नई दिल्ली: बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी…वो तो झांसी वाली रानी थी..सुभद्रा चौहान की इस कविता से पूरी दुनिया ने रानी लक्ष्मीबाई को जाना, समझा और उनकी वीरगाथा सुनी है.. इस कविता को सुनने के बाद हर इंसान के खून में एक जोश भर जाता है.
अब जब आप कंगना की फिल्म मणिकर्णिका जो आज रिलीज़ हुई है, देखने जाएं तो उसे सिर्फ एक्टिंग और फिल्म के अलावा इस रूप में भी देखें जिसका ज़िक्र आपको सिर्फ दिप्रिंट हिंदी में मिलेगा…
मणिकर्णिका को जीती हुईं दिखीं कंगना
कंगना झांसी की रानी के किरदार में बिलकुल समा गई हैं. कई सीन में उनके हाव-भाव देखकर ‘मर्दानी झांसी की रानी’ के उस दौर का खाका तैयार करने की कोशिश भी करेंगे. फिल्म में कई सीन आपको अपने इतिहास और रजवाड़ों (घर के भेदियों) जिनकी वजह से हमें गुलामी की जंजीरों में जकड़ कर रखा गया को बार-बार कोसेंगे. फिल्म में कई सीन खून खौलाता है, कई सीन में हंसी भी आती है और कई बार बनावटीपना खूब नज़र आता है. लेकिन इन सबसे अलग है फिल्म जो झांसी की रानी की वीरता के साथ उनके जात-पात विरोधी होने, परंपराओं को तोड़ने वाली बताता है, जिसे फिल्म में बखूबी दिखाया गया है.
फिल्म ने कई संदेश दिए हैं और इतिहास में दफ्न हो चुकी कई बातों को सामने लाने की कोशिश की है जिसपर बहुत ज़्यादा चर्चा नहीं हुई है.
पहला- वह झांसी की रानी ही थीं जिसने जात-पात को नहीं माना था, तब जब वह ब्राह्मण थीं.
दूसरा- विधवा उत्थान, जहां वह खुद को विधवा बताकर एक बच्ची को आगे बुलाती हैं और वह खुद को कुमकुम से रंग लेती है.
तीसरा- देश की ‘पहली महिला सेना’ जिसे तैयार करने वाली और कोई नहीं झांसी की रानी ही थीं.
अंग्रेज़ों से लड़ने और उन्हें नाकों चना चबाने पर मजबूर कर देनें में रानी लक्ष्मीबाई की महिला सेना का बहुत बड़ा हाथ था. इन सबकी चर्चा इतिहास के पन्नों में ज़रूर दर्ज है लेकिन इसपर बहुत बात नहीं हुई है. महिला सैनिकों को जिस तरह से फिल्म में दिखाने का काम किया गया है उसने एकबार फिर साबित किया है कि भारत की संस्कृति और सभ्यता में महिलाएं हमेशा से अगड़ी पंक्तिं में रही हैं. जिसे आज के लोगों को देखना और समझना चाहिए.
दूसरा सीन जिसपर बात की जानी चाहिए वह है ‘एक विधवा’. वह सीन जोश से भरता है और स्वर्णिम इतिहास पर कई-कई बार गर्व करने का मौका देता है. रानी लक्ष्मीबाई ने जब झांसी की रक्षा की सौंगध खाई तब उनके पति महाराज गंगाधर राव का निधन हो चुका होता है. पद्धति और परंपरा के अनुसार उन्हें विधवा का रूप धारण करना होता है लेकिन यहां दिखाई देती है क्रांति. जैसे ही राजमाता नाई को बुलाकर बाल निकालने की बात करती हैं.
रानी झांसी उठ खड़ी होती है और इस तरह कि किसी भी क्रिया को करने से मना कर देती है.राजमाता जब उन्हें समाज, संस्कृति की दुहाई देती है तब रानी उनके ‘काशी’ भेजे जाने का इंतज़ाम करने को कह कर निकल जाती हैं. यहां फिल्मी ग्लैमर और तड़का दिखाई देता है. लेकिन इसकी बारीकी से समझने की कोशिश की जाए तो लक्ष्मीबाई के लिए यह इतना आसान नहीं रहा होगा. जिस तरह से पूरे राजघराने और पुरुष समाज ने उन्हें आसानी से अपना लिया यह उतना आसान नहीं रहा होगा. लेकिन यह सीन यह दिखाता है कि जब-जब देश पर मुसीबत आई है महिला ने तलवार उठाई है और बखूबी निभाई भी है.
इसी बीच फिल्म का एक सीन है जो ज़िंदगी भारत की उत्सव की प्रथा को भी बखूबी दिखाने की कोशिश की गई है.देश में गरीबी है, झांसी कंगाल हो चुकी है, लेकिन योद्धा रानी हार मानने को तैयार नहीं है और राज्य में कुमकुम हल्दी उत्सव की मुनादी होती है जिसमें राजा अपनी प्रजा को हल्दी और कुमकुम देता है और प्रजा अपने घर में मौजूद धातू को लाता है जिससे देश के लिए शस्त्र तैयार किया जाता है. इस दौरान जाति धर्म के अलग राष्ट्रभक्ति दिखाने की ज़बरदस्त कोशिश है. फिल्म के कई सीन क्रांतिकारी हैं – जिसे लिखना बहुत ज़रूरी है. झांसी की रानी एक महान योद्धा थी पेशवा ने उसे ठीक वैसे ही पाला पोसा था जैसे पुत्रों को पालते हैं..
मणिकर्णिका को बचपन से एक महान योद्धा की ट्रेनिंग दी गई थी जिसमें वह ठीक वैसे ही लड़ती हैं जैसे एक जाबांज योद्धा लड़ता है. कंगना ने रानी झांसी पर युद्ध में फिल्माए सीन को बखूबी जिया है.कई सीन को देख कर लगता है कि वह खुद को 1857 के उस युद्ध के मैदान में ले गईं हैं जहां झांसी की रानी ने अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे. झांसी की रानी न केवल शस्त्र विद्या में महारत हासिल की थी उतनी ही पढ़ाकू भी थीं. ब्रिटिश कंपनी को जब अपने पुत्र उत्सव में वह मुंह तोड़ जवाब देती हैं वह देखने लायक था..
इन सबके बीच एक बात जिसका ज़िक्र महत्वपूर्ण है वह है जात-पात को उन्होंने किस तरह से अलग रख दिया था. एक सीन में वह मलीन बस्ती में जाती हैं जहां झलकारी बाई रहती है.उसके हाथों से दूध लेकर पीती हैं. तो अब जब आप झांसी की रानी देखने जाएं तो सिर्फ कंगना की एक्टिंग. झांसी की रानी की वीर गाथा को देखने नहीं उनके द्वारा समाज में लाए इन बदलावों को जिसकी नींव 1857 की क्रांति के साथ ही नींव डाली गई थी के लिए देखने जाएं.