दूरबीन के सहारे विधवा प्रिंसेस के घेरदार गाउन को ताकते हुए एक दरबारी कहता है, ‘मुझे तरक्की का रास्ता दिखाई दे रहा है, ये झाड़ियों और पानी से भरा है.’ एक दूसरा व्यक्ति नजरें ऊपर की ओर उठाकर कहता है, ‘यह रास्ता बुशे पार्क होकर जाता है.’ उनका इशारा बुशे स्थित शाही पार्क और किंग जॉर्ज तृतीय की मां के निजी अंगों की ओर होता है. वहीं, एक टहनी के साथ ब्रूमस्टिक पर सवार दिख रही सक्से-गोथा-अलटेनबर्ग की प्रिंसेस ऑगस्टा कहती हैं, ‘मुझे सत्ता की ताकत पसंद है.’ और उनके पसंदीदा प्रधानमंत्री और तीसरे बुटे ऑफ अर्ल जॉन स्टुअर्ट का जवाब होता है, ‘आओ इसका भरपूर फायदा उठाएं. हम तो बेहयाई से आगे निकल चुके हैं.’
यह सब प्रिंसेस ऑगस्टा और लॉर्ड बुटे के बीच कथित रिश्तों को लेकर प्रकाशित एक सटायर का हिस्सा है. लेकिन अठारहवीं शताब्दी की ब्रिटिश राजनीति में लोकप्रिय रहे इस तरह के हथकंडे अपनाने में पाकिस्तानी राजनेता भी पीछे नजर नहीं आते. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान का आरोप है कि सरकार फर्जी गंदी-गंदी वीडियो के जरिए उन्हें बदनाम करने की साजिश रच रही है. पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के वरिष्ठ नेता परवेज राशिद को एक कथित लीक वीडियो के जरिए घेरा भी गया है, जिसमें पार्टी उपाध्यक्ष ऑनलाइन सेक्स रिकॉर्ड करते नजर आ रहे हैं. और सीनेटर आजम खान स्वाती ने खुलासा किया है कि उन्हें गुप्त ढंग से फिल्माए गए एक वीडियो के जरिये ब्लैकमेल किया गया था.
प्रिंसेस को लेकर बेशर्म, निर्लज्ज और सेक्सिस्ट टिप्पणियों से भरा और सियासी बवाल मचा देने वाला यह पैम्फलेट, जो अब ब्रिटिश म्यूजियम में रखा है, रुढ़िवादी और सिद्धांतहीन राजनेता जॉन विल्क्स के शाही दरबार के खिलाफ छेड़े गए अभियान का हिस्सा था. कुलीन वर्गों का दबदबा खत्म करने के लिए राजशाही ने लॉर्ड ब्यूट को प्रधानमंत्री के पद पर बैठाया था—और इसके जवाब में ही विल्क्स ने यौन संबंधों की अफवाहों को लेकर यह घिनौना अभियान चलाया.
पाकिस्तान के राजनीतिक अभिजात्य वर्ग के बीच जारी सत्ता संघर्ष में किसी भी हद को पार कर के लिए लगी होड़ में लीक वीडियो किसी सेक्स स्कैंडल की तरह ही सनसनीखेज और असरदार साबित हो रहे हैं, जैसा जॉर्ज तृतीय के समय हुआ था. धार्मिक रुढ़ियों के इर्द-गिर्द केंद्रित शासन व्यवस्थाओं में नेतृत्व की वैधता हासिल करने के लिए नैतिकता खासी अहम होती है. बख्तरबंद वाहनों और क्लाश्निकोव की तरह बदनामी भी एक हथियार ही है.
सलमान रुश्दी ने पाकिस्तान को लेकर अपने एक चर्चित उपन्यास में लिखा भी है, ‘गॉशिप तो पानी की तरह है. जो किसी कमजोर सतह पर तब तक टकराता रहता है, जब तक उसे तोड़ नहीं देता.’
