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Friday, 15 November, 2024
होमदेश'अगर सबकुछ ठीक-ठाक है तो डरने की जरूरत नहीं': SC ने नए चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर सरकार से फाइल मांगी

‘अगर सबकुछ ठीक-ठाक है तो डरने की जरूरत नहीं’: SC ने नए चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर सरकार से फाइल मांगी

‘हम एक लोकतंत्र में रह रहे हैं’ जस्टिस केएम जोसेफ ने यह कहते हुए अटॉर्नी जनरल से नियुक्तियों के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से संबंधित फाइल लाने को कहा. अरुण गोयल शुक्रवार को वीआरएस ले रहे हैं.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की पीठ ने अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त करने के केंद्र के फैसले पर आपत्ति जताते हुए पूछा कि सर्विस से वालेंटरी रिटायरमेंट लेने के तीन दिन बाद ही यह निर्णय कैसे ले लिया गया.

पीठ ने सरकार को गोयल की नियुक्ति से संबंधित फाइलें पेश करने का भी निर्देश दिया.

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने बुधवार को कहा कि सरकार के लिए यह बेहतर रहता कि वह ऐसे समय में नियुक्ति न करता जब तीन सदस्यीय चुनाव आयोग के लिए एक स्वतंत्र नियुक्ति तंत्र तैयार करने और ऐसी नियुक्ति के खिलाफ अंतरिम आदेश की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है.

21 नवंबर को नए चुनाव आयुक्त के रूप में कार्यभार संभालने से पहले, गोयल भारी उद्योग मंत्रालय के सचिव थे.

न्यायमूर्ति जोसेफ ने टिप्पणी की, ‘आम तौर पर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति सेवा के लिए कर्मचारी को तीन महीने का नोटिस देना होता है.’

याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील प्रशांत भूषण को संदेह था कि क्या गोयल ने नोटिस दिया था. और तब उन्होंने अदालत से रिकॉर्ड मांगने का अनुरोध किया.

अदालत ने गोयल की नियुक्ति के खिलाफ अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि यह एक ऐसा मामला है जहां नियुक्ति का आदेश हमारे सुनवाई शुरू करने के बाद दिया गया था.

जस्टिस जोसेफ ने कहा, ‘हमें नहीं लगता कि यह ऐसा मामला है जहां आपको जानकारी रोकनी चाहिए. हम एक लोकतंत्र में रह रहे हैं.’

उन्होंने आगे जोड़ा, ‘मिस्टर अटॉर्नी जनरल वह कौन सा तंत्र है जिसके तहत इन अधिकारी को चुना गया था? क्या यह तब किया जा सकता है जब इस मामले पर अदालत द्वारा विचार किया जा रहा हो? यह नियुक्ति तब की गई थी जब इस मामले को कोर्ट सुन रहा था. जब नियुक्ति के खिलाफ कोई अर्जी हो और जब उस मामले की सुनवाई संविधान पीठ कर रही हो तो ज्यादा उचित रहता कि नियुक्ति न की जाती.

पीठ 24 नवंबर को मामले की सुनवाई करेगी.

नियुक्ति पर अदालत का सवाल चुनाव आयुक्तों को चुनने के लिए एक स्वतंत्र और कम से कम दखल देने वाली नियुक्ति प्रणाली के बारे में मौखिक टिप्पणी करने के एक दिन बाद आया है. पीठ ने मुख्य न्यायाधीश को नियुक्ति समिति में रखने का विचार रखा था ताकि (नियुक्तियों में) ‘कोई गड़बड़’ न हो.


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‘जल्दबाजी में नियुक्ति’

वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार को उनके पूर्ववर्ती सुशील चंद्रा की सेवानिवृत्ति के बाद चुनाव आयोग के प्रमुख के रूप में पदोन्नत किए जाने के बाद, चुनाव आयुक्त का पद मई से खाली पड़ा था.

पंजाब कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी गोयल ने 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी.

इससे पहले उन्होंने संस्कृति मंत्रालय में सचिव के रूप में कार्य किया था. वह दिल्ली विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष भी रहे और उन्होंने वित्त, शहरी विकास और श्रम व रोजगार मंत्रालयों में विभिन्न पदों पर काम किया था.

बुधवार को जब शीर्ष अदालत ने याचिकाओं पर सुनवाई फिर से शुरू की, तो भूषण नई नियुक्ति को कोर्ट के संज्ञान में लाए. उन्होंने कहा, ‘श्री अरुण गोयल की नई नियुक्ति उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति देकर की गई है.’

भूषण ने विस्तार से बताया, ‘चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किए गए सभी लोग सेवानिवृत्त लोग हैं. लेकिन वे सरकार में सिटिंग सेक्रेटरी थे. गुरुवार से इस अदालत ने मामले की सुनवाई की और शुक्रवार को उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दे दी गई. उनकी नियुक्ति का आदेश शनिवार या रविवार को जारी किया गया और सोमवार से उन्होंने काम करना शुरू कर दिया.’

