को दे सकती है. अपनी शक्ति और प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए दोनों ने उन शैल कंपनियों को लोन दिए जिनसे इनके निजी हित जुड़े थे. कोबरापोस्ट ने अपने खुलासे में यह भी कहा है कि कंपनी के मालिकों ने अपनी सहायक और शैल कंपनियों के जरिये एक बड़ी राशि रूलिंग भारतीय जनता पार्टी को भी दिए.
दिप्रिंट की टीम ने भारतीय जनता पार्टी से इस मामले में उनके कमेंट जानने की कोशिश की जिसका जवाब अभी तक नहीं मिला है. जैसे ही पार्टी की तरफ से कोई भी वर्जन आता है हम उनकी बात भी यहां शामिल करेंगे.
कोबरापोस्ट ने खुलासा करते हुए कहा है कि इस पूरे खुलासे से जाहिर है उपरोक्त सभी कारगुजारियां देश के सिविल और क्रिमिनल क़ानून को ताक पर रखकर किया गया. इसके अलावा कंपनी ने खुद की ऋण नीति और कॉर्पोरेट गवर्नेंस पॉलिसी दोनों को ताक पर रखकर ये सारे काम किए है. जहां तक क़ानून की बात है ये सारी गड़बड़ियां सेबी के नियमों, नेशनल हाउसिंग बोर्ड के दिशा निर्देशों, कंपनी एक्ट की कई धाराओं, इंकम टैक्स की विभिन्न धाराओं, आईपीसी की धाराओं और काले धन के शोधन से संबन्धित पीएमएल एक्ट का भी उल्लंघन है.
डीएचएफ़एल ने किया खंडन
कोबरापोस्ट के आरोपों का खंडन जारी करते हुए डीएचएफएल ने कहा है कि कंपनी एक कॉर्पोरेट है, हमारे पास क्रेडिट एजेंसियों की एएए रेटिंग है. कंपनी किसी भी तरह की जांच के लिए तैयार है और अपने ऊपर लगाए गए आरोपों का खंडन करती है.