जॉर्ज मैथ्यू फर्नांडिस अपने समय के एक ‘फायरब्रांड’ समाजवादी नेता थे. कुछ समय तक चर्च में पादरी रहने के बाद वे ट्रेड यूनियनिस्ट, कृषक, पत्रकार राजनीतिक कार्यकर्ता, सांसद और केंद्र में मंत्री बने. 1974 में उन्होंने प्रसिद्ध रेलवे हड़ताल का नेतृत्व किया और उस समय ऐसा लगा की क़रीब 14 दिनों तक देश रुक गया हो. जॉर्ज फर्नांडिस सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष, केंद्र सरकार में पहले संचार मंत्री फिर उद्योग मंत्री, रेल मंत्री, कश्मीर मामलों के मंत्री और अंत में रक्षा मंत्री बने.
जॉर्ज फर्नांडिस का राजनितिक जीवन विरोधाभासों से भरा था. मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि 12 जुलाई 1979 जब वह मोरारजी सरकार में मंत्री थे, उन्होंने अपनी सरकार के खिलाफ लाये गए अविश्वास प्रस्ताव का ढाई घंटे तक बचाव किया और फिर उसी दिन सरकार से इस्तीफा दे कर वह चरण सिंह के साथ हो गए.
जिस जॉर्ज फर्नांडिस ने परमाणु बम के खिलाफ लंबे समय तक अभियान चलाया, उसी जॉर्ज फर्नांडिस ने रक्षा मंत्री रहते हुए पोखरण में परमाणु परीक्षण II कराकर भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश बनाया.
1949, जॉर्ज फर्नांडीस नौकरी की तलाश में बॉम्बे (अब मुंबई) आये. उनका जीवन महानगर में कठिन था, और उन्हें सड़कों पर फुटपाथ पर सोना पड़ता था. वह एक अखबार के लिए प्रूफ रीडर का काम करते थे.
अपने करियर की शुरुआत के बारे में वे बताते थे ‘जब मैं बंबई आया था, तो मैं चौपाटी पर बेंच पर सोता था. आधी रात में, पुलिस वाले आते मुझे जगाते और मुझे वहां से चले जाने को कहते.’ 1950 के दशक की शुरुआत में यहां वे महान समाजवादी नेता, डॉ राममनोहर लोहिया के संपर्क में आए और बाद में, ट्रेड यूनियन नेता पी डी मे’लो के साथ ट्रेड यूनियन आंदोलन में शामिल हो गए और उनके शिष्य बन गए. वे एक ट्रेड यूनियन नेता के रूप में प्रमुखता से उभरे और होटल और रेस्तरां जैसे लघु उद्योगों में मज़दूरों के अधिकारों के लिए तथा टैक्सी चालकों और बस चालको के लिए संघर्ष किया. बॉम्बे श्रमिक आंदोलन में एक प्रमुख नेता के रूप में उभरना जॉर्ज फर्नांडिस का स्वर्णिम काल कहा जा सकता है जब उन्हें ‘बंबई बंद के हीरो’ के ख़िताब से नवाज़ा गया. यहां उन्होंने बेहद तकलीफें और यातनायें सहीं. उनपर कई बार जानलेवा हमले हुए और एक बार तो पुलिस ने उन्हें इस बेरहमी से पीटा की उनका बचना ही मुश्किल हो गया.
जॉर्ज फर्नांडिस को 1967 के आम चुनाव के दौरान काफी शोहरत हासिल हुई जब उन्होंने कांग्रेस पार्टी के एक कद्दावर नेता सदाशिव कानोजी पाटिल (एस के पाटिल) के खिलाफ बॉम्बे दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने का फैसल किया. एस के पाटिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिक रूप से एक अनुभवी और लोकप्रिय राजनेता थे और केंद्र सरकार में शक्तिशाली मंत्री भी थे. एस के पाटिल को इस चुनाव में करारी मात देने के बाद जॉर्ज फर्नांडिस को ‘जायंट किलर’ के नाम से जाना गया.
1970 के दशक के शुरुआती दिनों में तत्कालीन प्रधान मंत्री, इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश की मुक्ति के बाद अभूतपूर्व लोकप्रियता हासिल की थी. लेकिन इसके तुरंत बाद, उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर उनकी लोकप्रियता कम होने लगी. जॉर्ज फर्नांडिस उस समय ऑल इंडिया रेलवेमैन फेडरेशन के अध्यक्ष थे. उस समय उन्होंने ऐतिहासिक रेलवे हड़ताल करवाई जो काफी कामयाब रही. कहा जाता है की उस रेलवे हड़ताल को तुड़वाने के लिए प्रधान मंत्री, इंदिरा गांधी ने पोखरण में पहले परमाणु परिक्षण को अंजाम दिया.
लेकिन जॉर्ज फर्नांडिस का एक दाग़दार अतीत भी है.उन्होंने अपनी राजनीती की शुरुआत महात्मा गांधी की अहिंसा की राजनीति से की थी, लेकिन फिर बाद में वे हिंसा की राजनीति में विश्वास करने लगे और आपातकाल के विरोध में सरकारी प्रतिष्ठानों को उड़ाने के लिए ‘बड़ौदा डायनामाइट कांड’ जैसा षड्यंत्र रचा जिसके कारण वे और बहुत सारे निर्दोष लोग गिरफ्तार किये गए और जेलों मैं कई माह तक बंद रहे. 1977 में जब आपातकाल हटा लिया गया था, तब मधु लिमये को मंत्री पद की पेशकश की गई लेकिन उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस के पक्ष में अपना नाम वापस लेकर जॉर्ज फर्नांडिस को मंत्री बनवाया ताकि वे मंत्री बनकर जेल से रिहा हो सकें. उसी समय वे जेल मैं रहते हुए मुज़फ़्फ़रपुर से भारी मतों से लोक सभा का चुनाव जीते थे.
उन्हें 2002 में गुजरात में हुए ख़ौफ़नाक दंगों को संसद में जायज़ ठहराने और ओडिशा में ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस और उनके बेटों की निर्मम हत्या को उचित ठहराने के लिए भी याद किया जायेगा.
जॉर्ज फर्नांडिस का जीवन विवादों और उपलब्धियों से भरपूर था. भारतीय राजनीति में उनका नाम भ्रष्टाचार के मामले में भी प्रमुखता से आया. जिसे ‘कफ़न घोटाले’ के नाम से जाना जाता है. इस घोटाले के कारण संसद में काफी हंगामा हुआ और जॉर्ज फर्नांडिस को वाजपेयी सरकार में रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा. अल्ज़ाइमर और पार्किंसंस बीमारी के कारण लम्बे समय तक जॉर्ज फर्नांडिस को बेहद पीड़ा झेलनी पड़ी और उनके शुभचिंतक तथा मित्र भगवान से उन्हें जल्द उठाने की दुआयें मांगने लगे.
(क़ुर्बान अली वरिष्ठ पत्रकार हैं)