वाराणसी: पूर्वी उत्तर प्रदेश और उसके आसपास के क्षेत्रों की करीब 20 करोड़ जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के लिए काशी में पूर्णरूप से स्वतंत्र एम्स बनाने की मांग को लेकर हृदय रोग विशेषज्ञ डाक्टर ओमशंकर का आमरण अनशन लगातार पांचवा दिन भी जारी है. डॉ. ओमशंकर का हाल-चाल लेने अभी तक प्रशासन की तरफ से कोई भी नहीं पहुंचा है. उनकी प्रमुख मांगों में काशी में बीएचयू से अलग एक संपूर्ण एम्स की स्थापना की है और केंद्र तथा राज्यों के कुल बजट का 10 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य बजट के तौर पर आवंटन किया जाना है. इनकी सारी मांगों की लिस्ट देखिए.
क्या है एम्स
एम्स यानी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, भारत में ‘कम खर्च पर बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं’ प्रदान करने वाले अस्पतालों का समूह है, जिसकी स्थापना सबसे पहले नई दिल्ली में 1956 में की गयी थी. पहले एम्स की अपार सफलता के बाद इसे पूरे देश में स्थापित करने की शुरुआत हुई, जिसके तहत अब तक 22 एम्स बनने के लिए घोषित किए जा चुके हैं. इनमें से कई की निर्माण प्रक्रिया अभी भी चल रही है. ऐसे अस्पतालों में कैंसर, किडनी, लिवर तथा हृदय ट्रांसप्लांट जैसी विशिष्ट सुविधाएं निजी अस्पतालों की तुलना में बहुत कम शुल्क में उपलब्ध होती हैं. 2022 तक हर राज्य में एक एम्स खोलने का विचार है. एम्स में मिलने वाली गुणात्मक सुविधाओं की ही वजह से ये इलाज कराने के लिए देश के प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति से लेकर आम आदमी तक की पहली पसंद बना हुआ है.
काशी में एम्स क्यों
जब पूरी दुनिया में चिकित्सा व्यवस्था नहीं थी तब भी काशी में दुनियाभर से लोग अपना इलाज कराने आते थे. बनारस के बीएचयू स्थित सर सुंदरलाल अस्पताल में बिहार और पूर्वांचल से करीब 15 हजार लोग हर दिन इलाज कराने के लिए आते हैं.
लोगों का तर्क है कि जब गोरखपुर जैसे छोटे शहरों में मेडिकल कालेज और जपानी बुखार इलाज के लिए अलग से केंद्र होने के बाद एम्स बनवाया जा सकता है, पटना में 3 सरकारी अस्पताल होने के बावजूद एम्स बनवाया जा सकता है, सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में एम्स बनवाया जा सकता है तो फिर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में बेहतर स्वास्थ सुविधाओं के लिए एम्स क्यों नहीं.
‘एम्स’ और ‘एम्स जैसे’ में क्या अंतर है ?
‘एम्स’ और ‘एम्स जैसे अस्पतालों’ में एक बड़ा अंतर देखने को मिलता है. ‘एम्स’ स्वास्थ्य विभाग के अधीन होता है, जिनके पास कम अस्पताल और भारी मात्रा में अनुदान होता है, जबकि ‘एम्स जैसा अस्पताल’ यूजीसी व एमएचआरडी के अधीन होता है, जिनके पास सीमित संसाधन होते हैं. जिसकी वजह से ऐसे अस्पतालों को मिलने वाली सहयोग राशियों में जमीन आसमान का अंतर होता है.
बीएचयू में क्यों नहीं खुल सकते एम्स
बीएचयू के अंदर एम्स जैसा अस्पताल खोलने के लिए न तो नए निर्माण के लिए जगह है और न ही एम्स जैसे योग्य चिकित्सकों की टीम. बीएचयू के अंदर एम्स खुलने से वो बीएचयू प्रशासन के नियंत्रण में आ जाएगा. बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में सुविधाओं के अभाव के अलावा प्रशासनीय ढांचे में भी कमी है. जब एम्स बनाने वाली कमेटी का अध्यक्ष फिजी से फरार एक मुजरिम हो, वहां पारदर्शिता की उम्मीद करना थोड़ा मुश्किल है. यही नहीं बीएचयू अस्पताल से जुड़े भ्रष्टाचार के कई केस उजागर भी हुए हैं.
ऐसे में बीएचयू के वर्तमान प्रशासनिक ढांचे में एम्स जैसा बदलाव का मतलब बीएचयू एक्ट में संशोधन किए बगैर अस्पताल की व्यवस्थाओं को पारदर्शी और स्वस्थ बनाना बिल्कुल असम्भव है.
इसलिए डॉ ओमशंकर के अनुसार, ‘दूसरा और सबसे बेहतर विकल्प है बीएचयू से बाहर नया एम्स या तो 150 एकड़ में फैले सब्जी अनुसंसधान केंद्र,अदलपुरा में कराया जाए या ठीक उसके बाउंड्री से सटे 300-400 एकड़ राज्य सरकार के खाली पड़े शहंशाहपुर फार्म हाउस पर कराया जाए, जहां पिछले ही साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘पशु मेला’ में शिरकत करने गए थे’.
