नई दिल्ली: आरएसएस से सम्बद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने अपनी मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रीय छात्रशक्ति’ में दिल्ली में आफताब पूनावाला द्वारा अपने लिव-इन पार्टनर श्रद्धा वालकर की जघन्य हत्या की निंदा करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे इस अपराध ने एक बार फिर से ‘लव जिहाद’ के मुद्दे को सबके सामने ला दिया है.
इस पत्रिका में कहा गया है, ‘लव जिहाद, एक मुद्दा जो कि पहले-पहल केरल उच्च न्यायालय में एक मामले के दौरान सामने आया था, उसके उदाहरण बार-बार सामने आ रहे हैं. (अन्य धर्मों की) महिलाओं को निशाना बनाना, उनसे प्यार का नाटक करना, धार्मिक प्रभुत्व स्थापित करने या उनका धर्मांतरण करने की कोशिश करना और फिर उन्हें मार डालना- महिलाओं के खिलाफ इस तरह की लक्षित हिंसा एक असुरक्षित और अमानवीय समाज की तस्वीर बना रही है.‘
एबीवीपी की दिल्ली इकाई के राज्य सचिव अक्षित दहिया लिखते हैं, ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद इस तरह के कृत्यों की कड़ी निंदा करती है. इस तरह के वीभत्स अपराध सामाजिक व्यवस्था को गहरी चोट पहुंचाते हैं. हमारी सरकारों को लोगों में ऐसी मानसिकता विकसित करने वाली संस्थाओं पर लगाम कसनी चाहिए और श्रद्धा को न्याय मिलना ही चाहिए. आरोपी को ऐसी सजा दी जानी चाहिए जो दूसरों के लिए एक हतोत्साहित करनेवाले कदम के रूप में काम करे.’
पिछले 18 मई को, 27 वर्षीय श्रद्धा वालकर को उसके लिव-इन पार्टनर आफताब पूनावाला ने कथित तौर पर इस जोड़े के बीच हुए एक झगड़े के बाद मार डाला था. दिल्ली पुलिस के सूत्रों के अनुसार, आफताब ने दावा किया है कि उसने ‘गुस्से में’ आकर श्रद्धा की हत्या कर दी और फिर उसके शरीर को 35 टुकड़ों में काटकर उसके अवशेषों को ठिकाने लगा दिया.
इसके अलावा, हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस ने ईडब्ल्यूएस कोटा पर हाल ही में आये उच्चतम न्यायालय के फैसले के बारे में भी लिखा और इस बारे में भी टिप्पणियां कीं कि कैसे हिमाचल प्रदेश के वन गुर्जर समुदाय में ‘तब्लीगी जमात के सदस्यों द्वारा घुसपैठ’ की गयी है, कैसे दिल्ली में प्रदूषण को रोकने में आप सरकार विफल रही है और ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के सामने क्या-क्या चुनौतियां हैं?
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‘अब्राहमिक धर्मों की विफलताओं का खामियाजा हिंदू क्यों भुगतें?’
दक्षिणपंथी-झुकाव वाले लेखक और प्रोफेसर मकरंद परांजपे ने इस महीने की शुरुआत में ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण कोटा वाले प्रावधान को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित एक लेख में ‘डी-रिजर्वेशन’ (आरक्षण को वापस लिए जाने) के पक्ष में तर्क पेश किये. परांजपे ने कहा कि कभी न खत्म होने वाले विशेषाधिकारों के लिए अपने जन्म के आधार पर हकदार होना एक जाति आधारित समाज से जातिविहीन समाज की तरफ जाने से विपरीत मार्ग है. परांजपे ने लिखा है, ‘यह डॉ. बी आर अंबेडकर के कहे अनुसार ‘जाति के विनाश’ की अवधारणा के बिल्कुल विपरीत है.‘
उन्होंने आगे यह भी तर्क दिया कि यदि अनुसूचित जाति (एससी) के उन सदस्यों को आरक्षण का लाभ दिया जाता है जो हिंदू धर्म से ईसाई या इस्लाम में परिवर्तित हो गए हैं, तो यह वास्तव में धर्मांतरण को प्रोत्साहित करेगा और हिंदू समाज को कमजोर करेगा. वे लिखते हैं, ‘अब्राहमिक धर्मों की विफलताओं का खामियाजा हिंदू समाज को क्यों भुगतना पड़े? यह ऐसा कहने जैसा है कि सभी बुराइयां हिंदुत्व से ही आती हैं और सभी तरह के फायदे अब्राहमिक धर्मों से मिलते हैं. धर्मांतरितों को आरक्षण की गारंटी देकर राज्य को हिंदू धर्म की खामियों के लिए भुगतान करने दें, जबकि जिस धर्म में ये लोग धर्मांतरित हुए हैं, वह उन्हें इस दुनिया में सम्मान और सामाजिक गतिशीलता, और अगले जन्म में मुक्ति दोनों प्रदान करता है.‘
इस बीच, भाजपा के पूर्व सांसद और दक्षिणपंथी टिप्पणीकार बलबीर पुंज ने चेताया कि निकट भविष्य में पाकिस्तान गृहयुद्ध के कगार पर खड़ा हो सकता है, जो ‘इस इस्लामिक राज्य को हिला कर रख देने वाली ‘अभूतपूर्व घटनाओं’ से परिलक्षित होता है.