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नैतिकतावादी गणतंत्र का निर्माण
अगस्त 1953 में कराची की झुलसाती गर्मी के बीच पाकिस्तान को एक इस्लामी गणराज्य बनाने वाले संविधान की रूपरेखा तय की गई जिसमें इसकी संप्रभुता अल्लाह के हवाले कर दी गई, इसके तहत यह अनिवार्य किया गया कि कुरान और हदीस से इतर कोई कानून पारित नहीं होगा. वैसे तो यह कतई स्पष्ट नहीं था कि इस सबका क्या मतलब है लेकिन यह जरूर नजर आ रहा था कि बड़ी संख्या में शरणार्थियों से भरे, खाने के लिए मारकाट झेलते और धार्मिक विधर्मियों के खिलाफ कठमुल्लाओं के विरोध प्रदर्शनों से त्रस्त देश में व्यवस्था बनाए रखने के लिए कुछ मूल बदलावों की जरूरत थी. विद्वान अर्दथ बर्क्स लिखते हैं कि ख्वाजा नजीमुद्दीन जैसे लोगों ने राजनीतिक जीवन में मौलवियों की एक केंद्रीय भूमिका स्थापित की.
इस नए पाकिस्तान में अभिजात्य वर्ग ने खुद को काफी सीमित कर लिया, लोकप्रिय संस्कृतिक बदलाव की बयार सुस्त पड़ने लगी. टिप्पणीकार नदीम पारचा लिखते हैं, यद्यपि शराब के विज्ञापन 1960 के दशक के अंत तक अखबार के पन्नों और सड़क के किनारे होर्डिंग में नजर आते रहे. पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस में फर्स्ट क्लास के यात्रियों को कॉकटेल की पेशकश की जाती, और कम से कम 1973 तक कराची के बार में महिलाएं भी नजर आती रहीं.
लेकिन, अभिजात्य वर्ग विरोधी नैतिकतावाद ने जड़ें जमानी शुरू कर दी थीं. 1972 में, सोशलिस्ट और इस्लामिस्ट गठबंधन वाली नेशनल अवामी पार्टी-जमीअत उलेमा इस्लाम सरकार—जिसका खैबर पख्तूनख्वा कहे जाने वाले इलाके पर शासन था—ने शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया.
सही मायने में, संकट 1971 के बाद तबसे बढ़ना शुरू हुआ, जब इस्लामवादियों ने तर्क दिया कि नैतिक मूल्यों में गिरावट की वजह से ही भारत के हाथों हार का सामना करना पड़ा है. हार के कारणों की पड़ताल करने वाले हमूदुर रहमान आयोग का दावा था कि ‘अत्यधिक अनैतिक और पतित जीवनशैली’ ने सैन्य नेतृत्व को खोखला कर दिया है.
आयोग ने दावा किया कि लेफ्टिनेंट-जनरल अमीर खान नियाजी के ‘गुलबर्ग, लाहौर निवासी सईदा बुखारी के साथ घनिष्ठ रिश्ते थे जो सेनोरिटा होम नाम से एक वेश्यालय चला रही थी, और जनरल की दलाल के तौर पर घूसखोरी की रकम का लेन-देन भी करती थीं.’ जनरल के बारे मे यह भी कहा गया कि ‘सियालकोट की शामिनी फिरदौस नामक एक अन्य महिला के साथ उनके नजदीकी रिश्ते’ हैं. ‘खराब चाल-चलन वाली महिलाओं के साथ जुड़ाव ने जनरल की प्रतिष्ठा को बहुत ज्यादा क्षति पहुंचाई.’
मार्शल लॉ लागू करने वाले पाकिस्तानी प्रशासक जनरल याह्या खान की शराबखोरी और ऐय्याशियों को लेकर भी लाहौर की हाई-सोसाइटी वाली एक महिला अकलीम अख्तर का नाम सामने आया जो एक पूर्व पुलिस अधिकारी की पत्नी, और छह बच्चों की मां थी. तर्क दिए गए कि जनरल की नैतिकताविहीन जीवनशैली ही 1971 की तबाही का कारण बनी.
पाकिस्तानी सेना में सैन्य क्षमता के अभाव, और पूर्वी क्षेत्र को लेकर उसके खराब राजनीतिक निर्णय को भी नैतिकता के सवालों से जोड़ा गया.