कौन हैं डॉ. ओमशंकर
पिछले चार दिनों से आमरण अनशन पर बैठे डॉ. ओमशंकर बिहार के मधेपुरा जिला के बाराटेनी गांव का रहने वाले हैं. उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई. इसके बाद उन्होंने गया के मगध मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया. 2001 में ऑल इंडिया पीजी एंट्रेस एग्जाम में टॉप करने वाले डॉ ओम ने बीएचयू से एमडी किया. कई प्राइवेट अस्पतालों में काम करने के बाद 2011 में वे बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग में बतौर सहायक प्रोफेसर नियुक्त हुए.
ऐसा क्या हुआ कि आंदोलन छेड़ दिया
लगभग आठ सालों से बीएचयू में कार्यरत डॉ. ओमशंकर बीएचयू में स्वास्थ सेवाओं से संबधित आंदोलन के अगुआ रहे हैं.
दिप्रिंट से बातचीत में डॉ. ओमशंकर बताते हैं, ‘यह एक स्वास्थ्य क्रांति है और इसकी नींव मेरे मन में बचपन में ही पड़ गई थी, जब मेरे 12 वर्षीय छोटे भाई की पैसे के अभाव में इलाज नहीं होने से मौत हो गई थी. उसे इन्सेफ़ेलाइटिस था और वह इस भयानक बीमारी से 8 साल तक जूझ रहा था. तभी से मैंने ठान लिया कि मुझे सामाजिक कार्य करना है.’
डॉ ओमशंकर आगे बताते हैं कि, ‘जब मैं बतौर कार्डियोलॉजिस्ट बीएचयू आया था तब वहां हृदय की सर्जरी करने के लिए ‘एनजीओग्राफी’ और ‘एनजीओप्लास्टी’ का प्रयोग नहीं किया जाता था. तब इस बेहद उपयोगी चीज को कानूनी अपराध बताया गया था. बीएचयू प्रशासन की तमाम दिक्कतों को झेलते हुए भी मैंने सबसे पहले इस सेवा को प्रयोग में लाया. और बनारस के इतिहास में पहली बार 30 अगस्त 2011 को एंजीयोपलास्टी किया गया. आज इस तकनीक की मदद से लाखों मरीजों की जान बच चुकी है.’
कुछ लोग यह आरोप लगा रहे कि यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित है. इस पर डॉ ओमशंकर बताते हैं कि उन्हें कभी कोई पार्टी नहीं ज्वाइन करना है. उनका मकसद केवल समाज के लिए कुछ अच्छा कार्य करना है.
‘मैं राजनीति करता नहीं हूं, लेकिन सभी राजनीतिक दलों से स्वस्थ राजनीति कराता हूं. जाति, धर्म की राजनीति से ऊपर उठकर विकास की राजनीति में विश्वास रखता हूं.’
एम्स जो बने हैं उनमें से ज्यादातर सुचारू रूप से काम नहीं कर रहे. ऐसे में एक नए एम्स की मांग कितनी हद तक जायज है?
इसके जवाब में डॉ ओम शंकर कहते हैं कि, ‘मेरा मकसद केवल बनारस में एक एम्स बनाना नहीं है बल्कि पूरे देश में हर 6 करोड़ की अबादी पर एक एम्स बनवाना है. जो एम्स आजतक बने हैं उनके सही ढंग से काम नहीं करने की वजह उनका लोकेशन है. जिन जगहों पर उन्हें खोला गया है वे बहुत दूर दराज इलाकों में हैं जहां अगर मॉरल ग्राउंड पर देखें तो कोई काम करना नहीं चाहेगा. एम्स कोई एक दिन का प्रोजेक्ट नहीं है. इसे बनाने के लिए आपको अपनी प्राथमिकता निर्धारित करनी पड़ेंगी.’
वे आगे बताते हैं, ‘जबकि काशी में बीएचयू से बाहर बनने वाले एम्स के मामले में ऐसा नहीं है. यहां जिस जगह पर हम लोग एम्स खोलने की मांग कर रहे वो जगह काम करने के लिए उपयुक्त है.’
अगर एम्स बन गया तो क्या होगा
बीएचयू के बाहर एम्स बनाने की स्वीकृति मिली तो अनुदान बढ़ जायेगा. जहां शिक्षकों, नर्स तथा कर्मचारियों का वेतन बढ़ेगा. वहीं लगभग 4000 नई नियुक्तियों के साथ अस्पताल में बेड की संख्या 2500 के आसपास हो जाएगी. इसका सीधा लाभ बेहतर इलाज के लिए आए मरीजों को होगा. अस्पताल को प्रति बेड मिलने वाला अनुदान सलाना करीब 10 लाख होगा.