‘वनइंडिया ट्यूसडे’ में लिखे एक लेख में पुंज ने कहा कि उस देश के वर्तमान और पूर्व राष्ट्र प्रमुखों ने भी इस संभावना का संकेत दिया है.
उन्होंने लिखा है, ‘हाल ही में लाहौर में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज (शरीफ) द्वारा गृहयुद्ध की संभावना का उल्लेख किया गया था. वहीं सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ जंग की राह पर चल रहे इमरान खान ने भी बार-बार इसी तरह की अनिष्टकारी संभावना के बारे में चेतावनी दी है. उनकी (इमरान की) असफल हत्या के प्रयास के बाद, देश के विभिन्न हिस्सों में पहले ही हिंसा भड़क चुकी है.’
पुंज ने आगे कहा कि जहां (पाकिस्तान का) शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व और वहां की सेना एक आपसी शक्ति संघर्ष में व्यस्त है, वहीं एक गिरती हुई अर्थव्यवस्था, कमरतोड़ महंगाई, बड़े पैमाने पर फैली बेरोजगारी और छिटपुट हिंसा ने आम जनता, जो अभी भी इस्लामी रीति-रिवाजों में ही सुकून और सहूलियत की तलाश में है, उसे एक घोर संकट की और अग्रसर कर दिया है.
हिमाचल के वन गुर्जरों के बीच हो रही ‘तब्लीगी जमात की घुसपैठ’
आरएसएस के मुखपत्र ‘पाञ्चजन्य’ ने अपनी एक खबर में हिंदुओं के साथ वन गुर्जरों की सामाजिक बातचीत और उनके द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों में आए बदलाव का जिक्र करते हुए कहा है कि तब्लीगी जमात (एक अंतर्राष्ट्रीय देवबंदी इस्लामिक मिशनरी आंदोलन) के सदस्य हिमाचल प्रदेश के कम से कम सात जिलों में रहने वाले वन गुर्जर समुदाय को ‘प्रभावित’ कर रहे हैं.
इस खबर में कहा गया है, ‘पिछले कुछ सालों के दौरान कट्टरपंथी देवबंदी जम्मू-कश्मीर की सीमा से लगे इन जिलों की पहाड़ियों में स्थित जंगलों में बसे गुर्जरों के बीच जाकर गुप्त रूप से अपना एजेंडा चला रहे हैं. जानकारी के अनुसार हिमाचल प्रदेश की सीमा का एक बड़ा भाग जम्मू-कश्मीर से लगता है. कश्मीरी गुर्जर हिमाचल प्रदेश के गुर्जरों से संबंधित हैं और यह समुदाय ज्यादातर हिमाचल प्रदेश के जंगलों में रहता है. उनका पुश्तैनी काम मवेशी चराना था, लेकिन अब उनकी नई पीढ़ी दूसरे काम भी करने लगी है.’
इसमें यह भी उद्धृत किया गया है कि वन गुर्जरों की जीवन शैली में हाल के दिनों में काफी बदलाव देखा गया है.
इस खबर में कहा गया है, ‘जब से हिमाचल के सात जिलों – कांगड़ा, मंडी, जोगेंद्रनगर, नूरपुर, तीसा, चंबा, पालमपुर – में देवबंद की तब्लीगी जमात सक्रिय हुई है, तब से मुस्लिम गुर्जर महिलाएं बाजारों में बुर्के पहने दिखाई देने लगी हैं. गुर्जर पुरुष पहले अपनी पारंपरिक वेशभूषा पहनते थे, लेकिन अब उनके पहनावे में भी बदलाव आ गया है. छोटा पायजामा और टोपी उनकी पोशाक बन गई है. पहले वे पगड़ी पहनते थे.’
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दिल्ली के वायु प्रदूषण में कमी लाने में केजरीवाल की ‘नाकामी’
दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार द्वारा वायु प्रदूषण में कमी लाने में विफल रहने की आलोचना करते हुए ‘पाञ्चजन्य’ ने अपने संपादकीय में लिखा है कि आम आदमी पार्टी (आप) ठोस काम करने के बजाय दिखावटी घोषणाएं करने, राजनीति करने और विज्ञापनों के जरिए डींग हांकने में लगी है.