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इस्लामी कट्टरपंथी हावी रहे
यहां तक कि प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार ने शराब पर प्रतिबंध लगाने के आह्वान का विरोध किया. उन्होंने तो 1977 की रैली में यह तक कह डाला, ‘मैं पीता हूं, लेकिन लोगों का खून नहीं पीता.’ लेकिन देश में नैतिकतावाद की बयार के बीच यह घोषणा उन पर ही भारी ही पड़ गई. इस्लामवादियों ने प्रधानमंत्री को बदनाम करने के अभियान के तहत प्रथम महिला नुसरत भुट्टो की तस्वीरें इस्तेमाल कीं, जिसमें वह अमेरिकी राष्ट्रपति गेराल्ड फोर्ड के साथ डांस करती नजर आ रही थीं. उन्होंने मौके के अनुरूप पूरे सम्मानजनक तरीके से एक गाउन पहन रखा था. बहरहाल, लाहौर और कराची में जुटी भीड़ ने नारे लगाए, ‘भुट्टो एक हिंदू है, भुट्टो एक यहूदी है.’
1974 में पाकिस्तानी सेना के मेस से शराब को बाहर कर दिया गया. हालांकि यह बार, नाइट क्लबों और कॉफी-हाउस में उपलब्ध रही. 1977 में धुर-कट्टरपंथी पाकिस्तान नेशनल अलायंस के उदय के साथ शराब परोसने वाले प्रतिष्ठान बड़े पैमाने पर हमलों के शिकार बने. कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए आखिरकार प्रधानमंत्री भुट्टो ने बार और शराब की दुकानों पर प्रतिबंध लगा दिया और जुए पर भी पाबंदी लग गई.
वहीं, उसी साल तख्तापलट के जरिये पाकिस्तानी सत्ता हासिल करने वाले जनरल जिया-उल-हक ने इन प्रतिबंधों को कुछ और ज्यादा ही उत्साह के साथ आगे बढ़ाया. इसका उल्लंघन करने वालों के लिए अस्सी कोड़ों की सजा तय की गई. लेकिना जनरल जिया की यह नैतिकता अफीम की खेती पर लागू नहीं थी जिसका इस्तेमाल उन्होंने अफगानिस्तान में विद्रोहियों को बढ़ावा देने और जिहाद के लिए धन जुटाने में किया.
नैतिकता से जुड़े स्कैंडल को हथियार बनाया जाना बदस्तूर जारी है. पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर आरोप है कि उन्होंने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी और इस्लामवादी मौलाना सामी-उल-हक को अपने रास्ते से हटाने के लिए एक पूर्व डांसर और सेक्स-वर्कर मैडम ताहिरा का इस्तेमाल किया था. अपने अकोरा खट्टक स्थित मदरसे ने तमाम तालिबान को तैयार करने वाले मौलाना सामी के खिलाफ अपने बयान में ताहिरा ने दावा किया था कि उन्होंने मौलवी के लिए तीन महिलाओं का इंतजाम किया था. इन कथित झूठे आरोपों ने उन्हें ‘मौलाना सैंडविंच’ के नाम से चर्चित कर दिया.
सामी-उल-हक ने अपने इस्तीफे में कहा था, ‘मुझे एक अत्यधिक शर्मनाक स्थिति में ला दिया गया. जबकि देश की धार्मिक ताकतें मुझे शरीयत की सर्वोच्चता के लिए लड़ने वाला सैनिक मानती रही हैं.’
वहीं, 1993 के चुनावों से पहले प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो और उनकी मां की फर्जी तस्वीरें हेलीकॉप्टरों से गिराई गईं और उनके निजी जीवन को लेकर तरह-तरह की अफवाहें फैलाई गईं.
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एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने के खतरे
सेक्स-स्कैंडल को बतौर हथियार इस्तेमाल करना पाकिस्तानी सियासत में एक चिर-परिचित हथकंडा बन गया है. पूर्व पत्नी रेहम खान की तरफ से लगाए गए यौन दुराचार के आरोपों ने इमरान खान के लिए कई सालों तक अपना राजनीतिक करियर चमकाना मुश्किल बना दिया था. वहीं, टिकटॉक स्टार हरीम शाह ने 2020 में एक लीक वीडियो के जरिये रेल मंत्री शेख रशीद के सियासी करियर को गहरा झटका दिया. यौन दुराचार के आरोपों ने ही पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी के पैरों के नीचे से जमीन खींच ली.