वकील ने गोयल को नियुक्त करने की ‘ प्रक्रिया, कार्यप्रणाली और जल्दबाजी’ पर सवाल उठाए. उन्होंने आगे कहा कि यह पद मई से खाली था और इस तरह की नियुक्ति के खिलाफ अंतरिम आदेश की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई चल रही थी.

वेंकटरमणि ने भूषण के तर्क का ‘दृढ़ता से’ विरोध किया और दावा किया कि नियुक्ति के पीछे ‘कोई गड़बड़ी नहीं है’, जैसा कि वकील सोच रहे हैं. लेकिन बेंच फाइले पेश करने की अपनी बात पर अड़ी रही.

न्यायमूर्ति जोसेफ ने उस समय की जा रही नियुक्ति पर चिंता व्यक्त की जब अदालत में उससे संबंधित मामले पर सुनवाई चल रही है. उन्होंने जोर देकर कहा, ‘हमने पिछले गुरुवार को मामले की सुनवाई की. हम चाहते हैं कि आप इस अधिकारी की नियुक्ति से संबंधित फाइलें पेश करें. अगर आप सही हैं, जैसा कि आप दावा करते हैं कि कोई गड़बड़ी नहीं है, तो फिर डरने की कोई बात ही नहीं है.’

वेंकटरमणि ने इस आधार पर सरकार की नियुक्ति को उचित ठहराया कि अदालत ने इसके खिलाफ कोई आदेश नहीं दिया था.

लेकिन शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा कि वह केवल सरकार से फाइलें पेश करने के लिए कह रही है, जब तक कि आपको उस पर कोई वैध आपत्ति न हो.

जस्टिस जोसेफ ने कहा, ‘ऐसा कोई आदेश नहीं था, लेकिन आवेदन तो था. खैर, उसे जाने दें. हम नियुक्ति को लेकर कोई फैसला करने के लिए नहीं बैठे हैं. लेकिन हम (तंत्र को) जानना चाहेंगे. यह आंखे खोलने वाला मामला हो सकता है. अगर सब कुछ ठीक है और कोई गड़बड़ी नहीं है जैसा कि आप दावा कर रहे हैं, सब कुछ ठीक तरह से चल रहा था, तो डरने की कोई जरूरत नहीं है.’

अटॉर्नी जनरल की तीखी आपत्ति को देखकर न्यायमूर्ति जोसेफ ने उनसे कहा कि यह विरोध में नहीं है. यह हमारी जिज्ञासा है. हम सिर्फ परिस्थितियों को देखना चाहते हैं. बेंच के एक अन्य सदस्य जस्टिस हृषिकेश रॉय ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि वह ‘अदालत के दिमाग को जरूरत से ज्यादा पढ़ रहे हैं.’


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‘चुनाव आयोग की नियुक्ति के लिए CJI को पैनल में शामिल करने की जरूरत नहीं’

इस बीच केंद्र ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश को पैनल में शामिल करने के पीठ के सुझाव का विरोध किया.

याचिकाओं के खिलाफ अपनी दलीलों में सरकार ने अदालत से कहा कि कुछ उदाहरणों को छोड़ दें तो चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और उसके काम की अंतर्राष्ट्रीय वाहवाही तक हुई है.

नियुक्ति की मौजूदा प्रणाली का बचाव करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह ने न्यायिक नियुक्तियों में ‘इक्का-दुक्का मामलों का उदाहरण देते हुए आश्चर्य जताया कि क्या यह इतना असाधारण और गंभीर है कि उसमें न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत महसूस हो रही है.

सिंह ने कहा, ‘जहां तक न्यायाधीशों की नियुक्ति का सवाल है तो इस अदालत में एक फुलप्रूफ प्रणाली है. लेकिन ऐसे कई उदाहरण हैं जब चीजें गलत हो जाती हैं.’

हालांकि, बेंच के सदस्यों में से एक जस्टिस अजय रस्तोगी ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि जजों की नियुक्ति की व्यवस्था भी समय-समय पर बदलती रही है ‘एक समय था जब राज्य में मुख्य न्यायाधीश द्वारा एक वकील को बैंच में नियुक्त किया जाता था. लेकिन उस प्रणाली को लेकर बाद के समय में एक सवाल खड़ा हो गया. फिर अदालत एक नई निष्पक्ष और खुली (कॉलेजियम) प्रणाली लेकर आई.’

लेकिन चुनाव आयुक्त के मामले में 70 साल से भी अधिक समय से इसी तंत्र का पालन किया जा रहा है. जस्टिस रस्तोगी ने कहा, ‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि सिस्टम सही नहीं है. हम ट्रिगर प्वाइंट का इंतजार नहीं करना चाहते. हमें लगता है कि शिकायतों से बचने के लिए सिस्टम को पारदर्शी होना चाहिए.’

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(अनुवादः संघप्रिया मौर्य)


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