सम्पादकीय में कहा गया है, ‘याद कीजिए, पिछले साल तक मुख्यमंत्री केजरीवाल दिल्ली के प्रदूषण के लिए पंजाब और हरियाणा में जलाई जाने वाली पराली को जिम्मेदार ठहराते थे. वह (प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए) ‘आसान’ उपायों का सुझाव देते हुए पंजाब की पिछली कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार और अन्य पड़ोसी राज्यों को दोष देते रहते थे. लेकिन अब पंजाब में भी आप की सरकार बनने के बाद वे उन्हीं ‘आसान’ उपायों को पंजाब में लागू नहीं कर पा रहे हैं. इस साल वहां पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी हैं.’
इसमें कहा गया है कि केजरीवाल अब पंजाब की भगवंत मान सरकार का यह कहते हुए बचाव कर रहे हैं कि यह एक नवगठित सरकार है. साथ ही, इसमें यह भी कहा गया है कि आप की सरकारों के पास इस समस्या को हल करने के लिए कोई ठोस योजना नहीं है.
SJM ने ऋषि सुनक को आगे आने वाली चुनौतियों के प्रति आगाह किया
स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने ‘ऑर्गेनाइज़र’ में भारतीय मूल के नव-निर्वाचित ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के सामने आने वाली आर्थिक चुनौतियों के बारे में लिखा और साथ ही यह भी कहा कि उनकी ‘योजनाएं बाजार की स्वीकार्यता के मामले में उनकी पूर्ववर्ती लिज़ ट्रस से बेहतर दिखती हैं.’
वे लिखते हैं, ’बढ़ती ब्याज दरों के कारण सरकारी कर्ज और अर्थव्यवस्था के उबरने में भी मुश्किल हो गई है. दूसरी ओर आम जनता पहले से ही बढ़ती कीमतों के कारण घटती क्रय शक्ति की समस्या से जूझ रही है. ईंधन और खाने-पीने की चीजों की बढ़ती कीमतों ने मध्यम वर्ग का बजट पहले ही बिगाड़ दिया है. ऐसे में गिरवी के आधार पर ऋण देने वाली कंपनियों (मॉर्गेज फर्म्स) द्वारा की जाने वाले वसूली पर भी संकट मंडरा रहा है. इसका असर बैंकों और vवित्तीय संस्थानों की सेहत पर भी पड़ सकता है. गौरतलब है कि करों को कम करने, खर्च बढ़ाने और कर्ज लेने की नीति के घोर विरोधी रहे सुनक का मानना है कि ऐसे कदम ‘कन्जर्वेटिव सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है और यह वास्तव में समाजवाद है….’
महाजन लिखते हैं, “सुनक की योजनाएं बाजार की स्वीकार्यता के मामले में लिज़ ट्रस की नीतियों से बेहतर दिखती है. पर अब देखना यह होगा कि वह किस तरह से अपनी योजना को हकीकत में बदलते हैं. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि सुनक के लिए आने वाला समय आसान नहीं होने वाला है. एक ओर उन्हें ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को संभालना है, तो दूसरी ओर उन्हें ‘लेबर पार्टी’ की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए अपनी ‘कन्जर्वेटिव पार्टी’ के प्रति जनता का समर्थन भी बनाए रखना है.”
गुजरात में बीजेपी के शिप-कैप्टन हैं भूपेंद्र पटेल
‘ऑर्गनाइज़र’ में लिखे गए एक आलेख ने भूपेंद्र पटेल, जो एक लो-प्रोफाइल व्यक्ति हैं और पहली बार के विधायक हैं, को ‘गुजरात भाजपा-रूपी जहाज के कप्तान’ के रूप में पेश किया गया. साथ ही, यह भी कहा गया है कि उन्हें सीधे पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा दीक्षित किया गया है.
इस आलेख के लेखक नीरेंद्र देव ने लिखा है, ‘अपने राजनीतिक जीवन के शुरुआती दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुरुमंत्र पाने वाले भूपेंद्र पटेल ने अपनी खुद की एक विशेष शैली विकसित कर ली हैं. यह कारक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए गुजरात में आगामी चुनाव के रूप में काफी महत्वपूर्ण है… यह मोदी का गृह राज्य है. सौभाग्य से, भूपेंद्र पटेल के दुश्मनों की संख्या विपक्षी खेमे में भी काफी कम हैं और उनका प्रशासन काफी कुशल रहा है.’
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
(अनुवादः रामलाल खन्ना)
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