ये समझने के लिए बस थोड़ी कल्पनाशीलता की जरूरत है कि आखिर किसी पर कीचड़ उछालना इतना असरदार हथियार क्यों है. अपनी आजादी के बाद से पाकिस्तानी राजनीति सार्वजनिक नीति और बदलाव के लिए जरूरी कार्यक्रमों पर बहस-मुबाहिसे के बजाये प्रतिस्पर्धी मजहब परायणता और व्यक्तिगत स्तर पर नैतिकता को दर्शाने पर केंद्रित रही है.
ईसाई मूल्यों में निहित एक राजनीतिक संस्कृति वाले अमेरिकियों के मामले में सेक्स स्कैंडल की भूमिका समझ आती है. जैसा कि समाजशास्त्री जोशुआ गैमसन का कहना है, सेक्स स्कैंडल में मुद्दा सेक्स का नहीं होता बल्कि नैतिक मूल्यों और उन व्यवस्थाओं के उल्लंघन का होता है जो सत्ता में बरकरार रहनी चाहिए.
ऐसा नहीं है कि कम धार्मिक रुढ़िवादी समाज तरह-तरह के गॉसिप पर चटखारे नहीं लेते लेकिन इसे शायद ही कभी राजनीतिक पतन का कारण बनाया जाता हो. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सेक्स लाइफ और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के राजकुमारी कौल के साथ गैर-पारंपरिक रिश्तों को लेकर कई बार दुर्भावनापूर्ण तरीके से अफवाहें उड़ती रहीं लेकिन इनका उनके राजनीतिक पदों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. मुख्यमंत्रियों की बात करें तो एम.जी. रामचंद्रन और जयराम जयललिता के रिश्तों—या अन्य राजनेताओं के बीच इस तरह के रिश्तों को लेकर कयासों का कोई सियासी असर नहीं दिखा.
फ्रांस के बारे में तो ख्यात है कि वहां किसी को राजनेताओं के व्यक्तिगत जीवन में खास दिलचस्पी नहीं होती. और यूनाइटेड किंगडम में बदलते मूल्यों का नतीजा है कि दशकों पहले क्रिस्टीन कीलर मामले के बाद से वास्तव में कोई सेक्स स्कैंडल सामने नहीं आया है.
नैतिकतावादी अभियानों के नतीजे अक्सर घातक साबित हुए है. फ्रांस से राजा हेनरी तृतीय के समलैंगिक होने की अफवाहों की वजह से ही 1589 में एक मांक जैक्स क्लेमेंट ने उन्हें मार डाला था. इतिहासकार अन्ना क्लेमेंट्स लिखती हैं, अठारहवीं शताब्दी के लंदन में भीड़ को ‘यौन उत्पीड़न के आरोपी पुरुषों को पत्थर मारकर सजा देने में आनंद मिलता था.’ इसी तरह, विल्क्स ने जॉर्ज तृतीय की दरबार की शुद्धता को लेकर पूर्वाग्रहों को ही अपना हथियार बनाया था.
पाकिस्तान में मौजूदा संकट का इस्तेमाल तो यह पता लगाने में किया जाना चाहिए था कि इस्लामी गणराज्य वाले मूल्यों का क्या असर रहा है और इन्हें कैसे चुनौती दी जा सकती है. लेकिन इसके बजाये राजनेता कीचड़ उछालने वाली राजनीति के जरिये एक-दूसरे को पाखंडी साबित करने में जुटे हैं. और ऐसा करके वो वास्तव में किसी शुद्धतावादी—अपनी कठमुल्ला सोच थोपने को तैयार बैठे किसी तानाशाह—के सत्ता अपने हाथ में लेने का रास्ता खोल रहे हैं.
(अनुवाद: रावी द्विवेदी)
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लेखक दिप्रिंट के नेशनल सिक्योरिटी एडिटर हैं. वह @praveenswami पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.
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